
वैशाली की नगरवधू आम्रपाली को भारतीय इतिहास में सबसे सुन्दर और धनी गणिका (वेश्या) का दर्जा प्राप्त है। लिच्छवियों की परंपरा के अनुसार, उच्चकोटि की नर्तकी, गायिका एवं अत्यन्त सुन्दरी आम्रपाली को 11 वर्ष की उम्र में ही गणिका बना दिया गया। नगरवधू बनने के बाद आम्रपाली को राज्य के राजा, राजकुमारों तथा अमीरों संग सम्बन्ध बनाने तथा अपना प्रेमी चुनने का अधिकार प्राप्त था।
युवावस्था में आम्रपाली के रूप-सौन्दर्य की चर्चा इतनी ज्यादा फैल गई कि सुदूर देशों के राजकुमार भी उसकी एक झलक पाने के लिए लालायित रहते थे। इतना ही नहीं, बिम्बिसार, अजातशत्रु तथा उदयन जैसे शक्तिशाली राजा भी आम्रपाली के सौन्दर्य रूपी मोहपाश में बंधकर रह गए।
गणिका आम्रपाली के रूप-सौन्दर्य और नृत्य-संगीत देखने की कीमत प्रति रात पचास कार्षापण थी। ऐसे में आम्रपाली का खजाना कुछ राजाओं के राजकोष से भी बड़ा हो चुका था। आपको जानकारी हैरानी होगी कि सौन्दर्य और अपार धन की मलिका आम्रपाली पहली मुलाकात में ही भगवान बुद्ध की शिष्या बन गई। आम्रपाली ने अपना सर्वस्व दानकर तथा केश मुंडवाकर तथा भिक्षा पात्र लेकर बौद्ध भिक्षुणी के रूप में जीवन व्यतीत करने लगी।
अब आप सोच रहे होंगे कि जिस आम्रपाली को देखते ही लोग मंत्र मुग्ध हो जाते थे, वो आम्रपाली स्वयं भगवान बुद्ध के समक्ष नतमस्तक कैसे हो गई? यह गूढ़ तथ्य जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।
सबसे खूबसूरत एवं धनी वेश्या थी आम्रपाली
बिहार स्थित वैशाली गणराज्य की नगरवधू (शाही वेश्या) आम्रपाली को भारतीय इतिहास में अम्बपालिका, अम्बपाली अथवा अमरा आदि नामों से जाना जाता है। चीनी यात्री फाह्यान तथा ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांतों ने आम्रपाली को सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति बताया है।
वैशाली गणतंत्र कानून के मुताबिक, महज 11 वर्ष की उम्र में ही अत्यंत खूबसूरत आम्रपाली को हजारों सुन्दरियों में सर्वश्रेष्ठ सुंदरी घोषित कर सात साल की अवधि के लिए ‘नगरवधू’ अथवा ‘जनपद कल्याणी’ की पदवी प्रदान की गई।
यहां नगर वधू से तात्पर्य है, “अत्यंत सुन्दरी आम्रपाली को राज्य के राजा, राजकुमारों तथा अमीरों संग सम्बन्ध बनाने तथा अपना प्रेमी चुनने का अधिकार प्राप्त था।” उच्चकोटिक की राजनर्तकी, गायिका और अत्यन्त सुन्दरी आम्रपाली शिकार, तीरंदाजी तथा घुड़सवारी आदि में भी निपुण थी। आम्रपाली के रूप-सौन्दर्य की एक झलक पाने के लिए सुदूर देशों के राजकुमार भी लालायित रहते थे। इतना ही नहीं, बिम्बिसार, अजातशत्रु तथा उदयन जैसे शक्तिशाली राजा भी आम्रपाली के सौन्दर्य रूपी मोहपाश में बंधकर रह गए।
गणिका आम्रपाली के रूप-सौन्दर्य और नृत्य-संगीत देखने की कीमत प्रति रात पचास कार्षापण थी। ऐसे में आम्रपाली का खजाना कुछ राजाओं के राजकोष से भी बड़ा हो चुका था। अपने सौन्दर्य के दम पर कई साम्राज्य के राजाओं को अपने चरणों झुकाने वाली गणिका आम्रपाली ने ऐश्वर्य का जीवन त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया और भगवान बुद्ध की शिष्य बन गई।
आम्रपाली की भगवान बुद्ध से मुलाकात
युवा आम्रपाली के शारीरिक सौन्दर्य में गजब का आकर्षण था, हर कोई उसे पाने की चाह रखता था। समस्या इतनी विकट हो चुकी थी कि आम्रपाली पर अधिकार करने को लेकर राजाओं तथा सामन्तों में युद्ध की स्थित बन आती थी। परन्तु आम्रपाली के जीवन में घटित एक घटना ने उसका जीवन ही बदल दिया।
