मध्यकालीन भारतीय इतिहास में मुगल बादशाह औरंगजेब के व्यक्तित्व के दो पहलू उभरकर सामने आते हैं। औरंगजेब के व्यक्तित्व का पहला पक्ष यह है कि वह मुगल इतिहास का सबसे क्रूर शासक था जिसने सत्ता हथियाने के लिए अपने बूढ़े पिता (शाहजहां) को कैद में रखा, अपने सभी भाईयों (दारा शिकोह, शाह शुजा, मुराद बख्श) की निर्मम हत्या करवाई, उसका एक पुत्र विदेश भागने को बाध्य हुआ, उसके एक पुत्र और पुत्री की मृत्यु कैद में हुई तथा उसके एक अन्य पुत्र को भी आठ वर्षों तक कैद में रहना पड़ा और उसका कोई अच्छा मित्र भी न था। इसके लिए औरंगजेब स्वयं ही उत्तरदायी था।
वहीं ताकतवर मुगल बादशाह औरंगजेब के व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष यह था कि वह पांचों वक्त की नमाज पढ़ता था, नियमपूर्वक रोजे रखता था, इस्लाम के सभी धार्मिक नियमों का श्रद्धापूर्वक पालन करता था। इसीलिए उसे ‘जिन्दा पीर’ कहा गया। औरंगज़ेब अपने निजी ख़र्च के लिए टोपियां सिला करता था और उसने अपने हाथ से क़ुरान शरीफ़ भी लिखी। बतौर उदाहरण- अपने जीवन के अंतिम वर्षों में टोपियां सिलकर उसने अपनी कब्र के लिए जो पैसे इकट्ठे किए, उसकी कीमत 14 रुपए और 12 आना थी। इसी सादगी पूर्ण जीवन के लिए बादशाह औरंगजेब को ‘शाही दरवेश’ भी कहा जाता था।
आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि जिस औरंगजेब को मजहबी बादशाह कहा गया, उसके दरबार में हिन्दू मनसबदारों की संख्या 33 फीसदी थी, जो सभी मुगल बादशाहों से सर्वाधिक थी। इसके अतिरिक्त उसका साम्राज्य भी सबसे विशाल था, जिसमें सूबों की संख्या 22 थी जबकि ताकतवर मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में सूबों की संख्या महज 15 थी। इन सबके बावजूद औरंगजेब को मुगल साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी माना जाता है।
इसकी मुख्य वजह यह है कि औरंगजेब अपने 49 वर्ष के शासनकाल में तकरीबन 25 वर्षों तक दक्कन अभियान में ही व्यस्त रहा। औरंगजेब के विषय में कहा गया है कि “स्पेन के फोड़े ने जैसे नेपोलियन को नाश किया वैसे ही दक्षिण के फोड़े ने औरंगजेब का नाश किया”।
दक्कन अभियान के दौरान औरंगजेब को अपने बेहतरीन सेनापति, सैनिक व राजकोष से हाथ धोना पड़ा, जो मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बना। दक्कन में होने वाले विद्रोहों के दमन में व्यस्त औरंगजेब की मृत्यु 89 वर्ष की उम्र में 3 मार्च 1707 ई. को अहमदनगर में हुई थी। हांलाकि मुगल साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली सम्राट औरंगजेब की मृत्यु किस वजह से हुई थी, इसे लेकर इतिहासकारों में आज भी मतभेद है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि बादशाह औरंगेजब की मृत्यु का कारण संभवतः प्राकृतिक था। वहीं कुछ इतिहासकार मानते हैं कि बुन्देलखंड के राजा छत्रसाल ने औरंगजेब की हत्या कर दी थी। आखिर में क्या सच है, यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को अवश्य पढ़ें।
मुगल बादशाह औरंगेजब के मृत्यु की वजह
- औरंगजेब की स्वाभाविक मौत- औरंगजेब के शासनकाल में मुगल साम्राज्य का विस्तार सर्वाधिक था, उसके सूबों की संख्या 22 थी। दक्कन में होने वाले विद्रोहों के दमन और शक्तिशाली मराठों की बढ़ती हुई शक्ति पर विराम लगाने के लिए औरंगजेब ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। केवल छत्रपति शिवाजी की शक्ति पर अंकुश लगाने में ही औरंगजेब को काफी नुकसान उठाना पड़ा। हांलाकि शिवाजी महाराज की मृत्यु (1680 ई.) के पश्चात मराठों को अपने अधीन करने के लिए 3 लाख की विशाल मुगल सेना के साथ औरंगजेब 1681-82 ई. में स्वयं दक्कन आ गया और अपनी मृत्यु तक दक्षिण में ही रहा।
