भगत सिंह किताबों से इतना ज्यादा प्रेम करते थे कि उन्हें किताबों का पुजारी कहना कुछ ज्यादा ही लाजिमी होगा। द्वारिकदास लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन श्री राजाराम शास्त्री (भगत सिंह के मित्र) अपने संस्मरण में लिखते हैं कि “भगत सिंह 8 अप्रैल 1929 (गिरफ्तारी) से 23 मार्च 1931 (फांसी) के बीच यानि 716 दिनों में 300 किताबों का अध्ययन कर चुके थे।”
तीक्ष्ण बुद्धि के भगत सिंह किताबें पढ़ते वक्त नोट्स बनाते थे और यदि उन्हें कोई लाइन पसन्द आ जाए तो उसे तुरन्त कंठस्थ कर लेते थे। किताबें पढ़ने के बाद अपने क्रांतिकारियों साथियों के बीच उन मुद्दों पर जोरदार बहस भी करते थे।
दिल्ली के सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंकने के बाद उन्होंने कहा था कि ‘बहरों को सुनाने के लिए धमाके की ज़रूरत होती है’। दरअसल यह वाक्य फ्रांसीसी अराजकतावादी वेलिया के थे जिसे भगत सिंह ने लाहौर पुस्तकालय के एक किताब से पढ़ा था। इस किताब को भगत सिंह ने लाइब्रेरी से 69 बार स्वीकृत करवाया था।
ब्रिटिश हुकूमत ने भगत सिंह को जब फांसी दी थी तब वह महज 23 वर्ष 5 महीने और 25 दिन के थे। क्रांतिकारी गतिविधियों के बीच समय निकालकर किताबों का गहन अध्ययन करना भगत सिंह की किताबों के प्रति दीवानगी को दर्शाता है। भगत सिंह किताबों से आखिर किस हद तक प्रेम करते थे, यह जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
किताबों के प्रेमी थे भगत सिंह
शहीद-ए-आजम भगत सिंह असाधारण बुद्धिजीवी थे। अपने समय के कई राजनीतिक नेताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा पढ़े-लिखे थे। बहुत ही गम्भीर अध्ययन था उनका। लाहौर के द्वारकादास पुस्तकालय में भगत सिंह ने समाजवाद, सोवियत संघ और क्रांतिकारी आन्दोलन विशेषकर (रूस, आयरलैण्ड और इटली) से जुड़ी तमाम किताबों का गहराई से अध्ययन किया था। वैसे तो भगत सिंह ज्यादातर राजनीति और अर्थशास्त्र की किताबें ही पढ़ते थे, यदाकदा वह उपन्यास भी पढ़ लिया करते थे।
भगत सिंह ने सुखदेव और अन्य क्रांतिकारी साथियों की मदद से कई अध्ययन केन्द्र स्थापित किए थे और राजनीतिक विषयों पर जोरदार बहस का सिलसिला शुरू किया था। जब हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का कार्यालय आगरा चला गया तो वहां भी भगत सिंह ने एक पुस्तकालय (75 से अधिक लेखकों की तकरीबन 175 किताबें) की स्थापना की और सहयोगियों से समाजवाद व अन्य क्रांतिकारी विचारधाराओं का अध्ययन करने व उन मुद्दों पर बहस करने की सलाह दी।
भगत सिंह की कमीज की जेबों में किताबें भरी रहती थीं, जिन्हें वह बराबर अपने कॉमरेड दोस्तों को पढ़ने के लिए दिया करते थे। गिरफ्तार होने के बाद भगत सिंह ने जेल को विश्वविद्यालय बना दिया। इतना ही नहीं, भगत सिंह के क्रांतिकारी साथियों में सुखदेव, भगवती चरण बोहरा, शिव वर्मा, विजय सिन्हा, यशपाल आदि सभी पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी थे। हांलाकि चन्द्रशेखर आजाद की अंग्रेजी भाषा पर पकड़ बहुत कमजोर थी फिर वह जबतक किसी विचार या विचारधारा को अच्छी तरह से समझ नहीं लेते थे तब तक वह उसे आत्मसात नहीं करते थे।
भगत सिंह जब जेल में कैद थे तब अपने दोस्तों को पत्र लिखकर किताबें मंगाते थे। लाहौर जेल से एक पत्र उन्होंने अपने बचपन के दोस्त जयदेव को लिखी, इस पत्र से ही यह पता चलता है कि भगत सिंह को किताबों से कितना अधिक प्रेम था।
सेन्ट्रल जेल, लाहौर से 24 जुलाई 1930 को भगत सिंह द्वारा जयदेव को लिखे पत्र के मुताबिक, “द्वारकादास पुस्तकालय से मेरे नाम से निम्नलिखित पुस्तकें स्वीकृत करवाकर शनिवार को कुलबीर के हाथों भिजवा देना।”
- मैटीरियेलिज्म, व्हाईट मैन फाइट, सोवियत्स एट वर्क, कोलेप्स आफ सेकिण्ड इंटरनेशनल, लेफ्ट विंग कम्यूनिज्म, म्यूचुअल एण्ड प्रिन्स क्रोपोटकिन, फील्डस-फैक्ट्रीज एण्ड वर्कशाप्स, सिविल वार इन फ्रांस, लैण्ड रिवोल्यूशन इन रशिया, स्पाई।
