
ओडिशा (उड़ीसा) राज्य के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर को ‘धरती का बैकुण्ठ’ कहा जाता है। सनातनी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा शुभ फल की प्राप्ति होती है। हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक पुरी का जगन्नाथ मंदिर श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है।
जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पूजा-अर्चना की जाती है। किन्तु क्या आप जानते हैं जगन्नाथ मंदिर में लंकापति रावण के भाई विभीषण की भी वंदना की जाती है। अब आप सोच रहे होंगे कि जगन्नाथ मंदिर में नारायणावतार भगवान श्रीराम के परमभक्त विभीषण की वंदना क्यों की जाती है?
इतना ही नहीं, पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के झण्डे, सुदर्शन चक्र, महाप्रसाद आदि से जुड़े 12 रहस्य भी हैं जो विज्ञान के लिए आजतक अबूझ पहले बने हुए हैं। ऐसे में यदि आप भी जगन्नाथ मंदिर से जुड़े 12 रहस्यों तथा विभीषण वंदना का इतिहास जानने को इच्छुक हैं तो यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास
ओडिशा (उड़ीसा) राज्य के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर अपनी रथयात्रा के लिए विश्वविख्यात है। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की दूज से शुरू होने वाली रथयात्रा में शामिल होने के लिए देश-विदेश से भक्त एवं श्रद्धालु आते हैं। ब्रह्म एवं स्कन्द पुराण में ऐसा वर्णित है कि पुरी में भगवान विष्णु स्वरूप पुरूषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए। कालान्तर में पुरूषोत्तम नीलमाधव को श्रीकृष्ण के रूप में पूजा जाने लगा, साथ ही उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) तथा बहन सुभद्रा की भी पूजा होने लगी।
पौराणिक इतिहास के मुताबिक, पुरी के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण सतयुग में राजा इन्द्रद्युम्न ने करवाया था। तत्पश्चात समय-समय पर इस मंदिर का पुनर्निर्माण होता रहा। हांलाकि महाकाव्य महाभारत के ‘वनपर्व’ में पुरी के जगन्नाथ मंदिर का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है।
वहीं केंदुपटना ताम्रपत्र शिलालेख के मुताबिक, जगन्नाथ मंदिर का निर्माणकार्य 11वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरू करवाया था। इसके बाद 4 लाख वर्ग फीट क्षेत्र में फैले तथा एक चहारदीवारी से घिरे जगन्नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार अनंतवर्मन के पुत्र अनंगभीम देव ने 1174 ई.में करवाया।
जगन्नाथ मंदिर से जुड़े साक्ष्यों के अनुसार, मंदिर को 18 आक्रमणों तथा लूट का सामना करना पड़ा। ऐसा उल्लेख मिलता है कि 16वीं शताब्दी में मुस्लिम सेनापति कालापहाड़ ने जगन्नाथ मंदिर पर हमला किया था।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर से जुड़े 12 रहस्य
1. जगन्नाथ मंदिर के शीर्ष पर लगा लाल रंग का भव्य ध्वज सैदव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। यह तथ्य स्वयं में एक रहस्य है।
2. पक्षी कहीं भी उड़ने के लिए स्वतंत्र हैं, परन्तु हैरानी बात यह है कि मंदिर परिसर के ऊपर से कोई भी पक्षी नहीं उड़ते। यहां तक कि मंदिर परिसर के ऊपर से विमान भी नहीं गुजरते हैं, यह एक अनोखी घटना है।
3. जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर सुदर्शन चक्र (नील चक्र) विराजमान है, जो किसी भी दिशा से देखने पर एक जैसा ही दिखता है। अष्ट धातुओं से निर्मित यह सुदर्शन चक्र 36 फीट का है, जिसका वजन तकरीबन एक टन है। इतना वजनी सुदर्शन चक्र मंदिर शिखर तक कैसे पहुंचाया गया होगा, यह आश्चर्य का विषय है।
4. जगन्नाथ मंदिर की रसोई में जो महाप्रसाद बनता है, उसमें मिट्टी के सात बर्तनों को एक के ऊपर एक रखा जाता है किन्तु सबसे ऊपर वाले बर्तन का खाना सबसे पहले पकता है। तत्पश्चात छठें, पांचवे, चौथे, तीसरे, दूसरे और फिर पहले बर्तन का प्रसाद बनकर तैयार होता है।
5. जगन्नाथ मंदिर का कोई न कोई पुजारी बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के प्रतिदिन 45 मंजिला इमारत जितनी ऊंचाई पर चढ़ता है और मंदिर शीर्ष पर लगे झण्डे को बदलता है। मान्यता है कि यदि यह रस्म कैलेंडर में एक दिन के लिए भी छूट जाए तो मंदिर अगले 18 वर्षों तक बंद हो जाता है। यह प्रक्रिया मंदिर स्थापना से ही चली आ रही है।
6. जगन्नाथ मंदिर की इमारत से जुड़ा एक रहस्य यह भी है कि सूर्य की चकाचौंध रोशनी में भी मंदिर की परछाई नहीं बनती है।
