1351 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका चचेरा भाई फिरोज शाह तुगलक दिल्ली की गद्दी पर बैठा। फिरोज शाह तुगलक का राज्याभिषेक थट्टा में 1351 ई. में 23 मार्च को हुआ था। फिरोज शाह तुगलक ने 1351 से 1388 ई. तक शासन किया। गियासुद्दीन तुगलक के छोटे भाई ‘रज्जब’ के पुत्र फिरोज शाह तुगलक की मां का नाम नैला भाटी था जो दीपालपुर के राजपूत राजा रणमल की पुत्री थी।
1309 ई. में जन्मे फिरोज शाह का सबसे बड़ा गुण अपने भाई की आज्ञा का पालन करना था। इस कारण फिरोज को शासन में महत्वपूर्ण पद प्राप्त होते रहे। यद्यपि फिरोज की शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध किया गया था परन्तु वह योग्य नहीं बन सका। उसके अकुशल ढीले प्रशासन, कमजोर विदेश नीति और दोषपूर्ण सैनिक संगठन की वजह से दिल्ली सल्तनत का तेजी से पतन और विघटन शुरू हो गया।
प्रशासनिक मामले में सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने के लिए फिरोज शाह तुगलक ने मुहम्मद बिन तुगलक के समस्त तकावी ऋणों (सौन्धर) को माफ कर दिया। केवल चार करों- खराज,खम्स, जजिया और जकात वसूलने की अनुमति प्रदान की। यद्यपि फ़िरोज शाह अपने पूर्ववर्तियों की तरह एक सक्षम सैन्य नेता नहीं था, फिर भी वह शहरों, स्मारकों, सार्वजनिक भवनों और नहरों का निर्माता था।
फिरोज़ शाह तुगलक की उपलब्धियां
राजस्व व्यवस्था- फिरोज शाह तुगलक ने कर प्रणाली को धार्मिक या मजहबी स्वरूप प्रदान किया और 23 करों को समाप्त कर इस्लामी शरियत कानून द्वारा अनुमति प्राप्त केवल चार करों- खराज, खम्स, जजिया और जकात वसूलने की अनुमति प्रदान की। उलेमा वर्ग की स्वीकृति के पश्चात उसने सिंचाई कर ‘हाब-ए-शर्ब’ लगाया जिसमें किसानों को अपनी पैदावार का 1/10 भाग सरकार को देना पड़ता था। उसके शासनकाल में लगान पैदावार का 1/5 से 1/3 भाग था। सिंचाई कर के अतिरिक्त सुल्तान ने उद्यान कर, चुंगी कर और बिक्री कर भी लगाया था।
फिरोज शाह तुगलक ने 1200 फलों के बाग भी लगवाए जिससे जिससे राज्य की आय बढ़ी। फिरोज शाह तुगलक अंगूर का शौकीन था, उसने अंगूर के भी दो बाग लगवाए। उसने सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था की जिससे कृषि योग्य भूमि में वृद्धि हुई। फिरोज ने कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी की तथा उनके कार्य के बदले जागीरें दीं। सुल्तान को भेंट देने की प्रथा को भी समाप्त कर दिया। इतना ही नहीं, फिरोज शाह तुगलक ने आन्तरिक व्यापारिक करों को समाप्त कर दिया जिससे वस्तुओं के मूल्यों में कमी हुई और व्यापार में प्रगति हुई।
सिंचाई व्यवस्था- सिंचाई की सुविधा के लिए फिरोज शाह तुगलक ने पांच बड़ी नहरों का निर्माण करवाया। 1- यमुना नदी से हिसार तक (150 मील लम्बी)। 2- सतलुज से घग्घर तक (96 मील)। 3- हरियाणा में मांडवी और सिरमौर की पहाड़ियों से हांसी तक। 4- घग्घर से फिरोजाबाद शहर तक। 5- यमुना से फीरोजाबाद तक।
