दोस्तों, आपको याद दिला दें कि साल 1954 में भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता हुआ था जिसके तहत हिंदी-चीनी-भाई-भाई का नारा बुलंदियों पर था। इस समझौते के तहत क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए परस्पर सम्मान, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व, आपस में गैर-आक्रामकता, आपस में गैर-हस्तक्षेप के साथ ही समानता और पारस्परिक लाभ से जुड़े सिद्धांन्तों पर हस्ताक्षर किए गए थे। परन्तु उपरोक्त समझौते पर पानी फेरते हुए चीन ने 1962 ई. में भारत के पीठ में छूरा घोंपा।
नाथूला, सुमदोरोंग चू, तवांग, डोकलाम तथा गलवान संघर्ष चीन की दुस्साहसी कार्रवाई के नमूने हैं, यह अलग बात है कि इन झड़पों में वह भारत की ताकत का बखूबी अनुभव कर चुका है। अभी हाल में ही रूस के कजान शहर में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन-2024 में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक बार फिर से द्विपक्षीय बैठक हुई।
इस दौरान दोनों नेताओं ने एलएसी से सैनिकों के पीछे हटने और साल 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद जो विवाद शुरू हुआ था, उसे सुलझाने के लिए हुए समझौते का स्वागत किया है। इसके साथ ही भारत और चीन ने देपसांग मैदानी क्षेत्र और डेमचोक क्षेत्र में एक-दूसरे को गश्त करने के अधिकार बहाल करने पर भी सहमति जताई है।
आपको याद दिला दें कि साल 2014 से लेकर 2024 के बीच पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 20 मुलाकातें हो चुकी हैं और हर बार व्यापार, सीमा विवाद तथा अन्य सामरिक मुद्दों पर बातें हुईं। बावजूद इसके एलएसी पर चीनी गतिविधियां पूर्ववत जारी ही रहीं। अब एक बार फिर से चीन और भारत ने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया परन्तु सवाल यह उठता है कि क्या चीन अपनी धोखेबाजी से बाज आएगा? चीन कितना धोखेबाज पड़ोसी है, यह जानने के लिए इस स्टोरी को जरूर पढ़ें।
तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को भारत ने दी शरण
चीन ने अपनी शक्ति के दम पर दुनिया की छत कहे जाने वाले तिब्बत पर 23 मई 1951 को कब्जा कर लिया। उस वक्त तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने भी तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया परन्तु जब साल 1959 में चीन ने दलाई लामा को बीजिंग बुलाया तो वह सैनिक वेष में 14 दिन की लम्बी यात्रा तय कर मार्च 1959 में भारत भाग आए।
यही नहीं, दलाई लामा के भारत आने के एक साल के भीतर तकरीबन 80 हजार तिब्बती भी भारत आ गए। तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को शरण देने के कारण चीन बौखला उठा जो साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के कारणों में से एक था। हांलाकि शुरूआत में भारत ने तिब्बत पर चीनी कब्जे को मान्यता नहीं दी थी लेकिन साल 2003 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया।
भारत-चीन युद्ध (1962)
1950 ई. में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन ने नेपाल, भूटान, सिक्किम के कई बिन्दुओं पर भारत के साथ सीमा विवाद शुरू कर दिया। चीन ने अक्साई चीन के रास्ते एक सड़क बनाकर तिब्बत को झिंजियांग से जोड़ने की कोशिश की। जबकि भारत ने अक्साई चीन के क्षेत्र को लद्दाख का हिस्सा बताया।
साल 1959 से 1962 के बीच भारत और चीनी सेना के बीच कई छुटपुट झड़पें हुईं। तत्पश्चात 20 अक्टूबर 1962 को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने भारत के लद्दाख में जोरदार हमला किया जिसमें तकरीबन 7000 सैनिक मारे गए तथा बन्दी बनाए गए। इस युद्ध में भारत बुरी तरह पराजित हुआ। हांलाकि अर्न्तराष्ट्रीय दबाव में चीन ने 20 नवंबर 1962 को एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की, लेकिन उसने भारत के 38,000 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया जो आज तक बरकरार है।
