भारत का इतिहास

Delhi Sultanate: Architecture or the art of building

दिल्ली सल्तनत : स्थापत्य अथवा भवन निर्माण कला

सल्तनतकाल में गुलाम वंश से लेकर लोदी वंश की समाप्ति तक अनेक भव्य एवं सुन्दर इमारतों का निर्माण करवाया गया। सल्तनतकालीन स्थापत्य कला में इण्डो-इस्लामिकशैली का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। हांलाकि इस काल में मुस्लिम स्थापत्य कला का प्रमुख केन्द्र दिल्ली था क्योंकि सुल्तानों ने यहां अनेक इमारतों का निर्माण करवाया। सुविधा की दृष्टि से सल्तनतकालीन स्थापत्य कला को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है।

1. दिल्ली अथवा शाही स्थापत्य कला - शाही स्थापत्य कला के अन्तर्गत वे सभी इमारतें आती हैं जिनका निर्माण सुल्तानों ने विभिन्न स्थानों पर करवाया।

2. प्रान्तीय स्थापत्य कला - प्रान्तीय स्थापत्य कला का विकास प्रान्तीय शासकों के संरक्षण में हुआ। अधिकांशतया ये शासक मुसलमान थे।

3. हिन्दू स्थापत्य कला - इसका विकास मुख्यतया राजस्थान और विजयनगर राज्यों में हुआ। शाही स्थापत्य कला की निर्माण पद्धति ने इनकों भी प्रभावित किया परन्तु मुसलमानों के आगमन से पूर्व ही हिन्दू जिस स्थापत्य कला का विकास कर चुके थे वह स्वयं में अद्वितीय थी।

1. दिल्ली अथवा शाही स्थापत्य कला

गुलामवंश कालीन स्थापत्य कला - कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली विजय तथा इस्लाम को प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से रायपिथौरा किले के निकट प्रसिद्ध मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम का निर्माण करवाया। कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के पास कुतुबुद्दीन ऐबक ने प्रख्यात सूफी सन्त कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुबमीनार का निर्माण प्रारम्भ करवाया जिसे आगे चलकर इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।

फिरोज तुगलक के समय बिजली गिर जाने के कारण कुतुबमीनार की चौथी मंजिल नष्ट हो गई अत: फिरोज ने इसमें दो छोटी मंजिलें बनवा दीं। यही वजह है कि कुतुबमीनार में पांच मंजिलें हो गईं। कुतुबमीनार का प्रयोग प्रारम्भ में अजान देने के लिए किया जाता था। इसका निर्माण तुर्कों ने सम्भवत: विजय स्तम्भ के रूप में करवाया। इसके अतिरिक्त कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर में ढाई दिन का झोंपड़ा नामक मस्जिद बनवाया।

कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाई मस्जिदों में से प्रथम एक मंदिर के स्थान पर और द्वितीय एक संस्कृत विद्यालय के स्थान पर बनवाई गई ​थी। इनकी रूपरेखा में परिवर्तन करके इन्हें मस्जिदों का स्वरूप दिया गया था, इसी कारण इनमें हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का सामंजस्य है।

सुल्तान इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार का निर्माण कार्य पूरा करवाने के साथ ही अपने बड़े पुत्र नासिरूद्दीन मुहम्मद का मकबरा उर्फ सुल्तानगढ़ी का निर्माण साल 1231 में करवाया। इसके अतिरिक्त इल्तुतमिश ने हौज--शम्सी (दिल्ली में), शम्सी ईदगाह, बदायूं की जामा ​मस्जिद और नागौर का अतरकीन का दरवाजा बनवाया।

गुलाम वंश के अन्य इमारतों में बलबन ने राय पिथौड़ा के निकट स्वयं का मकबरा और लाल महल बनवाया था। बलबन का मकबरा इस्लामी पद्धति द्वारा निर्मित भारत का प्रथम मकबरा है। बलबन के पुत्र मुहम्मद का मकबरा भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

