भारत का इतिहास

Civilization and culture in the epic period

महाकाव्य काल में सभ्यता एवं संस्कृति

जिस काल में रामायण और महाभारत की रचना हुई, महाकाव्य काल कहलाता है। रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की ​थी जबकि महाभारत की रचना वेद व्यास ने की थी। रामायण में उल्लेखित भौगोलिक विवरणों से पता चलता है कि यह ग्रन्थ महाभारत से प्राचीन है। महाभारत में न केवल वा​ल्मीकि बल्कि रामायण की भी संक्षिप्त कथा का वर्णन मिलता है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि महाभारत के अस्तित्व में आने से पूर्व ही रामायण एक प्रसिद्ध ग्रन्थ बन चुका था। रामायण में 24 हजार श्लोक हैं, इसलिए इसे चतुर्विशति साहत्री संहिता कहा जाता है। वहीं महाभारत 18 पर्व और एक लाख श्लोकों का संग्रह है, जिससे इसे शतसाहस्त्र संहिता कहा जाता है। महर्षि वेद व्यास ने महाभारत को जयसंहिता के नाम से व्याख्यायित किया वहीं वैशम्पायन ने जनमेजय को इस महाकाव्य की कथा सुनाई तब इसका नाम भारत पड़ गया। कालान्तर में शौनक ऋषि ने इसका नाम महाभारत कर दिया। हिन्दुओं का परम पुनीत धार्मिक ग्रन्थ श्रीमद्भागवतगीता इसी महाकाव्य का एक भाग है।

रामायण का रचना काल

रामायण के रचना काल को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद है। यदि ऋग्वेद के दशम मंडल में उल्लेखित राम ही दशरथ के राम थे तो दशम मंडल के रचनाकाल 1500 ई.पूर्व को ही रामायण का रचना काल स्वीकार किया जा सकता है। वहीं पाणिनी के अष्टाध्यायी में कैकयी, कौशल्या, शूर्पणखा आदि रामकथा से सम्बन्धित व्यक्तियों का उल्लेख है लेकिन वाल्मीकि अथवा वाल्मीकि रामायण कहीं उल्लेख नहीं है। इससे यह प्रतीत होता है कि पाणिनी के काल में रामकथा प्रचलित थी,​ फिर भी वा​ल्मीकि रामायण की रचना उस समय तक नहीं हुई थी। इस आधार पर विद्वानों ने निष्कर्ष निकाला कि रामायण की रचना 500 ई. पू. या 600 ई.पू. के युग में हुई थी। प्रसिद्ध विद्वान विन्टरनित्स का मत है कि रामायण की रचना महर्षि वाल्मी​कि ने ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में की थी। रामायण का वर्तमान स्वरूप जिसमें बाद में जोड़े हुए अंश भी सम्मिलित हैं, दूसरी शताब्दी ईस्वी के लगभग निश्चित हुआ था।

महाभारत का रचना काल-

महाकाव्य महाभारत में 18 पर्व और एक लाख श्लोक हैं। महाभारत में विदेशी जातियों- यूनानी, शक, पह्लव आदि का उल्लेख मिलता है जो भारत में ईसा पूर्व पहली और दूसरी शताब्दी में आईं। मैक्डॉनल्ड ने इसे 500 ईसा पूर्व और डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी ने महाभारत को 200 ईसा पूर्व की रचना माना है। वहीं प्रख्यात इतिहासकार डॉ. आर. जी. भण्डाकर का मत है कि ईसा पूर्व 500 तक महाभारत एक धार्मिक ग्रन्थ बन चुका था। 442 ई. के एक गुप्तकालीन अभिलेख में एक लाख श्लोक वाले महाभारत का उल्लेख है अत: इस समय त​क महाभारत का वर्तमान स्वरूप निश्चित हो चुका था। निष्कर्षतया महाभारत का रचना काल भी ईसा पूर्व चौथी शताब्दी माना गया है जबकि इसके वर्तमान स्वरूप की तिथि चौथी शताब्दी ईस्वी निर्धारित की जाती है।

राजनीतिक स्थिति-

कुरू, पांचाल, कौशाम्बी, कोशल, काशी, विदेह, मगध, अंग महाकाव्य काल के बड़े राज्य थे। राजा अब चक्रवर्ती, सम्राट, महाराजाधिराज जैसी बड़ी उपाधियां धारण करने लगे थे। राजा के पास विशाल चतुरंगिणी सेना होती थी जिसमें अश्व, गज, रथ तथा पैदल ​सैनिक होते थे। दिग्विजय के पश्चात राजा अब राजसूय, अश्वमेध तथा वाजपेय आदि यज्ञों का अनुष्ठान करने लगे थे। श्रीराम और युधिष्ठिर ने ऐसे ही यज्ञ किए थे। 

