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How did Aurangzeb behave with Chhatrapati Shivaji's family after his death?

छत्रपति शिवाजी की मृत्यु के पश्चात उनके परिवार के साथ औरंगजेब ने कैसा व्यवहार किया?

छत्रपति शिवाजी ने वैवाहिक राजनीति के जरिए सभी मराठा सरदारों को एक छत्र के नीचे लाने का महान कार्य किया। इस प्रकार शिवाजी ने कुल आठ शादियां की। 14 मई 1640 में सईबाई निंबालकर के साथ शिवाजी का विवाह हुआ। शिवाजी की दूसरी पत्नी का नाम सोयराबाई मोहिते था। तीसरी पत्नी का नाम सकवरबाई गायकवाड था। चौ​थी पत्नी का नाम सगुणाबाई शिर्के व पांचवी पत्नी का नाम पुतलाबाई पालकर था। छठीं पत्नी काशीबाई जाधव, सातवीं पत्नी लक्ष्मीबाई विचारे और आठवी पत्नी का नाम गुंवांताबाई इंगले था। हांलाकि अन्त में शिवाजी की केवल तीन पत्नियां ही जीवित बची थीं। छत्रपति शिवाजी के इन विवाहों से दो पुत्र और छह पुत्रियां हुई थी। शिवाजी बेटों और बेटियों के नाम इस प्रकार से है- सम्भाजी, राजाराम, रनुबाई जाधव, अंबिकाबाई महादिक, राजकुँवरबाई शिर्के, दीपबाई, सकुबाई निंबालकर, कमलाबाई पालकर। शिवाजी की आजीवन पथ प्रदर्शक रहने वाली उनकी मां जीजा बाई का निधन हो चुका था, उनके पिता शाहजी भोंसले भी स्वर्ग सिधार चुके थे। शिवाजी की सबसे बड़ी रानी सईबाई सबसे समझदार और सुशील थीं लेकिन उनका भी निधन हो चुका था। सईबाई से ही वीर सम्भाजी का जन्म हुआ था। दूसरे दस वर्षीय पुत्र राजाराम की मां सोयराबाई अपने पुत्र को राजा बनाने के लिए दिन-रात षड्यंत्र में जुटी रहती थीं। सम्भाजी विद्रोही और उद्ण्ड प्रवृत्ति के थे इसीलिए शिवाजी ने उन्हें पन्हाला के किले में कैद करके रखा था। उपरोक्त  सभी परिस्थियों को देखकर शिवाजी ​चिन्तित रहने लगे, उन्हें इस बात का अहसास था कि सम्भाजी में मराठा साम्राज्य को संभालने की क्षमता नहीं है, जबकि दूसरा पुत्र अभी छोटा है। इसी निराशा में शिवाजी बीमार पड़ गए।

13 दिसम्बर 1679 ई. से शिवाजी ने शासन का कार्यभार छोड़ दिया और समर्थ गुरूरामदास के चरणों में बैठकर ईश्वर भक्ति करने लगे। 4 फरवरी को शिवाजी पूना से रायगढ़ के लिए रवाना हुए। 7 मार्च को राजाराम का यज्ञोपवीत संस्कार करवाया और 15 मार्च को सेनापति प्रतापराव (स्वर्गवासी) की पुत्री द्रोपती बाई से राजाराम का विवाह करवाया।

23 मार्च को शिवाजी को बुखार आया और खून की उल्टियां करने लगे। तकरीबन 12 दिनों तक शिवाजी की यही स्थिति बनी रही, किसी भी दवा से कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। आखिरकार 3 अप्रैल 1680 को 52 वर्ष की उम्र में छत्रपति शिवाजी का निधन हो गया। महज 2000 मराठा सैनिकों से अपने शासन की शुरूआत करने वाले छत्रपति शिवाजी के निधन के समय मराठा साम्राज्य के पास एक लाख पैदल सैनिक, 40000 घुड़सवार और 1260 हाथी मौजूद थे।

छत्रपति शिवाजी के निधन के समय शम्भाजी पन्हाला किले में कैद थे। ऐसे में सोयराबाई ने अपने दस वर्षीय पुत्र राजाराम को मराठा सिंहासन पर बैठा दिया। सोयराबाई के इस षड्यंत्र का पता चलते ही शम्भाजी ने हम्बीराव माहिते की मदद से 20 हजार मराठा सैनिकों के साथ रायगढ़ पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में कर लिया।

20 जुलाई 1680 को संभाजी का राज्याभिषेक किया गया और उन्होंने मराठा साम्राज्य की गद्दी संभाली। इतिहासकार गोविंद सखाराम सरदेसाई की किताब New History of the Marathas, Vol 01 के अनुसार “सोयराबाई को संभाजी ने छत्रपति बनने के बाद जेल में डाल दिया। चूंकि सोयराबाई पर छत्रपति शिवाजी को जहर देने का भी आरोप था अन्तत: साजिश के आरोपों के चलते उन्हें 1681 में मृत्युदंड की सजा दी गई।