खिलजीकालीन स्थापत्य कला अलाउद्दीन खिलजी एक महान निर्माता था। चूंकि उसके पास आर्थिक साधन भी पर्याप्त थे अत: उसकी इमारतें स्थापत्यकला की दृष्टि से श्रेष्ठतम मानी गई हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने मंगोल आक्रमण से सुरक्षा हेतु सीरी का किला तथा उसमें हजार स्तम्भों का महल (हजार सितुन) बनवाया। अलाउद्दीन खिलजी ने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का विस्तार करवाया तथा कुतुबमीनार के निकट 1311 ई. में अलाई दरवाजा का निर्माण करवाया। इसके अतिरिक्त उसने निजामुद्दीन औलिया के दरगाह के अन्तर्गत जमायतखाना मस्जिद का निर्माण करवाया। यही नहीं, अलाउद्दीन ने सीरी के निकट हौज--अलाई तथा हौज--खास नामक तालाब भी बनवाए। सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी द्वारा बनवाई गई इमारत का नाम ऊखा मस्जिद है।

तुगलककालीन स्थापत्य कला - तुगलक सुल्तानों की इमारतें इतनी भव्य एवं सुन्दर नहीं बन सकीं, सम्भवत: आर्थिक कठिनाईयां थीं। तुगलक काल में सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद फोर्ट का​ निर्माण करवाया। हांलाकि उसके महल एवं नगर बहुत दुर्बल बनाए गए थे जो शीघ्र ही नष्ट हो गए। गियासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली में छप्पन कोट का दुर्ग बनवाया, यह रोमन शैली में बना है।

मुहम्मद बिन तुगलक ने गियासुद्दीन का मकबरा एवं जहांपनाह नगर (दिल्ली में) निर्मित करवाया। उसने तुगलकाबाद के निकट आदिलाबाद फोर्ट बनवाया और दौलताबाद में कुछ इमारतें बनवाई होंगी। इनमें से सथपलाह-बांध और बिजाई-मण्डल नामक दो इमारतों के अवशेष प्राप्त होते हैं।

फिरोज शाह तुगलक स्थापत्य कला का अत्यन्त प्रेमी था। फिरोज की इमारतों में कमल के फूल को अलंकरण के रूप में उत्कीर्ण किया गया है। उसने अनेक नगरों, महलों एवं किलों का निर्माण करवाया जिसमें दिल्ली के निकट फिरोजशाह कोटला सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त फिरोजाबाद में किलेनुमा महल और इसमें बनी जामा मस्जिद भी उसी के समय में निर्मित हैं। फिरोजशाह के पुत्र खानेजहां जूनाशाह ने खानेजहां तिलगानी का मकबरातथा उसके निकट काली मस्जिद तथा जहांपनाह में खिरकी मस्जिद और कलम मस्जिद बनवाई थी।  नासिरूद्दीन मुहम्मद तुगलकशाह के समय निर्मित एक इमारत कबीरूद्दीन औलिया की कब्र पर बना मकबरा लाल गुम्बद है।

सैय्यद और लोदी वंश की स्थापत्य कला - मकबरों के निर्माण की अधिकता के कारण इस काल को मकबरों का काल कहा जाता है। सैय्यद और लोदी के समय बनी मुख्य इमारतों में मुबारक शाह सैयद, मुहम्मदशाह सैय्यद और सिकन्दर लोदी के मकबरे प्रमुख हैं।

सुल्तान इब्राहिम लोदी ने सिकन्दर लोदी का अष्टभुजीय मकबरा बनवाया। इसके अतिरिक्त सिकन्दर लोदी के वजीर मियां भुवा ने मोठ की मस्जिद बनवाई। उपर्युक्त सल्तनतकालीन इमारतें तकरीबन नष्ट हो चुकी हैं, केवल मकबरे, मस्जिदें एवं मीनारें शेष हैं। स्थापत्य कला की दृष्टि से कुतुबमीनार एवं अलाई दरवाजा का प्रमुख स्थान है।

2. प्रान्तीय स्थापत्य कला

सल्तनतकाल में विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न मुस्लिम शासकों ने कई महलों, किलों तथा मस्जिदों-मकबरों का निर्माण करवाया जो इस प्रकार हैं-

