
यह स्टोरी तब शुरू होती है जब 5 जून 1984 की रात इंडियन आर्मी ने खालिस्तानी सर्मथक जनरैल सिंह भिंडरावाले तथा उसके हथियारबन्द अनुयायियों को स्वर्ण मंदिर परिसर से बाहर निकालने के लिए कठोर सैन्य कार्रवाई की। इस सैन्य कार्रवाई को इंडियन आर्मी ने ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ नाम दिया था।
5 जून की रात सिख अलगाववादियों से हुई जबरदस्त भिड़न्त के दौरान इंडियन आर्मी को टैंकों का इस्तेमाल करना पड़ा था। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंडियन आर्मी के टैंकों ने स्वर्ण मंदिर पर तकरीबन 80 गोले बरसाए थे। इस सैन्य कार्रवाई में स्वर्ण मंदिर का अकाल तख़्त पूरी तरह तबाह हो गया था। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्वर्ण मंदिर का सिख पुस्तकालय भी जल गया था।
सिख अलगाववादियों के साथ हुए इस खूनी संघर्ष में इंडियन आर्मी के 100 जवान मारे गए तथा 249 घायल हुए थे। जबकि जनरैल सिंह भिंडरावाले समेत तकरीबन 493 सिख अलगाववादियों की मौत हुई थी। हांलाकि सिख समुदाय के अनुसार, यह संख्या 1,000 से ज़्यादा बताई जाती है। इसके अतिरिक्त 86 सिख घायल हुए थे और तकरीबन 1592 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। स्वर्ण मंदिर पर इंडियन आर्मी की सैन्य कार्रवाई से भारत नहीं अपितु दुनियाभर के सिख समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुई थीं।
स्वर्ण मंदिर पर इंडियन आर्मी के हमले से आहत सिखों ने पूरे भारत में दंगे भड़काए, जिसमें असंख्य लोग मारे गए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इंडियन आर्मी के तकरीबन 2000 सिख सैनिकों ने व्रिदोह कर दिया। इसके बाद क्या हुआ? इसे जानने के लिए यह रोचक इतिहास अवश्य पढ़ें।
स्वर्ण मंदिर पर इंडियन आर्मी का हमला
सिख समुदाय के सबसे पवित्र तीर्थस्थल स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब तथा स्वर्ण गुरुद्वारा नाम से जाना जाता है। अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर का निर्माण गुरु अर्जुन देव ने 1604 ई. में करवाया था। अफगान आक्रमणकारियों विशेषकर अहमद शाह अब्दाली ने स्वर्ण मंदिर को कई बार क्षति पहुंचाई। तत्पश्चात 19वीं शताब्दी के आरम्भ में संगमरमर, तांबे और सोने की पन्नी मढ़कर इसका पुनर्निर्माण किया गया।
अमृत सरोवर तालाब के बीचों-बीच एक छोटे से द्वीप पर स्थित स्वर्ण मंदिर परिसर में कई अन्य महत्वपूर्ण इमारतें भी हैं, जिनमें अकाल तख्त भी शामिल है, जो सिख धर्म के पवित्र ग्रंथों का भंडार और सिख धर्म का मुख्यालय है। इसी स्वर्ण मंदिर में जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसके हजारों हथियारबन्द समर्थकों ने शरण ले रखी थी।
दरअसल साल 1983-84 के दौरान पंजाब में ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसके समर्थकों के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सशक्त हो रही थीं, जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा था। ऐसे में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी साल 1985 में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं। इंदिरा गांधी ने अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए इंडियन आर्मी को ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ चलाने का आदेश दिया।
तत्पश्चात 1 जून 1984 को इंडियन आर्मी के जवानों ने स्वर्ण मंदिर को चारों तरफ से घेर लिया। सिख अलगाववादियों ने स्वर्ण मंदिर परिसर में ख़ासी मोर्चाबंदी कर ली थी तथा भारी मात्रा में आधुनिक हथियार और गोला-बारूद भी एकत्र कर रखा था। पहले भारतीय सेना ने सरेंडर का अल्टीमेटम दिया किन्तु सिख अलगाववादियों ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया और भारी हथियारों से गोलीबारी की। आखिरकार 5 जून की रात सिख अलगाववादियों से हुई जबरदस्त भिड़न्त के दौरान इंडियन आर्मी को टैंकों का इस्तेमाल करना पड़ा।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंडियन आर्मी के टैंकों ने स्वर्ण मंदिर पर तकरीबन 80 गोले बरसाए थे। इस सैन्य कार्रवाई में जनरैल सिंह भिंडरावाले के साथ कोर्ट मार्शल किए गए मेजर जनरल सुभेग सिंह की भी मृत्यु हो गई। वहीं स्वर्ण मंदिर का अकाल तख़्त पूरी तरह तबाह हो गया। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्वर्ण मंदिर का सिख पुस्तकालय भी जल गया।
