भोजन इतिहास

How did Iranian dish Rogan Josh become a popular dish of Kashmir?

ईरानी डिश रोगन जोश आखिर कैसे बना कश्मीर का लोकप्रिय व्यंजन?

यदि आप नॉनवेज खाने के शौकीन है और गर्मी के दिनों में सैर-सपाटे के लिए कश्मीर की खूबसूरत वादियों में पहुंचे हैं तो आपको बता दें कि यहां के सबसे लोकप्रिय व्यंजन का नाम रोगन जोश है। मेमने अथवा बकरी के लाल मांस से तैयार यह अति स्वादिष्ट व्यंजन पिछले सैकड़ों वर्षों से कश्मीरी पकवानों का हिस्सा रहा है। जम्मू-कश्मीर में मेहमानों को लंच और डिनर के वक्त रोगन जोश जरूर परोसा जाता है क्योंकि इस लजीज व्यंजन के बिना मेहमाननवाजी अधूरी मानी जाती है। कश्मीर में रोगन जोश के लोकप्रियता की एक वजह यह भी है कि इस ठण्डे इलाके में शरीर को गर्म रखने में रोगन जोश का कोई तोड़ नहीं है। दरअसल रोगन जोश एक ईरानी डिश है, जो मुगल रसाईयों के साथ कश्मीर पहुंचा था। मसालेदार रोगन जोश में लाल मिर्च का प्रयोग किया जाता है, इसलिए यह थोड़ा तीखा होता है। कश्मीर में ज्यादातर लोग रोगन जोश को बटर नॉन अथवा रोटी के साथ खाते हैं, कोई-कोई इसे सिर्फ चावल के साथ भी खाता है।

ईरानी डिश है रोगन जोश

रोगन जोश मेमने अथवा बकरे के लाल मांस से तैयार एक ईरानी डिश है, जोकि मुगल रसोई के माध्यम से कश्मीर पहुंचा था। फारसी में रोगन से तात्पर्य है घी अथवा मक्खन और जोश का मतलब है धीमी आंच पर पकाना। कुल मिलाकर मक्खन अथवा घी में पका हुआ मसालेदार लाल मांस ही रोगन जोश है। वहीं कश्मीर में रोगन का अर्थ लाल होता है, इस बारे में कई भोजन इतिहासकारों का मानना है कि यहां के रोगन जोश में कश्मीरी लाल मिर्च का ज्यादा इस्तेमाल होता है, जो कि रोगन जोश को इसका असली रंग देता है। वहीं कुछ अन्य भोजन इतिहासकारों का यह मानना है कि कश्मीर और राजस्थान में उगाए जाने वाले पौधे रतनजोत से रोगन जोश शब्द जन्मा, क्योंकि रोगनजोश में रतनजोत भी डाला जाता है। 

ईरान से भारत आने के बाद रोगन जोश को तैयार करने का तरीका थोड़ा बदल गया। मुगल बावर्चियों ने इसे थोड़ा अलग अंदाज में पकाना शुरू किया यानि वे रोगन जोश में अदरक और लहसुन का भरपूर प्रयोग करने लगे। वहीं कश्मीर में तो कई स्थानीय मसाले भी रोगन जोश में डाले जाने लगे।

मुगल बावर्चियों के जरिए कश्मीर पहुंचा था रोगन जोश

कश्मीर का पूरा इलाका मुगल साम्राज्य का एक शाही प्रान्त था। मुगलों ने अपने गर्वनरों (सूबेदारों) के माध्यम से कश्मीर पर शासन किया। गर्मी के दिनों में मुगल बादशाह अपना ज्यादा समय कश्मीर घाटी में ही व्यतीत करते थे। बाबर ने भी अपने जीवनकाल में कश्मीर पर अधिकार करने का प्रयास किया था। इसके बाद हुमायूँ के शासनकाल में उसके चाचा मिर्ज़ा मुहम्मद हैदर दुगलत ने कश्मीर पर दस वर्षों तक राज किया। बादशाह अकबर ने वर्ष 1586 में कश्मीर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया था। उसने तीन बार क्रमश: 1589, 1592 और 1597 में कश्मीर का दौरा किया था। इतना ही नहीं, मुगल बादशाहों में अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब के लिए कश्मीर घाटी एक ग्रीष्मकालीन राजधानी बन चुकी थी। बादशाह जहांगीर के लिए तो कश्मीर स्वर्ग के समान था। बतौर उदाहरण- जहाँगीर ने चौदह गर्मियाँ कश्मीर की घाटी में बिताईं थी। शाहजहां ने वहां किले, बाग और इमारतें भी बनवाई थीं। बता दें कि कश्मीर 1753 तक मुगलिया साम्राज्य का हिस्सा बना रहा।

यही वजह है कि 'भारत का स्विट्जरलैंड' कहे जाने वाले कश्मीर और मुगल राजधानी आगरा के बीच एक अटूट रिश्ता बन चुका था। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुगल बादशाह जब कभी लम्बी यात्रा पर जाते थे तो उनके साथ पूरा लाव-लश्कर होता था। यूरोपीय यात्री मोंसेरात लिखता है कि यात्रा के दौरान शाही खेमा साफ और खुली जगह पर लगता था। इसे खेमे के दाईं और बाईं ओर शहजादों तथा अमीरों के खेमे लगते थे। शाही तम्बू लाल रंग का होता था। इनके पीछे सैनिकों के तम्बू लगे होते थे। इन सभी खेमों में अलग-अलग बावर्ची खाने होते थे।”  इस प्रकार मुगल बावर्चियों ने कश्मीर प्रवास के दौरान बादशाहों को ठंड से बचाने के लिए मसालेदार रोगन जोश तैयार किया जो वक्त के साथ कश्मीर का बेहद लोकप्रिय डिश बन गया।

कश्मीरी रोगन जोश

कश्मीर की ठंडी सर्दियों में शरीर को गर्म रखने वाले सबसे स्वादिष्ट व्यंजन का नाम रोगन जोश है। रोगन जोश में मेमने अथवा बकरी के लाल मांस के टुकड़ों को पर्याप्त मात्रा में अदरक, लहसुन, गरम मसालों विशेषकर लौंग, तेजपत्ता, इलायची और दालचीनी के साथ घी अथवा गर्म तेल में पकाया जाता है। इसके साथ ही कुछ लोग इसमें प्याज तथा दही का भी प्रयोग करते हैं। कश्मीरी लोग प्याज की जगह प्रान का इस्तेमाल करते हैं, बता दें कि प्रान एक तरह की स्थानीय प्याज़ होती है, जिसका स्वाद लहसुन की तरह होता है। इसके साथ ही रतनजोत, कश्मीरी लाल मिर्च व केसर का सम्मिश्रण रोगन जोश को  और भी लजीज बना देता है। मतलब साफ है कश्मीरी रोगन जोश पारम्परिक और स्थानीय मसालों को डालकर तैयार किया जाता है।

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि कश्मीरी ब्राह्मणों के बीच भी रोगन जोश काफी लोकप्रिय है। हांलाकि कश्मीरी ब्राह्मण रोगन जोश पकाते समय प्याज और लहसुन का उपयोग नहीं करते हैं, इसकी जगह पर वे सौंफ के बीज तथा हींग का इस्तेमाल करते हैं जिससे मेमने अथवा बकरी के लाल मांस का स्वाद बढ़ जाता है।

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