नाथू ला का भीषण युद्ध (1967)
भारतीय सेना ने 1967 के अगस्त महीने में सिक्किम के नाथू ला में एलएसी पर जब कटीले तारों की घेराबंदी शुरू की तब चीनी सेना आक्रमक हो उठी। हांलाकि चीनी सैनिकों के प्रतिरोध पर यह काम रोक दिया गया परन्तु सितम्बर महीने में भारतीय सैनिकों ने तारबंदी का काम दोबारा शुरू किया। फिर क्या था, 1962 की विजय से चीन आक्रामक हो चुका था अत: चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया। इस भयावह संघर्ष में चीन के तकरीबन 400 सैनिक मारे गए वहीं भारत के 88 सैनिक शहीद हुए। स्थिति यह हो गई थी कि चीन अपने सैनिकों का शव लेने से भी आनाकानी करने लगा।
सुमदोरोंग चू की झड़प (1987)
साल 1987 में भारत और चीन के बीच तवांग और तिब्बत के कोना काउंटी की सीमा पर स्थित सुमदोरोंग चू घाटी में सैन्य झड़प हुई थी। इस सैन्य झड़प की शुरूआत तब हुई जब चीन ने एक सैन्य बटालियन को वांगडुंग में भेजा जो सुमदोरोंग चू के दक्षिण में स्थित एक चारागाह है, जिसे भारत अपना क्षेत्र मानता है।
इस सैन्य संघर्ष में चीन के कुछ सैनिक हताहत हुए थे। इस झड़प के बाद चीन और भारत के सैनिक बड़ी संख्या में सीमा पर तैनात कर दिए गए थे। परन्तु मई 1987 में भारतीय विदेश मंत्री की बीजिंग यात्रा के बाद एक बड़ा संघर्ष टल गया।
तवांग झड़प (2022)
अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर को चीन दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। तवांग में चार सौ साल पुरानी बौद्ध मठ की मौजूदगी को चीनी दावे की एक वजह बताई जाती है। वहीं भारत तवांग को अपना क्षेत्र कहता है। तवांग में चीनी घुसपैठ को लेकर पूर्व में भी भारतीय सैनिकों के साथ झड़प हो चुकी थी परन्तु साल 2022 के दिसम्बर महीने की नौ तारीख को चीनी सैनिकों ने दोबारा घुसपैठ की कोशिश की। इस दौरान भारतीय सैनिकों ने तवांग में 600 चीनी सैनिकों को खदेड़ा जिसमें दोनों तरफ से कई सैनिक घायल भी हुए। इस दौरान घायल हुए 6 भारतीय सैनिकों को इलाज के लिए गुवाहाटी लाया गया था। हांलाकि ज्यादा संख्या में चीनी सैनिक भी घायल हुए थे, उनके कई सैनिकों की हड्डियां भी टूटी थीं।
डोकलाम विवाद (2017)
सिक्किम बॉर्डर के नजदीक ट्राई-जंक्शन प्वाइंट पर स्थित डोकलाम पर चीन और भूटान दोनों ही दावा करते हैं। वहीं भारत डोकलाम पर भूटान के दावे का समर्थन करता है। साल 2017 में 18 जून को तकरीबन 300 भारतीय सैनिकों ने बुलडोजर्स के साथ जाकर चीन द्वारा बनाई जा रही सड़क को रोक दिया।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भविष्य में भारत और चीन के बीच संघर्ष की स्थिति बनती है तो चीन इस सड़क का इस्तेमाल सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर कब्जे के लिए कर सकता है। अत: भारत का कहना था कि चीन इस विवादित जगह पर सड़क नहीं बना सकता। इस दौरान भी चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच गम्भीर सैन्य गतिरोध देखने को मिला।
गलवान घाटी में हिंसक झड़प (2020)
लद्दाख में एलएसी पर पेट्रोलिंग प्वाईंट्स को लेकर जून 2020 में भारत और चीनी सैनिकों के बीच एक हिसंक झड़प हुई थी जिसमें चीनी सैनिकों ने निहत्थे भारतीय सैनिकों पर एकतरफा घातक हमला किया था, इस दौरान भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे। वहीं भारतीय सैनिकों की जवाबी कार्रवाई में चीन के 40-45 सैनिक ढेर हो गए थे। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों तथा रूस ने इस बात की पुष्टि की, बावजूद इसके चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने अपने सैनिकों के बारे में कभी आधिकारिक आंकड़े नहीं जारी किए। इसके बाद से ही एलएसी पर भारत और चीन के बीच तनाव जारी था।
इसे भी पढ़ें : महात्मा गांधी पर जारी 151 देशों के डाक टिकटों का रोचक इतिहास
इसे भी पढ़ें : बिहार और यूपी के इन राजपूतों का नाम सुनकर कांपते थे अंग्रेज