भारत का इतिहास

History of Muhammad bin Tughlaq of Delhi Sultanate

मुहम्मद बिन तुगलक : बुद्धिमान मूर्ख शासक

सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के तीन दिन के पश्चात उलूग खां उर्फ जूना खां मुहम्मद बिन तुलगक के नाम से फरवरी-मार्च 1325 ई. में दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर बैठा। 40 दिन तक तुगलकाबाद में रहने के बाद उसने दिल्ली में प्रवेश किया। इस अवसर पर उसने जनता में सोने-चांदी के सिक्के बिखेरे तथा सरदारों को पदों का वितरण किया।

मध्यकालीन भारतीय इतिहास में मुहम्मद बिन तुगलक एक मात्र ऐसा शासक है जो अपने चरित्र और कार्यों की दृष्टि से सबसे ज्यादा विवादित रहा। उसका नाम कई संज्ञाओं से जोड़ा गया है- अंतर्विरोधों का विस्यमकारी मिश्रण, बुद्धिमान अथवा पागल, आदर्शवादी अथवा स्वप्नशील, रक्तपिपासु अथवा परोपकारी, धार्मिक मुसलमान अथवा अधर्मी आदि। हांलाकि मध्यकालीन सुल्तानों में वह सम्भवत: सबसे शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था। वह अरबी एवं फारसी का विद्वान तथा ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न विधाओं जैसे- खगोलशास्त्र, दर्शन, गणित, चिकित्सा विज्ञान तथा तर्कशास्त्र आदि में पारंगत था। मुहम्मद बिन तुगलक के समय में ​तीन मुख्य विद्वान इसामी, बरनी और इब्नबतूता थे फिर भी उसके चरित्र कार्यों के उद्देश्य को इनमें से कोई भी निश्चित रूप से स्पष्ट नहीं कर सका।

अफ्रीकी यात्री (मोरक्को का तानजीर निवासी) इब्नबतूता  1333 ई. में भारत आया। मुहम्मद बिन तुगलक ने उसका खूब स्वागत किया और दिल्ली का काजी नियुक्त किया। बाद में कुछ मनमुटाव के चलते इब्नबतूता को जेल में भी डाल दिया। सन 1342 में सुल्तान के आदेश पर इब्नबतूता राजदूत बनकर चीन गया और तोगन तिमूर के दरबार में पहुंचा। इब्नबतूता ने अपनी कृति रेहला में मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया है। इब्नबतूता के मुताबिक, तुगलक साम्राज्य 23 प्रान्तों में विभक्त था। कश्मीर और आधुनिक बलूचिस्तान को छोड़कर समस्त हिन्दुस्तान पर दिल्ली सल्तनत का कब्जा था। अब्बास द्वारा रचित अरबी ग्रन्थ मसालिक-उल-अबसार से मुहम्मद बिन तुगलक काल की प्रमाणिक जानकारी मिलती है। क्योंकि यह महत्वपूर्ण ग्रन्थ सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के शासन में लिखा गया था।

राजत्व सिद्धान्त और धार्मिक विचार

मुहम्मद बिन तुगलक का राजत्व सिद्धान्त भी दैवीय सिद्धान्त पर ही आधारित था। उसने अपने सिक्कों पर उत्कीर्ण करवाया था- अल सुल्तान जिल्ली अल्लाह अर्थात सुल्तान ईश्वर की छाया है अथवा ईश्वर सुल्तान का समर्थक है।

अलाउद्दीन खिलजी की ही भांति मुहम्मद बिन तुगलक भी अपने शासन में किसी का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करता था। यहां तक कि उसने उलेमा वर्ग को भी शासन में हस्तक्षेप नहीं करने दिया। हांलाकि वह इस्लाम धर्म के कानूनों की उपेक्षा नहीं करना चाहता था। पूर्ववर्ती सुल्तानों के शासनकाल में जिस प्रकार से न्याय विभाग पर उलेमा वर्ग का वर्चस्व था, उसे नष्ट कर योग्य व्यक्तियों को काजी पद पर नियुक्त किया। इतना ही नहीं, किसी धार्मिक व्यक्ति पर भी अपराध साबित होने पर उसे कठोर दण्ड देता था। यही वजह है कि मुसलमानों का एक वर्ग मुहम्मद बिन तुगलक का विरोधी हो गया इसीलिए उसने इस वर्ग से समझौता कर लिया। उसने अपने सिक्कों पर खलीफा का नाम अंकित करवाया। यहां तक कि 1340 ई. में मिस्र के खलीफा के एक वंशज गियासुद्दीन मुहम्मद को, जिसकी स्थिति भिखारी के समान थी, दिल्ली बुलवाकर उसका अत्यधिक सम्मान किया और स्वयं अनुरोध करके अपनी गर्दन पर उसका पैर रखवाया तथा उसे बहुमूल्य वस्तुएं एवं जागीर भेंट में दी

