सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने प्रेम, मानवता और सद्भाव के लिए 28 वर्षों में तकरीबन 9 देशों की यात्रा की। गुरु नानक देव जी ने भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, तिब्बत और मलय प्रायद्वीप (दक्षिणी थाइलैंड का हिस्सा) सहित अफगानिस्तान, मक्का-मदीना, बगदाद, खुरमाबाद, ईरान तक की यात्रा की।
गुरु नानक देव जी की इन सभी यात्राओं में उनके निकट सहयोगी भाई मरदाना जी भी साथ रहे। गुरु नानक देव जी की इन यात्राओं को सिख धर्म में ‘उदासी’ कहा गया है। बता दें कि गुरु नानक देव जी की भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब यात्रा को चार उदासियों में विभाजित किया गया है।
इस प्रकार गुरु नानक देव जी ने चौथी उदासी में मक्का-मदीना की यात्रा की थी। गुरु नानक देव जी की मक्का-मदीना यात्रा से जुड़ी रोचक बातें जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी
साल 1469 में अप्रैल महीने की 15 तारीख को कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित गांव तलवंडी में हुआ था, जो अब ननकाना साहिब (पाकिस्तान में) के नाम से जाना जाता है। गुरु नानक देव जी के पिता मेहता कालू तलवंडी गांव के पटवारी थे।
गुरु नानक देव जी की मां का नाम तृप्ता था। गुरु नानक देव जी की शादी 16 वर्ष की उम्र में साल 1485 में हुई थी और उनकी पत्नी का नाम सुलखनी था जो गुरदासपुर जिले की लाखौकी निवासी थीं।
गुरु नानक देव जी के दो पुत्र थे-श्रीचंद और लखमीदास। भारतीय इतिहास में गुरु नानक जी को सिख धर्म के संस्थापक होने के साथ-साथ एक महान संत, विचारक और समाज सुधारक के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने आजीवन मानवता, प्रेम और सद्भावना का संदेश दिया।
गुरु नानक देव जी बचपन से ही सांसारिक विषयों से विमुख होकर आध्यात्मिक चिन्तन और सत्संग में अपना समय व्यतीत करने लगे थे। बचपन के दिनों में ऐसी कई चमत्कारिक घटनाएँ घटीं जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे।
गुरु नानक देव जी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अन्धविश्वास तथा भेदभाव को दूर करने के साथ ही समाज में मानवता, प्रेम एवं समानता का संदेश फैलाने के लिए कई देशों की लम्बी पैदल यात्राएं की।
जीवन के आखिरी दिनों में गुरु नानक देव जी की ख्याति बहुत ज्यादा बढ़ गई। उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया और एक बड़ी धर्मशाला भी बनवाई। वहीं से अपने अनुयायियों के साथ रहकर मानवता की सेवा करने लगे।
करतारपुर में ही 22 सितम्बर 1539 ई. को गुरु नानक देव जी परलोक गमन कर गए। करतारपुर साहिब (अब पाकिस्तान) में गुरु नानक देव जी की समाधि स्थल है। अपनी मृत्यु से पूर्व ही गुरु नानक देव जी ने भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में सिख धर्म के दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।
प्रकाश पर्व से जुड़ी मुख्य बातें
इस वर्ष (2024 ई.) 15 नवम्बर को गुरु नानक देव जी का 555वां प्रकाश पर्व है। चूंकि गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसीलिए प्रत्येक वर्ष गुरु नानक देव जी की जयन्ती कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है, जिसे हम सभी ‘गुरुपर्व’ अथवा ‘प्रकाश पर्व’ के रूप में जानते हैं।
गुरु नानक जयंती से पूर्व 48 घंटे का अखंड पाठ किया जाता है, इस पाठ का समापन प्रकाश पर्व के दिन किया जाता है। गुरु नानक जयंती के दिन सुबह में नगर कीर्तन का आयोजन होता है तथा ढोल-मंजीरों के साथ प्रभात फेरी निकाली जाती है।
गुरु नानक देव जी ने सर्वदा मानवता के बीच समानता, प्रेम, सेवा और सद्भाव पर बल दिया था। उन्होंने अपने संदेश में कहा था कि “नाम जपो, किरत करो, वंड छको” अर्थात ईश्वर को जपें, ईमानदारीपूर्वक कार्य करें और जरूरतमंदों के साथ बांटकर खाएं। यही वजह है कि प्रकाश पर्व की खुशी में लोग दीप चलाते हैं तथा गरीबों को भोजन कराने के साथ ही कपड़े आदि दान करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले प्रकाश पर्व पर गुरुद्वारों को खूब सजाया जाता है। रात्रि के वक्त गुरुद्वारों में लाईट और फूलों की डेकोरेशन देखने लायक होती है। इसके अतिरिक्त सिख श्रद्धालुओं के द्वारा गुरुद्वारों में गुरुवाणी के पाठ किए जाते हैं तथा लंगरों का आयोजन होता है।
