इस स्टोरी में हम आपको भारत के एक ऐसे क्रांतिकारी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बलिदान के आगे भगत सिंह को अपना त्याग तुच्छ नजर आता था। नौजवान भारत सभा से लेकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की सभी कार्रवाईयों में इस भारतीय नौजवान की भूमिका किसी भी क्रान्तिकारी से तनिक भी कमतर नहीं थी।
जी हां, मैं महान क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की बात कर रहा हूं। जब महात्मा गांधी ने अपने लेख ‘द कल्ट ऑफ बम’ के जरिए क्रांतिकारी गतिविधियों की निन्दा की तब चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह की सलाह पर भगवती चरण वोहरा ने 'द फिलॉसफी ऑफ बम' नामक लेख लिखकर अपनी बौद्धिक प्रतिभा का परिचय दिया था। 'द फिलॉसफी ऑफ बम' नामक यह लेख युवाओं में खूब पॉपुलर हुआ था।
ऐतिहासिक लाहौर षडयंत्र केस में जब भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दी जानी थी, इससे पूर्व ही भगवती चरण वोहरा ने भगत सिंह व उनके साथियों को लाहौर जेल से न्यायालय जाते वक्त रास्ते में ही छुड़ाने की योजना बनाई थी। इसके लिए भगवती चरण वोहरा ने रावी नदी के किनारे एक शक्तिशाली बम परीक्षण किया था, लेकिन दुर्भाग्यवश उनके साथ जो खौफनाक हादसा हुआ उसे जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे।
भगत सिंह के निकटस्थ सहयोगी भगवती चरण वोहरा
भारत के क्रान्तिकारी आन्दोलन में भगवती चरण वोहरा और उनकी पत्नी दुर्गा देवी का योगदान अविस्मरणीय है। साल 1926 में भगत सिंह की पहल पर क्रांतिकारी संगठन ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया गया तब भगवती चरण वोहरा को इस संगठन का प्रचार सचिव नियुक्त किया गया। इतना ही नहीं, 1928 ई. में नौजवान भारत सभा का घोषणा-पत्र भी भगवती चरण वोहरा और भगत सिंह ने मिलकर तैयार किया था।
सितंबर 1928 में चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में पुनर्गठित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का प्रचार सचिव भी भगवती चरण वोहरा को ही नियुक्त किया गया। इसके अतिरिक्त जेपी सॉन्डर्स की हत्या (लाहौर षडयंत्र केस) तथा सेंट्रल असेंबली हॉल बम काण्ड में भी भगवती चरण वोहरा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जेपी सॉन्डर्स की हत्या के बाद भगत सिंह ने अंग्रेजों से बचने के लिए भगवती चरण बोहरा की पत्नी दुर्गा देवी (आमजन में दुर्गा भाभी) के साथ वेश बदलकर लाहौर से कलकत्ता तक की यात्रा की थी। 22 दिसंबर, 1928 की सुबह भगवती चरण वोहरा और सुशीला दीदी उन्हें रिसीव करने के लिए कलकत्ता के हावड़ा स्टेशन पहुंचे थे। चूंकि उन दिनों भगवती चरण वर्मा फ़रारी काट रहे थे, इसलिए वह रेलवे कुली वेश में दाढ़ी बढ़ाए तथा घुटनों तक धोती पहने हुए थे। सत्यनारायण शर्मा की किताब 'क्रांतिकारी दुर्गा भाभी' के अनुसार, भगवती चरण वोहरा अपनी पत्नी दुर्गा देवी, 3 वर्षीय बेटे शची और भगत सिंह को देखकर खुशी से गदगद हो उठे। अचानक उनके मुंह निकला- 'दुर्गा तुम्हें आज पहचाना’। लाहौर में तीन-तीन मकानों के साथ ही लाखों की सम्पत्ति और बैंक बैलेंस के मालिक भगवती चरण वोहरा ने देश की आजादी के लिए खुद के साथ ही अपने पत्नी व बच्चे को भी दांव पर लगा दिया।
भगवती चरण वोहरा का लेख 'द फिलॉसफी ऑफ बम'
लाहौर के नेशनल कॉलेज से ग्रेजुएट भगवतीचरण वोहरा ने साल 1929 ई. ब्रिटिश भारत के वायसराय लार्ड इरविन की हत्या करने की जबरदस्त योजना बनाई। इसके लिए 23 दिसम्बर 1929 ई. को दिल्ली-आगरा रेल लाइन पर वायसराय लार्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन उड़ाने के लिए महीनों तैयारी की थी। हांलाकि इस ट्रेन के नीचे बम विस्फोट कराने में तो सफलता मिल गई लेकिन दुर्भाग्यवश इस विस्फोट में पेन्ट्री कार तो उड़ गया लेकिन वायसराय इरविन बाल-बाल बच गया।
