साल 1848 में ब्रिटेन ने स्कॉटलैण्ड के एक रईस के बेटे लार्ड डलहौजी को भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया। लार्ड डलहौजी जिस समय गवर्नर जनरल बनकर भारत आया उस समय वह महज 36 वर्ष का था। हांलाकि लार्ड डलहौजी ने अपने आठ वर्ष के शासनकाल (1848-1856 ई.) में कई महत्वपूर्ण सुधार किए परन्तु इस साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल ने इन आठ वर्षों में भारत के नौ राज्यों को बड़ी शीघ्रता से ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।
नि:सन्देह साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी को ब्रिटिश इतिहास के महान गवर्नर जनरलों में से एक माना जाता है, सम्भवत: भारत में अंग्रेजी साम्राज्य को मजबूत बनाने में उसके योगदान को भूलाया नहीं जा सकता।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी बिल्कुल विपरीत प्रकृति का व्यक्ति था, वह भारतीय राज्यों को हड़पने का मौका ढूढ़ता रहता था और उचित अवसर मिलते ही कोई न कोई न कोई बहाना बनाकर इन्हें अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लेता था। आइए जानते हैं, गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने उन नौ भारतीय राज्यों को किस आधार पर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया था?
सैन्य शक्ति के दम पर विलय
लार्ड डलहौजी ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रति विद्रोह, दुर्व्यवहार तथा मानहनि का आरोप लगाकर ब्रिटिश सैन्य शक्ति के दम पर पंजाब, सिक्किम तथा बर्मा का बड़ी सुगमता से विलय कर लिया।
1- पंजाब का विलय (1849 ई.)
अल्पवयस्क महाराजा दलीप सिंह की संरक्षिका महारानी जिन्दन कौर के साथ अंग्रेजों ने बुरा व्यवहार किया था। भैरोवाल की सन्धि के अनुसार, रानी को डेढ़ लाख रुपए वार्षिक पेन्शन दिया जाना था जिसे घटाकर 48 हजार रुपए कर दिया गया। इतना ही नहीं, जिन्दन कौर के आभूषण ले लिए गए और उसे नजरबंद कर शेखपुरा भेज दिया गया। अंग्रेजों के इस दुर्व्यवहार ने सिखों को उत्तेजित कर दिया था।
वहीं मुल्तान के गवर्नर मूलराज को हटाकर कम्पनी ने काहन सिंह को गवर्नर नियुक्त किया। इसके बाद समूचे मुल्तान में सिखों ने विद्रोह कर दिया। मौका पाकर मूलराज, चतरसिंह, शेरसिंह आदि ने विद्रोहियों का नेतृत्व किया। ऐसे में गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने इस विद्रोह का सहारा लेकर पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने का निश्चय किया। युद्ध घोषणा में लार्ड डलहौजी ने कहा, “पूर्व चेतावनी के बिना तथा अकारण ही सिखों ने युद्ध की घोषणा कर दी है। मैं सौगन्ध खाकर कहता हूं कि उनसे यह युद्ध प्रतिशोध सहित ही किया जाएगा।”
लार्ड डलहौजी ने जनरल गॉफ को अंग्रेजी सेना की कमान सौंपी, अत: जनरल गॉफ के नेतृत्व में रामनगर और चिलियानवाला में अंग्रेजों तथा सिक्खों के बीच अनिर्णायक युद्ध लड़ा गया। परन्तु 21 फरवरी 1849 ई. को लड़े गए गुजरात के युद्ध में (जिसे तोपों का युद्ध भी कहा जाता है) लार्ड डलहौजी ने बतौर सैन्य कमांडर चार्ल्स नैपियर को नियुक्त किया। इस युद्ध में अंग्रेजों ने सिख सेना को करारी शिकस्त दी और सिख सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया।
इस अंतिम और निर्णायक युद्ध के बाद लार्ड डलहौजी ने 29 मार्च 1849 ई. को पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया। महाराजा दलीप सिंह को 50, 000 रुपए वार्षिक पेन्शन देकर रानी जिन्दन कौर के साथ उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड भेज दिया गया। महाराजा दलीप सिंह की सारी सम्पत्ति कम्पनी ने जब्त कर ली और दलीप सिंह से विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा लेकर ब्रिटिश राजमुकुट में लगा दिया गया।
यदि देखा जाए तो लार्ड डलहौजी का पंजाब विलय अनुचित था क्योंकि पंजाब के महाराजा दलीप सिंह ने तो विद्रोह भी नहीं किया था। यहां तक कि पंजाब की दुर्व्यवस्था के लिए अंग्रेजी रेजिडेन्ट उत्तरदायी था क्योंकि भैरोवाल की सन्धि के तहत प्रशासन की जिम्मेदारी रेजीडेन्ट की थी न कि महाराजा की। इस प्रकार महज सिख विद्रोह एवं पंजाब दुर्व्यवस्था के नाम पर लार्ड डलहौजी ने पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
2- सिक्किम (1850 ई.)
