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Five cruel British officers of British India, know why they were killed?

ब्रिटिश भारत के पांच क्रूर अंग्रेज अफसर, जानिए क्यों हुआ था वध?

अंग्रेज अफसरों ने ब्रिटिश हुकूमत का प्रभुत्व कायम करने के लिए भारत की असहाय जनता पर जुल्म ढाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। भारतीय समाज का कोई बड़े से बड़ा व्यक्ति भूल से भी अंग्रेजों के आरक्षित रेल डिब्बे में अथवा जहाज में चढ़ जाता था, तब उसे अहसास होता था कि अंग्रेज अफसर कुत्ते और भारतीयों में कोई ​खास अंतर नहीं समझते। भारतीय सत्या​ग्रहियों पर लात-घूंसे और लाठी-डण्डे के अतिरिक्त गोलियां चलाना अंग्रेज अफसरों के लिए सामान्य सी बात थी। इन्हीं में कुछ ऐसे अंग्रेज अफसर थे जो भारतीय जनता के बीच अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात थे। इसीलिए भारतीय क्रान्तिकारियों के एक बड़े समूह ने इन्हें अपनी गोलियों के निशाने पर रखा था। आइए जानते हैं, उन क्रूर अंग्रेज अफसरों के बारे में जिनके अत्याचार से जनता त्रस्त थी।

1- अंग्रेज अफसर वाल्टर चार्ल्स रैंड

साल 1896 के अक्टूबर महीने में पूना में प्लेग की महामारी फैली और फरवरी 1897 तक प्लेग से पीड़ित 308 मरीजों में से 271 की मौत हो गई। प्लेग के प्रकोप से बचने के लिए तकरीबन 15 से 20 हजार लोग पूना के स्थानीय गांवों अथवा अन्य जगहों पर पलायन कर गए।

ऐसे में पूना शहर में स्वास्थ्य सुविधाओं तथा साफ-सफाई के लिए बॉम्बे प्रेसिडेंसी के गवर्नर विलियम मैंसफील्ड सैंडहर्स्ट ने ऑक्सफोर्ड से पढ़े एक अंग्रेज अफसर वाल्टर चार्ल्स रैण्ड को पूना का असिस्टेन्ट कलेक्टर और प्लेग कमिश्नर नियुक्त किया। बता दें कि पूना में तैनाती से पूर्व मि. रैंड सतारा के सहायक कलेक्टर के रूप में कार्य कर रहा था। प्लेग की जांच के दौरान मि. रैंड ने अपने पद का दुरुपयोग किया और निर्दोष भारतीयों को लूटा तथा महिलाओं को अपमानित किया।

जनता की शिकायत थी कि जांच के नाम पर घरों के सामने पुरुषों-महिलाओं को कतार में खड़ा करके महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई। सेना के जवानों पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ तथा बलात्कार करने के भी आरोप लगे। घरों में घुसकर पूजा स्थलों को अपवित्र करना, तोड़फोड़ करना तथा दरवाजे उखाड़ ले जाना आम बात थी।

इस क्रूर कार्रवाई से परेशान होकर बाल गंगाधर तिलक ने केसरी में लिखा कि पूना शहर में इन दिनों जो कुछ भी चल रहा है, उसकी तुलना में प्लेग फिर भी दयालु है। प्लेग कमेटी के बर्बर तरीकों से लोगों का जीना दूभर हो गया है। वहीं लंदन में गार्जियन अख़बार को दिए एक साक्षात्कार में गोपाल कृष्ण गोखले ने पूना में सेना के जवानों की हरकतों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और दो महिलाओं के साथ बलात्कार के भी आरोप लगाए।

