
दोस्तों, हिन्दुस्तान में हुक्के का इतिहास तकरीबन 525 साल पुराना है। हुक्का किसी परिचय का मोहताज नहीं है, हुक्के को दुनियाभर में कई नामों से जाता है जैसे- उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान में चिल्लम, कश्मीर में जजीर, मालदीव में गुड़गुड़ा, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, स्विटजरलैंड और वियतनाम में शीशा तथा फिलीपींस में हुक्का को हिटबू व सिन्धी भाषा में यह हुक्को के नाम से विख्यात है।
इजराइल में हुक्के को ‘नारगिलाह’ कहा जाता है, जोकि फारसी शब्द ‘नारगिल’ से बना है। हांलाकि नारगिल भी संस्कृत शब्द ‘नारिकेला’ से बना है जिसका अर्थ- नारियल होता है। ऐसा माना जाता है कि शुरूआत में हुक्के नारियल के खोल से बनाए जाते थे।
जाहिर सी बात है, हुक्के को भी तभी मान्यता मिली होगी जब हिन्दुस्तान में तम्बाकू ने कदम रखा होगा। दरअसल हुक्के के जरिए तम्बाकू पीना कुलीनों के लिए एक शौक माना जाता था। अब आप सोच रहे होंगे कि हुक्का हिन्दुस्तान की देन है। जी नहीं, हुक्के का ऐतिहासिक सफर बहुत लम्बा है, यह फारस (ईरान) से तुर्की (आटोमन साम्राज्य) होते हुए हिन्दुस्तान पहुंचा। ऐसे में हुक्के से तम्बाकू पीने की कहानी बेहद रोचक है।
हिन्दुस्तान में हुक्के का आविष्कारक
यह सच है कि हिन्दुस्तान में हुक्के का जन्म मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में हुआ। ऐसे में हुक्के और तम्बाकू से जुड़ी तीन कहानियां सामने आती हैं, जो निम्नलिखित हैं—
तथ्य .1 – हिन्दुस्तानी शब्द ‘हुक्का’ अरबी मूल का है। हिन्दुस्तान में हुक्के का आविष्कारक मुगल बादशाह अकबर के चिकित्सक अबुल फतह घिलानी को माना जाता है। फतेहपुर सीकरी में कैथोलिक मिशनरियों ने मुगल सम्राट अकबर को तम्बाकू से परिचित करवाया था। इसके बाद तम्बाकू सेवन के लिए अकबर के चिकित्सक अबुल फतह घिलानी ने फतेहपुर सीकरी में एक ऐसा हुक्का तैयार किया जिसके जरिए तम्बाकू से निकले धुएं को पानी के जरिए शुद्ध किया जा सके। हकीम अबुल फतह घिलानी ने यह तर्क दिया कि पानी के जरिए धूम्रपान का दुष्प्रभाव खत्म हो जाता है, जिससे स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं होता है। हांलाकि शोधों में यह तर्क गलत साबित हुआ है।
यद्यपि हिन्दुस्तान से पूर्व फारस (ईरान) और तुर्की में हुक्के की शुरूआत हो चुकी थी। बता दें कि अकबर का चिकित्सक अबुल-फतह गिलानी फारस के उत्तरी प्रांत गिलान का निवासी था। सम्भव है, अबुल फतह घिलानी ने हुक्के के आकार में संशोधन कर इसे अकबर के समक्ष पेश किया हो। इसके बाद यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया।
तथ्य.2 – शहजादे दानियाल का निकाह आदिल शाह की बेटी से तय होने की खुशखबरी देने के लिए बीजापुर से मिर्जा असद कुछ तोहफे लेकर बादशाह अकबर के समक्ष मुगल दरबार में आगरा उपस्थित हुआ। उसके तोहफों में चांदी और सोने की तश्तरियों में एक से बढ़कर एक सामान रखे हुए थे। अकबर ने उन सभी उपहारों का बारीकी से मुआयना किया। इसके बाद मिर्जा असद बेग ने एक छोटी सी चांदी की तश्तरी बादशाह अकबर के सामने पेश की।
उस तश्तरी में नक्काशी की हुई चांदी पाइप, मसाले जैसी कुछ चीज को देखकर अकबर ने मिर्जा असद बेग से पूछा कि ये सब क्या है? तब असद बेग ने कहा कि हुजूर! यह तम्बाकू है, बतौर दवाई आपकी की खिदमत में पेश कर रहा हूं। इसके साथ ही असद बेग ने यह भी कहा कि बादशाह, मक्का-मदीना में सभी लोग तम्बाकू से भलीभांति परिचित हैं।