उन्होंने इसी पत्र में यह भी लिखा है कि यदि हो सके तो मेरे लिए एक और किताब का प्रबन्ध कर देना जिसका नाम है- ‘हिस्टोरिकल मैटीरियेलिज्म’, यह किताब पंजाब पब्लिक लाइब्रेरी से मिल जाएगी। इतना ही नहीं, पुस्तकालय अध्यक्ष से यह भी मालूम करना कि क्या कुछ किताबें बोस्ट्रल जेल गईं हैं? उन्हें किताबों की अत्यन्त आवश्यकता है।
फांसी के वक्त तक पढ़ते रहे किताब
किताबों के गहन अध्ययन और गम्भीर चिन्तन का ही परिणाम था कि भगत सिंह मार्क्सवादी हो चले थे और इस बात में विश्वास करने लगे थे आतंकवाद से नहीं वरन व्यापक जनान्दोलन से ही क्रांति लाई जा सकती है अर्थात् जनता ही जनता के लिए क्रांति कर सकती है।
23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह को फांसी दी गई थी। फांसी से कुछ घंटे पहले उनके वकील प्राणनाथ मेहता को भगत सिंह से मिलने की इजाजत दी गई। प्राणनाथ मेहता ने देखा कि भगत सिंह जेल की कोठरी में कैद शेर की भांति इधर-उधर घूम रहे थे और उन्होंने मेहता को देखकर मुस्कुराते हुए पूछा कि क्या वे व्लादिमीर पुतिन और लेनिन की किताब ‘राज्य और क्रांति’ लेकर आए हैं। भगत सिंह को जैसे ही किताब सौंपी गई उन्होंने इसे पढ़ना शुरू कर दिया।
भगत सिंह के करीबी सहयोगी मन्मथनाथ गुप्ता के मुताबिक, फांसी पर जाने से पहले 23 वर्षीय भगत सिंह 'लेनिन की जीवनी' पढ़ रहे थे। उन्होंने जल्लादों से कहा- “थोड़ा रूको, एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से बात कर रहा है।” भगत सिंह ने कुछ वक्त तक किताब पढ़ना जारी रखा फिर उसे हवा में उछालते हुए कहा कि चलों, चलें। अब आप समझ गए होंगे कि भगत सिंह को किताबों से किस कदर प्रेम था।
भगत सिंह द्वारा लिखी गई किताबें
भगत सिंह ने जेल में चार किताबें लिखी थीं हांलाकि उनकी जेल डायरी के अलावा कुछ भी नहीं बचा है। ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि उनकी लिखी किताबों को आखिर में किसने गायब कर दिया। हैरानी की बात तो यह है कि किताबें पढ़ने और लेख लिखने के अलावा भगत सिंह को अभिनय का भी शौक था। कॉलेज के दिनों में उन्होंने कई नाटकों में अभिनय किया था। ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’ और 'राणा प्रताप जैसे नाटकों में उनकी अभिनय प्रतिभा को सराहा गया।
भगत सिंह की जेल डायरी
भगत सिंह ने लाहौर जेल में अंग्रेजी और उर्दू में एक डायरी लिखी थी। यह डायरी भारतीय मुक्ति संग्राम से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजों में से एक है। भगत सिंह की जेल डायरी नामक किताब में दर्ज हर शब्द देश की आजादी के लिए जीने-मरने का जज्बा पैदा कर देते हैं।
मैं नास्तिक क्यों हूँ?
भगत सिंह की सबसे चर्चित किताब का नाम है- मैं नास्तिक क्यों हूँ? इस किताब को भगत सिंह ने फांसी पर चढ़ने से कुछ दिन पहले ही लिखा था। भगत सिंह की मृत्यु के छह महीने बाद इसे लाहौर के अखबार ‘द पीपुल’ ने प्रकाशित किया था।
टू यंग पॉलिटिकल वर्कर
भगत सिंह ने 2 फरवरी 1931 को कांग्रेस आन्दोलन को लेकर अपने विचार व्यक्त किए थे। टू यंग पॉलिटिकल वर्कर नामक किताब उसी दस्तावेज का एक अंश है।
एन इंट्रोडक्शन ऑफ द ड्रीमलैंड
एन इंट्रोडक्शन ऑफ द ड्रीमलैंड नामक किताब भगत सिंह द्वारा लिखी गई कविताओं का एक संग्रह है जिसे उन्होंने लाला रामसरन दास के कहने पर लिखा था।
लेटर टू माय फादर
शहीदे-आजम भगत सिंह पर जब अंग्रेजी पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या का केस चल रहा था तब उन्होंने जेल से ही अपने पिता सरदार किशन सिंह सन्धू को कई पत्र लिखे थे। ‘लेटर टू माय फादर’ नामक किताब उन्हीं पत्रों का संग्रह है।
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