विडम्बना यह देखिए कि प्लेग की मार से त्रस्त पूना की जनता जहां क्रूर अंग्रेज अफसर मि. रैंड के अत्याचार और अपमान से पीड़ित थी वहीं मि. रैंड ने 22 जून 1897 ई. की रात पूना में महारानी विक्टोरिया के राज्याभिषेक की हीरक जयंती का भव्यता के साथ आयोजन किया। ऐसे में दामोदर हरि चापेकर और उनके भाई बाल कृष्ण हरि चापेकर ने रात बारह बजे कार्यक्रम से लौट रहे मि. रैंड और एक अन्य अंग्रेज अफसर आएर्स्ट को गोलियों से भून डाला। एक आईसीएस और एक मिलिट्री आफिसर की हत्या से भारत ही नहीं बल्कि इंग्लैण्ड तक हड़कम्प मच गया। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने मई 1899 ई. में चापेकर बन्धुओं को फांसी के फन्दे पर लटका दिया।

2- अंग्रेज अफसर डगलस एच किंग्सफ़ोर्ड

कोलकाता (पहले कलकत्ता) का चीफ मजिस्ट्रेट डगलस एच किंग्सफ़ोर्ड क्रांतिकारियों को अपमानित करने तथा कठोर दण्ड देने के लिए कुख्यात था। बतौर उदाहरण- ‘जुगांतर अखबार में स्वामी विवेकानन्द के भाई भूपेंद्रनाथ दत्त के छपे एक लेख के बाद कोलकाता के मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड ने न केवल उस प्रेस को ही जब्त करने का आदेश दिया बल्कि भूपेन्द्रनाथ दत्त को एक साल कैद की सजा सुनाई। इतना ही नहीं, वंदे मातरम का नारा लगाने पर एक 15वर्षीय छात्र को उसने 15 बेंत लगाने की कठोर सजा दी थी। ऐसे में क्रांतिकारियों ने क्रूर अंग्रेज अफसर किंग्सफोर्ड को मारने की योजना बनाई।

अत: ब्रिटिश सरकार ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से अंग्रेज अफसर किंग्सफोर्ड को सेशन जज बनाकर मुजफ्फरपुर भेज दिया। बावजूद इसके युगान्तकारी संगठन ने 8 अप्रैल, 1908 को 17 वर्षीय खुदीराम बोस को दो पिस्तौल और प्रफुल्ल चाकी को एक पिस्तौल और कारतूस देकर डगलस किंग्सफ़ोर्ड की हत्या करने के लिए मुजफ्फरपुर भेजा। मुजफ्फरपुर पहुंचकर इन दोनों युवा क्रांतिकारियों ने किंग्सफोर्ड की गति​विधियों का बारीकी से अध्ययन किया। इन दोनों क्रांतिकारियों ने 30 अप्रैल 1908 ई॰ को किंग्सफोर्ड पर उस समय बम फेंका जब वह बग्घी पर सवार होकर यूरोपियन क्लब से बाहर निकल रहा था।

परन्तु इन दोनों ने जिस बग्घी पर बम फेंका वह किंग्सफ़ोर्ड की बग्घी से बहुत कुछ मिलती-जुलती थी, इ​सलिए इस पर सवार दो अंग्रेज महिलाएं श्रीमती कैनेडी और ग्रेस कैनेडी बुरी तरह घायल हो गईं। इनमें से ग्रेस कनेडी ने 24 घंटे के अन्दर दम तोड़ दिया जबकि 2 दिन बाद मिसेज कैनेडी की भी मौत हो गई।

इस बम हमले में किंग्सफोर्ड बाल-बाल बच गया। इसके बाद ज़िला प्रशासन ने खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी पर 5000 रुपए का ईनाम घोषित कर दिया। 1 मई, 1908 की सुबह वैनी रेलवे स्टेशन के पास खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि मोकामा में पुलिस से हुई मुठभेड़ के दौरान प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली। बाद में खुदीराम बोस पर हत्या का मुकदमा चलाया गया और 13 जून, 1908 को अदालत ने खुदीराम बोस को फांसी की सज़ा सुनाई।

