
भारतीय इतिहास एवं हिन्दी साहित्य में महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक से जुड़े असंख्य प्रसंग वर्णित हैं। भारत का बजुर्ग हो, युवा हो या फिर बच्चा हर कोई हल्दीघाटी के भीषण युद्ध में चेतक की स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता की कहानियों से भलीभांति परिचित है।
हांलाकि आज भी लोगों में इस बात को लेकर उत्सुकता रहती है कि आखिर महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक किस रंग का था, उसकी नस्ल क्या थी और वह किस कद का था? जी हां, इस स्टोरी में हम आपको न केवल चेतक के रूप-रंग से रूबरू कराएंगे बल्कि चेतक से जुड़े ऐसे 25 तथ्यों की जानकारी प्रस्तुत करेंगे जिसे जानकर आप दंग रह जाएंगे।
महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक से जुड़े 25 रोचक तथ्य
1. कुछ लोग कहते हैं कि महाराणा प्रताप का चेतक मारवाड़ी नस्ल का था परन्तु असल में वह काठियावाड़ी नस्ल का घोड़ा था। चेतक को भीमोरा (गुजरात) के चारण व्यापारी मेवाड़ लेकर आए थे।
2. भीमोरा के चारण व्यापारी ने महाराणा प्रताप को तीन घोड़े-चेटक, त्राटक और अटक दिए थे जिनमें केवल चेटक ही उनकी परीक्षा पूर्ण कर सका।
3. महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े का मूल नाम ‘चेटक’ था जिसे बोलचाल की भाषा में ‘चेतक’ कहा जाने लगा। चेतक को स्थानीय लोग ‘रोजो’ भी कहते थे।
4. 18वीं शताब्दी की कृति ‘खुम्माण रासो’ ऐसा पहला ग्रन्थ है, जिसमें महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम ‘चेतक’ लिखा मिलता है।
5. महाराणा प्रताप ने घोड़े चेतक के बदले भीमोरा के चारण व्यापारी को गढ़वाड़ा और भानोल नामक दो गांव भेंट किए थे।
6. चेतक का जन्म गुजरात में चोटीला के पास भीमोरा में हुआ था।
7. काठियावाड़ी नस्ल का होने के कारण ही चेतक नीले रंग जैसा भ्रम उत्पन्न करता था।
8. एक अन्य मतानुसार, महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का रंग नीला था क्योंकि राजस्थान के लोकगीतों में उसके रंग से जुड़े तमाम वर्णन मिलते हैं जैसे- प्रख्यात लोकगीत-"हो नीला घोड़ा रा अस्वार" आदि।
9. एक अन्य किवंदंती के मुताबिक, चूंकि चेतक की आंखें नीले रंग की थी इसलिए उसे ‘नीला घोड़ा’ कहा गया।
10. शक्ति सिंह ने महाराणा प्रताप को ‘नीले घोड़े’ का सवार कहकर पुकारा था।
11. वहीं कुछ विद्वानों के अनुसार, चेतक नीले रंग का नहीं था, मेवाड़ी लोग श्वेत और हल्के धूसर रंग को ‘नीला’ कहते हैं।
12. महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7 फीट 5 इंच थी। इसके बाद उनके भाले, ढाल और दो तलवारों का कुल वजन 208 किलो बताया जाता है। इतना वजन उठाकर रणभूमि में दौड़ने वाला चेतक भारत का एकमात्र शक्तिशाली घोड़ा था।
13. युद्ध के वक्त चेतक के मुंह के आगे हाथी की नकली सूंड लगाई जाती थी, इसका उद्देश्य शत्रु सेना के हाथियों को भ्रमित करना था। इसके पीछे की रणनीति यह थी कि मुगलों के विशालकाय हाथी चेतक को हाथी का बच्चा समझकर हमला नहीं करते थे, जिससे महाराणा प्रताप आसानी से मुगल सेना में प्रवेश कर जाते थे।
14. लोककथाओं में चेतक को ‘मयूर ग्रीवा’ (मोर की गर्दन) के रूप में वर्णित किया गया है।
15. कहीं भी चेतक की ऊंचाई का सटीक वर्णन नहीं मिलता है, परन्तु मारवाड़ी घोड़े सामान्यतया 14 से 16 हाथ के होते हैं। मतलब साफ है, चेतक बहुत ऊँची कदकाठी का नहीं था।
16. चेतक इतना आक्रामक एवं अभिमानी था कि उसे केवल महाराणा प्रताप ही नियंत्रित कर सकते थे इसलिए वह शाही अस्तबल में राजा की तरह शान से घूमता था।
17. ऐसा कहते हैं, महाराणा प्रताप ने चेतक को नहीं अपितु चेतक ने महाराणा प्रताप को चुना था। चेतक केवल ‘योद्धा अश्व’ ही नहीं था अपितु वह महाराणा प्रताप का दोस्त और बेमिसाल सहयोगी भी था।
18. चेतक इतना शक्तिशाली था कि हल्दीघाटी के युद्ध में उसने मुगल सेनापति मानसिंह के हाथी के सिर पर पैर रख दिए, इसके बाद प्रताप ने अपने भाले से मानसिंह पर संहारक प्रहार किया था।
19. मानसिंह के हाथी की सूंड में लगे खंजर से चेतक का एक पैर बुरी तरह घायल हो गया जिसके चलते महाराणा प्रताप को युद्ध मैदान छोड़ना पड़ा।
20. हल्दीघाटी युद्ध के वक्त जब मुगल सैनिकों ने महाराणा प्रताप का पीछा किया तब घायल चेतक एक ही छलांग में जल से भरे हुए 26 फीट चौड़े नाले को (बलीचा गांव के पास) लांघ गया था।
21. महाराणा प्रताप अपने प्रिय घोड़े चेतक की मौत पर पहली बार रोए थे। महाराणा प्रताप ने अपने हाथों से चेतक का दाह संस्कार किया था।
22. राजसमन्द स्थित हल्दीघाटी गांव में चेतक की समाधि बनी हुई है, यह उस स्थान को चिह्नित करता है जहाँ चेतक के गिरने की बात कही जाती है।
23. स्वाभिमान और वीरता के प्रतीक चेतक की मूर्ति उदयपुर के मोती मगरी तथा चेतक सर्किल पर स्थापित की गई है।
24. चेतक घोड़े के नाम पर ही भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर का नाम ‘एच एल चेतक’ रखा गया है।
25. श्यामनारायण पांडेय की कविता हल्दीघाटी को उस समय का सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘देव पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था। कविता की शुरूआती पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं- “रण बीच चौकड़ी, भर-भर कर, चेतक बन गया निराला था, राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था...।”
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