7. जगन्नाथ मंदिर में स्थित भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ नीम की लकड़ी से बनी होती है, जो प्रत्येक 12 वर्षों में बदली जाती हैं किन्तु नई मूर्तियों का आकार, रूप और रंग बिल्कुल पुरानी मूर्तियों के समान ही होता है। यह भी एक आश्चर्य है। जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों को बदलने की प्रक्रिया को ‘नबकलेबारा’ कहा जाता है।
8. जगन्नाथ मंदिर में प्रतिदिन 2 हजार से 2 लाख तक श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं। परन्तु हैरानी की बात यह है कि भक्तों के लिए तैयार किए जाने वाले महाप्रसाद का एक निवाला भी कभी बर्बाद नहीं होता है।
9. तूफान हो अथवा तेज हवाएं, पुरी स्थित समुद्र की लहरें हमेशा शांत रहती हैं। हैरानी की बात यह है कि जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करते ही लहरों की आवाज बिल्कुल बंद हो जाती है।
10. जगन्नाथ मंदिर के बड़े रसोईघर में 500 रसोईए अपने 300 सहयोगियों के साथ महाप्रसाद तैयार करते हैं। मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि इनमें एक रसोईघर अदृश्य है जिसे मंदिर के कुछ चुनिन्दा पुजारी ही देख सकते हैं।
11. जगन्नाथ मंदिर में मुख्य द्वार से प्रवेश करने के लिए 22 सीढ़ियां हैं, जिसमें तीसरी सीढ़ी काले रंग की है जिसका रंग अन्य सीढ़ियों से बिल्कुल अलग है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तीसरी सीढ़ी पर ‘यमशिला’ उपस्थित है अर्थात इस सीढ़ी पर मृत्यु के देवता यमराज का वास है।
यमशिला पर पैर रखना बेहद अशुभ माना जाता है। इसीलिए मंदिर में दर्शन करने के लिए प्रवेश करते समय तीसरी सीढ़ी पर अपने पैर रखना चाहिए जबकि लौटते वक्त उस शिला पर भूलकर भी पैर नहीं रखना चाहिए।
12. सामान्यतया देश के सभी जगहों पर हवा का बहाव दिन में समुद्र से ऊपर की ओर होता है और शाम के वक्त हवा का बहाव ठीक इसके विपरीत होता है। जबकि जगन्नाथपुरी में हवा जमीन से समुद्र की ओर बहती है और यह प्रक्रिया शाम को ठीक इसके विपरीत होती है।
जगन्नाथ मंदिर में होती है विभीषण की वंदना
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लंकापति रावण के भाई विभीषण को सनातन के आठ चिरंजीवियों में से एक माना गया है। विभीषण को ब्रह्माजी ने अमरता का वरदान दिया था। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, रावण का वध करने के पश्चात भगवान श्रीराम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया था। वाल्मीकि रामायण में विभीषण को एक धर्मपरायण तथा नारायण भक्त के रूप में चित्रित किया गया है।
पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम के परम भक्त एवं चिरंजीवी विभीषण प्रतिदिन रात्रि में पुरी स्थित मंदिर में आकर पूजा-अर्चना करते हैं। आपको जानकर यह हैरानी होगी कि जगन्नाथ मंदिर में श्रीराम भक्त विभीषण की आजभी वंदना भी की जाती है।
श्रीराम कथा के अनुसार, विभीषण को लंका का राजा बनाने के बाद भगवान श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ जब अयोध्या लौटने लगे तब विभीषण ने अपने आंखों में अश्रु लिए कहा – “हे प्रभु! अब आपके चरण कमलों के दर्शन प्रतिदिन कैसे करूंगा?”
तब भगवान श्री राम ने उत्तर दिया- “विभीषण, तुम प्रतिदिन भगवान जगन्नाथ की पूजा और प्रार्थना करो, जो महासागर के बहुत करीब रहते हैं और तुम उनमें मेरी उपस्थिति देखोगे।” यही वजह है कि विभीषण को जगन्नाथ का भक्त माना जाता है और मंदिर में की जाने वाली विभीषण की वंदना भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्ति का प्रतीक है।
कैसे पहुंचे पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर
यदि आप भी जगन्नाथ मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं तो हवाई मार्ग, रेल मार्ग अथवा सड़क मार्ग के जरिए यहां तक आसानी से पहुंच सकते हैं। पुरी सड़क मार्ग से राज्य के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। ऐसे में आप बस, कैब अथवा निजी वाहन के द्वारा जगन्नाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
इसके अतिरिक्त पुरी रेलवे स्टेशन देश के बड़े शहरों जैसे-दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद आदि से कनेक्टेड है। चूंकि पुरी रेलवे स्टेशन जगन्नाथ मंदिर से महज 3-4 किमी. की दूरी पर है अत: आप ऑटो रिक्शा अथवा टैक्सी आदि के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं।
यदि हवाई मार्ग की बात करें तो ओडिशा का भुवनेश्वर हवाई अड्डा पुरी से तकरीबन 60 किमी. की दूरी पर है। ऐसे में आप हवाई मार्ग से भुवनेश्वर पहुंचने के बाद बस सेवा अथवा कैब के जरिए जगन्नाथ मंदिर तक बड़ी आसानी से जा सकते हैं।
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