इस घटना के बाद महात्मा गांधी ने ‘द कल्ट ऑफ बम’ नामक लेख लिखकर भारतीय क्रांतिकारियों की जमकर निन्दा की। बदले में चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह की सलाह पर भगवती चरण ने 'द फिलॉसफी ऑफ बम' शीर्षक से एक लेख लिखा जो आमजन में काफी लोकप्रिय हुआ।
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इस लेख का मूल सारांश यह था कि “ब्रिटेन ने भारत में हर अपराध किए हैं। अंग्रेजों ने हमें न केवल कंगाल बना दिया है बल्कि हमारा खून भी बहाया है। एक जाति और एक व्यक्ति के रूप में अंग्रेज हमें अपमानित करते हैं। ऐसे में क्या हमसे आपलोग यही उम्मीद करते हैं कि हम यह सब भूल जाएं और उन्हें माफ कर दें? हमें इन अत्याचारियों से न्यायोचित बदला लेना ही होगा। कायरों को समझौता करने दें और शांति के लिए सिर झुकाने दें। हम न हीं दया की भीख मांगते हैं और न ही किसी को माफ करते हैं। हमारा युद्ध जीत या फिर मौत तक जारी रहेगा।”
भगवती चरण वोहरा की हृदय विदारक मौत
ऐतिहासिक लाहौर षडयंत्र कांड में भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु लाहौर जेल में कैद थे। अपने इन क्रांतिकारी साथियों को जेल से निकालने के लिए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने एक योजना बनाई। लाहौर जेल से न्यायालय जाते वक्त एक बम धमाका करके भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को छुड़ाने की योजना थी।
इस खतरनाक कार्रवाई के लिए बेहद शक्तिशाली बमों की जरूरत थी। इसके लिए बम बनाने में माहिर भगवती चरण वोहरा ने लाहौर के कश्मीर बिल्डिंग में कमरा नम्बर 69 किराए पर लिया और अपने लक्ष्य में कामयाब भी हो गए। परन्तु ये शक्तिशाली बम कहीं मौके पर धोखा न दे जाएं इसके लिए भगवती चरण वोहरा ने एक परीक्षण करने का निर्णय लिया।
28 मई 1930 को रावी नदी के किनारे स्थित जंगल में भगवती चरण वोहरा ने बम टेस्ट किया, इस दौरान बम हाथों में ही फट गया था जिससे उनका शरीर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और मृत्यु हो गई। इस घटना में भगवती चरण वोहरा के एक हाथ की सभी उंगलियां नष्ट हो गईं तथा दूसरे हाथ की कलाई से आगे का पूरा हिस्सा उड़ गया। भगवती चरण वोहरा के पेट में बड़ा सा छेद हो चुका था, खून निकल रहा था और आंतें बाहर निकल आई थीं। बम का एक टुकड़ा गुर्दे में घुस चुका था ऐसे में पेशाब लगती पर होती नहीं थी। बावजूद इसके अपनी मौत से कुछ क्षण पहले असहनीय दर्द सहते हुए 26 वर्षीय भगवती चरण बोहरा ने कहा कि “अच्छा हुआ कि जो कुछ भी हुआ, मुझे हुआ अन्यथा किसी और साथी को होता तो मैं भैया (चन्द्रशेखर आजाद) को क्या जवाब देता।”
भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गा देवी को जब इस हृदय विदारक घटना का पता चला तो वह खुलकर रो भी नहीं सकी क्योंकि इससे लोग एकत्र होते और क्रांतिकारियों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती। ब्रिटिश हुकूमत को इस घटना की भनक नहीं लगे इसके लिए अगले दिन भोर में ही चन्द्रशेखर आजाद, यशपाल और अन्य क्रांतिकारी साथी रावी नदी किनारे जंगल में पहुंच गए।
संयोग से भगवती चरण वोहरा के शव को किसी जंगली जानवर ने नुकसान नहीं पहुंचाया था परन्तु खून में बड़ी-बड़ी चींटियां लग चुकी थीं। इन क्रांतिकारियों के पास फावड़ा अथवा कुदाल नहीं था, इसलिए दफना नहीं पाए। शव को जला भी नहीं सकते हैं क्योंकि इससे अंग्रेजी पुलिस का खतरा था। अन्त में कोई रास्ता नहीं देखकर क्रांतिकारियों ने भगवती चरण वोहरा की लाश को एक कपड़े में बाधकर रावी नदी में बहा दिया।
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