3- अंग्रेज अफसर जनरल डायर

ब्रिटिश सरकार ने आम लोगों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मार्च 1919 में एक दमनकारी कानून रौलट एक्ट लागू किया। रौलट एक्ट के तहत बिना मुकदमा चलाए किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को दो साल तक कैद में रखने का प्राविधान था। इस एक्ट को खत्म करने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देशभर में बड़े पैमाने पर सत्याग्रह शुरू किया।

इसी क्रम में रौलट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन अमृतसर के ​जलियांवाला बाग में एक सभा आयोजित की गई। इसमें ज्यादातर ऐसे लोग शरीक हुए थे जो गावों और कस्बों से वैशाखी के मेले में शरीक होने आए थे।

उन दिनों जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर को सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबन्ध लगाने का काम सौंपा गया था। ऐसे में जनरल डायर को लगा कि उसके आदेशों की अवहेलना करके यह सभा आयोजित की गई है। अत: वह सभा स्थल पर पहुंचा और बिना किसी कारण के निहत्थी जनता पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। करीब दस मिनट तक निहत्थी भीड़ के सीने छलनी होते रहे।

हैरानी की बात तो यह है कि जनरल डायर ने गोली चलवाने से पहले चेतावनी देना भी उचित नहीं समझा। सभास्थल के चारों तरफ ऊंची-ऊंची दीवारें थीं जहां से भागना भी सम्भव नहीं था। सरकारी आंकड़े के अनुसार, 379 व्यक्ति मारे गए जबकि वास्तव में मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा थी। कहा जाता है कि जलियांवाला बाग हत्या काण्ड में 1500 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए थे।

जलियांवाला बाग कांड से पूरा देश स्तब्ध रह गया। ऐसे में क्रांतिकारी उधम सिंह ने जलियांवाला बाग कांड का बदला लेने के लिए जनरल डायर को मौत के घाट उतारने का निर्णय लिया। डॉ. नवतेज सिंह की किताब द लाइफ स्टोरी आफ शहीद उधम सिंह के अनुसार, “उधम सिंह इटली, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया से होते हुए 1934 के अंत में इंग्लैंड पहुंच गए। लंदन में रहकर जनरल डायर को मारना ही उधम सिंह का मकसद बन चुका था। आखिर में वह दिन भी आ गया जब 13 मार्च, 1940 को लंदन के कॉक्सटन हॉल में रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक थी। इस बैठक में शामिल होने के लिए जनरल डायर भी पहुंचा था। भाषण देने के बाद जनरल डायर जैसे ही अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ा तभी किताब में छुपी रिवॉल्वर निकालकर ऊधम सिंह ने उसे गोलियों से भून दिया। डायर मौके पर ही मारा गया। ऊधम सिंह पर मुकदमा चला और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें फांसी दे दी गई।

4- अंग्रेज अफसर जेम्स स्काट

ब्रिटिश सरकार ने 1927 ई. में भारत में राजनीतिक सुधारों के नाम पर साइमन कमीशन लागू किया परन्तु इस कमीशन में किसी भी भारतीय सदस्य की नियुक्ति नहीं की गई थी। 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन बंबई पहुंचा। इसके बाद साइमन कमीशन के खिलाफ बड़े पैमाने पर बहिष्कार किया गया तथा जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन हुए। साइमन कमीशन को काले झंडे दिखाए गए तथा प्रदर्शनकारियों ने साइमन गो बैक’ (साइमन वापस जाओ) के नारे लगाए।

अक्टूबर 1928 में लाहौर में हुए साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। धारा 144 लगी हुई थी, पुलिस अधिकारियों ने जुलूस को चेतावनी दी बावजूद इसके विरोध-प्रदर्शन जारी रहा। इसके बाद पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करने का आदेश दे दिया।

भीड़ पर लाठी चलाने वालों में अंग्रेज अफसर जेम्स स्कॉट और उसका असिस्टेंट जॉन सांडर्स सबसे आगे था। इन दोनों के निशाने पर थे लाला लाजपत राय। इन दोनों अंग्रेज अफसरों ने लाला लाजपत राय की सीने पर लाठियों से प्रहार किया। लाठी चार्ज रूकने के बाद घायल लाला लाजपत राय ने वापस जाते समय भी जुलूस का नेतृत्व किया।