मुम्मद बिन तुगलक ने योग्य व्यक्तियों के लिए शाही सेवा के दरवाजे खोल दिए। केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि निम्न जाति के योग्य लोगों को भी राज्य में उच्च पद प्रदान किए। भारत से बाहर चीन, ईराक, सीरिया, ख्वारिज्म से सम्बन्ध बनाने के लिए राजदूतों का आदान-प्रदान करना मुहम्मद बिन तुगलक की सबसे खास विशेषता रही।

मुहम्मद बिन तुगलक ने बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा के साथ सहिष्णुता का व्यवहार किया। वह प्रथम सुल्तान था जिसने योग्यता के आधार पर पद देना शुरू किया, चाहे वो हिन्दू हो अथवा मुसलमान। यह दुर्भाग्य है कि सहिष्णु होते भी मुहम्मद बिन तुगलक प्रजा की सद्भावनाएं नहीं प्राप्त कर सका।

मुहम्मद बिन तुगलक की पांच महत्वाकांक्षी योजनाएं

1— राजधानी परिवर्तन

सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने 1325-26 ई. में दिल्ली सल्तनत की राजधानी दिल्ली से दौलताबाद (देवगिरि) स्थानान्तरित कर दी। हांलाकि पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं होने पर यह योजना असफल रही और राजधानी को वापस दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया गया। विभिन्न इतिहासकारों ने राजधानी परिवर्तन के कई कारण गिनाए हैं- पहला यह कि देवगिरी नगर साम्राज्य के केन्द्र में स्थित था तथा सभी दिशाओं से उसकी एक जैसी दूरी थी अत: उसे नई राजधानी के रूप में चुना गया। दूसरे कारण के रूप में इब्नबतूता लिखता है कि दिल्ली निवासियों ने सुल्तान के विरूद्ध निन्दनीय पत्र लिखे थे, इसलिए उन्हें सजा देने के इरादे से सभी लोगों को आज्ञा दी गई कि दिल्ली शहर छोड़कर 700 मील दूर देवगिरी के लिए प्रस्थान करें। तीसरा कारण यह माना जाता है कि सुल्तान दक्षिण भारत में एक शक्तिशाली प्रशासनिक केन्द्र स्थापित करना चाहता था जहां से वह दक्षिण में होने वाले विद्रोहों को आसानी से दबा सके। चौथा कारण यह बताया जाता है कि मंगोल आक्रमणों से सुरक्षा के लिए सुल्तान अपनी राजधानी दिल्ली से स्थानान्तरित कर देवगिरि ले गया।

2— सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन

सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने 1329-30 ई. में चांदी के टंका के स्थान पर सांकेतिक मुद्रा के रूप में तांबे या कांसे की मुद्रा चलवाई। परन्तु टकसाल पर केन्द्रीकृत नियंत्रण के अभाव में बड़ी संख्या में जाली सिक्के बाजार में आ गए। अत: सुल्तान को तांबे या कांसे की मुद्रा का प्रचलन रोकना पड़ा।

चीन के मंगोल शासक कुबलै खां द्वारा चलवाए गए कागज के सिक्के तथा फारस के शाह गैताखू के द्वारा इसी तरह के प्रयोग से उत्साहित होकर मुहम्मद बिन तुगलक ने सांकेतिक मुद्रा जारी करने का आदेश दिया जिसके मुताबिक, कांसे के टंके को चांदी के टंके के समतुल्य रखा गया। परन्तु केन्द्रीय टकसाल पर नियंत्रण के अभाव में लोग अपने घरों में ही कांसे के सिक्के बनाने शुरू कर दिए। बरनी लिखता है कि प्रत्येक हिन्दू का घर टकसाल बन गया था तथा तुगलकाबाद के सामने कांसे के टंकों का पहाड़ जैसा ढेर लग गया। आखिर में जब व्यापारियों ने कांसे के टंके लेने से इनकार कर दिया तब सुल्तान को अपनी योजना वापस लेनी पड़ी और प्रजा को कांसे के टंके के बदले चांदी के टंके देने पड़े जिससे राजकोष रिक्त हो गया। अधिकांश लोगों ने कांसे के टंके बनाकर चांदी के टंके ले लिए। 

