
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात उसका सुयोग्य पुत्र बिन्दुसार मौर्य राजवंश की गद्दी पर बैठा। जैन ग्रन्थों के अनुसार, बिन्दुसार की माता का नाम दुर्धरा था। बिन्दुसार की पत्नियों में ‘चारूमित्रा’ एवं ‘सुभद्रांगी’ का नाम मिलता है। रानी सुभद्रांगी का पुत्र था सम्राट अशोक। यूनानी लेखों में बिन्दुसार को ‘अमित्रोकेडीज’ (जिसका संस्कृत रूपान्तरण ‘अमित्रघात’ अर्थात् शत्रुओं का नाश करने वाला), वायु पुराण में ‘मद्रसार’ तथा जैन ग्रन्थ राजवलिकथे में ‘सिंहसेन’ कहा गया है।
बिन्दुसार की जानकारी प्रदान करने वाले कुछ प्रमुख बौद्ध स्रोतों में दिव्यावदान, दीपवंश, महावंश, वामसत्थप्पाकासिनी (महावंश टिप्पणी), सामंतपसादिका और तिब्बती लेखक तारानाथ का नाम शामिल है। वहीं जैन स्रोतों में हेमचन्द्र कृत परिशिष्ट पर्वन, देवचन्द्र कृत ‘राजावली कथा’ जैसे ग्रन्थ प्रमुख हैं। जबकि हिन्दू धर्म के विष्णु पुराण, भागवत पुराण तथा वायु पुराण के अतिरिक्त अन्य पुराणों में भी बिन्दुसार का उल्लेख मिलता है।
चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद बिन्दुसार के समय में भी पश्चिमी यूनानी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध कायम रहा। बिन्दुसार की महानता इस तथ्य में नीहित है कि उसने अपने पिता चन्द्रगुप्त मौर्य से जिस विशाल साम्राज्य को प्राप्त किया था, उसे अक्षुण्ण बनाए रखा। इतिहास में बिंदुसार को “महान पिता का पुत्र और महान पुत्र का पिता कहा जाता है” क्योंकि वह प्रख्यात व पराक्रमी शासक चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र एवं महान राजा अशोक का पिता था।
डायमेकस और डायोनिसस नामक दो विदेशी राजदूत बिन्दुसार के दरबार में आए। इतिहासकार स्ट्रेबो लिखता है कि “सीरिया के शासक एण्टियोकस ने डायमेकस को बिन्दुसार के दरबार में राजदूत बनाकर भेजा था।” स्पष्ट है, मेगस्थनीज़ की जगह डायमेकस ने ले ली। इतिहासकार प्लिनी के मुताबिक, “मिस्र के शासक टालमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने डायानोसिस नामक राजदूत को मौर्य दरबार में भेजा था।”
मौर्य सम्राट बिन्दुसार एवं सीरिया के शासक एण्टियोकस प्रथम के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के बारे में यूनानी लेखक एथीनियस कुछ इस प्रकार से उल्लेख करता है— “बिन्दुसार ने पत्र लिखकर एण्टियोकस प्रथम से तीन वस्तुओं की मांग की थी — 1. मीठी मदिरा 2. सूखी अंजीर 3. एक दार्शनिक (सोफिस्ट)।” सीरिया सम्राट एण्टियोकस प्रथम ने पहली दो वस्तुएं तो भिजवा दी, किन्तु तीसरी वस्तु के बारे में यह कहला भेजा कि यूनानी कानून के अनुसार दार्शनिकों का विक्रय नहीं किया जा सकता। इससे बिन्दुसार की दार्शनिक रूचि का भी कुछ संकेत मिलता है। उपरोक्त प्रसंग से यह भी जानकारी मिलती है कि बिन्दुसार के समय में भारत का पश्चिमी एशिया के साथ व्यापारिक सम्बन्ध था।
बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान के मुताबिक, सम्राट बिन्दुसार के समय उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में दो विद्रोह हुए थे, जिसका दमन करने के लिए पहली बार उसने अशोक तथा दूसरी बार सुसीम को भेजा था। तारानाथ के अनुसार, खस्या (नेपाल के आसपास के प्रदेश) तथा नेपाल के लोगों ने विद्रोह किया तब अशोक ने इन प्रदेशों को जीता।
बौद्ध ग्रंथ सामंतपसादिका और महावंश के अनुसार, बिन्दुसार ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था, इन ग्रन्थों में उसे ‘ब्राह्मण भट्टो’ अर्थात ब्राह्मणों का भक्त कहा गया है। जबकि कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार, मौर्य सम्राट बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था। दिव्यावदान से पता चलता है कि उसकी राजसभा में आजीवक परिव्राजक ‘पिंगलवत्स’ निवास करता था।
तिब्बती लामा तारानाथ एवं जैन ग्रन्थ परिशिष्ट-पर्वन के मुताबिक, आचार्य चाणक्य मौर्य सम्राट बिन्दुसार का भी प्रधानमंत्री था। चाणक्य के बाद राधागुप्त प्रधानमंत्री बना। आचार्य चाणक्य ने 16 राज्यों के राजाओं तथा सामन्तों का नाश किया तथा बिन्दुसार को पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र तक के भूभाग का शासक बनाया। इसी आधार पर कुछ विद्वानों का मानना है कि बिंदुसार ने दक्षिण पर विजय प्राप्त की थी।
प्रशासनिक क्षेत्र में बिन्दुसार ने अपने पिता चन्द्रगुप्त मौर्य की व्यवस्था का ही अनुगमन किया। उसने अपने साम्राज्य को प्रान्तों में विभाजित किया। प्रत्येक प्रान्त में कुमार (उपराजा) नियुक्त किए। दिव्यावदान के अनुसार, अवन्ति राष्ट्र (आधुनिक उज्जैन) का उपराजा अशोक था। प्रशासनिक कार्यों के लिए अनेक महापात्रों की भी नियुक्ति की गई। बिन्दुसार की राजसभा में 500 सदस्यों वाली एक मंत्रिपरिषद थी जिसका प्रधान खल्लाटक था। यद्यपि बिन्दुसार के शासनकाल की अन्य बातें हमें ज्ञात नहीं हैं।
पुराणों के अनुसार, मौर्य सम्राट बिन्दुसार ने 24 वर्षों तक शासन किया जबकि महावंश के मुताबिक, उसने 27 वर्ष तक राज्य किया। इतिहासकार डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी ने बिन्दुसार की मृत्यु तिथि 272 ई.पू. निर्धारित की है। जबकि फ्रांसीसी इतिहासकार एलेन डेनियलो का मानना है कि सम्राट बिन्दुसार की मृत्यु लगभग 274 ईसा पूर्व में हुई थी।
बिन्दुसार की 16 रानियों से 101 पुत्र थे। अशोक के पाँचवें शिलालेख से भी यह पता चलता है कि बिन्दुसार के कई लड़के थे। हांलाकि दिव्यावदान में केवल सुसीम, अशोक एवं तिष्य का ही नाम मिलता है। ब्रह्माण्ड पुराण में उल्लेख मिलता है कि बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को स्वयं ताज पहनाया था। वहीं देवचंद्र की राजावली-कथा में यह कहा गया है कि बिंदुसार ने अशोक को राजगद्दी सौंपकर संन्यास ले लिया। जबकि इतिहासकार के.सी. श्रीवास्तव के अनुसार, “बिन्दुसार की मृत्यु के बाद उसके पुत्र अशोक ने 99 भाईयों की हत्या कर राजसिंहासन प्राप्त किया।”
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