हिमालय की तराई में बसा बिहार राज्य का एक प्रमुख जिला चम्पारण जल एवं वन संपदा से परिपूर्ण है। चम्पा और अरण्य से शब्द से बने चम्पारण का अर्थ होता है- चम्पा के पेड़ों से आच्छादित जंगल। जगद्गुरु वल्लभाचार्य का जन्मस्थान चम्पारण उस वक्त भी पूरे देश में सुर्खियों आया था जब महात्मा गांधी ने 1917 ई. में यहां से अपने पहले सत्याग्रह की शुरूआत की थी, जो आधुनिक भारत के इतिहास में ‘चम्पारण सत्याग्रह’ के नाम से विख्यात है। परन्तु वर्तमान में चम्पारण एक विशेष विधि से पकाए जाने वाले पकवान ‘हांडी मटन’ के लिए चर्चा में बना हुआ है, इस लजीज पकवान का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। सच कहें तो आज की तारीख में ‘चम्पारण हांडी मटन’ एक ब्रांड बन चुका है, जिसका क्रेज केवल बिहार ही नहीं बल्कि भारत के हर बड़े शहरों में देखने को मिल रहा है। इस स्टोरी में हम आपको बताएंगे कि आखिर किन वजहों से चम्पारण हांडी मटन को लोग बहुत ज्यादा पसन्द कर रहे हैं।
चम्पारण हांडी मटन का प्रारम्भिक इतिहास
बिहार का नाम सुनते ही लोग स्वादिष्ट व्यंजन लिट्टी-चोखा की बात करने लगते हैं, परन्तु इन दिनों हर भारतीय के जुबान पर बिहार के ही चम्पारण हांडी मटन का नाम सुनने को मिलता है। जैसा कि हांडी मटन के नाम से ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह लजीज पकवान मिट्टी के एक बर्तन हांडी में तैयार किया जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में चिकनी अथवा दोमट मिट्टी से तैयार एक छोटे से कलशनुमा बर्तन को लोग हांडी कहते हैं।
हांलाकि भारतवर्ष में मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने की विधि कोई नहीं है, चाहे शाकाहारी भोजन हो अथवा मांसाहारी। मिट्टी के बर्तन में पकाए गए भोजन का स्वाद एक अलग ही फ्लेवर देता है। अत: आधुनिकता के इस दौर में गैस और कुकर की मदद से तैयार भोजन के आदी हो चुके लोगों को मिट्टी के बर्तन में विशेष तरीके से पकाए गए मसालेदार मीट ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया। यह संयोग मात्र ही है कि हांडी में मीट पकाने की शुरूआत चम्पारण से हुई, यही वजह है कि चम्पारण हांडी अति शीघ्र ही पूरे देश में फेमस हो गया। यह अलग बात है कि ‘चम्पारण हांडी मटन’ बनाने की शुरूआत करने का श्रेय लेने के लिए कुछ लोगों में होड़ मची हुई है।
इस बारे में मोतिहारी में लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे चंद्रभूषण पांडेय का कहना है कि नदियों और तालाबों वाले चम्पारण के खान-पान में मछलियां अधिक शामिल हैं। पिछले एक दशक से कारोबारियों ने अपने फायदे के लिए चम्पारण हांडी मटन को खूब प्रचारित-प्रसारित किया है। वहीं भोजन इतिहास के शोधार्थी प्रभात के मुताबिक, चम्पारण का पंसदीदा भोजन चूड़ा और दही रहा है, मांसाहार के नाम पर यहां के लोग मछली ज्यादा खाते थे। परन्तु यहां के युवक रोजगार के लिए जहां कहीं भी गए मटन कल्चर को प्रसारित किया।
चम्पारण हांडी मटन पकाने की विधि
