भारत में देश के विभाजन को एक महान दुर्घटना माना जाता है। तकरीबन सवा सौ करोड़ लोग अपना घरबार छोड़कर पलायन करने पर मजबूर हुए। बंटवारे के दौरान हुई साम्प्रदायिक हिंसा में 10 से 15 लाख लोग मौत के घाट उतार दिए गए। भारत सरकार के दावे के अनुसार, तकरीबन 55000 हिन्दू-सिख महिलाओं का बलात अपहरण किया गया। वहीं पाकिस्तानी सरकार ने दावा किया कि साम्प्रदायिक हिंसा में तकरीबन 12000 मुस्लिम महिलाओं का अपहरण किया गया। विश्व इतिहास का यह एक ऐसा बंटवारा था जिसमें रेलवे, संस्थान तथा पुस्तकालयों के साथ-साथ टाइपराइटर और कुर्सी-टेबल तक के लिए छीना-झपटी हुई। इतनी हिंसा और पलायन के बावजूद भारत-पाकिस्तान के लोग इस बंटवारे से आजतक नाखुश हैं।
आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि ब्रिटेन ने भारत विभाजन के लिए जिस शख्स को भारत भेजा, वह पहली बार यहां आया था। उसे भारत के इतिहास-भूगोल की तनिक भी जानकारी नहीं थी बावजूद इसके बंटवारे के लिए उसे सिर्फ एक महीने का समय दिया गया था। जी हां, उस शख्स का नाम था सर सीरिल रेडक्लिफ। इस स्टोरी में हम बताएंगे कि भारत और पाकिस्तान के बीच ‘रेडक्लिफ लाइन’ खींचने वाले सर रेडक्लिफ ने आखिर किस प्रकार से भारत जैसे विशाल देश का विभाजन किया था।
लॉर्ड माउंटबेटन प्लान
भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को भारत विभाजन की औपचारिक घोषणा कर दी थी। परन्तु ब्रिटिश संसद ने माउंटवेटन प्लान को 8 जुलाई 1947 को पारित किया। माउंटवेटन प्लान को 'डिकी बर्ड प्लान' भी कहा जाता है। भारत के बंटवारे के लिए ब्रिटेन से 8 जुलाई 1947 को ही अचानक एक अंग्रेज सर सीरिल रेडक्लिफ को बुलाया गया। यह शख्स पहले कभी भारत नहीं आया था, ऐसे में उसे यह भी नहीं पता था कि लाहौर कहां हैं और बंगाल कहां है। हैरानी की बात यह है कि इस बंटवारे के लिए सीरिल रेडक्लिफ को महज पांच सप्ताह का समय दिया गया था। भारत में रेडक्लिफ ने लॉर्ड माउंटबेटन से मुलाकात के बाद सीमा आयोग के सदस्यों से मिलने के लिए कोलकाता और लाहौर की यात्रा की।
सर सिरिल रेडक्लिफ का परिचय
ब्रिटेन के वेल्स स्थित डेनबिगशायर में जन्मे सर सिरिल रेडक्लिफ के पिता आर्मी में कैप्टन थे। सर सीरिल रेडक्लिफ ने ब्रिटेन के हेली बेरी कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात ऑक्सफोर्ड में कानून की पढ़ाई कर एक प्रख्यात वकील बने। सर रेडक्लिफ ने न्यायाधीश के रूप में भी अपनी सेवाएं दी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वे सूचना मंत्रालय से जुड़े और 1941 में उन्हें डायरेक्टर जनरल बनाया गया। भारत विभाजन के लिए याद किए जाने वाले सर रेडिक्लिफ साल 1965 से 1977 तक वार्विक विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति भी रहे।
सर रेडक्लिफ को ब्रिटेन से क्या आदेश मिला था
सर सीरिल रेडक्लिफ की भारत के इतिहास- भूगोल से अनभिज्ञता ही उनकी सबसे बड़ी योग्यता थी। इसीलिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें चुना था। जो शख्स अपने जीवन में पेरिस से पूर्व तक कभी नहीं गया था, उसे इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट के पास होने के बाद दो सीमा समितियों का चेयरमैन बनाया गया था। रेडक्लिफ को भारत का विभाजन धर्म के आधार करने का आदेश मिला था अर्थात वह देश के बीच इस तरह से सीमा रेखा खींचे कि भारत के हिस्से में हिन्दू-सिख क्षेत्र आए और पाकिस्तानी हिस्से में अधिकांश मुस्लिम इलाका पड़े। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के लिए रेडक्लिफ को महज पांच सप्ताह का समय दिया जो कि भारत जैसे विशाल देश के बंटवारे के लिए बहुत ही अल्प समय था।