फिरोज शाह ने सिंचाई तथा यात्रियों की सुविधा के लिए 150 कुएं खुदवाए। फरिश्ता लिखता है कि “सुल्तान ने सिंचाई की सुविधा के लिए विभिन्न नदियों पर 50 बांध और 30 झीलों तथा जल संग्रह के लिए तालाबों का निर्माण करवाया था।”
नगर और सार्वजनिक निर्माण कार्य- फिरोज शाह तुगलक ने तकरीबन 300 नवीन नगरों का निर्माण करवाया। इनमें सम्भवत: कुछ गांव भी शामिल थे। उसके द्वारा बसाए गए नगरों में फतेहाबाद, हिसार, फिरोजपुर, जौनपुर और फिरोजाबाद प्रमुख थे। फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपने पुत्र फ़तेह खान के जन्मदिवस के मौके पर फतेहाबाद शहर की स्थापना की थी। जौनपुर नगर की स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने अपने भाई जौना खां की स्मृति में की थी। दिल्ली के निकट आधुनिक फिरोज शाह कोटला कहलाने वाले फीरोजाबाद नगर फिरोज शाह को बहुत प्रिय था, अक्सर वह वहीं रहता था। फिरोज शाह कोटला कभी उसके दुर्ग का काम करता था। इस किले को ‘कुश्क-ए-फिरोज’ यानि फिरोज के महल के नाम से पुकारा जाता था। फिरोज शाह ने सम्राट अशोक दो स्तम्भों को दिल्ली मंगवाया। इनमें से एक को खिज्राबाद से और दूसरा मेरठ के निकट से लाया गया था।‘फतूहात-ए-फिरोजशाही’ में उसने दावा किया है कि “उसने दिल्ली की जामा मस्जिद, कुतुबमीनार, अलाई तालाब, सुल्तान इल्तुतमिश, बहराम शाह, रूकुनुद्दीन फिरोज शाह, अलाउद्दीन के मकबरों के अतिरिक्त ताजुद्दीन कफूरी और शेख निजामुद्दीन औलिया के समाधियों की मरम्मत करवाई।
परोपकार के कार्य- फिरोज शाह तुगलक ने एक रोजगार दफ्तर खोला जो बेरोजगार व्यक्तियों को काम दिलवाता था। सुल्तान के द्वारा स्थापित ‘दारूल शफा’ नामक विभाग के माध्यम से लोगों को नि:शुल्क दवाएं उपलब्ध कराई जाती थीं। ‘दारूल शफा’ के अतिरिक्त उसने ‘बीमारिस्तान’ या ‘शिफा खाना’ नामक अस्पतालों की भी स्थापना की थी। उसने एक विभाग ‘दीवान-ए-खैरात’ स्थापित किया था जो मुसलमान अनाथ स्त्रियों तथा निर्धन मुसलमान लड़कियों के विवाह की व्यवस्था करता था। फिरोज शाह के पास एक लाख 80 हजार दास थे। उसने दासों के लिए एक अलग विभाग ‘दीवान-ए-बन्दगान’ की स्थापना की।
शिक्षा- फिरोज शाह तुगलक विद्वानों को पर्याप्त सम्मान और आश्रय प्रदान करता था। विद्वान जियाउद्दीन बरनी और शम्स-ए-सिराज अफीफ को उसने संरक्षण प्रदान किया। जियाउद्दीन बरनी ने ‘फतवा-ए-जहांदरी’ और ‘तारीख-ए-फीरोजशाही’ को लिखा। शम्स-ए-सिराज अफीफ की रचना का नाम ‘तारीख-ए-फीरोजशाही’ है। फिरोज शाह ने अपनी आत्मकथा ‘फतूहात-ए-फीरोजशाही’ लिखा। उसने 13 मदरसे स्थापित किए जिनमें तीन श्रेष्ठ स्तर के विद्यालय थे। ज्वालामुखी देवी के मंदिर के पुस्तकालय से प्राप्त 1300 ग्रन्थों में से कुछ का उसने फारसी में अनुवाद करवाया। उनमें से एक का नाम ‘दयाल-ए-फीरोजशाही’ है। दयाल-ए- फीरोजशाही आयुर्वेद से संबंधित था। उसने जल घड़ी का अविष्कार किया। उसके शासनकाल में संगीत, चिकित्सा और गणित की कई पुस्तकों का भी संस्कृत से फारसी में अनुवाद किया गया था। अफीफ के मुताबिक, सुल्तान विद्वानों को सहायतार्थ 36 लाख टंका देता था।
