
हिन्दू धर्म के गरुड़ पुराण में वैतरणी नदी को मृत्यु के देवता यम का क्षेत्र बताया गया है। इस धार्मिक ग्रन्थ में ऐसा वर्णन मिलता है कि वैतरणी नदी पृथ्वी और नरक के बीच स्थित है। मान्यता है कि वैतरणी नदी पापों को शुद्ध करने में सक्षम है। इस पौराणिक ग्रन्थ के अनुसार, यमलोक जाते समय पुण्यात्माओं को वैतरणी नदी का पानी अमृत जैसा दिखाई देता है जबकि पापी इसे खून और मांस-मज्जा आदि से भरा हुआ देखते हैं। हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रन्थों में मृत आत्माओं के वैतरणी पार करने के भी उपाय बताए गए हैं। फ्रांसीसी यात्री फ्रेंकोई बर्नियर ने अपनी किताब ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ में हिन्दूओं की रहस्यमयी पौराणिक नदी वैतरणी की तुलना मिस्र की नील नदी से की है। यूरोपीय यात्री बर्नियर ने ऐसा किस आधार पर किया है, इसके लिए पूरी स्टोरी पढ़ें।
फ्रेंकोई बर्नियर का भारत आगमन
फ्रेंकोई बर्नियर का जन्म 1620 ई. में फ्रांस के जोई गांव में हुआ था। फ्रेंकोई बर्नियर के माता-पिता कृषि कार्य करते थे। बर्नियर की प्रारम्भिक शिक्षा की कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है किन्तु स्पष्ट है कि उसकी शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध किया गया होगा।
1647 ई. से 1650 ई. तक वह उत्तरी जर्मनी, पोलैंड, स्विटजरलैंड और इटली की यात्राएं करता रहा। इसके बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करते हुए उसने औषधि विज्ञान में योग्यता अर्जित की। 1654 ई. में उसने मिस्र की ओर प्रस्थान किया और राजधानी काहिरा में तकरीबन एक वर्ष तक रहा। इसी बीच फ्रेंकोई बर्नियर ने हिन्दुस्तान की तरफ रवाना होने का विचार किया। आखिरकार एक लम्बी यात्रा के बाद वह 1658 ई. के अन्त में सूरत बन्दरगाह पहुंचा। सूरत से आगरा जाते समय अहमदाबाद में उसकी मुलाकात शाहजहां के बड़े बेटे दाराशिकोह से हुई। दाराशिकोह ने उसे अपना व्यक्तिगत चिकित्सक नियुक्त किया।
उत्तराधिकार युद्ध में दाराशिकोह के पराजित हो जाने के बाद फ्रेंकोई बर्नियर मुगल अमीर दानिशमन्द खां के संरक्षण में 1660 से 1665 ई. तक दिल्ली, लाहौर, कश्मीर आदि स्थानों की यात्राएं करता रहा। शाहजहां की मृत्यु के पश्चात बर्नियर गोलकुण्डा से सूरत पहुंचा, फिर वहां से ईरान होता हुआ पेरिस पहुंच गया। सन 1670 में बर्नियर की भारत यात्रा का वृत्तांत एक डायरी पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। 1688 ई. में फ्रेंकोई बर्नियर की मृत्यु हो गई।
हिन्दू धर्म की पौराणिक नदी वैतरणी
हिन्दू धर्म के प्रमुख पौराणिक ग्रन्थों- गरुड़ पुराण, स्कन्द पुराण, मत्स्य पुराण, वामन पुराण, पद्म पुराण, अग्नि पुराण, देवी भागवतम के अतिरिक्त रामायण और महाभारत जैसे महान पौराणिक महाकाव्यों में वैतरणी नदी का उल्लेख मिलता है।
गरुड़ पुराण के मुताबिक, वैतरणी नदी पृथ्वी और नरक के बीच स्थित है, जो कि मृत्यु के देवता यम का क्षेत्र है। मृत्यु के बाद पापी आत्माओं को इसे पार करना पड़ता है, यह नदी पापों को शुद्ध करने में सक्षम है। सदाचरण और धार्मिक मृतात्माओं के लिए यह नदी अमृत समान जल की तरह है जबकि पापात्माओं के लिए वैतरणी खून-मवाद, हड्डियों, मगरमच्छ, वज्र, गिद्ध आदि से भरी हुई मिलती है, जिसे देख मृतात्मायें डर जाती हैं।
अग्नि पुराण में वर्णित है कि मृत्यु के देवता के भयानक प्रवेश द्वार पर वैतरणी नदी है। देवी भागवतम में ऐसा उल्लेख मिलता है कि यह नदी पापियों के लिए भयावह है। वहीं रामायण महाकाव्य में रावण द्वारा पुष्पक विमान से रक्तरंजित वैतरणी नदी को पार करने का वर्णन है। जबकि महाभारत में उल्लेखित है कि हर पापों को नष्ट करने में सक्षम वैतरणी में गिरने वाले जीव रक्त, पानी, कफ, मूत्र और मल जैसे दुर्गंधयुक्त तरल पदार्थों का अनुभव करते हैं। वहीं स्कंद पुराण के हरिहरेश्वर महात्म्य में यह भी वर्णित है कि वैतरणी नदी से बनी एक भौतिक नदी भी है जो पूर्वी महासागर में मिलती है और जो भी कोई इसमें स्नान करता है, वह हमेशा के लिए यम की यातना से मुक्त हो जाता है।