3— खुरासान अभियान

सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने खुरासान अभियान के लिए तीन लाख सत्तर हजार सैनिकों की एक विशाल सेना तैयार की तथा उन्हें एक वर्ष का अग्रिम वेतन भी दे दिया गया। परन्तु पश्चिम एशिया में राजनीतिक परिवर्तन के कारण सुल्तान को अपनी योजना त्यागनी पड़ी।

ऐसा कहा जाता है कि सुल्तान की यह योजना तरमाशरीन के साथ मैत्री का परिणाम था। दरअसल मुहम्मद बिन तुगलक, तरमाशरीन और मिस्र के सुल्तान ने मिलकर खुरासान के सुल्तान अबू सैय्यद के विरूद्ध एक त्रिमैत्री संगठन बनाया था। परन्तु ट्रांस-आक्सियाना में राजनीतिक उठापठक होने से तरमाशरीन को शासक पद से हटा दिया गया, ऐसे में तुगलक की खुरासान योजना पर पानी ​फिर गया।

4— कराचिल का सैनिक अभियान

कराचिल (हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित एक पर्वतीय स्थल) अभियान के लिए खुसरो मलिक की अगुवाई में एक सेना भेजी गई। तिब्बत की सर्दी और बर्फीले तूफान में सुल्तान की तकरीबन सम्पूर्ण सेना नष्ट हो गई जो सैनिक इस प्राकृतिक आपदा से बच गए वे प्लेग में मारे गए। इस प्रकार कुछ बचे खुचे सैनिक ही दिल्ली वापस लौटकर आ सके। ऐसे में सुल्तान के कराचिल सैन्य अभियान का विनाशकारी अन्त हुआ।

5— दोआब में कर वृद्धि

सुल्तान ने अपने राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए गंगा-यमुना दोआब की उर्वरा क्षेत्र में कर बढ़ाकर 50 फीसदी कर दी परन्तु उसी समय भयानक दुर्भिक्ष (अकाल) के कारण यह योजना भी असफल हो गई। भयानक अकाल पड़ने के बावजूद भूराजस्व अधिकारियों ने कर ​की निश्चित धनराशि को निर्दयता से वूसल करने का प्रयत्न किया। जहां अकाल से पीड़ित असहाय प्रजा घबरा गई वहीं शक्तिशाली जमींदारों ने लगान देने से इनकार कर दिया। ज्यादातर किसानों ने खेती-बारी छोड़ दी। जगह-जगह विद्रोह होने लगे हांलाकि इन विद्रोहों को सुल्तान ने कठोरतापूर्वक दबा दिया।

जानकारी के लिए बता दें कि दोआब में अकाल पड़ने के दौरान सुल्तान ने दिल्ली छोड़कर 100 मील दूर गंगा किनारे स्वर्गद्वारी नामक शिविर में ढाई वर्ष तक निवास किया। स्वर्गद्वारी कड़ा नामक इक्ता क्षेत्र में स्थित था। मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने अकाल पीड़ितों की सहायता के लिए अंकाल संहिता बनाई।

मुहम्मद बिन तुगलक का साम्राज्य विस्तार

मंगोल आक्रमण से सुरक्षा- मुहम्मद बिन तुगलक के समय मंगोलों का केवल एक आक्रमण हुआ। सन 1327 ई. में ट्रान्स-आक्सियाना के मंगोल आक्रमणकारी अलाउद्दीन तर्माशीरीन ने एक बड़ी सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया। इस बारे में इतिहासकार डॉ. मेंहदी हसन लिखते हैं कि गजनी के निकट अमीर चोवन से पराजित होने के बाद तर्माशीरीन एक शरणार्थी की भांति भारत में भागकर आया था और मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे 5000 दीनार की मदद देकर वापस भेज दिया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि मंगोलों ने बदायूं तथा मेरठ तक लूटपाट की। वहीं इसामी लिखता है कि मुहम्मद बिन तुगलक की सेना ने मेरठ के निकट मंगोलों को पराजित किया और उन्हें वापस लौटने के लिए बाध्य कर दिया।

नगरकोट की विजय- (1337 A.D.)

