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Bhojpur district of Bihar is famous by the name of the Raja Bhoja

भारत के इस महान राजा के नाम से विख्यात है बिहार का जिला भोजपुर

बिहार की राजधानी पटना से 40 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद भोजपुर जिला अपनी भोजपुरी मिठास के लिए पूरे देश में विख्यात है। ​​भोजपुर जिले से जुड़े तीन नगर- आरा, पीरो और जगदीशपुर भी अपनी अलग पहचान रखते हैं। आरा की मां आरण्य देवी, महथिन माई, बखोरापुर काली मंदिर आज भी लोगों के दिलों में विशेष स्थान रखते हैं वहीं जगदीशपुर की पहचान 1857 की महाक्रांति के नायक बाबू कुंवर सिंह जी से है। 

ऐसे में आपका यह सोचना लाजिमी है कि बिहार के पश्चिमी भाग में मौजूद मशहूर जिला भोजपुर से भारत के किस महान राजा का खास कनेक्शन है? इस रोचक प्रश्न की जानकारी के लिए यह ऐतिहासिक स्टोरी जरूर पढ़ें।

परमार वंश का महान राजपूत राजा भोज

परमार राजवंश के सबसे यशस्वी एवं पराक्रमी राजा भोज ने 1011 ई. से 1046 ई. तक शासन किया। राजा भोज एक महान पराक्रमी योद्धा था परन्तु वह अपनी विद्वता के लिए ज्यादा विख्यात था।

राजा भोज ने धर्म, खगोलविद्या, कला, कोशरचना, भवननिर्माण, काव्य, औषधिशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर तकरीबन 84 पुस्तकें लिखी जिनमें अब केवल 21 पुस्तकें ही विद्यमान हैं।

राजा भोज की विद्वता के चलते ही एक कहावत आज भी जनमानस में मशहूर है- “कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली। जबकि शुद्ध वाक्य है- कहां राजा भोज, कहां गांगेय, तैलंग।भोज की रचनाओं में श्रृंगार प्रकाश, सरस्वतीकण्ठाभरण, प्राकृत व्याकरण, श्रृंगारमंजरी, भोज चम्पू, कृत्यकल्पतरू, कूर्मशतक, तत्वप्रकाश, व्यवहारसमुच्चय, राजमृगांक, शब्दानुशासन आदि विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं।

राजा भोज के दरबारी कवियों एवं विद्वानों में भास्करभट्ट, दामोदर मिश्र, धनपाल आदि का नाम प्रमुख है। राजा भोज इतना बड़ा दानी था कि वह प्रत्येक ​कवि को प्रत्येक श्लोक पर एक लाख स्वर्ण मुद्राएं प्रदान करता था। राजा भोज की मृत्यु पर कवियों तथा विद्वानों को महान दुख हुआ, तभी तो एक प्रसिद्ध लोकोक्ति (अद्यधारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती। पण्डिता खण्डिता सर्वे भोजराजे दिवंगते।।) के अनुसार, उसकी मृत्यु से विद्या और विद्वान दोनों ही निराश्रित हो गए।

महान निर्माता था राजा भोज

परमारवंशी राजा भोज एक महान निर्माता भी था। उसने भोपाल के दक्षिण पूर्व में 250 वर्ग मील लम्बी झील का निर्माण करवाया जो भोजसर के नाम से प्रसिद्ध है। यह झील एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील मानी जाती है।

राजा भोज ने अपनी राजधानी धारा में एक सरस्वती मंदिर का निर्माण करवाया तथा उसी के समीप विजय-स्तम्भ भी स्थापित किया। उसने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर बनवाया तथा मेवाड़ के नागोद क्षेत्र में भूमि दान दी। इसके अतिरिक्त राजा भोज ने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था।

भोजपुर से जुड़ा रोचक इतिहास

भारतीय इतिहास में भोजपुर नाम के दो मशहूर नगर हैं और इन दोनों शहरों का सम्बन्ध राजा भोज से जुड़ा है। पहले भोजपुर की नगर की स्थापना राजा भोज ने विदिशा से तकरीबन 45 किमी. की दूरी पर स्थित बेतवा नदी के किनारे की थी, भोजपुर गांव की पहाड़ी पर उसने एक विशाल शिवमंदिर का निर्माण करवाया जिसे भोजेश्वर मंदिर अथवा भोजपुर मंदिर कहा जाता है।

वहीं बिहार के पश्चिमी भाग पर राजा भोज तथा उसके वंशजों का आधिपत्य था जिससे आरा व उसके आस-पास का प्रदेश भोजपुर कहलाया। भोजपुर के शुरुआती निवासी परमार वंश के राजपूत ही थे जिन्हें उस समय उज्जैनिया कहा जाता था। भोजपुर नाम के कारण ही यहां बोले जाने वाली भाषा का नाम भी भोजपुरी पड़ गया।  बता दें कि परमारवंशी राजपूतों (उज्जैनी) ने ही आरा गांव बसाया था।

राजा भोज का नवरत्नगढ़ किला

उदयपुर लेख से यह पता चलता है कि राजा भोज ने पूर्व में उड़ीसा, पश्चिम में गुजरात तथा दक्षिण में कोंकण को जीता था। कन्नौज के उत्तर में उसकी सेनाएं हिमगिरी तक गई थीं। प्रख्यात इतिहासकार द्विजेन्द्र नारायण झा एवं कृष्ण मोहन श्रीमाली के अनुसार, “बिहार के पश्चिमी भाग में स्थित आरा के आस-पास के समस्त प्रदेशों पर राजा भोज तथा उसके वंशजों का आधिपत्य था जिससे यह क्षेत्र भोजपुर कहलाया।

जबकि एक अन्य तथ्य के मुताबिक, राजा भोज के पुत्र ने डुमराव के समीप भोजपुर नामक नगर बसाया था। बिहार के बक्सर स्थित नया भोजपुर गांव स्थित राजा भोज का नवरत्नगढ़ किला अब जमींदोज होने की कगार पर है।

कुछ इ​तिहासकारों के मुताबिक, नवरत्नगढ़ किले का निर्माण 1663 ई. में परमारवंशी राजा रूद्रप्रताप सिंह ने करवाया था। मुगलों के सैन्य हमले के दौरान इस किले को काफी क्षति पहुंची थी तथा राजा रूद्र प्रताप सिंह की मौत हो गई थी। मुगलों और अंग्रेजी हुकूमत की मार झेलने वाला यह किला अपनी जीर्णशीर्ण अवस्था में अब भी विद्यमान है परन्तु यह किला राजा भोज के शक्तिशाली शासन की याद दिलाने के लिए काफी है।

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