मुल्तान - मुल्तान में बनवाई गई इमारतों में शाह युसूफ-उल-गर्दिजी, बहौल-हक-शमसुद्दीन और रूकने-आलम के मकबरे हैं। इन सबमें रूक्ने-आलम के मकबरे को सबसे शानदार माना गया है, जिसका निर्माण गियासुद्दीन तुगलक ने करवाया।

बंगाल - बंगाल में बनवाई गई इमारतें श्रेष्ठ नहीं बन सकीं क्योंकि अधिकांश में ईंटों का प्रयोग किया गया। बंगाल में सिकन्दरशाह द्वारा 1368 ई. में निर्मित अदीना मस्जिद भारत में सबसे विशाल मस्जिद है। इसमें 400 गुम्बद हैं। नुसरतशाह ने साल 1530 में कदमरसूल मस्जिद का निर्माण गौड़ में करवाया व बड़ा सोना मस्जिद को भी पूरा करवाया।

गौड़ की प्रमुख इमारतों में बड़ा सोना मस्जिद, छोटा सोना मस्जिद, लोटन मस्जिद, दरसवारी का मकबरा एवं दाखिल दरवाजा प्रमुख हैं। अन्य इमारतों में पांडुआ का एकलाखी मकबरा, देवीकोट का रूक्न खां का मकबरा आदि भी हैं।

इसके अतिरिक्त खुलना जिले की सात गुम्बद मस्जिद और पांडुआ में बना जलालुद्दीन मुहम्मद का मकबरा प्रमुख हैं। खम्भों पर नुकीली मेहराबों का प्रयोग एवं हिन्दू प्रतीकों का प्रयोग बंगाल की स्थापत्य कला की मुख्य विशेषताएं हैं।

मालवा - सल्तनतकाल में मालवा में बनी शुरूआती इमारतों में कमाल मौला मस्जिद, लाट मस्जिद, दिलावर खां मस्जिद और मांडू का मलिक मुगीस का मकबरा है। हांलाकि यहां की श्रेष्ठतम इमारतों में मांडू का किला और इसके अन्दर बनी विभिन्न इमारतें हैं।

इसके अतिरिक्त मालवा की श्रेष्ठ इमारतों में महमूद खिलजी निर्मित सात मंजिलों वाला विजय स्तम्भ प्रसिद्ध है। महमूद खिलजी प्रथम ने  सुल्तान हुंसगशाह का मकबरा तथा मांडू में जहाज महल बनवाया। नासिरूद्दीन शाह निर्मित बाजबहादुर तथा रानी रूपमती के महल, अशर्फी महल प्रसिद्ध हैं।

जौनपुर (उत्तर प्रदेश) जौनपुर में शर्की शासकों द्वारा बनवाई गई इमारतों में हिन्दू-मुस्लिम शैली का अच्छा समन्वय देखने को मिलता है। जौनपुर की मस्जिदों में मीनारें नहीं हैं। चौकोर स्तम्भ व छोटी दहलीज इसकी मुख्य विशेषताएं हैं। जौनपुर में बनी इमारतों में इब्राहिम नाइब बारबक का महल और किला मुख्य हैं। इब्राहिम शाह शर्की निर्मित अटाला मस्जिद (अटाला देवी के मंदिर पर निर्मित) और झाझीरी मस्जिद के अ​तिरिक्त हुसैन शाह शर्की द्वारा बनवाई गई इमारतों में जामी मस्जिद तथा लाल दरवाजा मस्जिद प्रमुख हैं।

गुजरात - गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का बेहतरीन समन्वय देखने को मिलता है, यही वजह है कि यहां सुन्दर इमारतों का निर्माण हुआ। अहमदशाह ने 1411 ई. में अहमदाबाद नगर की स्थापना की तथा साल 1423 में जामा मस्जिद का निर्माण करवाया।

