जाटों के अफलातून कहे जाने वाले महाराजा सूरजमल ने साल 1733 में राजा खेमकरण को मारकर भरतपुर पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद सूरजमल और उनके पिता महाराजा बदन सिंह ने भरतपुर में एक ऐसे अजेय किले के निर्माण की योजना तैयार की जो किसी भी दुश्मन के हमले से पूरी तरह सुरक्षित हो। परन्तु सबसे बड़ी समस्या यह थी कि ऐसे सुदृढ़ और अजेय किले के निर्माण के लिए महाराजा बदन सिंह के पास पर्याप्त धन नहीं था।
इतिहासकार रामवीर सिंह के मुताबिक, “जाट साम्राज्य के संस्थापक कहे जाने वाले चूड़ामन ने मुगलों के काफिलों तथा खजानों से बहुत सा धन लूटा था। चूड़ामन इन लूटे हुए खजाने को जमीन में एक सुरक्षित जगह गाड़कर उसकी रखवाली के लिए वहां गांव बसा देता था, इसके बाद उस धन को प्रमाणित करने के लिए उस गांव को एक राजसी पत्र सौंप दिया जाता जिसे ‘बीजक’ कहा जाता था।” कहा जाता है कि चूड़ामन ने अपनी मृत्यु के समय अपने गड़े हुए खजाने की जानकारी महाराजा बदन सिंह को दी थी। ऐसे में सूरजमल ने इन गांवों की तलाश कर दबे हुए खजाने को हासिल कर लिया और साल 1733 ई. में बसंत पंचमी के दिन लोहागढ़ किले की नींव रखी। इस किले का एक नाम ‘अजयगढ़ दुर्ग’ भी है।
8 साल में बनकर तैयार हुआ लोहागढ़ दुर्ग
साल 1733 ई. में लोहागढ़ किले का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया गया। इस अजेय किले के निर्माण के दौरान 13 हजार श्रमिक प्रतिदिन काम करते थे। निर्माण सामाग्री लाने के लिए हर रोज 500 घोड़ा गाड़ी, 1000 ऊंट गाड़ियां, 500 खच्चर तथा 1500 अन्य गाड़ियां लगी रहती थीं। आठ साल तक अनवरत परिश्रम के बाद यह अजेय दुर्ग बनकर तैयार हुआ।
अजेय क्यों है लोहागढ़ फोर्ट
आक्रमणकारियों के बारूदों अथवा तोप के गोलों से किले को महफूज रखने के लिए लोहागढ़ किले को ‘मिट्टी तकनीक’ से तैयार किया गया। ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड लिखता है कि “इस किले के निर्माण के समय चिकनी मिट्टी के गारे को गोबर, चूना और भूसे को मिलाकर तैयार किया जाता था। इसी गारे से बनी किले की 30 फीट चौड़ी दीवार में तोप के गोले आकर फंस जाते थे।” अतः इसको ‘मिट्टी का दुर्ग’ भी कहते हैं। इस किले की चौड़ाई इतनी कि चार बैलगाड़ियां एक साथ गुजर सकती थीं। किले की 100 फीट ऊंची पत्थर से निर्मित दीवार के आगे एक रेत की दीवार भी बनाई गई थी जो आक्रमण के समय अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती थी। अर्थात् इसी रेत की दीवार में फंसकर दुश्मनों के बारूद और तोप के गोले फुस्स हो जाते थे। सुरक्षा के लिहाज से लोहागढ़ में 10 दरवाजे बनवाए गए थे लेकिन प्रवेश द्वार केवल दो ही थे, अष्टधातु द्वार और चौबुर्जा द्वार। दुश्मनों को किले से दूर रखने के लिए इसके चारों तरफ 200 फीट चौड़ी व 30 फीट गहरी खाईं खोदी गई थी जो पानी से लबालब रहती थी। दरअसल दुश्मन के हमले के समय इस खाई में सुजान गंगा नहर, कौंधनी बांध तथा मोती झील का पानी छोड़ दिया जाता था।
हैरानी की बात यह है कि इस खाई में कई मगरमच्छ भी छोड़े गए थे। आक्रमण के दौरान इन मगरमच्छों को खाना डालना बन्द कर दिया जाता था जिससे दुश्मन जैसे ही इस खाई में उतरने का प्रयास करते, मगरमच्छ उन्हें अपना आहार बना लेते थे। अगर संयोगवश कोई इस हमलावर इस खाई को पार भी कर लेता था तो पत्थर की दीवार से पहले से मिट्टी की चिकनी और सपाट दीवार मिलती थी जिससे पर चढ़ने में पैर फिसलने लगते थे। इतने में किले पर घात लगाकर बैठे सैनिक दुश्मनों को मौत के घाट उतार देते थे।
अष्ट धातु के किवाड़ और काले संगमरमर का सिंहासन
महाराजा सूरजमल जब आगरा पर अधिकार गाजियाबाद होते हुए हिंडन नदी के कटाव से गुजर रहा था तभी वहां छुपे हुए अफगान सैनिकों ने उस पर हमला कर दिया। इस दौरान अफगान सैनिक सैय्यद मोहम्मद खान बलूच ने सूरजमल की हत्या कर दी। इसके बाद सूरजमल की रानी किशोरी देवी के कहने पर जाटों ने उसके बड़े पुत्र जवाहर सिंह को भरतपुर का राजा बनाया। रानी किशोरी देवी ने जवाहर सिंह को अपने पति के हत्यारे अफगानों से बदला लेने के लिए दिल्ली भेजा। जवाहर सिंह ने अपने आक्रमक हमले के दौरान दिल्ली को लूटा और लाल किले से अष्टधातु के किवाड़ जो लोहागढ़ किले के उत्तरी द्वार में लगे हुए हैं व काले संगमरमर का सिंहासन भी लेकर आया जो आज भी डीग के महलों में रखा हुआ है। लोहागढ़ किले का उत्तरी द्वार अष्टधातु द्वार के नाम से जाना जाता है जबकि दक्षिण में स्थित चार स्तम्भों वाला द्वार चौबुर्जा द्वार के नाम से विख्यात है।
