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Chhatrapati Shivaji Maharaj's navy was more powerful than the British Navy

ब्रिटिश नेवी से भी ताकतवर थी छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना

'मॉडर्न रिव्यू' में प्रकाशित एक लेख में रबींद्रनाथ टैगोर ने लिखा कि शिवाजी एक हिंदू साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे। वहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू भी अपनी किताब 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' में लिखते हैं कि शिवाजी हिंदू राष्ट्रवाद के पुनरुत्थान के प्रतीक थे।यह सच है कि छत्रपति शिवाजी महाराज हिंदू राष्ट्रवाद के प्रणेता थे बावजूद इसके वह धर्म के आधार पर कभी भी भेदभाव नहीं करते थे।

यदि हम शिवाजी महाराज की सैन्य रणनीति की बात करें तो सामुद्रिक शक्तियों- पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, फ्रांसीसियों तथा अपने सबसे बड़े दुश्मन मुगल बादशाह औरंगजेब के समय एक शक्तिशाली नौसैनिक बेड़ा रखना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी।

यदि हम शिवाजी महाराज के नौसैनिक अफसरों की बात करें तो उनकी नौसेना के दो शीर्ष अधिकारी दार्या सारंग वेंतजी और दौलत ख़ाँ मुसलमान थे। अब आप भी समझ सकते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी नौसेना को शक्तिशाली बनाने के लिए धर्म नहीं अपितु योग्यता को तरजीह दी थी।

छत्रपति शिवाजी महाराज की शक्तिशाली नौसेना ने पुर्तगालियों, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी तथा मुगलों के जंगी बेड़े को भी करारी शिकस्त दी थी। ऐसे में छत्रपति शिवाजी महाराजा की शक्तिशाली नौसेना से जुड़ी विस्तृत जानकारी के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

शिवाजी महाराज की नौसेना

यह बात सभी जानते हैं कि यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली, डच, ब्रिटिश और फ्रांसीसी अपने नौसैनिक बेड़े के दम पर समुद्र पर राज कर रहे थे। इन यूरोपीय शक्तियों का समूचा व्यापार समुद्र के जरिए ही होता था। यहां तक कि मुगलों के जंगी बेड़े तथा व्यापारिक जहाज भी समुद्र में यूरोपीय जहाजों को कड़ी टक्कर दे रहे थे।

इस दौरान यदि हम छत्रपति शिवाजी महाराज की बात करें तो पूरे महाराष्ट्र तथा कोंकण इलाके में पुर्तगालियों, अंग्रेजों तथा सिद्दियों का दबदबा था। जहां मुम्बई पर अंग्रेजों का कब्जा था वहीं गोवा तथा भसीन पर पुर्तगालियों का शासन कायम था। जंजीरा को सिद्दियों ने अपने कब्जे में ले रखा था क्योंकि इन्हें मुगलों का संरक्षण प्राप्त था।

अत: इन विदेशी शक्तियों तथा मुगलों के जंगी बेड़ों को युद्ध में मात देने व सामुद्रिक व्यापार पर बढ़त हासिल करने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने 17वीं शताब्दी में एक शक्तिशाली नौसेना तथा नौसैनिक अड्डों की ​स्थापना की।

मराठा नौसेना के युद्धपोतों का निर्माण

यूरोपीय सामुद्रिक शक्तियों में पुर्तगाली,डच, ब्रिटिश और फ़्रेंच किसी के साथ भी अपनी सामुद्रिक जानकारी बांटना नहीं चाहते थे, बावजूद इसके छत्रपति शिवाजी महाराज एक शक्तिशाली मराठा नौसेना का निर्माण करने में सफल रहे। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय पुर्तगाली नौसेना सबसे शक्तिशाली मानी जाती थी। ऐसे में शिवाजी महाराज ने अपने युद्धपोतों के निर्माण के लिए पुर्तगाली इन्जीनियरों की मदद ली।

हांलाकि उन्हें इस बात का अन्दाजा पहले से था कि जब गोवा के पुर्तगाली अफसरों को इस बात की सूचना मिलेगी तो वे अपने इन्जीनियर्स को वापस बुला लेंगे। अत: शिवाजी महाराज ने अपने करीबी आबाजी सोनदेव से पहले ही यह कह रखा था कि युद्धपोत बनाने में माहिर पुर्तगाली इन्जीनियर्स की मदद के लिए ऐसे कुशल स्वदेशी कारीगरों को लगाया जाए जो वैज्ञानिक जहाज निर्माण की कला शीघ्र अतिशीघ्र सीख सकें।

छत्रपति शिवाजी महाराज का अन्देशा सही निकला, जैसे ही गोवा के शीर्ष पुर्तगाली अधिकारियों को पता चला पुर्तगाली इंजीनियर्स युद्धपोत बनाने का काम अधूरा छोड़कर चले गए। इसके बाद शिवाजी के मराठा कारीगरों ने उस काम को पूरा किया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने तकरीबन एक साल में भिवंडी, कल्याण और पनवेल में 20 जंगी जहाजों का निर्माण करवाया। इस प्रकार हथियारों और तोपों से लैस मराठा नौसेना पहली बार अस्तित्व में आई। 

छत्रपति शिवाजी महाराज का नौसैनिक बेड़ा

छत्रपति​ शिवाजी महाराज की नौसेना में कान्होजी आंग्रे, मायनाक भण्डारी, दार्या सारंग वेंतजी और दौलत ख़ाँ जैसे आला अफसर कार्यरत थे। एडमिरल कान्होजी आंग्रे ने तो मुगलों के जंगी बेड़ों को कई बार शिकस्त दी थी।