काम्बे की जामा मस्जिद, हिलाल खां काजी का मकबरा (ढोलका में), अहमदाबाद का तीन दरवाजा, रानी का हजरा, दरिया खां और अलिफखां के मकबरे एवं अहमदाबाद से छह मील दूर शेख अहमद खत्री का मकबरा प्रमुख है।

महमूद बेगड़ा ने चम्पानेर के नगर में अनेक सुन्दर इमारतें बनवाईं। महमूद बेगड़ा ने चम्पानेर व जूनागढ़ में जामा मस्जिद का निर्माण करवाया। उसके पश्चात बनी अन्य इमारतों में कुतुब-उल-आलम, मुबारक सैयद और सैयद उस्मान के मकबरे प्रमुख हैं।

कश्मीर - कश्मीर में भी हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का समन्वय देखने को मिलता है। श्रीनगर की जामा मस्जिद, मदनी का मकबरा और शाह हमदान की मस्जिद सल्तनत काल की प्रमुख इमारतें हैं।

बहमनी राज्य - बहमनी राज्य में हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का अच्छा मिश्रण है। इस राज्य की इमारतों में गुलबर्गा और बीदर की मस्जिदें, मुहम्मद आदिलशाह का मकबरा गोल गुम्बद, दौलताबाद की चारमीनार और बीदर का महमूद गवां का विद्यालय प्रमुख माने गए हैं।

3. हिन्दू स्थापत्य कला

हिन्दू स्थापत्यकला की प्रमुख इमारतें राजस्थान में प्राप्त होती हैं। इसके बाद विजयनगर में भी विभिन्न इमारतों का निर्माण हुआ था लेकिन तालीकोटा युद्ध के पश्चात मुस्लिम आक्रमणकारियों ने पूरे नगर को ध्वस्त कर दिया। ऐसे में वहां कोई भी इमारत सुरक्षित नहीं रही।

राजस्थान में मेवाड़ के राणा कुम्भा ने अनेक किले, महल और मंदिर बनवाए थे, उनमें कुम्भलगढ़ का किला, चित्तौड़ का कीर्ति स्तम्भ व विजय स्तम्भ प्रमुख है। महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ के किले में कुम्भश्याम मंदिर बनवाया, कुम्भश्याम मंदिर को मीरा मंदिर भी कहते हैं। चित्तौड़ दुर्ग में रानी पद्मिनी के महल, जयमल व फत्ता की हवेली तथा अन्य इमारतें हैं।

चित्तौड़ में एक जैन स्तम्भ भी है, जिस पर सुन्दर नक्काशी की गई है। राजस्थान के अन्य हिस्सों में सल्तनतकालीन कई किले और महल बनवाए गए थे, परन्तु उनमें से महल नष्ट हो चुके हैं। सम्राट कृष्णदेवराय निर्मित विठ्ठलस्वामी मंदिर दक्षिण भारत की इमारतों में श्रेष्ठ माना गया है। इसके अतिरिक्त वैलोर किले का पार्वती मंदिर, कांचीपुरम का वरदराजस्वामी और एकाम्बरनाथ मंदिर के साथ-त्रिचिनापल्ली का जम्बुकेश्वर मंदिर प्रमुख है।

सल्तनतकालीन स्थापत्यकला से जुड़े कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

सल्तनतकाल में हिन्दू स्थापत्यकला का विकास हुआ- राजस्थान एवं विजयनगर में।

तुर्क सुल्तानों ने भारत में पहला मकबरा बनवाया - सुल्तानगढ़ी।

कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा निर्मित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद है -हिन्दू-इस्लामिक शैली।

सल्तनतकाल में इमारतों के अलंकरण की संयुक्त विधि को कहा जाता था - अरबस्क विधि।

सुल्तानगढ़ी का मकबरा किसने बनवाया था- इल्तुतमिश।

अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य कला के खजाने का सबसे सुन्दर हीरा है,” यह कथन है- मार्शल।

तुगलकाबाद नगर में द्वारों की संख्या थी- 52

वह स्थान जहां मुइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा स्थित है- अजमेर।