गुरु नानक देव जी की मक्का-मदीना यात्रा
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने 28 वर्षों में 9 देशों की यात्राएं की। अपनी चौथी उदासी में वह मुल्तान, सिंध, बलोचिस्तान और जैदा के बाद मक्का-मदीना पहुंचे। 1509 ई. में ताज-उ-दीन नक्शबंदी द्वारा लिखित पांडुलिपी 'स्याहतो बाबा नानक फकीर' व 1505-06 ई. में ख्वाजा ज़ैन उल आबिदीन द्वारा लिखित 'तवारीख-ए-अरब' एवं 1506-1507 ई. में अब्दुल द्वारा लिखित ‘गुनीतुसालेहिन’ में गुरु नानक की मक्का यात्रा का विवरण मिलता है। गुरु नानक देवजी की ये तीनों पांडुलिपियां मदीना लाइब्रेरी में मौजूद हैं।
इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक पुस्तकों हिस्ट्री ऑफ पंजाब, हिस्ट्री ऑफ सिख, वारभाई गुरदास और सौ साखी, जन्मसाखी में भी नानक देवजी की मक्का यात्रा का विवरण मिलता है। आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि उनका एक मुस्लिम शिष्य था मरदाना जो गुरु नानक देव जी के सबसे करीब था। गुरु नानक देव जी की सभी यात्राओं में मरदाना उनके साथ था। मरदाना को रबाब बजाने में महारत हासिल थी।
मरदाना ने एक दिन गुरु नानक जी से कहा कि वह मक्का की यात्रा करना चाहता है। उसका कहना था जब तक कोई मुसलमान मक्का की यात्रा नहीं करता तब तक वह सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता। फिर क्या था, गुरु नानक देव जी अपने दो मुसलमान शिष्यों मरदाना और मुहम्मद गौस के साथ मक्का की ओर चल पड़े।
गुरु नानक जी का सऊदी अरब में प्रवेश
1517-1518 ई. में गुरु नानक जी ने अदन, जेद्दा, मक्का, मदीना, बगदाद की यात्रा की थी। गुरु नानक जी ने 1518 ई. के आस-पास अदन बंदरगाह से जेद्दाह होते हुए सऊदी अरब में प्रवेश किया। जेद्दाह को इस्लाम की सबसे पवित्र नगरी मक्का-मदीना का मुख्य प्रवेश द्वार कहा जाता है। गुरु नानक जी अपनी इस यात्रा के दौरान ओटोमन राजा सेलिम प्रथम से भी मिले थे।
तीन दिन तक अदन में रहने के बाद गुरु नानक देवजी जेद्दाह शरीफ गए और वह हव्वा की कब्र के पास बैठे। हैरानी की बात यह है कि इस यात्रा के दौरान वह स्थानीय पोशाक पहने हुए थे और स्थानीय भाषा अरबी में ही उपदेश भी दिए। सऊदी अरब की यात्रा के दौरान नानक जी ने नीले रंग की पोशाक पहनी थी, उनके सिर पर सेली टोपी थी। उनके एक हाथ में छड़ी तथा बगल में पुस्तक थी।
गुरु नानक देव जी ने मरदाना और मुहम्मद गौस के साथ जेद्दाह से मक्का तक 70 किमी की पैदल यात्रा की थी। गुरु नानक देव जी रात में मक्का की ओर पैर करके सोते थे। एक दिन सफाईकर्मियों के मुखिया ने गुस्से में कहा कि तुम एक मूर्ख काफिर लगते हो, काबा की तरफ पैर करके सोते हो। तब गुरु नानक ने कहा, “कृपया मेरे पैर उस दिशा में कर दो जहाँ भगवान नहीं हैं।” जैसे ही उन्होंने गुरु गुरु नानक के पैर दूसरी तरफ किए तब उन्होंने महसूस किया कि काबा उसी दिशा में बढ़ रहा है। फिर गुरु नानक जी ने कहा कि ईश्वर सब जगह है, सभी दिशाओं में है।
गुरु नानक देव जी के उपदेशों से प्रभावित होकर मक्का के काजियों तथा मुल्लाओं का मुखिया रूकनुद्दीन उनका चेला बन गया। गुरु नानक देव जी मक्का के कब्रिस्तान में तीन दिन तक रूके रहे, जहां मरदाना रबाब बजाकर अपने गुरू के गुणों का वर्णन करता था। यहां गुरु नानक जी के प्रवचन को 300 अनुयायियों ने सुना। काजी रूकनुद्दीन ने 360 सवाल पूछे और बाबाजी के आश्चर्यजनक जवाब सुनकर वह अपने कई प्रियजनों और साथियों के साथ उनका अनुयायी बन गया।
जब मक्का के अमीर को पता चला कि एक मुसलमान मुखिया एक काफिर का अनुयायी बन चुका है तब उसने रूकनुद्दीन के खिलाफ फतवा जारी कर दिया। इसके बाद रूकनुद्दीन की सम्पत्ति जब्त कर ली गई। 11 दिन तक बिना भोजन-पानी के उस पर 30 कोड़े बरसाए गए। फिर उसे रेत के टीलों में दफना दिया गया। साथ ही यह भी ऐलान किया गया कि नानक फकीर एक काफिर है जिसकी शिक्षाएं झूठी तथा मुस्लिम धर्म के खिलाफ हैं। मक्का और मदीना की यात्रा के बाद गुरु नानक देव जी बगदाद, ईरान (यहीं मरदाना का निधन हो गया था), काबुल और पश्चिमी पंजाब के रास्ते करतारपुर साहिब वापस लौट आए।
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