
भारतीय मुक्ति संग्राम का एक ऐसा महासेनानी जिसे हम सभी फ्रन्टियर गांधी, सरहदी गांधी अथवा सीमांत गांधी तथा बादशाह खान, बाचा खान आदि कई नामों से जानते हैं, परन्तु उनका वास्तविक नाम था अब्दुल गफ्फार खान। महात्मा गांधी के सबसे नजदीकी शिष्यों में से एक अब्दुल गफ्फार खान ने भी भारत विभाजन का जोरदार विरोध किया था। जिस तरह से महात्मा गांधी ने कहा था कि मेरी लाश पर ही देश का बंटवारा होगा ठीक उसी प्रकार से अब्दुल गफ्फार खान ने भी बंटवारे से दुखी होकर गांधी जी से कहा था कि “आपने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया।”
खैबर पख्तूनवा से ताल्लुक रखने वाले अब्दुल गफ्फार खान पाकिस्तान के इकलौते निवासी थे जिन्हें साल 1987 में भारतरत्न से सम्मनित किया गया। हैरानी की बात यह है कि आजादी के दीवाने अब्दुल गफ्फार खान को पाकिस्तान सरकार ने न केवल देशद्रोही करार दिया बल्कि तकरीबन 27 वर्षों तक सलाखों के पीछे कैद करके रखा और नजरबंदी के दौरान ही साल 1988 में उनकी मौत भी हो गई। यहां तक कि अब्दुल गफ्फार खान की अंतिम यात्रा में भी दो ब्लास्ट हुए जिनमें तकरीबन 15 लोगों की जानें चली गईं।
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर में पाकिस्तान ने महान स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल गफ्फार खान के साथ इतना बुरा बर्ताव क्यों किया? इस संवेदनशील सवाल का जवाब पाने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
भारत विभाजन के घोर विरोधी थे अब्दुल गफ्फार खान
महात्मा गांधी के सिद्धान्तों तथा अहिंसक संघर्ष से प्रभावित होकर अब्दुल गफ्फार खान ने साल 1929 में ‘खुदाई खिदमतगार’ (भगवान के सेवक) नामक एक अहिंसक संगठन की स्थापना की और जिसके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जोरदार आन्दोलन चलाया।
स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान कई बार जेल की सजा काटने वाले अब्दुल गफ्फार खान भी उन शख्सियतों में से एक थे, जिन्होंने भारत विभाजन का जोरदार विरोध किया था। अब्दुल गफ्फार खान का वह बयान आज भी याद किया जाता है, जब उन्होंने बंटवारे से दुखी होकर गांधीजी से कहा था कि “आपने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया।”
छह फीट चार इंच के लम्बे-चौड़े सीमान्त गांधी को जब लगा कि देश का बंटवारा रोक पाना सम्भव नहीं है तो उन्होंने पाकिस्तान की ही तर्ज पर पश्तूनों के लिए एक अलग देश ‘पख्तूनिस्तान’ की मांग रख दी। लेकिन उनकी किसी से नहीं सुनी, आखिरकार देश का बंटवारा हो गया और उनका पुश्तैनी घर पाकिस्तान में चला गया इसलिए वह पाकिस्तान में ही रहने लगे। बावजूद इसके अब्दुल गफ्फार खान एक मात्र ऐसे पाकिस्तानी थे जिनकी रगों में सिर्फ भारत ही बसा हुआ था। वह आजीवन पाकिस्तान के खिलाफ बोलते और लिखते रहे।
आजादी के बाद अब्दुल गफ्फार खान का भारत आगमन
अब्दुल गफ्फार खान तकरीबन चार बार भारत आए। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के आग्रह पर अपने इलाज के लिए अब्दुल गफ्फार खान साल 1969 में पहली बार भारत आए थे। हवाई अड्डे पर उनकी अगुवानी करने के लिए लोकनायक जयप्रकाश और इंदिरा गांधी दोनों ही एक साथ खड़े थे।
लंबे कद-काठी के बादशाह खान जब हवाई जहाज से बाहर निकले तब उनके हाथ में सफेद रंग की एक गठरी थी, जिसमें उनका कुर्ता-पैजामा था। इंदिरा गांधी ने उस गठरी को जैसे ही लेने की कोशिश की, उन्होंने बड़े शान्त लहजे में कहा- “सिर्फ यही तो बचा है, इसे भी ले लोगी? ”
इतने सुनने के बाद जेपी और इंदिरा गांधी ने अपना सिर झुका लिया, यहां तक कि लोकनायक जयप्रकाश की आंखों से आंसू आने लगे। अब्दुल गफ्फार खान के इन शब्दों से यह साफ झलक रहा था कि वह भारत विभाजन से कितने आहत थे। अब्दुल गफ्फार खान के भारत पहुंचने के तकरीबन एक या दो दिन बाद देश के कई हिस्सों में साम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गए। इसके बाद उन्होंने इन दंगों के खिलाफ तीन दिन के आमरण अनशन की घोषणा की, ऐसा सुनते ही दंगे रूक गए।