जेम्स स्कॉट और जान सान्डर्स की लाठियों से घायल लाला लाजपत राय की 17 नवंबर 1928 को मौत हो गई। इसके बाद भगत सिंह और उनके क्रान्तिकारी साथियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निश्चय किया। इसके लिए इन क्रान्तिकारियों ने अंग्रेज अफसर जेम्स स्काट को मारने की योजना बनाई।

इस योजना के तहत जय गोपाल को अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को पहचानने का काम सौंपा गया। परन्तु जय गोपाल ने जेम्स स्काट को पहचानने में गलती कर दी। उसने पुलिस अफसर सांडर्स को स्काट समझकर क्रांतिकारियों चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु को इशारा कर दिया। इसके बाद 17 दिसंबर 1927 को क्रांतिकारी भगत सिंह और शिवराम राजगुरु ने जेम्स स्कॉट की जगह सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

5- अंग्रेज अफसर स्टीवेन्स

बंगाल का जिला मुख्यालय कोमिल्ला (अब​ त्रिपुरा में) जिलाधिकारी स्टीवेन्स के अत्याचारों से पीड़ित था। जिलाधिकारी स्टीवेन्स क्रांतिकारियों को चुन-चुनकर सजा देने के लिए कुख्यात हो चुका था। ऐसे में कोमिल्ला के फैजुन्निसा गर्ल्स हाई स्कूल की प्रधानाचार्या कल्याणी देवी (सुभाषचन्द्र बोस के गुरु वेणीमाधव दास की पुत्री) ने अपनी दो मेधावी छात्राओं शांति घोष तथा सुनीति चौधरी के साथ मिलकर जिलाधिकारी स्टीवेन्स को मारने की योजना बनाई।

योजना के मुताबिक, 14 दिसम्बर 1931 को स्कूली ड्रेस में ही शांति घोष और सुनीति चौधरी जिलाधिकारी स्टीवेन्स के आवास पर पहुंच गई। इन दोनों ने अपने कपड़े के अन्दर पिस्तौल छुपा रखा था। गेट पर तैनात सिपाही के पूछताछ करने पर उन्होंने जिलाधिकारी स्टीवेन्स के नाम एक पत्र थमा दिया जिसमें कोमिल्ला के फैजुन्निसा गर्ल्स हाई स्कूल में होने वाली तैराकी प्रतियोगिता के नाम पर मदद की अपील की गई थी।

इस प्रकार शांति घोष और सुनीति चौधरी को जिलाधिकारी स्टीवेन्स से मिलने की अनुमति मिल गई। स्टीवेन्स ने प्रार्थना पत्र देखकर कहा कि इस पर तुम्हारी प्रधानाचार्या के हस्ताक्षर नहीं है, पहले इसे अग्रसारित कराकर ले आओं फिर मैं अनुमति दे दूंगा। मौके की तलाश में खड़ी शांति चौधरी और सुनीति घोष ने कहा यही बातें आप इस प्रार्थना पत्र पर लिख ​दीजिए। इसके बाद स्टीवेन्स जैसे ही अपनी कलम उठाकर इस प्रार्थना पत्र पर कुछ लिखने लगा तभी इन दोनों छात्राओं ने अपनी पिस्तौल निकाली और उसे गोलियों से भून डाला। अंग्रेज अफसर स्टीवेन्स मौके पर ही मारा गया। हांलाकि बाहर खड़े संतरी और कार्यालय के एक क्लर्क ने मिलकर इन दोनों क्रांतिकारी छात्राओं को धर-दबोचा। नाबालिग होने के चलते ब्रिटिश सरकार ने इन्हें फांसी देने के बजाय आजीवन काला पानी की सजा देकर अंडमान भेज दिया।

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