
महाभारत काल में पांडु पुत्र भीम एकमात्र ऐसे महारथी थे जिन्हें दस हजार हाथियों का बल प्राप्त था। भीम को पवनपुत्र भी कहा जाता है। महाकाव्य ‘महाभारत’ में भीम की चार पत्नियों का उल्लेख कुछ इस प्रकार मिलता है - द्रुपद नरेश की पुत्री द्रौपदी, राक्षस हिडिम्ब की बहन हिडिम्बा, काशी नरेश की पुत्री बलंधरा तथा मद्र देश की राजकन्या काली।
शक्तिशाली राक्षस हिडिम्ब की बहन हिडिम्बा से भीम ने गन्धर्व विवाह किया था। हिडिम्बा और भीम से घटोत्कच नामक एक अतिशक्तिशाली राक्षस पुत्र पैदा हुआ था जिसने महाभारत युद्ध में भारी तबाही मचाई थी। घटोत्कच के पुत्र का नाम था बर्बरीक जिन्हें हम सभी ‘खाटूश्याम बाबा’ के नाम जानते हैं।
भीम की शक्तिशाली राक्षसी पत्नी हिडिम्बा का हिमाचल प्रदेश के मनाली में मंदिर बना हुआ है। हैरानी की बात यह है कि हिडिम्बा न केवल मनाली की आराध्य देवी है अपितु मनाली की रक्षक देवी भी है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि आखिर में हिडिम्बा ने स्वयं को एक राक्षसी से आराध्य देवी के रूप में कैसे परिवर्तित कर लिया, इस तथ्य को जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
राक्षसी हिडिम्बा का भीम से गन्धर्व विवाह
महाभारत कथा में यह प्रसंग आता है कि धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन ने पांडव पुत्रों की हत्या करने के उद्देश्य से लाक्षागृह तैयार करवाया था। किसी दिन अर्द्धरात्रि में लाक्षागृह में स्वयं आग लगाकर पांडव पुत्र अपनी मां कुंती के साथ सुरंग के रास्ते से बाहर निकल गए।
पांडव पुत्र युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव अपनी मां कुन्ती के साथ चलते हस्तिनापुर से बहुत दूर निकल गए। रात्रि के वक्त जिस जंगल में विश्राम कर रहे थे, वहां हिडिम्ब और उसकी बहन हिडिम्बा का आधिपत्य था। हिडिम्ब इतना क्रूर राक्षस था कि वह जंगल में दिखने वाले प्रत्येक मनुष्य को मारकर खा जाता था।
ऐसे में, अपने चारों भाईयों तथा मां कुन्ती की रक्षा कर रहे भीम और राक्षस हिडिम्ब में जोरदार युद्ध हुआ। इस युद्ध में राक्षस हिडिम्ब मारा गया। तत्पश्चात भीम के रूप-यौवन तथा शक्ति से प्रभावित राक्षसी हिडिम्बा ने भीम के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा जिसे भीम ने इन्कार कर दिया। इसके बाद हिडिम्बा ने माता कुन्ती से अनुनय-विनय किया।
तत्पश्चात कुन्ती ने इस विवाह के लिए हामी तो भर दी परन्तु यह शर्त रखी कि उनका पुत्र भीम केवल सन्तान प्राप्ति होने तक ही हिडिम्बा के साथ रह सकता है। इस प्रकार उसी जंगल में राक्षसी हिडिम्बा और भीम का गन्धर्व विवाह सम्पन्न हुआ।
घटोत्कच के जन्म के बाद हिडिम्बा का हृदय परिवर्तन
पांडव पुत्रों तथा माता कुन्ती के जंगल प्रवास के दौरान ही राक्षसी हिडिम्बा और भीम से एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम घटोत्कच रखा गया। घटोत्कच के जन्मोपरान्त पांडव जब हस्तिनापुर जाने लगे तो उन्होंने हिडिम्बा को भी साथ चलने को कहा, लेकिन अपने जंगल परिक्षेत्र (अब मनाली) की रक्षा करने की बात कहकर उसने हस्तिनापुर जाने से मना कर दिया। जी हां, वह जंगल परिक्षेत्र हिमाचल प्रदेश का मनाली था, जहां माता हिडिम्बा का मंदिर बना हुआ है।
मनाली की रक्षक बनी हिडिम्बा