इसके बाद अब्दुल गफ्फार खान ने 24 नवंबर, 1969 को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को सम्बोधित किया। संसद के संयुक्त अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “आप गांधी को उसी तरह भुला रहे हैं जैसे आपने गौतम बुद्ध को भुलाया था।”
अब्दुल गफ्फार खान साल 1970 में दूसरी बार भारत आए और 2 साल तक रहकर पूरे देश का भ्रमण किया। इसके बाद साल 1972 में पाकिस्तान लौट गए। अब्दुल गफ्फार खान साल 1981 में अपने इलाज के सिलसिले में तीसरी बार भारत आए। इस दौरान उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ की उपस्थिति का विरोध किया। अब्दुल गफ्फार खान ने इंदिरा गांधी से यह अनुरोध किया कि वो उनकी सोवियत नेता लियोनिद ब्रेज़नेव से बैठक तय करवाएं।
हिन्दू-मुस्लिम एकता के हिमायती रहे अब्दुल गफ्फार खान 1987 ई. में जब चौथी बार भारत आए तब उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया। इस प्रकार अब्दुल गफ्फार खान भारत रत्न का सम्मान पाने वाले इकलौत पाकिस्तानी बन गए।
पाकिस्तान के लिए देशद्रोही थे अब्दुल गफ्फार खान
देश विभाजन के धुर विरोधी अब्दुल गफ्फार खान ने पाकिस्तान में रहते हुए पख्तूनिस्तान की आजादी के लिए लड़ाई आजीवन जारी रखी। हांलाकि अब्दुल गफ्फार खान ने 23 फ़रवरी 1948 को संविधान सभा के सत्र में नए देश पाकिस्तान तथा उसके झंडे के प्रति निष्ठा की शपथ ली।
पाँच मार्च, 1948 को पाकिस्तान की संसद में दिए गए अपने पहले भाषण में अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान ने कहा कि “मैंने भारत विभाजन का विरोध किया था। अब जब विभाजन हो ही चुका है तो फिर लड़ाई की गुंजाइश ही नहीं बनती।” बावजूद इसके कुछ ही महीनों बाद अब्दुल गफ्फार खान को देशद्रोह के आरोप में तीन साल के लिए जेल भेज दिया गया। उन्हें पश्चिम पंजाब की मॉन्टगोमरी जेल में कैद कर रखा गया।
अप्रैल, 1961 में पाकिस्तान के सैनिक शासक अयूब ख़ान ने उन्हें फिर से कैद कर सिंध की जेल में भेज दिया। ऐसे में 1961 तक अब्दुल गफ्फार खान पाकिस्तानी सरकार के लिए एक देशद्रोही, अफगान एजेंट तथा खतरनाक व्यक्ति हो चुके थे। हालात ऐसे हो गए कि अब्दुल गफ्फार खान को पाकिस्तान छोड़कर अफगानिस्तान में शरण लेनी पड़ी।
अफगानिस्तान में रहने के बाद वह कई बार भारत आए, इसके बाद दोबारा पाकिस्तान चले गए। वह पाकिस्तान में रहकर पख्नूस्तिान की आजादी के लिए लड़ाई लड़ते रहे। इस संघर्ष में पाकिस्तान ने न केवल उन्हें देशद्रोही करार दिया बल्कि तकरीबन 27 वर्षों तक सलाखों के पीछे रखा।
इसके अतिरिक्त जिस प्रकार से आजादी के दिनों में ‘पश्तून’ अखबार पर ब्रिटिश हुकूमत ने रोक लगाई थी, ठीक उसी प्रकार से आजादी के बाद पाकिस्तानी सरकार ने अब्दुल गफ्फार खान के ‘पश्तून’ अखबार को एक बार फिर से छपने नहीं दिया गया।
पाकिस्तानी जेलों में कैद अब्दुल गफ्फार खान के बीमार पड़ने पर उनका इलाज तक नहीं कराया जाता था, जिससे उनकी किडनी खराब हो गई। किडनी संक्रमण के चलते अब्दुल गफ्फार खान का पांव सूज जाने के बाद भी जेलर ने उनका समुचित इलाज नहीं करवाया, यहां तक उन्हें लाहौर तथा मांटगुमरी जेल की कालकोठरी में कैद करके रखा गया। लिहाजा किडनी की तकलीफ बढ़ती गई फिर भी जेल प्रशासन ने कभी उनके इलाज पर विशेष ध्यान नहीं दिया।
आखिरकार साल 1988 में पेशावर स्थित उनके घर में ही उन्हें नज़रबंद कर दिया गया जहां 20 जनवरी 1988 की सुबह 6 बजकर 55 मिनट पर स्ट्रोक की वजह से 98वर्षीय अब्दुल गफ्फार ख़ान की मौत हो गई। अब्दुल गफ्फार ख़ान को उनकी अंतिम इच्छानुसार अफ़ग़ानिस्तान के जलालाबाद स्थित उनके घर के अहाते में दफ़नाया गया।
अंहिसा के पुजारी अब्दुल गफ्फार खान की जनाजा यात्रा भी हिंसा की शिकार हो गई। अब्दुल गफ्फार खान की जनाजा यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए, इस दौरान दो ब्लास्ट हुए जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई थी। अब्दुल गफ्फार खान के अंतिम संस्कार के दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल ज़िया-उल-हक़ मौजूद थे।
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