दक्कन अभियान के 25 वर्षों में मुगल बादशाह औरंगजेब को अपने कई बेहतरीन सेनापतियों, असंख्य सैनिकों और मुगल राजकोष से हाथ धोना पड़ा। दक्कन में होने वाले विद्रोहों का दमन करने व मराठों के विरूद्ध लड़ते हुए औरंगजेब बूढ़ा हो चुका था। मध्यकालीन इतिहास के कई स्रोतों से यह जानकारी मिलती हैं कि औरंगजेब की मृत्यु की वजह प्राकृतिक थी, दरअसल वह 89 वर्ष का एक वृद्ध व्यक्ति था। औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 ई. को अहमदनगर में हुई थी हांलाकि मरने से पहले वह उसने यह सुनिश्चित कर दिया था कि जनता को इसके बारे में पता न चले। मृत्यु के पश्चात औरंगजेब के शव को उसका बेटा आज़म शाह और बेटी जीनत-उन-निसा बेगम अहमदनगर से औरंगाबाद लेकर आए और उसे ख़ुल्दाबाद में सूफ़ी संत सैयद ज़ैनुद्दीन की मजार के पास दफन कर दिया गया।
- बुन्देला राजा छत्रसाल ने की थी औरंगजेब की हत्या- ओरछा के शासक चम्पतराय ने मुगलों के उत्तराधिकार युद्ध में औरंगजेब का साथ दिया था, किन्तु 1661 ई. में चम्पतराय ने औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया। परन्तु इस विद्रोह के दौरान चम्पतराय के सहयोगियों ने ही औरंगजेब के साथ मिलकर विश्वासघात कर दिया। इस विश्वासघात से चम्पतराय इतने आहत हुए कि उन्होंने पत्नी सहित आत्महत्या कर ली। उस समय छत्रसाल की उम्र महज 12 साल थी।
इस सम्बन्ध में इतिहासकारों का कहना है कि जब छत्रसाल बड़े हुए तो उन्होंने भी अपने पिता चम्पतराय की तरह विद्रोह जारी रखा। अपने माता-पिता की मौत का प्रतिशोध लेने के लिए छत्रसाल ने औरंगजेब के साथ कई युद्ध किए हांलाकि उसे हार का सामना करना पड़ा। कहते हैं कि एक युद्ध के दौरान छत्रसाल ने औरंगजेब को एक चीरा मारा था, जिससे वह 3 महीने तक बिस्तर पर तड़पता रहा, आखिरकार 3 मार्च 1707 ई. को उसकी मृत्यु हो गयी।
हकीकत- कुछ इतिहासकारों का यह कहना कि “बुन्देलखण्ड के राजा छत्रसाल ने एक युद्ध में औरंगजेब को चीरा मारा था, जिससे वह तीन महीने तक बीमार रहा और अंत में उसकी मृत्यु हो गई”। इस प्रसंग का उल्लेख इतिहास की किसी भी प्रमाणिक पुस्तक में नहीं मिलता है। ठीक इसके विपरीत छत्रसाल ने पुरन्दर की सन्धि तथा बीजापुर घेरे के दौरान औरंगजेब की सराहनीय सेवा की थी। इतना ही नहीं, साल 1705 ई. में छत्रसाल ने औरंगजेब से सन्धि कर ली। परिणामस्वरूप औरंगजेब ने उसे 4000 का मनसब प्रदान किया और राजा घोषित किया। हां, यह सच है कि 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद छत्रसाल बुन्देलखण्ड का स्वतंत्र शासक बन गया।
औरंगजेब की कब्र
मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु 89 साल की उम्र में 3 मार्च 1707 ई. को अहमदनगर के पास हुई थी। चूंकि वह वयोवृद्ध हो चुका था, इसलिए उसकी मौत प्राकृतिक थी। हांलाकि उसने मरने से पहले यह सुनिश्चित कर रखा था कि आमजन को इस बारे में पता न चले क्योंकि ऐसा करने से उसके उत्तराधिकार को लेकर युद्ध हो सकता था।
औरंगज़ेब ने अपनी वसीयत में साफ लिखा था कि “वह ख़्वाज़ा सैयद जैनुद्दीन को ही अपना पीर मानता है, इसलिए उसे उसके गुरु सूफ़ी संत सैयद ज़ैनुद्दीन की कब्र के पास ही दफ़नाया जाए”। यही वजह है कि औरंगजेब को औरंगाबाद शहर से 25 किलोमीटर दूर स्थित ख़ुल्दाबाद में फकीर बुरहानुद्दीन (संत सैयद ज़ैनुद्दीन) की कब्र के अहाते में दफनाया गया।
खुल्दाबाद स्थित औरंगजेब के मकबरे में एक पत्थर लगा है, जिस पर उसका पूरा नाम- ‘अब्दुल मुज़फ़्फ़र मुहीउद्दीन औरंगज़ेब आलमगीर’ लिखा है। औरंगजेब ने यह भी आदेश दे रखा था कि उसका मकबरा सादा हो जिसे सब्जे के पौधे से ढंका होना चाहिए और इसके ऊपर छत नहीं होनी चाहिए।
पूर्ववर्ती मुगल बादशाहों के आलीशान मकबरों से इतर औरंगजेब का मकबरा महज लकड़ी का बना था। साल 1904-05 में ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन जब यहां आया तो उसने देखा कि यहां केवल मिट्टी है और बादशाह औरंगजेब का मक़बरा एक साधारण सफ़ेद चादर से ढँका हुआ है तब उसने मक़बरे के इर्द-गिर्द संगमरमर की ग्रिल बनवाई और इसकी सज़ावट कराई।
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