शिवाजी महाराज की नौसेना में मौजूद युद्धपोतों की शुरूआती संख्या 20 से 30 के करीब ​थी जो कालान्तर में बढ़कर 500 तक पहुंच गई। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने नौसैनिक बेड़े को चार भागों में विभाजित कर रखा था, जो इस प्रकार थे-

1. गुराब- तोपों से लैश ये सबसे शक्तिशाली युद्धपोत थे। लकड़ी से निर्मित विशालकाय युद्धपोत गुराब दुश्मन के जहाजों पर आक्रमण करने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे।

2. गालबात- तोपों से लैश जंगी जहाज गुराब के मुकाबले गालबात नामक जहाज छोटे होते थे। तेज गति से चलने में माहिर गालबात नामक जहाज को भी युद्ध के लिए बनाया गया था। युद्धपोत गालबात को दुश्मन के जहाजों का पीछा करने तथा तीव्र गति से हमला करने में सक्षम माना जाता था।

3. टारगोट- तीव्र गति से चलने में माहिर टारगोट युद्धपोत बेहद छोटे तथा हल्के होते थे। इन युद्धपोत का उपयोग मराठी नौसेना छोटी लड़ाईयों के लिए करती थी। यह युद्पोत दुश्मन की नजरों से बचकर उन पर तेजी से हमला करने में सक्षम था।

4. पाल- मराठा नौसेना में पाल नामक जहाजों को लम्बी दूरी की सामुद्रिक यात्रा तथा व्यापार के लिए तैयार किया गया था।

सबसे महत्वपूर्ण मराठी नौसैनिक अड्डा

छत्रपति शिवाजी महाराज इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि मराठी नौसेना में केवल शक्तिशाली युद्धपोतों का होना ही काफी नहीं है। ऐसे में शिवाजी महाराज ने दुश्मनों से निबटने तथा युद्धपोतों की सुरक्षा के लिए समुद्र के बीचोबीच एक ऐसे अभेद्य किले का निर्माण करवाया जिसका नाम था सिन्धु दुर्ग।

मुंबई से 450 किमी दूर कोंकण के मालवन में बने सिन्धु दुर्ग नामक बेहद मजबूत समुद्री किले का निर्माण छत्रपति शिवाजी महाराज ने खुद की निगरानी में बनवाया था।

मराठी नौसेना की जंगी उपलब्धियां

छत्रपति शिवाजी महाराज के नौसैनिक बेड़े में शामिल युद्धपोत दुश्मन के नजदीक पहुंचकर हमला करने में सक्षम थे। छोटे आकार के मराठी युद्धपोतों की तुलना में यूरोपीय जहाजों के लिए ऐसा करना सम्भव नहीं था। एक सामुद्रिक जंग में हार के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक आला अफसर ने 1679 ई. में ब्रिटिश गवर्नर को एक पत्र लिखा कि मराठी नौसेना के जहाज वहां जा सकते हैं जहां हम नहीं जा सकते।

अंग्रेजों के जहाजी बेड़े को दी करारी शिकस्त - छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुम्बई के नजदीक कोलाबा में एक किले का निर्माण करवाया था। चूंकि मुम्बई पर अंग्रेजों का ​आधिपत्य था अत: कोलाबा किले का निर्माण कार्य रोकवाने के लिए अंग्रेजों ने अपनी नौसेना भेजी। परन्तु शिवाजी महाराज की नौसेना ने अंग्रेजी नौसेना को करारी​ शिकस्त दी।

मराठी नौसेना ने न केवल ब्रिटिश नौसैनिक बेड़े को मात दी बल्कि अंग्रेजों के जहाजों को भी अपने कब्जे में ले लिया। मराठी नौ​सैनिकों ने कई अंग्रेजों को भी कैद कर लिया। बदले में अंग्रेजों को भारी कीमत चुकानी पड़ी। इसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी शक्तिशाली नौसेना के दम पर गोवा, मुम्बई और बसई को छोड़कर साल 1670 तक सम्पूर्ण कोंकण पर अधिकार जमा लिया।

बसरूर से पुर्तगालियों को खदेड़ा -  कनार्टक प्रान्त में मौजूद बसरूर के राजा की मौत के बाद पुर्तगालियों ने उस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। इसके बाद बसरूर की विधवा रानी ने छत्रपति शिवाजी को अपना भाई मानकर मदद की गुहार लगाई। इसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने नौसैनिक बेड़े के साथ बसरूर पहुंचकर पुर्तगालियों को वहां से खदेड़ दिया। बसरूर के लोग आज भी प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को इस विजय की स्मृति में जश्न मनाते हैं।

मुगल कमांडर इनायत खान की करारी हार - 1664 ई. में मुगल सेनापति इनायत खां और मराठों के बीच हुई सूरत की लड़ाई के दौरान मुगलों को करारी मात देने में शिवाजी महाराज की नौसेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस मुगल-मराठा संघर्ष के दौरान मुगलों का एक जंगी बेड़ा सूरत की ओर रवाना हुआ लेकिन मराठा नौसेना ने उस जंगी बेड़े को पांच दिन तक समुद्र में ही रोके रखा जिसके चलते मराठों ने यह युद्ध बड़ी आसानी से जीत लिया।

जानकारी के लिए बता दें कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मौत के बाद उनके बेटे छत्रपति संभाजी महाराज ने मराठा नौसेना की कमान संभाली। सम्भाजी महाराज की मौत के बाद कान्होजी आंग्रे ने मराठा नौसेना को उस समय की सबसे शक्तिशाली समुद्री सेना में बदल दिया।

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