पंजाब के कांगड़ा जिले में स्थित नगरकोट का किला एक हिन्दू राजा के अधीन था। अभी तक उस किले पर किसी मुसलमान शासक ने विजय प्राप्त नहीं किया था। अत: मुहम्मद बिन तुगलक ने उस किले को जीत लिया और फिर अपनी आधीनता स्वीकार कराने के पश्चात नगरकोट किले को उसी राजा को वापस कर दिया।

मुहम्मद बिन तुगलक की दक्षिण भारत विजय

मुहम्मद बिन तुगलक अपने पिता गयासुद्दीन तुगलक के शासनकाल में ही तेलंगाना तथा पाण्डय राज्य के अधिकांश भागों पर अधिकार कर चुका था। इसके बाद जब वह सुल्तान बना तब बहाउद्दीन गुर्सास्प ने विद्रोह करके उसे दक्षिण के अन्य हिस्सों को भी विजित करने का मौका दे दिया। चूंकि अलाउद्दीन खिलजी के बाद देवगिरी के राजा ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था तथा देवगिरि में ही गुर्सास्प को शरण मिली थी। अत: मुहम्मद बिन तुगलक की सेनाओं ने आक्रमण कर काम्पिली को दिल्ली राज्य में सम्मिलित कर लिया। इससे पहले ही काम्पिली के राजा ने गुर्सास्प को वीर वल्लाल की शरण में भेज दिया था। परन्तु दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की सेनाओं से सामना करने में असमर्थ वीर वल्लाल ने गुर्सास्प को सुल्तान के हवाले कर दिया तथा स्वयं उसकी आधीनता स्वीकार कर ली। इस प्रकार द्वारसमुद्र के अधिकांश हिस्से पर मुहम्मद बिन तुगलक का अधिकार हो गया।

इतिहासकार डॉ. ए.के. निजामी लिखते हैं कि राजधानी परिवर्तन के पश्चात मुहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी के निकट कोंढन (सिंहगढ़) को नाग नायक से छीन लिया। कोंढन की विजय भी मुहम्मद बिन तुगलक की नवीन विजय थी। इन विजयों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि दक्षिण के कुछ हिस्सों को छोड़कर शेष सभी प्रदेश पर मुहम्मद बिन तुगलक का अधिकार हो गया।

मुहम्मद बिन तुगलक के समय होने वाले विद्रोह

मुहम्मद बिन तुगलक के समय में सर्वाधिक 34 विद्रोह हुए जिसमें से 27 विद्रोह केवल दक्षिण भारत में हुए। इनमें से सात प्रमुख विद्रोह कुछ इस प्रकार हैं

1— बहाउद्दीन गुर्सास्प का विद्रोह - गियासुद्दीन तुगलक के बहन के पुत्र बहाउद्दीन गुर्सास्प ने विद्रोह कर दिया। बहाउद्दीन गुर्सास्प गुलबर्गा के निकट सागर का जागीरदार था, उसने बहुत अधिक धन संचित कर लिया था। उसने सुल्तान के वफादार जागीरदारों पर आक्रमण किए। अत: 1327 ई. में दिल्ली की सेना ने देवगिरी के निकट उसे परास्त किया और सागर तक उसका पीछा किया लेकिन वह कम्पिली के हिन्दू शासक काम्पिलीदेव की शरण में चला गया। परन्तु काम्पिली देव ने स्वयं को कमजोर साबित होते देख गुर्सास्प को द्वारसमुद्र के शासक वीर वल्लाल की शरण में भेज दिया। वीर वल्लाल ने सुल्तान की सेनाओं का सामना किया परन्तु अपनी दुर्बल स्थिति को देखते हुए उसने गुर्सास्प को शाही सेना के हवाले कर दिया। इसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने गुर्सास्प की खाल में भूसा भरवाकर पूरे साम्राज्य के सभी महत्वपूर्ण शहरों में घुमाया तथा उसके शरीर के मांस को चावल के साथ पकाकर उसकी बीबी और बच्चों के पास खाने के लिए भेजा।