धार्मिक नीति- फिरोज शाह तुगलक एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसकी धार्मिक नीति धर्मान्धता और असहिष्णुता पर आधारित थी। बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा के प्रति वह अत्यधिक कठोर रहा। उसने हिन्दूओं को मुसलमान बनाने के लिए अनेक प्रोत्साहन दिए। सुल्तान अपनी आत्मकथा ‘फतूहात-ए-फीरोजशाही’ में लिखता है कि “मैंने काफिर प्रजा को पैगम्बर का धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य किया और यह घोषणा की कि जो भी अपने धर्म को छोड़कर मुसलमान बन जाएगा उसे जजिया कर से मुक्त कर दिया जाएगा”।
उसने अपनी आत्मकथा में हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने, हिन्दू मेलों को भंग करने तथा हिन्दूओं को मुसलमान बनाने तथा उनका वध करने का वर्णन किया है। जाजनगर के हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने के पीछे उसका उद्देश्य खुद को ‘मूर्ति भंजक’ कहलाना था। सुल्तान ने पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों को नष्ट कर दिया था। उसने ज्वालामुखी मंदिर की मूर्तियों को भी नष्ट किया। उसने हिन्दूओं पर जजिया कर लगाया था, दिल्ली और उसके निकट क्षेत्रों के ब्राह्मणों ने सुल्तान के महल के सम्मुख आत्मदाह करने की धमकी दी फिर भी उसने उन्हें जजिया कर से मुक्त नहीं किया। फिरोज शाह ने दो बार खलीफा से सुल्तान पद की स्वीकृति ली और खुद को खलीफा का ‘नाइब’ कहा। सुल्तान ने अपने सिक्कों पर खलीफा का नाम अंकित कराया। इस प्रकार फिरोज शाह की धर्मान्ध नीति से बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा असंन्तुष्ट हुई जो उसके पतन का सर्वप्रमुख कारण बना।
फिरोज शाह तुगलक के आक्रमण
बंगाल- फिरोज शाह ने 1353 ई. में बंगाल पर आक्रमण किया क्योंकि वहां हाजी इलियास ने शमसुद्दीन इलियास शाह के नाम से स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। फिरोज शाह के आक्रमण करने पर इलियास ने इकदाला के किले में शरण ली जिससे सुल्तान जीतने में असमर्थ रहा और सन्धि करके 1355 ई. में वापस आ गया। इसके बाद 1359 ई. में फिरोज शाह ने दोबारा आक्रमण किया। तब तक इलियास की मृत्यु हो चुकी थी और उसका पुत्र सिकन्दर सुल्तान था। इस बार भी फिरोजशाह इकदाला किले को जीतने में नाकाम रहा और दिल्ली वापस आ गया। इस प्रकार बंगाल को दिल्ली सल्तनत में शामिल करने के उसके दोनों प्रयास असफल रहे।