राजपद वंशानुगत होता था परन्तु राजा के ज्येष्ठ पुत्र में शारीरिक दोष होने पर राजपद नहीं दिया जाता था। महाभारत में अन्धे धृतराष्ट्र की जगह पांडव को राजा बनाया गया था। महाकाव्य काल में राजा निरंकुश नहीं होते थे वरन धर्म के अनुकूल शासन करते थे। महाभारत में अन्यायी और अत्याचारी शासकों के वध करने का उल्लेख मिलता है। वेण, नहुष, निमि और सुदास जैसे राजा अत्याचारी होने के कारण प्रजा के द्वारा मार डाले गए थे।

महाकाव्य काल में यद्यपि राजतंत्र की प्रमुखता थी लेकिन महाभारत में पांच गणतंत्रात्मक राज्यों अन्धक, वृ​ष्णि, यादव, कुकुर तथा भोज का उल्लेख मिलता है। इन पांच राज्यों का एक संघ था जिसके अध्यक्ष कृ​ष्ण थे। इस संघ के प्रत्येक राज्य को स्वायत्त शासन प्राप्त था।

महाकाव्य काल में राजा मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता था। रामायण में ​मंत्रियों के अतिरिक्त, राजपुरोहित, विद्वान व्यक्ति तथा सैनिक पदाधिकारियों का भी उल्लेख है जो राजा को परामर्श देते थे। वाल्मीकि रामायण में  18 विभागों के प्रमुखों का उल्लेख है जैसे- मंत्री, पुरोहित, युवराज, चमूपति, द्वारपाल, नगराध्यक्ष, दुर्गपाल, धर्माध्यक्ष, प्रदेष्टा, कारागार अधिकारी, अटवीपाल, राष्ट्रान्तपालक, द्रव्य संचयकृत, अन्तर्वेशिक, दण्डपाल, सभाध्यक्ष, कार्य निर्माणकृत। वहीं महाभारत में भी मंत्रियों की संख्या 36 बताई गई है जो चारों वर्णों से चयनित किए जाते थे। प्रशासन में पुरो​हित का महत्वपूर्ण स्थान था। विभागों को तीर्थ कहा जाता था।

सामाजिक स्थिति-

महाकाव्य काल में समाज वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित था। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों में ब्राह्मण अब भी सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे। वेदपाठ और कर्मकाण्ड के अतिरिक्त कुछ ब्राह्मण क्षत्रिय का काम करते थे, तो कुछ कृषि और पशुपालन द्वारा भी अपनी जीविका चलाते थे।

शूद्रों का स्थान सबसे नीचे था, शूद्रों को तपस्या अथवा अध्ययन के लिए गुरूकुल में जाने का अधिकार नहीं था। बतौर उदाहरण- रामायण में शम्बूक नामक एक शूद्र का उल्लेख है जो अनाधिकार तप करने के कारण श्रीराम के हाथों मारा गया। वहीं महाभारत में गुरू द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिक्षा देने से इनकार कर दिया था और जब उसने अपनी निष्ठा और लगन से धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त कर ली तो दक्षिणा में उसके दाएं हाथ का अंगूठा मांग लिया। यद्यपि महाभारत में विदुर, मातंग, कायव्य आदि ऐसे थे जिन्होंने जन्मना शूद्र होते हुए भी समाज में प्र​तिष्ठित स्थान प्राप्त किए थे। चार आश्रमों में गृहस्थ का सर्वाधिक महत्व था।

वैदिक काल की तुलना में समाज में स्त्रियों की दशा में थोड़ी सी गिरावट आई थी। बाल विवाह नहीं होते थे। हांलाकि उच्च वर्ग की म​हिलाएं पर्याप्त शिक्षित होती थीं। रामायण में कौशल्या और तारा को मंत्रविद् कहा गया है। अत्रेयी वेदान्त का अध्ययन करती हुई तथा सीता संध्या करती हुई दिखाई गई हैं। महाभारत में द्रौपदी को पण्डिता कहा गया है जो युधिष्ठिर तथा भीष्म से धर्म और नैतिकता पर वार्तालाप करती दिखाई देती हैं। महाकाव्य काल में अन्तर्जातीय तथा बहुविवाह का प्रचलन था। नियोग प्रथा का भी प्रचलन था। कुछ जगहों पर स्त्रियों के सती होने का भी प्रमाण मिलता है। इसके अतिरिक्त वैश्याओं के भी उल्लेख मिलते हैं।

धार्मिक स्थिति-

महाकाव्य काल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को त्रिमूर्ति कहा गया तथा उन्हें क्रमश: सृष्टि का सृजन, पालन तथा संहारकर्ता स्वीकार किया गया। तत्पश्चात शीघ्र ही ब्रह्मा की महत्ता नगण्य हो गई और विष्णु तथा ​शिव महाकाव्य युग के प्रमुख देवता रह गए। महाकाव्य युग में अवतारवाद और पुनर्जन्म की अवधारणाओं का समावेश हुआ। राम और कृष्ण को विष्णु का अवतार माना गया। समाज में यह धारणा प्रचलित हुई कि अपने भक्तों की सहायता के लिए ईश्वर समय-समय पर पृथ्वी पर मनुष्य रूप में अवतार लेता है। वह धर्म की स्थापना करता है, सज्जनों की रक्षा करता है तथा दुष्टों का विनाश करता है। महाकाव्य काल में वृक्ष पूजा भी प्रचलित थी क्योंकि वाल्मीकि रामायण में सीता के द्वारा श्यामवट नामक वट वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है।