चम्पारण के लोग हांडी मटन को आहुना अथवा बटलोई भी कहते हैं। चम्पारण हांडी मटन तैयार करने के लिए सबसे पहले देशी घी अथवा शुद्ध सरसों के तेल में प्याज, साबुत लहसुन, साबुत गरम मसाला, पीसा हुआ गरम मसाला, लाल मिर्च, धनिया-हल्दी पाउडर, नमक, सौंफ पाउडर, दालचीनी, तेजपत्ता, जीरा, काली मिर्च, लौंग, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, धनिया पत्ता को रेड मीट यानि बकरे के मांस के साथ मिक्स कर लिया जाता है। इसके बाद एक विशेष प्रकार की मिट्टी से तैयार हांडी में सरसों का तेल गर्म कर उपरोक्त सामग्री को डालकर मिट्टी के ही सकोरे (ढक्कन) से ढककर गूंथे हुए आटे से पैक कर दिया जाता है। तत्पश्चात इसे लकड़ी अथवा कोयले की धीमी आंच पर धीरे-धीरे पकाया जाता है। पकाने के दौरान बीच-बीच में हांडी को हिलाया-डुलाया जाता है। तकरीबन डेढ़ से दो घंटे के बाद यह हांडी मटन पककर तैयार हो जाता है। इस प्रकार अति स्वादिष्ट पकवान चम्पारण हांडी मटन को चावल, सलाद, बाटी अथवा रोटी के साथ सर्व किया जाता है।
चम्पारण हांडी मटन का असली स्वाद
आज की तारीख में चम्पारण मीट हाउस केवल बिहार ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग शहरों में फैल चुका है। चम्पारण मीट हाउस की शुरूआत गोपाल कुशवाहा ने 2014 में की थी। गोपाल कुशवाहा का कहना है कि देश के अलग-अलग शहरों में चम्पारण मीट हाउस के आठ आउटलेट चल रहे हैं जिनमें दिल्ली का ओल्ड चम्पारण मीट हाउस, चंडीगढ़ का आहुना तथा बनारस में बीएचयू के पास स्थित ओल्ड मीट हाउस प्रमुख हैं। आपको बता दें कि दिल्ली से लेकर कोलकाता तथा चेन्नई तक कई छोटे-मोटे कारोबारियों ने भी चम्पारण हांडी मटन के नाम पर कारोबार चला रखा है। कुछ लोगों ने तो चम्पारण हांडी मटन का स्वाद लेने के लिए इसे अपने घरों में ही बनाना शुरू कर दिया है।
जबकि सच्चाई यह है कि हांडी मटन का असली स्वाद मसालों और मिट्टी के बर्तन में नहीं बल्कि चम्पारन के बकरों में है। इस बारे में मोतिहारी में एक लोकल न्यूज चैनल संचालक अंसारूल हक का कहना है कि “जो स्वाद चंपारण के बकरों में है, वह दूसरे इलाके के बकरों में कत्तई नहीं है।” कुछ इसी तरह से पत्रकार अरविन्द मोहन भी कहते हैं, “चम्पारन ही नहीं पूरे उत्तर बिहार में बकरों का मांस मुलायम होता है, जो पकने में बिल्कुल आसान होता है और खाने में भी बहुत जोर नहीं लगाना पड़ता है।” अब आप समझ गए होंगे कि चम्पारण हांडी मटन चाहे कोई भी बनाए परन्तु परन्तु बकरा तो चम्पारण का ही होना चाहिए।
शॉर्ट फिल्म ‘चम्पारण मीट’ का जलवा
चम्पारण मीट का जलवा तो देखिए जनाब! फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे के फिल्म निर्देशक रंजन कुमार ने आधे घंटे की एक मूवी ‘चम्पारन मीट’ का निर्देशन किया है। यह शॉर्ट मूवी काफी दिनों तक सुर्खियों में रही। ऑस्कर के स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड 2023 के सेमीफाइनल राउंड में इस शॉर्ट मूवी को 1700 से अधिक फिल्मों में से चुना गया था। चम्पारन मीट नामक इस शॉर्ट फिल्म में बिहार के मुजफ्फरपुर की बेटी फलक खान ने बेहतरीन अभिनय का परिचय दिया है। युवा अभिनेत्री फलक के मां और पिता दोनों ही प्रोफेसर हैं। बता दें कि प्रशिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों में फिल्म मेकिंग कोर्स कर रहे विद्यार्थियों को ‘स्टूडेंट अकादमी अवार्ड’ दिया जाता है। यह ऑस्कर की ही एक शाखा होती है। स्टूडेंट अकादमी अवार्ड में चयनित होने वाली फिल्म ‘चम्पारन मीट’ एक मात्र भारतीय शॉर्ट मूवी है।
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