जाजनगर (उड़ीसा)- 1360 ई. में फिरोज शाह तुगलक ने जाजनगर पर आक्रमण किया था। जाजनगर पर आक्रमण करने का मुख्य उद्देश्य पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर को ध्वस्त करना था। फिरोज शाह के आक्रमण करते ही उड़ीसा का शासक भानुदेव तृतीय भाग गया, उसके सैनिकों ने सुल्तान का मुकाबला किया परन्तु पराजित हुए। इसके बाद फिरोज शाह ने जगन्नाथ मंदिर और मूर्तियों को नष्ट कर दिया। राजा के आत्मसमर्पण करने और प्रति वर्ष भेंटस्वरूप कुछ हाथी देने के आश्वासन पर वह वापस आ गया।
नगरकोट- 1361 ई.में फिरोज शाह तुगलक ने कांगड़ा के नगरकोट पर आक्रमण किया। छह माह के घेरे के पश्चात वहां के राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद सुल्तान ने ज्वालामुखी मंदिर को ध्वस्त कर दिया। फरिश्ता लिखता है कि “सुल्तान ने ज्वालामुखी मंदिर की मूर्तियों को तोड़ दिया और उनके टुकड़ों को गाय के मांस में मिलाकर ब्राह्मणों के गले में लटकवा दिए तथा मुख्य मूर्ति को विजय चिह्न के रूप में मदीना भेज दिया”।
सिन्ध- सुल्तान ने 90 हजार घुड़सवार और 480 हाथियों की एक विशाल सेना के साथ 1362 ई. में सिन्ध पर आक्रमण किया। सिन्ध में जाम बाबनियां ने उसका साहस के साथ मुकाबला किया जिससे सुल्तान को गुजरात की ओर जाना पड़ा। रेगिस्तान में फंसा फिरोज शाह छह माह के कष्ट के बाद वहां से निकल सका। 1363 में गुजरात में शान्ति स्थापित करने के बाद उसने सिन्ध पर दोबारा आक्रमण किया। इस बार जाम बाबनियां ने फिरोजशाह की अधीनता स्वीकार कर ली और वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया।
फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु-
फिरोज शाह तुगलक अपने आखिरी दिनों में 80 वर्ष का हो चुका था। उसके दो पुत्रों की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। 80 वर्ष की अवस्था में वह अपनी शक्ति और बुद्धि दोनों खो चुका था। हांलाकि फिरोज का तीसरा पुत्र मुहम्मद खान उसका उत्तराधिकारी था। 1387 ई.में शहजादे मुहम्मद ने सुल्तान के साथ-साथ सत्ता का उपभोग करना शुरू कर दिया और नासिरूद्दीन मुहम्मद की उपाधि धारण की। शहजादा मुहम्मद विलासी प्रवृत्ति का था अत: गुजरात में विद्रोह की सूचना पाने के बावजूद भी वह उसे दबाने नहीं गया बल्कि भोग विलास में लिप्त रहा। इस व्यवहार से असन्तुष्ट होकर सरदारों ने दिल्ली में विद्रोह कर दिया। दिल्ली में दो दिन तक युद्ध होता रहा, तीसरे दिन विद्रोहियों ने राजमहल पर अधिकार कर लिया।
उन विद्रोहियों ने वृद्ध सुल्तान फिरोज शाह को पालकी में बैठाकर युद्ध करने वालों के बीच ले जाकर खड़ा कर दिया। शहजादे मुहम्मद के सैनिक सुल्तान को देखकर उसके साथ हो गए और शहजादा मुहम्मद भाग गया। उसके बाद सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने अपने बड़े पुत्र फतह खान के पुत्र तुगलक शाह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। उसके थोड़े समय पश्चात सितम्बर 1388 ई. में फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु हो गई। साल 1351 से 1388 ई. तक शासन करने वाले फिरोज शाह तुगलक को हौज़खास परिसर (वर्तमान में नई दिल्ली) में दफ़न कर दिया गया। हौज खास में फिरोजशाह तुगलक का मकबरा है। फिरोज शाह के मकबरे से जुड़ा एक मदरसा भी है जिसे फिरोज शाह ने 1352-53 में बनवाया था।