इसके बाद अकबर के आदेश पर असद बेग ने चांदी से बने उस हुक्के में तम्बाकू सुलगा कर उसके आगे पेश किया। कहते हैं अकबर ने दो-तीन कश मारे। अकबर ने अपने हकीम से पूछा कि क्या हिन्दुस्तान के लोगों को तम्बाकू के बारे में जानकारी है। तब उसने जवाब दिया कि यहां के लोग अभीतक इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, हां यूरोप के लोग तम्बाकू से अच्छी तरह परिचित हैं। हांलाकि इसके बाद अकबर ने कभी तम्बाकू का सेवन नहीं किया परन्तु मुगल भारत में हुक्के के जरिए तम्बाकू पीने की शुरूआत हो चुकी थी।
तथ्य.3— ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर के दरबार में एक पुर्तगाली व्यापारी वर्नेल आया था। पुर्तगाली वर्नेल ने अकबर को एक सुन्दर जड़ाऊ चिलम (हुक्का) और तम्बाकू पेश किया। यह चिलम बादशाह अकबर को बेहद पसन्द आई। इसके बाद पुर्तगाली वर्नेल ने ही अकबर को चिलम में तम्बाकू रखकर धूम्रपान करना सिखाया। अकबर को धूम्रपान करते देख उसके दरबारियों को बेहद आश्चर्य हुआ, इस प्रकार 1609 के आस-पास हिन्दुस्तान में चिलम अथवा हुक्के के जरिए तम्बाकू सेवन की शुरूआत हुई।
देश-विदेश के विभिन्न संग्रहालयों में रखी पेंटिग्स से पता चलता है कि भारतीय शासक वर्ग में जहांगीर, मुमताज महल, बहादुरशाह जफर, मुहम्मद शाह और उसके दरबारी तथा मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम भी हुक्का पीते थे।
कहते हैं, जहांगीर के शासनकाल में तम्बाकू के जरिए धूम्रपान करने की आदत इतना ज्यादा फैल चुकी थी कि बादशाह को इसे प्रतिबंधित करने के लिए सजा निर्धारित करनी पड़ी। जहांगीर के आदेशानुसार, तम्बाकू के जरिए धूम्रपान करने वाले शख्स के पकड़ने जाने पर उसका मुंह काला कर गधे पर बैठाकर पूरे नगर में घुमाया जाता था। बावजूद इसके साल 1623 ई. में सूरत ने तम्बाकू निर्यात करना शुरू कर दिया था। मतलब साफ है, जहांगीर के शासनकाल तक भारत में तम्बाकू की खेती शुरू हो चुकी थी।
हिन्दुस्तान में तम्बाकू की शुरूआत
पुरातात्विक शोधों के मुताबिक, तम्बाकू की उत्पत्ति नॉर्थ और सेन्ट्रल अमेरिका में हुई। साल 1492 में क्रिस्टफ़र कोलंबस जब अमेरिका पहुंचा तब उसे वहां के मूल निवासियों से पहली बार तम्बाकू मिला। इसके बाद जहाजी उस तम्बाकू को यूरोप ले गए। यूरोप में दांत के दर्द और चोटों के इलाज के लिए तम्बाकू को काम में लाया जाता था। उन दिनों यूरोप में ऐसी मान्यता थी कि तम्बाकू हर मर्ज की दवा है।
यदि हिन्दुस्तान की बात करें तो तम्बाकू की खेती का पहला उल्लेख दक्षिण भारत में मिलता है। भारत में तम्बाकू पुर्तगालियों के जरिए पहुंचा। साल 1604-05 में ईस्ट इंडिया कम्पनी का एक एजेंट विलियम मेथवोल्ड के अनुसार, 17वीं सदी के आरम्भ में कोरोमंडल तट में तंबाकू की खेती की शुरुआत हुई। इसके बाद कुछ ही वर्षों में तम्बाकू की खेती का विस्तार हो गया। साल 1622 में स्थिति यह हो गई कि कोरोमंडल का तम्बाकू न केवल स्थानीय डिमांड पूरी कर रहा था बल्कि इसे वर्मा तक निर्यात किया जाने लगा। उपरोक्त तथ्यों से पता चलता है कि 1622-23 ई. के आसपास कारोमंडल और सूरत के क्षेत्रों में तम्बाकू की खेती विस्तृत रूप से शुरू हो चुकी थी।
मुगलकाल में तम्बाकू की पॉपुलारिटी
ब्रिटिश मर्चेंट थामस बाउरी ने साल 1669 और 1679 के बीच हिन्दुस्तान में तम्बाकू के इस्तेमाल के बारे में लिखा है। इसी क्रम में एक जगह थामस बाउरी लिखता है कि “उत्तरी भारत में फकीरों को अन्य वस्तुओं के साथ दान में तम्बाकू भी दिया जाता है, यहां तक कि कोरोमंडल में होने वाली शादियों में पान-सुपारी के साथ तम्बाकू देने का भी रिवाज है”।
बादशाह औरंगज़ेब के शासनकाल में तम्बाकू मुग़लिया साम्राज्य के आय का एक बड़ा स्रोत बन चुका था। पुर्तगाली यात्री निकोलाओ मनूची अपने यात्रा संस्मरण में लिखता है कि “सिर्फ दिल्ली से मुगल खजाने को प्रतिदिन 5 हजार रुपया टैक्स मिलता था।” जाहिर है, तम्बाकू के जरिए पूरे हिन्दुस्तान से मुगल बादशाह को अकूत धन प्राप्त होता होगा।
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