19वीं शताब्दी के तीसरे और चौथे दशक में बंगाल के बुद्धिजीवियों में एक उग्रवादी प्रवृत्ति का जन्म हुआ। इस आन्दोलन को ‘यंग बंगाल’ आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन के प्रेरणास्रोत एवं जन्मदाता का नाम है हेनरी विवियन डिरोजियो जिन्होंने महज 23 वर्ष की उम्र में ही बंगाल के मेधावी युवाओं को अपना प्रशंसक और अनुयायी बना लिया था। हेनरी विवियन डिरोजियो एक एंग्लो-इंडियन थे जिन्हें भारत से अपार प्रेम था।
हेनरी लुईस विवियन डिरोजियो के पिता के पूर्वज पुर्तगाली थे जबकि उनकी मां अंग्रेज थीं। 18 अप्रैल 1809 को कलकत्ता के जन्मे हेनरी विवियन डिरोजियो के दो भाई और एक बहन थी। हेनरी विवियन डिरोजियो के पिता की कलकत्ता में घरेलू सम्पत्ति थी और वह ‘जे स्कॉट एंड कंपनी’ में नौकरी करते थे। ऐसे में वह अपने बच्चों को एंग्लो शिक्षा देने में सक्षम थे। हेनरी विवियन डिरोजियो को औपचारिक शिक्षा कलकत्ता के डेविड ड्रमंड की धुरुमटोल्ला अकादमी से मिली। हांलाकि हेनरी विवियन डिरोजियो ने 14 वर्ष की उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया और ‘जे स्कॉट एंड कंपनी’ में बतौर क्लर्क नौकरी करने लगे।
हेनरी विवियन डिरोजियो की प्रतिभा आश्चर्यजनक थी, उन्होंने 17वर्ष की उम्र से ही देशभक्तिपूर्ण कविताएं लिखनी शुरू कर दी थी। हेनरी विवियन डिरोजियो 1826 से 1831 तक हिन्दू कॉलेज में प्राध्यापक थे। वे फ्रांस की क्रांति से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने अपने विद्यार्थियों को विवेकपूर्ण और मुक्त ढंग से सोचने, समानता और स्वतंत्रता से प्रेम करने व सत्य की पूजा करने के लिए प्रेरित किया।
हेनरी विवियन डिरोजियो ने अपने अनुयायियों को सभी प्राचीन जर्जर परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों का विरोध करने के लिए प्रेरित किया। वह विधवाओं के उद्धार के पक्ष में थे तथा मूर्ति पूजा और सभी प्रकार की रूढ़िवादिता के कट्टर विरोधी थे। डिरोजियो के अनुयायी पाश्चात्य विचारों से इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्हें परम्परागत हिन्दू संस्कृति में असंख्य दोष नजर आने लगे। इन दोषों से मुक्ति पाने के लिए वे अतीत से पूर्ण रूप से मुक्ति पाना चाहते थे। अत: कट्टर हिन्दुओं को डिरोजियो के ऐसे विचार कत्तई पसन्द नहीं थे, अत: उन्होंने उनका डटकर विरोध किया।
लिहाजा अप्रैल 1831 में हेनरी विवियन डिरोजियो को हिन्दू कॉलेज से निकाल दिया गया। बावजूद इसके डिरोजियो पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और अपने विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए उन्होंने ‘ईस्ट इंडिया’ नामक दैनिक पत्र का सम्पादन करना शुरू कर दिया। दुर्भाग्यवश इसी बीच 26 दिसम्बर 1831 को हेनरी विवियन डिरोजियो की 23 वर्ष 8 महीने की उम्र में हैजे से मृत्यु हो गई।
यंग बंगाल आन्दोलन
हेनरी विवियन डिरोजियो 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धान्तों से प्रभावित थे। इतना ही नहीं उन्होंने इटली के एकीकरण और स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित होकर मैजिनी के संगठन ‘यंग इटली’ के तर्ज पर ‘यंग बंगाल’ आन्दोलन को दिशा दी।
वह वाद-विवाद, लेखन और बौद्धिक संगठनों के जरिए अपने विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने के पक्षधर थे। ऐसे में आत्मिक उन्नति और समाज सुधार के लिए उन्होंने ‘एकेडेमिक एसोसिएशन’ और ‘सोसायटी फॉर द एक्वीजीशन आफ जनरल नॉलेज’ जैसे कई संगठनों की स्थापना की। इसके अलावा उन्होंने ‘एंग्लो-इंडियन हिन्दू एसोसिएशन’, ‘बंगहित सभा’ और ‘डिबेटिंग क्लब’ आदि का गठन किया। ये सभी संगठन देश और समाजहित से जुड़े सभी उपयोगी मुद्दों पर विचार करते थे। हांलाकि हेनरी विवियन डिरोजियो की मृत्यु के साथ ही यह एकेडेमिक एसोसिएशन बिखर गया।
बावजूद इसके डिरोजियो के समर्थकों तथा अनुयायियों ने उनके उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की भरपूर कोशिश की। उनके शिष्यों में कृष्णमोहन बनर्जी, रामगोपाल घोष तथा महेशचन्द्र घोष आदि को काफी ख्याति मिली। एकेडेमिक एसोसिएशन के तर्ज पर ही 1838 में ‘सोसायटी फॉर द एक्वीजीशन आफ जनरल नॉलेज’ की स्थापना हुई थी जिसमें डिरोजियो के अनेक शिष्य शामिल थे। इस संस्था के कई सदस्य आगे चलकर बंगाल के प्रमुख नेता बने।
यंग बंगाल आन्दोलन का केन्द्र बिन्दु ‘हिन्दू कॉलेज’ के विद्यार्थियों ने 1828 से 1843 के बीच तकरीबन आधा दर्जन से ज्यादा पत्र प्रकाशित किए। हिन्दू कॉलेज की ही तरह बम्बई में एलफिंन्स्टन कॉलेज की स्थापना 1843 ई. में हुई और इस कॉलेज के विद्यार्थियों ने भी हिन्दू कॉलेज के विद्यार्थियों का अनुसरण करते हुए यंग बॉम्बे आन्दोलन की शुरूआत की। इस प्रकार भारतीय राजनीति में ‘यंग बंगाल’, ‘यंग बॉम्बे’ तथा ‘यंग मद्रास’ सरीखे आन्दोलनों की शुरूआत हुई। हेनरी विवियन डिरोजियो का ‘यंग बंगाल आन्दोलन’ बौद्धिक युवा वर्ग को अपने साथ जोड़ने में सफल रहा था लेकिन यह आन्दोलन आम जनता को शामिल करने में नाकाम रहा। बावजूद इसके इस आन्दोलन की उपलब्धियों का अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
इस आन्दोलन ने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक मुद्दों पर समाचार पत्रों, पुस्तिकाओं तथा सार्वजनिक संस्थाओं के माध्यम से जनता को शिक्षित करने का पुरजोर प्रयास किया। यंग बंगाल ने जनहित में कई आन्दोलन चलाए जैसे- प्रेस की स्वतंत्रता, जमींदारों के अत्याचारों से किसानों की सुरक्षा, सरकारी सेवाओं में भारतीयों की उच्च वेतनमान पर नियुक्ति आदि। हांलाकि इसके अनुयायियों को अपने उद्देश्यों में कोई ठोस सफलता नहीं मिली लेकिन ‘यंग बंगाल’ आन्दोलन भावी सुधारकों तथा राष्ट्रप्रेमियों के लिए प्रेरणा का एक महान स्रोत बन गया।
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