बंटवारे के लिए रेडक्लिफ ने अजीबोगरीब तरीका अपनाया
भारत के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नय्यर से ब्रिटेन में हुए एक साक्षात्कार में सर सीरिल रेडक्लिफ ने कहा था कि भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा खींचने के लिए उन्हें महज 10-11 दिन ही मिले थे। इस काम को अंजाम देने के लिए रेडक्लिफ ने सिर्फ एक बार हवाई जहाज के जरिए दौरा किया था। रेडक्लिफ ने बताया था कि उनके पास जिलों तक के नक्शे नहीं थे। रेडिक्लिफ को यह पता था कि लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज़्यादा है परन्तु उन्होंने देखा कि पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर नहीं आ रहा है इसलिए उन्हें लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दे दिया।
सर रेडक्लिफ ने हिन्दू और बौद्ध बाहुल्य चिटगांव पहाड़ियों को पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के हिस्से में क्यों रखा, यह आज तक किसी को नहीं पता। इतना ही नहीं, पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच 1,700 किलोमीटर की सीमा लगती थी। यह भौगोलिक अज्ञानता और जल्दबाजी का ही नतीजा था कि भारत-पाक के बीच खींची गई सीमा रेखा एक घर के बीच से गुज़री जिसके कुछ कमरे भारत में और दूसरे कमरे पाकिस्तान में रह गए। अब आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि रेडक्लिफ ने किस तरह से देश का बंटवारा किया था। इतना ही नहीं, सर रेडक्लिफ ने बंटवारे के सारे अभिलेख नष्ट कर दिए ताकि यह निर्णय कैसे लिए गए, इस बात की सच्चाई कभी ज्ञात नहीं होगी।
भारत की आजादी से तीन दिन पहले यानि 12 अगस्त 1947 को रेडक्लिफ ने सीमा रेखांकन का काम पूर्ण कर लिया था। परन्तु स्वतत्रंता दिवस के दो दिन पश्चात यानि 17 अगस्त 1947 को इसे लागू किया गया। इस प्रकार 17 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान वैधानिक रूप से एक सरहद में बंट गए। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा को भौगोलिक इतिहास में ‘रेडक्लिफ लाइन’ कहा गया।
बंटवारे के बाद कभी भारत नहीं लौटे रेडिक्लिफ
कहते हैं कि सर सीरिल रेडक्लिफ ने इस काम के लिए अपनी असमर्थता जताई थी बावजूद इसके उन्होंने सीमा रेखा खींचनी शुरू कर दी। धर्म के आधार हुए इस बंटवारे में नागरिकों के पलायन से लाखों लोगों की जानें गईं। चूंकि रेडक्लिफ एक संवेदनशील इंसान थे ऐसे में जब उन्हें पता चला कि उनके बंटवारे से भारत-पाक के लोग खुश नहीं हैं तो उन्होंने इस काम के लिए मिले पैसे को लेने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने तय किया कि वे कभी भारत नहीं लौटेंगे। खुद रेडक्लिफ ने कहा था कि अगर उन्हें दो से तीन साल का समय मिल जाता तो वे बेहतर नतीजे दे पाते।
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