
परम पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब को सिख धर्म में आदिग्रन्थ, गुरुवाणी (गुरबानी) तथा सरूप भी कहा जाता है। सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी के द्वारा गुरु ग्रन्थ साहिब का सम्पादन 1604 ई. में किया गया तथा इस पवित्र ग्रन्थ को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में स्थापित किया गया। 1705 ई. में सिखों के दसवें गुरु श्री गोबिन्द सिंह जी ने गुरु ग्रन्थ साहिब में नौवें गुरु तेगबहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर इसे पूर्ण किया। गुरु ग्रन्थ साहिब में प्रथम छह गुरुओं के उपदेशों के अतिरिक्त अलग-अलग पंथों के प्रमुख 15 संतों की वाणियों को भी समाहित किया गया है। आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि गुरु ग्रन्थ साहिब में ‘हरि’ शब्द का 8344 बार, ‘राम’ शब्द का 2,500 बार, ‘गोबिन्द’ शब्द का 475 बार और ‘अल्लाह’ शब्द का प्रयोग 33 बार किया गया है। गुरु अर्जुन देव जी को अपने पूर्ववर्ती गुरुओं के पत्रादि जैसे दस्तावेज कहां से प्राप्त हुए थे, जिनके संकलन के आधार पर उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब का सम्पादन किया। इस तरह के रोचक तथ्यों को जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।
1- सिख धर्म के प्रथम दस गुरुओं के नाम इस प्रकार हैं- गुरु नानक (सिख धर्म के संस्थापक), गुरु अंगद, गुरु अमर, गुरु राम दास, गुरु अर्जन, गुरु हरगोबिंद, गुरु हर राय, गुरु हर कृष्ण, गुरु तेग बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह। सिखों के 11वें व अंतिम गुरु का नाम गुरु ग्रंथ साहिब है।
2- सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में (1708 ई.) यह कहा था कि गुरु ग्रंथ साहिब ही आख़िरी गुरु होंगे। इसीलिए पवित्र धार्मिक ग्रन्थ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिख धर्म का अंतिम और जीवित गुरु भी माना जाता है।
3- सिखों के सबसे पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को ‘आदिग्रन्थ’ तथा ‘गुरुवाणी’ (गुरबानी) भी कहा जाता है। गुरु ग्रंथ साहिब की प्रत्येक प्रति एक समान है अत: इसे ‘सरूप’ भी कहा जाता है।
4- गुरु ग्रंथ साहिब को जिस भी इमारत में रखा जाता है, उसे गुरुद्वारा माना जाता है। गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु के समान ही रेशमी वस्त्र में रखकर चांदनी के नीचे किसी ऊँची गद्दी पर रखा जाता है और उस पर पुष्पादि चढ़ाकर चंवर डुलाया जाता है।
5- गुरु ग्रन्थ साहिब की रचना गुरुमुखी लिपि में की गई है। मान्यता है कि गुरमुखी लिपि ईश्वर के मुख से निकली है।
6- गुरु ग्रंथ साहिब की एक भौतिक प्रति है जिसे पंजाबी में ‘बीर’ भी कहा जाता है। प्रत्येक बीर में 1,430 पृष्ठ होते हैं, जिन्हें ‘अंग’ कहा जाता है।
7- गुरु ग्रंथ साहिब में छह सिख गुरुओं की रचनाओं के अलावा अन्य पंथ के 15 गुरु संतों की वाणी भी सम्मिलित की गई है।
8- गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरु नानक, गुरु अंगद, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जन और गुरु तेगबहादुर की वाणी शामिल है।
9- गुरु ग्रन्थ साहिब में उपरोक्त छह सिख गुरुओं के अतिरिक्त कबीर दास, नामदेव, संत रविदास, भगत त्रिलोचन जी, फरीद जी, सूरदास, रामानन्द, भगत भीखन जी, भगत बैणी जी, भगत धंना जी, भगत परमानन्द जी, भगत जयदेव जी, भगत सैण जी, पीपाजी, भगत सधनाजी की वाणी को स्थान दिया गया है।
10- गुरु ग्रंथ साहिब में सिख गुरुओं के अतिरिक्त सबसे अधिक शबद कबीर दास (224), सन्त नामदेव (61) और संत रविदास (40) के हैं।
11- 1,430 पृष्ठों वाले गुरु ग्रंथ साहिब में कुल 5,894 शबद हैं।
12- गुरु ग्रंथ साहिब का पहला शबद 'इक ओंकार' मूल मंत्र है। इसका अर्थ है- ईश्वर एक है।
13- सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी समेत प्रथम चार गुरुओं के दस्तावेज गुरु अमरदास के पुत्र मोहन के पास सुरक्षित रखे हुए थे। सिखों के पांचवें गुरु गुरु अर्जन देव ने मोहन से इन दस्तावेजों को लेकर भाई गुरुदास द्वारा गुरुमुखी भाषा में लिपिबद्ध करा दिया।
14- गुरु ग्रन्थ साहिब का सम्पादन सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी ने 1604 में किया।
15- गुरु ग्रन्थ साहिब को 1604 ई. में 30 अगस्त को सबसे पहले अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में रखा गया।
16- सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने 1705 ई. में नौंवे गुरु तेगबहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर इस पवित्र ग्रन्थ को पूर्ण किया।
17- गुरु ग्रन्थ साहिब के गूढ़ आध्यात्मिक उपदेशों को 31 रागों में पिरोया गया है।
18- गुरु ग्रन्थ साहिब की भाषा को 'सन्त भाषा' भी कहते हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब में हिंदी, पंजाबी, लहंडा, ब्रजभाषा, अवधी, भोजपुरी, खड़ी बोली, संस्कृत, सिंधी, मराठी, मारवाड़ी, बंगाली, अरबी और फारसी सहित कई भाषाओं को गुरुमुखी लिपि में लिखा गया है।
19- गुरु ग्रंथ साहिब में राम शब्द 2,500 से अधिक बार आया है। इतना ही नहीं, इस ग्रन्थ में 'अल्लाह' शब्द का 33 बार प्रयोग किया गया है।
20- गुरु ग्रंथ साहिब में सर्वाधिक हरि शब्द का तकरीबन 8344 बार इस्तेमाल किया गया है जबकि गोबिन्द शब्द 475 बार, मुरारी शब्द 97 बार और कृष्ण शब्द 17 बार आया है।
21-गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करने वाला ‘ग्रन्थी’ कहलाता है।
22- गुरुद्वारे के प्रार्थना कक्ष को (जहां गुरु ग्रंथ साहिब को रखा जाता है) ‘दरबार साहिब’ कहा जाता है।
23- गुरु ग्रंथ साहिब को एक तख़्त पर मंजी के नीचे रखा जाता है, दरअसल यह गुरु ग्रंथ साहिब का बिस्तर होता है और इसे ‘मंजी साहिब’ कहते हैं।
24- मंजी साहिब के ऊपर गुंबदनुमा पालकी होती है जो उस पूरी जगह को घेरती है जहाँ गुरु ग्रंथ साहिब रखा जाता है, इसे ‘पालकी साहिब’ कहते हैं।
25-सिख धर्म में बालकों के नामकरण, दीक्षा, विवाह तथा दाह संस्कार आदि के समय गुरु ग्रंथ साहिब की कुछ पंक्तियों का उच्चारण किया जाता है।
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