2— किश्लू खां का विद्रोह - उच्छ, सिन्ध और मुल्तान के सूबेदार बहराम आईबा उर्फ किश्लू खां ने सन् 1327-28 में विद्रोह कर दिया। किश्लू खां एक तो गियासुद्दीन तुगलक का मित्र था और सीमा रक्षक भी था। ऐसे में उसका विद्रोह तुगलक साम्राज्य के लिए खतरे की घंटी थी। दरअसल किश्लू खां ने दौलताबाद जाने से इनकार कर दिया था। किश्लू खां के विद्रोह की सूचना पर मुहम्मद बिन तुगलक स्वयं दक्षिण से उत्तर में गया और उसे पराजित किया। युद्ध स्थल से भागते हुए बहराम आईबा उर्फ किश्लू खां को पकड़कर वध कर दिया गया।

3— गियासुद्दीन बहादुर का बंगाल में विद्रोह- गियासुद्दीन तुगलक गियासुद्दीन बहादुर को कैद करके दिल्ली ले आया था परन्तु मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे इस शर्त पर छोड़ दिया था कि वह उसकी आधीनता में सोनारगांव में शासन करेगा। परन्तु तीन वर्ष बाद ही गियासुद्दीन बहादुर ने विद्रोह ​कर दिया। इसके बाद सुल्तान के सौतेले भाई बहराम खान ने उसे परास्त कर, उसकी खाल में भूसा भरवाकर सुल्तान के पास भेज दिया।

4— सुनम, सनामा, कड़ा, बीदर, गुलबर्गा, अवध और मुल्तान में भी विद्रोह हुए लेकिन उन्हें बड़ी शीघ्रता से दबा दिया गया।

5— अहसन शाह का मालाबार विद्रोह- सूबेदार अहसन शाह ने साल 1334-35 में मलाबार में विद्रोह कर दिया। सुल्तान उस विद्रोह को दबाने गया था लेकिन लाहौर में विद्रोह होने की सूचना पाकर उसे वापस लौटना पड़ा। अत: मदुरा (मलाबार) में एक स्वतंत्र राज्य स्थापित हो गया।

6— ठीक इसी समय तेलंगाना और कांची में हिन्दूओं ने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने में सफलता पाई। 1336 ई. में हरिहर और बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी।

7— जब गुजरात के विदेशी अमीरों ने विद्रोह किया, उसे दबा दिया गया। परन्तु दौलताबाद के विद्रोहियों ने इस्माइल नामक सरदार को नासिरूद्दीन नाम से सुल्तान घोषित कर दिया। गुजरात जा रहे सुल्तान ने दौलताबाद जाकर विद्रोहियों को परास्त कर, दौलताबाद पर अधिकार कर लिया। परन्तु तागी के नेतृत्व में गुजरात में एक बार फिर विद्रोह उठ खड़ा हुआ। ऐसे में सुल्तान के दौलताबाद से हटते ही विद्रोहियों ने उसे जीत लिया। हसन अबुल मुजफ्फर अलाउद्दीन बहमनशाह ने एक स्वतंत्र बहमनी राज्य की नींव डाली। गुजरात विद्रोह के बाद सुल्तान को दक्षिण भारत की ओर ध्यान देने का मौका ही नहीं मिल सका।

8— गुजरात में विदेशी अमीरों के विद्रोह के परिणामस्वरूप ही मालवा, बरार और दौलताबाद में विद्रोह हुए थे। तागी के नेतृत्व में गुजरात में हुए विद्रोह को दबाने के लिए सुल्तान जैसे ही गुजरात पहुंचा, तागी भागकर सिन्धु जा पहुंचा। ऐसे में तागी को समाप्त करने तथा सिन्ध विद्रोह को दबाने के लिए सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक सिन्ध की ओर रवाना हुआ।

मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्युसुल्तान मार्ग में ही बीमार हो गया। अभी वह थट्टा (सिन्ध) के निकट ही था, तभी 20 मार्च 1351 ई. को उसकी मृत्यु हो गई। इतिहासकार बदायूंनी लिखता है कि सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई।

मुहम्मद-बिन-तुगलक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

एडवर्ड थामस ने मुहम्मद बिन तुगलक को धनवानों का राजकुमार कहा है।

इब्नबतूता ने मुहम्मद बिन तुगलक को युग का आश्चर्य कहा है।

इब्नबतूता ​कृत प्रसिद्ध ग्रन्थ का नाम रेहला (किताब-उल-रहला) है।

दिल्ली से दौलताबाद राजधानी परिवर्तन के सम्बन्ध में इसामी लिखता है कि सुल्तान खूनी एवं रक्त पिपासु था, वह दिल्लीवासियों को दंडित करना चाहता था क्योंकि वे लोग सुल्तान के महल में गालियों वाले पत्र भेजते थे।