छत्रपति बनते ही सम्भाजी ने बुरहानपुर शहर पर आक्रमण करके उसे तहस-नहस कर दिया। इतना ही नहीं इस शहर को आग के हवाले कर दिया। बुरहानपुर शहर की सुरक्षा में रखे गए मुगल सैनिकों का कत्लेआम कर दिया गया। यह एक प्रकार से मुगल साम्राज्य को सीधी चुनौती थी।

इसके अतिरिक्त जब औरंगजेब के चौथे पुत्र अकबर ने बगावत की तो उसे अपने यहां शरण दी। इस दौरान सम्भाजी ने अकबर की बहन जीनत को एक पत्र लिखा जो संयोगवश औरंगजेब के हाथों लग गया। इस पत्र को मुगल दरबार में औरंगजेब को पढ़कर सुनाया गया। पत्र कुछ इस प्रकार था-

“बादशाह सलामत सिर्फ मुसलमानों के बादशाह नहीं हैं। हिंदुस्तान की जनता अलग-अलग धर्मों की है। उन सबके ही बादशाह हैं वो। वो जो सोच कर दक्कन आये थे, वो मकसद पूरा हो गया है। इसी से संतुष्ट होकर उन्हें दिल्ली लौट जाना चाहिए। एक बार हम और हमारे पिता उनके कब्ज़े से छूट कर दिखा चुके हैं लेकिन अगर वो यूं ही ज़िद पर अड़े रहे, तो हमारे कब्ज़े से छूट कर दिल्ली नहीं जा पाएंगे। अगर उनकी यही इच्छा है तो उन्हें दक्कन में ही अपनी कब्र के लिए जगह ढूंढ लेनी चाहिए।”

फिर क्या था, क्रोधित औरंगजेब अपनी चिर अभिलाषा पूरी करने ​के लिए 1682 ई. में तकरीबन तीन लाख की विशाल सेना लेकर दक्षिण भारत पहुंच गया। 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा विजय के बाद उसने अपनी सम्पूर्ण शक्ति छत्रपति सम्भाजी के विरुद्ध लगा दी। 1687 ई. में मराठों तथा मुगलों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। कहा जाता है कि जीत मराठों के हाथ लगी थी लेकिन शम्भाजी की सेना को बहुत भारी क्षति पहुंची थी। शम्भाजी के विश्वासपात्र सेनापति हंबीरराव मोहित की मौत हो गई। सम्भाजी की जासूसी की जाने लगी, जिसमें उनके रिश्तेदार शिर्के परिवार की बड़ी भूमिका मानी जाती है। आखिरकार 1689 ई. में सम्भाजी और उनके मंत्री कवि कलश को तब कैद कर लिया गया जब वे एक बैठक के लिए संगमेश्वर पहुंचे थे। वहां पहले से ही घात लगाए बैठे मुकर्रब खान की अगुवाई में सम्भाजी के सभी सरदारों की हत्या कर दी गई और सम्भाजी को कवि कलश के साथ कैद करके बहादुरगढ़ लाया गया।

मुगल बादशाह औरंगजेब ने सम्भाजी से समस्त किलों तथा सम्पूर्ण खजाने को मुगलों को सौंपने के साथ ही इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा। प्रतिक्रियास्वरूप सम्भाजी ने इन मांगों को ठुकराकर औरंगजेब की पुत्री से अपने विवाह का प्रस्ताव रखा। इसके बाद औरंगजेब के आदेश से शुरू हुआ सम्भाजी के अपमान और निर्मम अत्याचारों का दौर।

सम्भाजी और कवि कलश को जोकरों का पोशाक पहनाकर पूरे शहर में घुमाया गया और उन पर पत्थरों की बरसात की गई। भाले चुभोए गए और एक बार फिर से इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा गया, दोबार इनकार करने पर सम्भाजी और कवि कलश की जुबान काट दी गई और आंखें निकलवा ली गई।

औरंगजेब के आदेश से सम्भाजी को 15 दिन तक कठोर यातनाएं देने के बाद उनका कत्ल कर दिया गया और उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों को डाल दिए गए। इस प्रकार महान सपूत छत्रपति शिवाजी के पुत्र का अन्त बेहद दर्दनाक तरीके से हुआ। आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि युद्ध के दौरान छत्रपति शिवाजी बंदी मुगल महिलाओं को जिस इज्जत के साथ पालकी से वापस भिजवा देते थे, उन्हीं शिवाजी के परिवार को औरंगजेब ने कैद करवा लिया था।  

सम्भाजी के साथ ही उनकी पत्नी येशूबाई तथा येशूबाई के पुत्र साहूजी के साथ शिवाजी की  पत्नी सकवर बाई को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। सम्भाजी के निधन के बाद भी काफी लम्बे समय तक शिवाजी का परिवार औरंगजेब की कैद में रहा। गौरतलब है कि छत्रपति शिवाजी से सर्वदा भयाक्रान्त रहने वाले मुगलों ने उनकी मौत के बाद उनके परिवार को घोर यातनाएं दी।