भारत के पूर्वोत्तर भाग में स्थित पर्वतीय राज्य सिक्किम जो नेपाल और भूटान राज्यों के बीच स्थित एक छोटा सा राज्य था, उसके राजा पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने यह आरोप लगाया कि उसने दो अंग्रेज डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार किया है, महज इसी तथ्य को आधार बनाकर साल 1850 ई. में सिक्किम के कुछ दूरवर्ती इलाके जिनमें दार्जलिंग भी शामिल था, ब्रिटिश भारत में मिला लिए गए।
3- बर्मा का अंग्रेजी राज्य में विलय (1852 ई.)
हांलाकि वर्तमान में बर्मा हमारे देश का हिस्सा नहीं है, परन्तु 1937 तक यह भारत का ही एक भाग था। बर्मा के अधिकांश लोग बौद्ध है, ऐसे में बर्मा का भारत के साथ सांस्कृतिक महत्व होने के साथ ही आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक महत्व भी है। गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने पूर्वी समुद्र में अमेरिका और फ्रांस की बढ़ती हुई शक्ति के कारण पहले ही यह निश्चय कर रखा था कि मौका मिलते ही वह बर्मा को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लेगा। यह मौका भी लार्ड डलहौजी को जल्द ही मिल गया।
बर्मा के दक्षिणी तट और रंगून में बसे कुछ अंग्रेज व्यापारी रंगून के गवर्नर के विरूद्ध दुर्व्यवहार की शिकायत करते रहते थे। इतनी ही नहीं, शैप्पर्ड और लुइस नामक दो अंग्रेज कप्तानों पर बर्मा सरकार ने भारी जुर्माने लगा दिए। इन दोनों कप्तानों ने लार्ड डलहौजी को पत्र लिखा और यह पत्र ही लार्ड डलहौजी के लिए पर्याप्त था।
अंग्रेजी साम्राज्य की प्रतिष्ठा और गौरव के लिए प्रतिबद्ध लार्ड डलहौजी ने कहा कि “यदि कोई व्यक्ति गंगा नदी के मुहाने पर अंग्रेजी झण्डे का अपमान करता है तो वह वैसा ही है जैसा कि कोई टेम्ज नदी के मुहाने पर अपमान करता है।” लार्ड डलहौजी ने हरजाने की मांग और बातचीत के नाम अंग्रेज अफसर कॉमडोर लेम्बर्ट को फॉक्स नामक युद्धपोत के साथ बर्मा भेजा परन्तु डलहौजी का असली मकसद युद्ध ही था।
लेम्बर्ट ने बर्मा महाराज के एक युद्ध पोत को पकड़ लिया, इस युद्ध में बर्मा सरकार हार गई। अत: 20 दिसम्बर 1852 ई. को लार्ड डलहौजी ने बर्मा के ब्रिटिश साम्राज्य में विलय की घोषणा कर दी। निष्कर्षतया सिर्फ अंग्रेजी साम्राज्य के गौरव-प्रतिष्ठा को मुद्दा बनाकर लार्ड डलहौजी ने बर्मा का विलय कर लिया।
व्यपगत सिद्धान्त
लार्ड डलहौजी ने भारतीय राज्यों को हड़पने का एक नियम यह भी बना रखा था कि राजाओं की निजी सम्पत्ति के उत्तराधिकार के लिए उसके दत्तक पुत्र को अनुमति है परन्तु गद्दी पर अधिकार के लिए उसे अनुमति नहीं है।
4- सतारा (1849 ई.)
राजा के नि:सन्तान होने का आरोप लगाकर लार्ड डलहौजी द्वारा हड़पा जाने वाला पहला राज्य सतारा था। सतारा के राजा अप्पा साहिब का कोई पुत्र नहीं था। यद्यपि उन्होंने अपनी मृत्यु (अप्रैल 1849 ई.) से कुछ दिन पहले कम्पनी की अनुमति के बिना दत्तक पुत्र बना लिया था। बम्बई काउंसिल का चीफ जार्ज क्लार्क सतारा विलय के विरूद्ध था फिर भी लार्ड डलहौजी ने इसे आश्रित राज्य घोषित करके इसका विलय कर लिया। कम्पनी के डायरेक्टरों ने भी डलहौजी का समर्थन किया और कहा कि सतारा जैसे अधीनस्थ राज्यों को कम्पनी की स्वीकृति के बिना दत्तक पुत्र लेने का कोई अधिकार नहीं है। कुल मिलाकर ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की तर्ज पर लार्ड डलहौजी ने सतारा को हड़प लिया।
5- सम्भलपुर (1849 ई.)