देव​गिरी (दौलताबाद) को कुबत-उल-इस्लाम भी कहा गया।

अफ्रीकन यात्री इब्नबतूता के अनुसार, मुहम्मद बिन तुगलक ने सोने का सिक्का (200 ग्रेन तौल का) चलवाया था जिसे दीनार कहते थे।

सुल्तान ने अदली नामक चांदी का सिक्का (140 ग्रेन वजन का) भी चलवाया।

मुहम्मद बिन तुगलक ने किसानों की सहायता के लिए दीवान-- अमीर कोही (कृषि विभाग) की स्थापना की तथा तकावी (कृषि ऋण) भी प्रदान किए।

मुहम्मद बिन तुगलक ने उश्र एवं जकात को छोड़कर शेष कर (tax) समाप्त कर दिए।

अवध के सूबेदार आइन-उल-मुल्क ने भयंकर विद्रोह किया था। आइन-उल-मुल्क द्वारा लिखी पुस्तक का नाम इंशा--महरू है, जिससे फिरोज शाह तुगलक के शासन व्यवस्था की जानकारी मिलती है।

तुगलक साम्राज्य के अवशेषों पर हसन गंगू ने 1347 ई. में बहमनी साम्राज्य की स्थापना की।

मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में ही 1336 ई. में हरिहर व बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी।

तुगलक ने दक्षिण में सौ गांवों पर अमीर--सादा नियुक्त किए। शाही सेवा में नियुक्त अमीर--सादा एक विदेशी अमीर थे। विदेशी अमीरों ने ही सर्वाधिक विद्रोह किए।

इसामी के अनुसार, मुहम्मद बिन तुगलक प्रथम मुस्लिम शासक था, जिसने होली सहित अन्य हिन्दू त्यौहारों में भाग लिया।

1337 ई. में नगरकोट पर आक्रमण के दौरान मुहम्मद बिन तुगलक ने ज्वालामुखी मंदिर को नष्ट नहीं किया।

मुहम्मद बिन तुगलक अकबर का पूर्वगामी था, उसने जैन विद्वान जिन प्रभु सूरी व राजशेखर का सम्मान कर धार्मिक उदारता का परिचय दिया।

मुहम्मद बिन तुगलक ने शत्रुंजय व गिरनार मंदिरों की भी यात्रा की तथा जैन विद्वान जम्बू के साथ वाद-विवाद कर उसे धन व भूमि अनुदान में दिया।

मुहम्मद बिन तुगलक ने अनेक हिन्दुओं को उच्च पदों पर नियुक्त किया था। जैसेरतन को सिन्ध का राजस्व अधिकारी, सांईराज को धारा का नायब वजीर, बाजरान को गुलबर्गा का वजीर बनाया था। मीरनराय नामक एक हिन्दू पदाधिकारी का नाम आता है।

मुहम्मद बिन तुगलक ने बेगमपुरी मस्जिद के साथ-साथ जहाँपनाह का शाही निवास भी बनवाया।

यूरोपीयन इतिहासकारों में हैवेल, एडवर्ड थामस, स्मिथ और एलफिन्सटन का मानना था कि मुहम्मद बिन तुगलक में पागलपन का अंश विद्यमान था।

प्रख्यात इतिहासकार डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव के अनुसार, उसमें विरोधी तत्वों का मिश्रण था।

मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने शासन के आखिरी दिनों में कहा था— “मेरा साम्राज्य रूग्ण हो चुका है, यह किसी उपचार से ठीक नहीं होता।

बरनी के मुताबिक, मुहम्मद बिन तुगलक का साम्राज्य 12 मुख्य भागों में बंटा हुआ था परन्तु वास्तव में तुगलक साम्राज्य 23 प्रान्तों में विभक्त था।

सम्भावित प्रश्न

मुहम्मद बिन तुगलक को बुद्धिमान मूर्ख शासक क्यों कहा गया है?

मुहम्मद बिन तुगलक ने सांकेति​क मुद्रा का प्रचलन क्यों करवाया था, विस्तार से वर्णन कीजिए?

मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी परिवर्तन के विभिन्न कारणों पर प्रकाश डालिए।

सुल्तान द्वारा दोआब में कर वृद्धि क्या उचित निर्णय था, टिप्पणी ​कीजिए?

खुरासान और कराचिल विजय अभियान का सविस्तार वर्णन कीजिए।

सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के चरित्र का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।

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