दरअसल राजगृह आते-जाते समय भगवान बुद्ध अक्सर वैशाली में रुका करते थे। वैशाली में भगवान बुद्ध की कीर्ति सुनकर आम्रपाली ने भी उनसे मिलने का निर्णय लिया। सोलह श्रृंगार कर आम्रपाली अपनी परिचारिकाओं संग गंडक नदी के तीर पर पहुँची। जिस आम्रपाली की कृपादृष्टि पाने के लिए उच्च वर्ग के लोग भी लालायित रहते थे, उस आम्रपाली को देखते ही भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा- “तुम लोग अपनी आंखें बन्द कर लो।” दरअसल भगवान बुद्ध जानते थे कि अत्यंत सुन्दरी आम्रपाली को देखने के बाद उनके शिष्यों के लिए संतुलन बनाए रखना कठिन हो जाएगा।
भगवान बुद्ध ने आम्रपाली को ‘आर्या अम्बा’ कहकर सम्बोधित किया और बोले- “तुम दूसरों की सुनी-सुनाई बातों पर मत जाओे, न अफवाहों पर और न ही परम्पराओं पर। यहां तक कि किसी शास्त्र में लिखी बातों पर भी नहीं, तुम्हें स्वयं को जानना चाहिए।”
यह वाक्य सुनते ही आम्रपाली भगवान बुद्ध पर मंत्रमुग्ध हो जाती है क्योंकि आम्रपाली को अब तक ऐसे ही पुरुष मिले थे, जो उसे सिर्फ वासना और चाहत भरी नजरों से देखते थे। किन्तु वह महसूस करती है कि उसके सामने खड़ा महापुरुष केवल उसे अपनी अंतरात्मा पर भरोसा करने को कहता है और उसे करुणा भरी नज़रों से देखता है। इसके बाद आम्रपाली ने अपना संपूर्ण ऐश्वर्य त्यागकर बौद्ध भिक्षुणी बनने का रास्ता चुना।
बौद्ध भिक्षुणी बन गई गणिका आम्रपाली
चर्चित इतिहासकार इरा मुखोटी अपनी किताब ‘हीरोइन्स’ में लिखती हैं कि “सफेद रंग के पारदर्शी कपड़े, सुनहरे रंग का लहंगा तथा बहुमूल्य रत्नों से चमकते आभूषण पहने हुए आम्रपाली ने भगवान बुद्ध के चरण स्पर्श किए और बोली- मुझे भी अपनी शरण में ले लीजिए।” बौद्ध ग्रंथ महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार, “आम्रपाली ने भगवान बुद्ध को उनके शिष्यों सहित अपने उपवन में भोजन के लिए आमंत्रित किया।”
आम्रपाली के निवेदन को भगवान बुद्ध ने स्वीकार कर लिया तत्पश्चात उसने आम्रकानन में भगवान तथागत तथा उनके शिष्यों को स्वयं के हाथों से भोजन करवाया। भोजन उपरान्त भगवान बुद्ध ने आम्रपाली को धम्म का उपदेश दिया। भगवान बुद्ध का उपदेश सुनने के बाद आम्रपाली ने बतौर दक्षिणा आम्रकानन को दान कर दिया और वहां बौद्ध विहार निर्माण करवाने का आग्रह किया।
आम्रपाली ने विलासी जीवन त्यागकर बौद्ध भिक्षुणी बनने का निर्णय लिया किन्तु उन दिनों बौद्ध धर्म में महिला का प्रवेश वर्जित था। हांलाकि आम्रपाली की श्रद्धा,भक्ति और मन की विरक्ति से प्रभावित होकर भगवान बुद्ध ने उसे भिक्षु संघ में प्रवेश का अधिकार प्रदान किया। बौद्ध धम्म के भिक्षु संघ में प्रवेश पाने वाली आम्रपाली पहली महिला थीं। इसके बाद से अन्य महिलाओं को भी भिक्षु संघ में प्रवेश करने का अधिकार मिल गया।
फिर क्या था, गणिका आम्रपाली ने अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा बौद्ध संघ को दान कर दी। यही नहीं, आम्रपाली ने अपने बालने वाले तोते, हाथी दांत, हैंडल वाले दर्पण, नक्काशीदार लकड़ी के मसाले के डिब्बे और रेशम से भरे बक्से आदि भी दान कर दिया जो उसने जीवनभर एकत्र किया था। दरअसल आम्रपाली के जीवन में इन सब वस्तुओं का अब कोई मतलब नहीं रह गया था। आम्रपाली ने अपनी लंबी चोटी कटवा ली और रेशमी वस्त्रों का परित्याग कर संघ के मोटे गेरुए वस्त्र धारण बौद्ध भिक्षुणी बन गई। तत्पश्चात सामान्य भिक्षुणी के रूप में हाथ में भिक्षापात्र लेकर आजीवन धम्म प्रचार में जुटी रहीं। बौद्ध भिक्षुणी बनने के बाद आम्रपाली ने वैशाली राज्य के हित में कई कार्य किए।
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