सम्भलपुर के राजा नारायण सिंह नि:सन्तान थे और दुर्भाग्यवश वह कोई पुत्र गोद भी नहीं ले सके। ऐसे में इस मौके का फायदा उठाकर लार्ड डलहौजी ने 1849 ई. में सम्भलपुर राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया।
6- झांसी (1853 ई.)
झांसी का राजा पेशवा के अधीन होता था परन्तु मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय की हार के पश्चात लार्ड हेस्टिंग्ज ने एक सन्धि के तहत झांसी के राजा राव रामचन्द्र को यह राज्य उसे, उसके पुत्रों तथा उत्तराधिकारियों को कम्पनी के अधीनस्थ सहयोग की शर्तों पर दिया था।
वृद्ध राजा जल्द ही स्वर्ग सिधार गए इसके पश्चात कम्पनी ने राजा के वंशज गंगाधर राव को झांसी का राजा नियुक्त किया। 1853 में गंगाधर राव भी पुत्र के बिना ही स्वर्ग सिधार गए। गंगाधर राव की पत्नी रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र गोद लिया परन्तु इसे कम्पनी ने स्वीकार नहीं किया। रानी लक्ष्मीबाई के साथ हुए संघर्ष के बाद लार्ड डलहौजी ने झांसी का भी विलय कर लिया।
7- नागपुर
मराठा राज्य नागपुर का क्षेत्रफल 80 हजार वर्ग मील था। साल 1817 ई. में लार्ड हेस्टिंग्ज ने राघोजी भोंसले को नागपुर का उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया था। परन्तु 1830 में राघोजी भोंसले बिना दत्तक पुत्र गोद लिए ही स्वर्ग सिधार गए।
हांलाकि राघोजी भोंसले अपनी रानी को पुत्र गोद लेने को कह चुके थे जब रानी ने पुत्र गोद लेने का प्रस्ताव किया तो कम्पनी ने इसे अस्वीकार कर दिया और नागपुर राज्य का विलय कर लिया गया। लार्ड डलहौजी के आदेश पर अंग्रेजों ने राघोजी भोंसले के महल को भी लूट लिया। रानियों के आभूषण और राजप्रसाद के सामान बेंचकर तकरीबन 2 लाख पौंड प्राप्त किए गए।
8- बरार का विलय (1853 ई.)
हैदराबाद के निजाम को सहायक सेना के भरण-पोषण के लिए जो विशाल धनराशि ईस्ट इंडिया कम्पनी को देनी थी, वह धनराशि देनी अभी शेष थी। ऐसे में लार्ड डलहौजी ने साल 1853 में निजाम को उस धन के बदले बरार प्रदेश देने पर बाध्य किया। तत्पश्चात 50 लाख रुपए वार्षिक ‘कर’ अदा करने वाले उर्वर प्रदेश बरार का विलय कर लिया गया।
9- अवध का विलय (1856 ई.)
लार्ड डलहौजी ने कुशासन का आरोप लगाकर अवध प्रदेश के विलय की योजना बड़ी दक्षता से बनाई। लार्ड डलहौजी ने कर्नल स्लीमैन को लखनऊ का रेजिडेन्ट नियुक्त किया, हांलाकि स्लीमैन विलय के पक्ष नहीं था फिर भी उसने कुशासन के विस्तृत विवरण भेजे।
1854 ई. में स्लीमैन की जगह आउट्रम आया। उसने भी रिपोर्ट दी कि ‘अवध का प्रशासन बहुत दूषित है और लोगों की दशा बहुत ही शोचनीय है।’ इसके बाद कोर्ट आफ डायरेक्टर्स और काउंसिल ने अवध विलय के पक्ष में अपना निर्णय सुना दिया। फिर क्या था, लार्ड डलहौजी ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को सिंहासन छोड़ने को कहा। जब वाजिद अली शाह ने ऐसा करने से मना कर दिया तब 13 फरवरी 1856 ई. को अवध का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया गया।
कुल मिलाकर भारतीय राजाओं के लिए गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी एक निर्दयी साम्राज्यवादी साबित हुआ जिसने रियासतों के विलय के लिए भारतीयों की भावनाओं को ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। लार्ड डलहौजी को नैतिक मूल्यों और प्रतिज्ञा जैसे शब्दों से कोई लेना-देना नहीं था, यही वजह है कि 1857 की महाक्रान्ति के लिए बहुत हद तक लार्ड डलहौजी को उत्तदायी माना जाता है।
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