यदि भारत में चाय के लोकप्रियता की बात की जाए तो इस पेय पदार्थ के यहां इतने दीवाने हैं कि दो वक्त का खाना छोड़ सकते हैं लेकिन चाय पीना नहीं छोड़ सकते। आप को यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की 80 फीसदी चाय केवल भारतीय पीते हैं। हमारे देश में घर से लेकर सड़क तक तथा होटल से लेकर टपरी तक, हर जगह चाय मिलती है।
इन सबके बावजूद यह बात अंग्रेजों के समय से ही प्रचारित-प्रसारित की गई है कि चाय का जन्मदाता भारत नहीं बल्कि चीन है। बतौर उदाहरण- आज भी मार्शल आर्ट का जनक चीन को बताया जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि चीन को मार्शल आर्ट की विद्या सिखाने वाला एक महान भारतीय बौद्ध भिक्षु था, जिन्हें हम बोधिधर्म के नाम से जानते हैं। ठीक उसी प्रकार से चाय का जन्मदाता भी भारत ही है, चीन नहीं। इस तथ्य को जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
भारत है चाय का जन्मदाता, इससे जुड़े दो महत्वपूर्ण तथ्य-
1-भारतीय बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म की देन है चाय
दक्षिण भारत के कांचीपुरम के राजा स्कंद वर्मन के तीसरे पुत्र थे बोधिधर्म। बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म एक विलक्षण योगी थे। भगवान बुद्ध की गुरु-शिष्य परम्परा में बोधिधर्म अट्ठाइसवें और अन्तिम गुरु हुए।
बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म जब समुद्री मार्ग से चीन पहुंचे तब उनकी आयु महज 22-23 साल थी। 520 या 526 ई. में चीन जाकर ध्यान-सम्प्रदाय (झेन बौद्ध धर्म) का प्रवर्तन या निर्माण किया। बोधिधर्म ने शाओलिन मंदिर में बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ-साथ, एक अलग प्रकार के शारीरिक और मानसिक व्यायाम का भी प्रचार किया जिसे मार्शल आर्ट के रूप में जाना जाता है। अत: शोओलिन कुंग-फू यानि मार्शल आर्ट के जनक बोधिधर्म हैं।
बौद्धभिक्षु बोधिधर्म जब चीन पहुंचे तब उत्तरी चीन के तत्कालीन राजा बू-ति ने उनके दर्शन की इच्छा प्रकट की। राजा के निमंत्रण पर बोधिधर्म उनसे मिलने पहुंचे इसके बाद नान-किंग में उन दोनों की मुलाकात हुई। राजा बू-ति और बोधिधर्म के बीच धर्म संलाप हुआ।
हांलाकि इस वार्तालाप के दौरान बोधिधर्म के उत्तरों से राजा बू-ति संतुष्ट नहीं हुआ। इसके बाद बोधिधर्म चीन के हुनान प्रान्त में एक पहाड़ी पर जाकर साधना करने लगे। महान बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म बिना सोए ही ध्यान साधना किया करते थे। निद्रा से मुक्ति के लिए वह एक खास पौधे की पत्तियां चबाते थे जिसे बाद में चाय के पौधे के रूप में पहचाना गया।
चीन में बोधिधर्म से जुड़ी एक दन्तकथा यह है कि एक दिन बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म ध्यान करते हुए सो गए, इस बात का उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ और फिर क्रोध में आकर उन्होंने अपनी पलकें काटकर जमीन पर फेंक दी। जहां उन्होंने अपनी पलके फेंकी वहां हरी पत्तियां उग आईं जिसे बाद में चाय के रूप में पहचाना गया।
यह सच है कि जनमानस में व्याप्त दन्तकथाओं में एक संदेश छुपा होता है और इस दन्तकथा का एकमात्र संदेश यही हैं कि चीन को चाय से परिचित कराने वाले भारतीय बौद्ध भिक्षु का नाम बोधिधर्म है।
2- असम के कबाइली लोग पीते थे चायपत्ती का काढ़ा
चाय से जुड़ी एक सर्वप्रचित स्टोरी के मुताबिक, 1815 ई. में कुछ अंग्रेज यात्रियों ने असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों को देखा था। इसके बाद 1834 ई. में ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने असम के कुछ क़बाइली लोगों को चाय की पत्तियां को उबालकर पीते हुए देखा, इन पत्तियों का इस्तेमाल स्थानीय निवासी दवाई के रूप में करते थे। अत: विलियम बेंटिक ने असम के लोगों को चाय की जानकारी दी, इस प्रकार भारत में चाय की शुरूआत हुई।