बंगाल की अदीना मस्जिद तथा गौड़ स्थित सोना मस्जिद का निर्माणकर्ता- सिकन्दर लोदी।

जौनपुर की अटाला मस्जिद को पूर्ण करवाया था- इब्राहिम शाह शर्की ने ।

मालवा के जहाज महल का निर्माण करवाया था- महमूद खिलजी ने।

खिज्राबाद की स्थापना की थी- खिज्र खां ने।

मुबारकाबाद नगर बनवाया था - मुबारक शाह ने।

बहलोल लोदी का मकबरा 1418 ई. में बनवाया था - सिकन्दर लोदी ने।

सिकन्दर लोदी का मकबरा 1517 ई. में बनवाया था - इब्राहिम लोदी ने।

पूर्व में बनी हुई सुन्दरतम म​स्जिदों में से एक”, अहमदाबाद की जामा मस्जिद के बारे में यह कथन है - फर्ग्यूसन का।

वह धर्म ग्रन्थ जिसमें मनुष्य, पशु, पक्षी आदि जीवधारियों का चित्र बनाने पर निषेध है- कुरान।

संगीत को संरक्षण प्रदान करने वाले सुल्तान थे - बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी तथा मुहम्मद बिन तुगलक।

दिल्ली सल्तनत का कौन सा सुल्तान संगीत विरोधी था- गियासुद्दीन तुगलक।

सल्तनतकाल में गायकों, नर्तकों एवं नाटककारों की एक संस्था का निर्माण करवाया था- बलबन के पुत्र बुगरा खां ने।

सल्तनतकाल में दक्षिण भारत का महान संगीतज्ञ था- गोपाल नायक।

संगीत आत्मा के लिए पौष्टिक आहार है”, यह कथन है- मुइनुद्दीन चिश्ती का।

कव्वाली गायन शैली का प्रचलन शुरू हुआ- सल्तनत काल में।

सितार एवं तबला वाद्ययंत्र का आविष्कारक था - अमीर खुसरो।

— ‘तूति--हिन्द अर्थात भारत का तोता कहा जाता था - अमीर खुसरो।

खयाल गायकी का आविष्कारक था- हुसैन शाह शर्की।

संगीत के ग्रन्थ गुनयाल-उल-मुनयास की रचना 1375 ई. में हुई थी - शर्की शासकों के संरक्षण में।

मंदिर के प्रवेश द्वार के उपर निर्मित गुम्बद को कहा जाता था - गोपुरम।

गोपुरम को विस्तृत कर बड़ा रूप दिया- विजयनगर के शासकों ने।

विट्ठल स्वामी मंदिर का निर्माण करवाया था- कृष्णदेवराय ने।

दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों द्वारा निर्मित प्रमुख इमारतें

कुतुबुद्दीन ऐबक - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,         कुतुबमीनार, अढ़ाई दिन का झोपड़ा।

इल्तुतमिश- कुतुबमीनार का निर्माणकार्य पूरा करवाया, इल्तुतमिश का मक़बरा, जामा मस्जिद, अतारकिन का दरवाज़ा, सुल्तानगढ़ी।

बलबन-          लाल महल, बलबन का मक़बरा।

अलाउद्दीन ख़िलजी- जमात खाना मस्जिद, अलाई दरवाज़ा, हज़ार सितून (स्तम्भ) ।

ग़यासुद्दीन तुग़लक़- तुग़लक़ाबाद फोर्ट, ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मक़बरा।

मुहम्मद बिन तुग़लक़- आदिलाबाद का मक़बरा, जहाँपनाह नगर, शेख़ निज़ामुद्दीन औलिया का मक़बरा, फ़िरोज़शाह तुग़लक़ का मक़बरा।

जूनाशाह ख़ानेजहाँ- फ़िरोज़शाह का मक़बरा, काली मस्जिद, खिर्की मस्जिद।             

सिकन्दर लोदी- बहलोल लोदी का मक़बरा। इब्राहीम लोदी- सिकन्दर शाह लोदी का मक़बरा     

वजीर मियाँ कुआ- मोठ की मस्जिद।         

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