गरुड़ पुराण में वैतरणी नदी को पार करने के भी उपाय गए हैं, जिसके मुताबिक जो व्यक्ति अपने जीवनकाल में मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष में चंद्रमा के अंधेरे चरण के ग्यारहवें दिन गौ माता का दान करता है, उसके मरने के बाद वैतरणी नदी तट पर वही गौ माता प्रकट होती हैं फिर वह जीवात्मा गौ माता की पूंछ पकड़ कर बिना किसी यातना के सीधा वैतरणी नदी पार कर जाता है।
मिस्र की नील नदी का पौराणिक महत्व
इसाई और इस्लाम के राजधर्म बनने से पूर्व प्राचीन मिस्रवासियों का धार्मिक जीवन काफी समृद्ध था। प्राचीन मिस्र प्रारम्भ में एक मूर्तिपूजक और बहुदेवतावादी धर्म था। कुछ काल के लिए इस देश में एकेश्वरवाद की अवधारणा भी कायम रही। मिस्र के लोग प्राकृतिक शक्तियों सूर्य, चंद्र, नील नदी, पृथ्वी, पर्वत, आकाश और वायु को अपना प्रमुख देवता मानते थे। इन देवों में सूर्य और नील नदी का स्थान सर्वोपरि था।
पृथ्वी, प्रकृति और नील नदी तीनों को मिलाकर ओसिर (ओसाइरिस) नामक देवता का प्रार्दुभाव हुआ जो कि हिंदू धर्म के इंद्र देवता के समान ही जल के देवता थे। प्राचीन मिस्र के लोग नील नदी को देवताओं का उपहार मानते थे और वे नील नदी को जीवन के बराबर मानते थे। नील नदी के जल स्तर के बढ़ने और घटने से दैनिक जीवन नियंत्रित होता था।
प्राचीन पौराणिक कथाओं में नील नदी के कई जानवरों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। मगरमच्छ से लोग डरते थे इसलिए मिस्र के लोग उसकी पूजा करते थे ताकि वे उस जलचर के हमलों और सामान्य रूप से बुराई से सुरक्षित रहें। मगरमच्छ देवता सोबेक की पूजा फयूम में की जाती थी।
फ्रेंकोई बर्नियर ने वैतरणी और नील नदी के बारे में क्या लिखा है?
फ्रेंकोई बर्नियर पेशे से एक चिकित्सक था लेकिन उसकी रूचि राजनीति और दर्शन सम्बन्धी विषयों के प्रति कुछ ज्यादा था। जाहिर सी बात है, मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में फ्रेंकोई बर्नियर ने 12 वर्ष व्यतीत किए थे जिससे उसके लिए राजनीतिक संसाधनों में कोई कमी नहीं आई। इसके अतिरिक्त वह उस समय के पहुंचे हुए दार्शनिकों के सम्पर्क में भी था इसीलिए उसका यात्रा वृत्तांत ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ एक ग्रन्थ का रूप ले सका। फ्रेंकोई के इस फ्रांसीसी ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद सर्वप्रथम 1671-72 में हेनरी ओल्डनबर्ग ने किया। यह ग्रन्थ लन्दन से प्रकाशित हुआ।
इस ग्रन्थ का एक अंग्रेजी अनुवाद इरविन ब्रोक ने किया। 1891 ई. में आर्चिबाल्ड ने ब्रोक के कार्यों के आधार पर एक संशोधित संस्करण इंग्लैण्ड से प्रकाशित किया। फ्रेंकोई के ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ का तीसरा संस्करण 1972 में दिल्ली से प्रकाशित हुआ। फ्रेंच यात्री फ्रेंकोई बर्नियर ने अपने इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ में मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन काल के प्रथम पांच वर्ष की महत्वपूर्ण घटनाओं के अतिरिक्त भारत की भौगोलिक विशेषताओं, प्राकृतिक सम्पदाओं, हिन्दुओं के धार्मिक सिद्धान्त तथा विश्वासों का भी गहराई से वर्णन किया है।
फ्रेंकोई बर्नियर अपनी किताब ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ में मुगल बादशाह के निरन्तर कार्य करने की शक्ति की प्रशंसा करता है लेकिन वह बादशाह की धार्मिक नीति को असहिष्णुतापूर्ण बताता है। आगे वह लिखता है कि हिन्दू परमेश्वरवाद में विश्वास करते हैं। वे वेदों का अध्ययन करते हैं। फ्रेंकोई बर्नियर हिन्दुस्तान की एक पौराणिक मान्यता के बारे में लिखता है कि “मरने के बाद प्रत्येक हिन्दू को गाय की पूंछ पकड़कर एक नदी (वैतरणी) को पार करना पड़ता है। इस मान्यता की तुलना बर्नियर प्राचीन मिस्र की उस मान्यता से करता है जिसके अनुसार एक बैल की पूंछ दाहिने हाथ से पकड़कर नील नदी को पार करने की परम्परा थी।” उसने हिन्दू धर्म के तीन मुख्य देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, महेश का भी उल्लेख किया है।
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