तत्पश्चात 6 जून को तड़के इंडियन आर्मी ने मंदिर परिसर पर हमला बोल दिया। दिन निकलते-निकलते सिख अलगाववादी हार गए। इंडियन आर्मी की इस सैन्य कार्रवाई के दौरान जहां सेना के 100 जवान मारे गए तथा 249 जवान घायल हुए थे। वहीं तकरीबन 493 सिख अलगाववादी मारे गए। हांलाकि सिख समुदाय के अनुसार, यह संख्या 1,000 से ज़्यादा बताई जाती है। इसके अतिरिक्त 86 घायल हुए थे और तकरीबन 1592 सिखों को गिरफ़्तार किया गया था।
स्वर्ण मंदिर पर इंडियन आर्मी की सैन्य कार्रवाई से भारत नहीं अपितु दुनियाभर के सिख समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुई थीं। ऐसा कहा जाता है कि ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के प्रतिरोध में ही इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो सिख अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने की थी।
इंडियन आर्मी के 2000 सिख सैनिकों का विद्रोह
स्वर्ण मंदिर परिसर में हुई इंडियन आर्मी की सैन्य कार्रवाई के बाद पूरे देश में सिखों ने दंगे भड़काए। दो सिख अंगरक्षकों द्वारा इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हिंसा और भड़क उठी और दिल्ली में गुस्साए हिंदुओं ने हजारों सिखों का नरसंहार कर दिया, इस तांडव को रोकने के लिए सेना बुलानी पड़ी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों में सिर्फ दिल्ली में लगभग 2,800 सिख मारे गए जबकि पूरे देश में तकरीबन 3,350 सिख मारे गए।
स्वर्ण मंदिर पर हुई सैन्य कार्रवाई से सिखों में आक्रोश बढ़ता जा रहा था। बतौर उदाहरण- बेहद शक्तिशाली इंडियन आर्मी के तकरीबन 2000 सिख सैनिकों ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। सिख सैनिकों की बगावत ने भारतीय रक्षा मंत्रालय की चिन्ता बढ़ा दी क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जहां सेना ने कभी भी देश की राजनीति में दखल नहीं दिया।
महाराष्ट्र स्थित पूना (पूणे) सैन्य अकादमी के 43 सिख सैनिकों ने बगावत की शुरूआत की। इन सिख सैनिकों ने सेना के कई वाहनों पर कब्जा कर उन्हें सिख ध्वजों से सुसज्जित कर दिया था। हांलाकि इन सभी को बम्बई में गिरफ्तार कर लिया गया।
इसके बाद बिहार के रामगढ़ छावनी स्थित सिख रेजिमेंट के तकरीबन 600 से अधिक सिख सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। सिखों की इस सैन्य टुकड़ी ने एक ब्रिगेडियर-जनरल एस.सी. पुरी की गोली मारकर हत्या कर दी जब कि छह अन्य अधिकारी घायल हुए थे। विद्रोही सिख सैनिकों ने सेना के वाहनों पर कब्जा कर लिया और और एलएमजी जैसे घातक हथियारों के साथ पंजाब की तरफ चल पड़े।
कहते हैं विद्रोही सिख सैनिकों ने स्वतंत्र राष्ट्र ‘खालिस्तान’ का नारा भी लगाया गया था। विद्रोही सिख सैनिकों ने जैसे ही झांसी को पार किया तभी सागर से महार रेजिमेंट और नॉगांव के मिलिट्री ट्रेंनिग सेन्टर के जवानों ने मोर्चाबन्दी कर भगोड़े सैनिकों को घेर लिया और आगे नहीं जाने दिया।
बिहार स्थित रामगढ़ छावनी के बाद राजस्थान के श्रीगंगानगर में तकरीबन 400-500 सिख सैनिकों ने खुलेआम विद्रोह कर दिया। इतना ही नहीं, ये सभी सिख विद्रोही सेना को चकमा देकर पंजाब में घुस गए। हांलाकि रक्षा मंत्रालय का कहना था कि जनरैल भिंडरावाले के समर्थक सैनिकों के वेष में भारतीय सेना की टुकड़ियों में घुसपैठ कर गए थे।
इतनी बड़ी संख्या में सैनिक विद्रोह के बाद सिख रेजिमेंट की 9वीं बटालियन को भंग कर दिया गया था। इसके अतिरिक्त इंडियन आर्मी ने तकरीबन 2,000 सैनिकों का कोर्ट मार्शल कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि कुछ ऐजेंटों ने यह अफवाह फैलाई थी कि इंडियन आर्मी के जवानों ने न केवल स्वर्ण मंदिर को विध्वंस किया बल्कि पंजाब के आमजन तथा महिलाओं पर भी अत्याचार किए। इस सूचना से आहत सिख सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
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