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मान्यता अनुसार धर्मपालन की स्वतंत्रता थी। भक्ति, कर्म और ज्ञान इन तीनों का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। गीता में कर्म की महत्ता प्रतिपादित की गई है। वहीं भक्ति के सम्बन्ध में कृष्ण कहते हैं कि सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। इस युग में सत्य, अहिंसा, सदाचार, तप और त्याग का अनुसरण करने पर बल दिया गया है। समाज में सच्चरित्रता पर भी बल दिया गया है, इस सम्बन्ध में कहा गया है कि चरित्र एक ऐसा बल है जो मनुष्य को देवताओं की कोटि में पहुंचाता है। महाकाव्य काल में वैदिक यज्ञों की प्रधानता देखने को मिलती है लेकिन इन यज्ञों को चित्त शुद्धि का साधन माना गया है तथा यज्ञों में होने वाली हिंसा का विरोध किया गया।

आर्थिक स्थिति-

वैदिक युग की तरह महाकाव्य काल में भी कृषि और पशुपालन आर्थिक जीवन के मुख्य आधार थे। हल और बैल के द्वारा कृषि होती थी, सिंचाई के लिए कृषकों कों अधिकांशतया वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता था। सिंचाई के लिए (कुल्याओं) छोटी नहरों का भी उल्लेख मिलता है। गेहूं, जौ, उड़द, चना, तिल आदि प्रमुख फसलें थीं। पशुओं में गाय, बैल, हाथी, घोड़े आदि प्रमुख थे।

कृषि और पशुपालन के साथ-साथ व्यवसाय एवं व्यापार की प्रधानता थी। प्रमुख व्यवसायियों में स्वर्णकार, लोहार, बढ़ई, कुम्भकार, चर्मकार, वैद्य, रजक, नापित आदि का उल्लेख मिलता है। अनके व्यवसायी अपने शिल्पों में निपुण हो चुके थे। हाथीदांत, स्वर्ण, मणि तथा विविध रत्नों के सुन्दर आभूषण तैयार किए जाने लगे थे। व्यापार मुख्यतया वैश्य जाति के लोग ही करते थे। रामायण में यवद्वीप तथा सुवर्ण द्वीप का उल्लेख है जहां लोग व्यापार के प्रसंग में जाया करते थे। महाभारत में समुद्री यात्राओं, द्वीपों तथा जलपोतों आदि उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही कम्बोज, गन्धार, सिन्ध, प्राग्यज्योतिष, विन्ध्यप्रदेश आदि देशों से व्यापार किए जाने का उल्लेख है। कम्बोज तथा बाह्यलीक अपने उत्तम घोड़ों के लिए विख्यात थे।

महाकाव्य काल से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य-

महाभारत एवं पुराणों में वाल्मीकि को भार्गव कहा गया है।

महाभारत के रामोपाख्यान का रचयिता भी भार्गव बताया गया है।

स्कन्दपुराण के अनुसार, ऋषि बनने से पूर्व वा​ल्मीकि का पूर्व अग्निशर्मन था।

वेद व्यास का मूल नाम कृष्ण द्वैपायन था। इनके पिता का नाम पाराशर था।

भण्डारकर ओरियण्टल रिचर्स इन्स्टीट्यूट, पूना द्वारा प्र​काशित महाभारत का संस्करण ही सर्वाधिक प्रमाणिक माना जाता है।

महाभारत महाकाव्य को भारतीय ज्ञान का विश्वकोश कहा गया है। इतना ही नहीं इस ग्रन्थ को पंचम वेद भी माना जाता है।

महाभारत से श्रीमद्भगवत गीता, सनत्सुजातीय, अनुगीता, पाराशर गीता, मोक्ष धर्म आदि महत्वपूर्ण अंश संकलित हैं।

महाभारत के शान्ति पर्व में भीष्म का राजनीतिक तथा धर्म के पक्षों पर लम्बा प्रवचन है।

सभा पर्व में विदुर तथा संजय नीति के अतिरिक्त नारद का राजनीति विषय पर प्रवचन है।

सम्भावित प्रश्न रामायण तथा महाभारत के रचना काल का प्रामाणिक वर्णन करें।

रामायण तथा महाभारतकालीन संस्कृति की विवेचना कीजिए।

महाकाव्ययुगीन राजनीतिक तथा आर्थिक दशा का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।

महाकाव्य काल में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का सविस्तार वर्णन करें। 

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