यह सम्भव है कि अंग्रेजों ने असम के लोगों को चाय से परिचित करवाया परन्तु उपरोक्त तथ्यों से यह साबित होता है कि असम के स्थानीय लोग पहले से ही चाय की पत्तियों का इस्तेमाल करना जानते थे। इस प्रकार भारतीय बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म और असम के कबाइली लोगों से जुड़े तथ्यों से यही साबित होता है कि चाय का असली जन्मदाता भारत ही है, जिसका फायदा चीनीयों और अंग्रेजों ने उठाया।
चीन से जुड़े चाय का इतिहास
उपरोक्त तथ्यों के विपरीत चाय की उत्पति चीन से मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि 2732 बीसी में चीन के शासक शेंग नुंग के लिए पानी गर्म किया जा रहा था तभी उबलते पानी में कुछ पत्तियां गिर गईं, इसके बाद राजा शेंग नुंग ने देखा कि अचानक पानी का रंग बदलने लगा और उसमें अच्छी खुशबू आने लगी। जब राजा ने इस पानी को पिया तो इसका स्वाद उसे बहुत पसन्द आया, जिसका नाम राजा शेंग नुंग ने चा.आ रखा जो कालान्तर में चाय में परिवर्तित हो गया।
भारत में चाय की खेती
कहा जाता है कि अंग्रेजों ने चाय पर चीन के एकाधिकार को खत्म करने के लिए भारत में चाय की शुरुआत की थी। जबकि हकीकत यह है कि अंग्रेजों ने भारत में चाय का उत्पादन सिर्फ इसलिए शुरू किया ताकि ब्रिटेन के बाजारों में चाय की मांग पूरी की जा सके।
लार्ड विलियम बेंटिक ने भारत में चाय उत्पादन के लिए एक समिति का गठन किया। तत्पश्चात 1835 ई. में पहली बार चाय के बाग लगाए गए। चाय की इस जंगली प्रजाति को पहली बार खेती के लिए इस्तेमाल किया गया। इस प्रकार असम के मैदानों में चाय की खेती का विकास हुआ।
इसके बाद अंग्रेजों ने 1850 के दशक में दार्जिलिंग शहर के पहाड़ी क्षेत्रों में चाय के बागान लगवाए। साल 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार, दार्जिलिंग शहर में अभी 87 चाय बागान हैं। बता दें कि असम की चाय तेज सुगंध और रंग के लिए प्रसिद्ध है, वहीं दार्जिलिंग की चाय सबसे ज़्यादा स्वादिष्ट होती है।
19वीं सदी के आखिर में अंग्रेजों ने दक्षिण भारत के पहाड़ी क्षेत्रों (विशेषरूप से प्रसिद्ध नीलगिरी पर्वत) में चाय के बागान लगवाए। चूंकि नीलगिरी पर्वत पर कोहरा छाया रहता है, जिससे यह नीला दिखाई देता है, इसीलिए इस पहाड़ का नाम नीलगिरी पड़ गया। जानकारी के लिए बता दें कि असम, पश्चिमी बंगाल और नीलगिरी क्षेत्र के अतिरिक्त मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में भी चाय की खेती होती है।
भारत में चाय उत्पादन
चाय उत्पादन के क्षेत्र में भारत विश्व में पहले पायदान पर था परन्तु अब इस क्षेत्र में चीन काबिज हो चुका है। अर्थात दुनिया में भारत चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में प्रति वर्ष 900,000 टन से अधिक चाय का उत्पादन होता है।। भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य असम है, इसके बाद पश्चिम बंगाल का नम्बर आता है।
चीन और भारत के बाद श्रीलंका और कीनिया चाय उत्पादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। बतौर उदाहरण- श्रीलंका की राष्ट्रीय आय चाय के निर्यात पर ही निर्भर है।
दुनिया में सबसे ज्यादा चाय की खपत भारत में होती है। भारत में चाय उत्पादन का 80 फीसदी हिस्सा घरेलू आबादी द्वारा उपभोग किया जाता है। दुनिया के शीर्ष 5 चाय निर्यातक देशों में शमिल भारत 25 से अधिक देशों को चाय निर्यात करता है।
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