पांडवों के हस्तिनापुर लौट जाने के बाद राक्षसी हिडिम्बा अपने पुत्र घटोत्कच के साथ उसी जंगल (वर्तमान में मनाली) की संरक्षिका बनकर रहने लगी। हिडिम्बा ने एक छोटी सी गुफा में रहकर ध्यान, प्रार्थना तथा घोर तप करना शुरू कर दिया और देवी का दर्जा प्राप्त किया।
यही वजह है कि उस जंगल परिक्षेत्र (वर्तमान में मनाली) में निवास करने वाले लोगों को हर संकट से बचाने वाली हिडिम्बा देवी को ‘मनाली का रक्षक’ माना जाता है। इतना ही नहीं, मनाली के स्थानीय लोग हिडिम्बा देवी को ‘कुलेदवी’ के रूप में पूजते हैं।
हिडिम्बा देवी का प्रख्यात मंदिर
हिमाचल प्रदेश के मनाली स्थित ढूंगरी गांव में हिडिम्बा देवी का प्रख्यात मंदिर मौजूद है, जिसे ‘ढूंगरी मंदिर’ भी कहा जाता है। इस मंदिर में कोई मूर्ति विद्यमान नहीं है, अपितु एक छोटी सी गुफा और एक पत्थर है जहाँ हिडिम्बा देवी ने बैठकर तप किया था।
मनाली शहर के पास के एक पहाड़ पर स्थित यह गुफा मंदिर पैगोडा शैली में निर्मित है। हैरानी की बात यह है कि हिडिम्बा देवी मंदिर से तकरीबन 70 मीटर की दूरी पर घटोत्कच का भी मंदिर मौजूद है।
हिडिम्बा मंदिर में लगे एक अभिलेख के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण साल 1553 में राजा बहादुर सिंह ने करवाया था। देवदार वृक्षों से घिरे इस नक्काशीपूर्ण मंदिर की खूबसूरती बर्फबारी के बाद देखते ही बनती है। हिडिम्बा देवी का मंदिर मनाली के सर्वाधिक खूबसूरत पयर्टनस्थलों में से एक है, जहां प्रत्येक वर्ष लाखों सैलानी घूमने आते हैं।
हिडिम्बा देवी मंदिर की वास्तुकला
पैगोडा शैली में निर्मित हिडिम्बा देवी के मंदिर का शिखर 40 मीटर ऊंचे शंकु के आकार का है। मंदिर की चार छते हैं तथा पत्थर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी भी की गई है। मंदिर का मुख्य द्वार लकड़ी से निर्मित है, जिस पर पत्तेदार डिज़ाइन, जानवर, नर्तक, भगवान कृष्ण के जीवन दृश्य और नवग्रह भी दर्शाए गए हैं। मंदिर के गर्भगृह में एक बड़ी शिला है, जिसमें तकरीबन 3 इंच लम्बी पीतल की छवि है, जो माता हिडिम्बा की प्रतीक है।
हिडिम्बा मंदिर के प्रमुख उत्सव
मनाली की आराध्य देवी हिडिम्बा के पूजा स्थल पर प्रति वर्ष सावन महीने में एक विशाल मेला लगता है। ऐसा कहते हैं कि धान की रोपाई पूर्ण होने के बाद यह मेला लगाया जाता है।
नवरात्रि के दिनों में शक्ति की प्रतीक देवी हिडिम्बा के मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ देखते ही बनती है। नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ हिडिम्बा देवी के प्रति सच्ची श्रद्धा और आस्था को दर्शाता है।
कैसे पहुंचे हिडिम्बा मंदिर
हिमालचल प्रदेश के मनाली स्थित ढूंगरी गांव में मौजूद प्रख्यात हिडिम्बा मंदिर पहुंचने के लिए यातायात साधन सुगमता से उपलब्ध हैं। उत्तर भारत के सभी शहर राजधानी दिल्ली से रेल अथवा बस परिवहन से जुड़े हैं। दिल्ली से मनाली के लिए रोजाना सार्वजनिक तथा निजी बसें चलती हैं।
यदि आप हवाई मार्ग से मनाली जाना चाहते हैं तो कुल्लू-मनाली हवाई अड्डे से हिडिम्बा मंदिर की दूरी तकरीबन 52-53 किमी. है, जहां से आप महज ढाई से तीन घंटे में कार अथवा कैब के जरिए ढूंगरी गांव स्थित हिडिम्बा मंदिर पहुंच सकते हैं। कुछ लोग जोगिन्दर नगर रेलवे स्टेशन के अतिरिक्त चण्डीगढ़ तथा अम्बाला रेलवे स्टेशनों से भी मनाली के लिए प्रस्थान करते हैं।
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