लोहागढ़ किले पर हुए 13 आक्रमण
भरतपुर का लोहागढ़ फोर्ट पूरे देश का एकमात्र किला है जिसे अजेयगढ़ दुर्ग कहा जाता है क्योंकि मुगलों सहित अंग्रेजों ने तकरीबन 13 बार आक्रमण किए। परन्तु हमलावारों को प्रत्येक बार असफलता ही हाथ लगी। ब्रिटिश सेना ने चार बार आक्रामक तरीक से इस किले को घेरा लेकिन हर बार नाकाम रहे।
साल 1803 में लॉर्ड लेक के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने लोहागढ़ किले पर आक्रमण किया परन्तु भरतपुर का यह किला हमेशा की तरह अडिग और अजेय रहा। ठीक इसके विपरीत अंग्रेजी सेना के तीन हजार से ज्यादा सैनिक मारे गए। इतनी ज्यादा संख्या में सैनिकों की मौत से हतोत्साहित लॉर्ड लेक ने भरतपुर के तत्कालीन राजा रणजीत सिंह से 29 सितम्बर 1803 को संन्धि कर ली। इस प्रकार राजस्थान में भरतपुर ऐसी पहली रियासत बनी जिसने ब्रिटिश हुकूमत को धूल चटाई।
जवाहर बुर्ज और फ़तेह बुर्ज की ऐतिहासिकता
जानकारी के लिए बता दें कि भरतपुर के अजेय लोहागढ़ किले की प्राचीर के भीतर 8 बुर्ज तथा 40 अर्धचन्द्राकार बुर्ज निर्मित हैं। लेकिन इनमें फतेह बुर्ज और जवाहर बुर्ज विशेष महत्व रखते हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक प्राय: जवाहर बुर्ज पर ही उत्तरवर्ती जाट राजाओं का राज्याभिषेक किया जाता था। दिल्ली विजय की स्मृति में राजा जवाहर सिंह ने साल 1765 में लोहागढ़ दुर्ग में ‘जवाहर बुर्ज’ का निर्माण करवाया था। जवाहर बुर्ज के एक फीट मोटे लौह स्तम्भ पर भरतपुर के राजाओं की वंशावली उत्कीर्ण है। जवाहर बुर्ज के मध्य दो मंजिला भवन तथा बारहदरी बनी हुई है जो राजस्थानी स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है। वहीं जवाहर बुर्ज के दूसरे कोने पर जाट राजा रणजीत सिंह ने 1805 में ब्रिटिश सेना पर विजय के प्रतीक स्वरूप फतेह बुर्ज का निर्माण करवाया था। ईंट और गारे से निर्मित इस बुर्ज ने भरतपुर के जाट शासकों को विजयश्री दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, क्योंकि इस बुर्ज के ऊपर गढ़ा लोहे से निर्मित 6 मीटर लम्बी तोप रखी हैं जिसका अगला व्यास 0.68 मीटर और पीछे की ओर परिधि 2.67 मीटर है।
किशोरी महल
तगरवां के प्रभावशाली जाट सरदार रतीराम नाहरवार जो जयपुर के राजा सवाई जयसिंह के इजारेदार थे। उन्होंने बदन सिंह से मित्रता के पश्चात अपनी पुत्री किशोरी की सगाई सूरजमल से कर दी। विवाह के पश्चात महाराजा सूरजमल ने अपनी प्रिय महारानी किशोरी के लिए एक महल का निर्माण करवाया। इसी कारण यह किशोरी महल के नाम से विख्यात है। इस महल को सूरजमल ने 18वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में बनवाया था। महल के उपरी भाग की छतरियां आज भी सुरक्षित हैं तथा प्रवेश द्वार पर बेलबुटे तथा पत्रालंकरण उत्कीर्ण हैं। भरतपुर के इमारतों में यह ऐसी पहली इमारत है जिसमें लोहे के गार्डर का इस्तेमाल किया गया है। यह चार मंजिला भवन महाराजा सूरजमल द्वारा बनवाई गई इमारतों में सर्वाधिक नक्काशीदार है। महाराजा सूरजमल ने महारानी किशोरी के नाम पर तकरीबन 38 भवनों का निर्माण करवाया जिसमें महलों, बाग, बगीचे सहित मंदिर शामिल हैं।
कचहरी कलां
लोहागढ़ किले में किशोरी महल के अतिरिक्त बदन सिंह का महल, महल खास तथा कोठी खास भी शामिल है। लोहागढ़ दुर्ग के मध्य में स्थित कचहरी कलां एक ऐसी विशाल इमारत थी जिसे भरतपुर के जाट राजाओं का प्रशासनिक प्रखण्ड कहा जाता था। प्रारम्भ में इसमें लोहागढ़ दुर्ग के खजाने तथा हथियार व कवच आदि को रखा जाता था। साल 1944 में इस इमारत को एक सरकारी संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया जिसमें अरबी और संस्कृत में लिखी गई पांडुलिपियाँ, जाट राजाओं के हथियारों का संग्रह, जैन मूर्तियां तथा पहली शतब्दी ईसा पूर्व की एक यक्ष की मूर्ति रखी हुई है। इसके अतिरिक्त यहां पर एक नटराज की मूर्ति तथा लाल बलुआ पत्थर का शिवलिंग भी रखा हुआ है।
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