फिरोज शाह तुगलक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
— फिरोज शाह ने अपने सिक्कों पर अपने नाम के साथ ही अपने उत्तराधिकारी फतह खान का नाम अंकित करवाया।
— सुल्तान फिरोज शाह की उपाधियां : सैय्यद-उस-सलातीन, खलीफा का नाइब।
— ख्वाजा हिसामुद्दीन के एक अनुमान के मुताबिक, फिरोज सरकार की वार्षिक आय 6 करोड़ पचहत्तर लाख टंका थी जबकि अकेले सेना मंत्री वशीर के पास तेरह करोड़ टंका की सम्पत्ति थी।
— फिरोज शाह तुगलक ने शशगनी (6 जीतल का) नामक सिक्का चलवाया।
— शशगनी के आधे मूल्य का सिक्का दोगानी कहलाता था।
— 8 जीतल मूल्य का सिक्का हस्तगनी या चिहल कहलाता था।
— अफीफ के अनुसार, सुल्तान ने अद्धा एवं बिख नामक तांबा और चांदी निर्मित सिक्का चलाया।
— फिरोज शाह अपने सैनिकों को वेतन प्राप्त करने के लिए ‘इतलाक’ नामक हुण्डी देता था।
— धर्मान्ध फिरोज शाह ने 1374-75 ई. में बहराइच स्थित योद्धा संत सालार मसूद गाजी के मकबरे की यात्रा की।
— फिरोज शाह के समय सैय्यद मोहम्मद के नेतृत्व में महदवी आन्दोलन शुरू हुआ जिसे सुल्तान ने बड़ी कठोरता से दबा दिया।
— इलियट और एलफिन्सटन ने ‘फिरोज को सल्तनत युग का अकबर’ कहा है।
— रमेश चन्द्र मजूमदार के अनुसार, “फिरोज इस युग का सबसे महान धर्मान्ध और इस क्षेत्र में सिकन्दर लोदी और औरंगजेब का अग्रज था।”
— फिरोज शाह तुगलक को मध्यकालीन भारत का पहला ‘कल्याणकारी निरकुंश शासक’ कहा जाता है।
— दिल्ली सल्तनत के इतिहास में तुगलक वंश का साम्राज्य भारत में सबसे अधिक विस्तृत था।
— तुगलक काल वजीर पद का स्वर्ण युग था। मुहम्मद बिन तुगलक के वजीर का नाम ख्वाजा जहां था।
—फिरोज शाह के वजीर का नाम मलिक मकबूल था जिसे ‘खान-ए-जहां’ की उपाधि दी गई। यह तेलंगाना का एक ब्राह्मण था जिसने इस्लाम कबूल कर लिया।
—फ़िरोज़शाह तुग़लक़ की सफलताओं का श्रेय उसके प्रधानमंत्री 'ख़ान-ए-जहाँ मकबूल' को दिया जाता है।
— फिरोज शाह का उत्तराधिकारी उसका पौत्र तुगलक शाह जो गियासुद्दीन तुगलक द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा परन्तु वह राज्याभिषेक के दो वर्ष के भीतर ही षड्यन्त्रों का शिकार बन गया।
— अगले पांच वर्षों में तीन सुल्तान- अबूबक्र, मुहम्मद शाह और अलाउद्दीन सिकन्दर शाह गद्दी पर बैठे।
— इसके बाद 1394 ई.में नासिरूद्दीन महमूद गद्दी पर बैठा जो तुगलक वंश का अन्तिम शासक सिद्ध हुआ।
— सुल्तान नासिरूद्दीन के शासनकाल में ही 1398 ई. में मंगोल सेनानायक तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया। इस दौरान सुल्तान गुजरात भाग गया और तैमूर ने दिल्ली को खूब लूटा।
— तैमूर का आक्रमण तथा फिरोज शाह के उत्तराधिकारियों की अयोग्यता तुगलक वंश के पतन का कारण बना।