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Before Newton, this great mathematician of India discovered the law of gravity

न्यूटन से पहले भारत के इस महान गणितज्ञ ने की थी गुरुत्वाकर्षण नियम की खोज

गुरुत्वाकर्षण नियम का सार यही है कि पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचती है। इस सिद्धान्त को खोजने का श्रेय हम सभी इंग्लैंड के महान वैज्ञानिक सर आइज़ैक न्यूटन को देते हैं। परन्तु यह बात जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि सर आइजैक न्यूटन से सैकड़ों वर्ष पहले ही भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री भास्कराचार्य अपनी पहली कृति सिद्धान्त शिरोमणि में गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिख चुके थे।

भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के बारे में जो लिखा है, ऐसा प्रतीत होता है कि वैज्ञानिक न्यूटन ने अपने सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने से पूर्व अवश्य ही भास्कराचार्य के सिद्धान्तों का अध्ययन किया होगा। परन्तु हैरानी की बात यह है कि हम भारतीय ही नहीं अपितु अन्य सभी देशों के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिकगण भास्कराचार्य को नहीं अपितु न्यूटन को ही गुरुत्वाकर्षण नियम का आविष्कारक मानते हैं, ऐसा क्यों? यह महत्वपूर्ण तथ्य जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को अवश्य पढ़ें।

गुरुत्वाकर्षण नियम के खोजकर्ता सर आइज़ैक न्यूटन

इंग्लैंड के महान वैज्ञानिक, गणितज्ञ, ज्योतिष एवं दार्शनिक सर आइज़ैक न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण नियम और गति के सिद्धान्त का खोजकर्ता माना जाता है। आइज़ैक न्यूटन से जुड़ी एक किंवदंती है कि एक दिन वह बगीचे में बैठे हुए थे तभी पेड़ से एक सेब को नीचे गिरते हुए देखा। इसके बाद उनके मन में यह रोचक प्रश्न पैदा हुआ कि आखिर में यह सेब बगल में या ऊपर की ओर गिरने के बजाय सीधे नीचे क्यों गिरा?

फिर क्या था? इस र​हस्यमयी प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उन्होंने शोध करना शुरू कर दिया और साल 1687 में प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांतोंशीर्षक नाम से एक शोध प्रपत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की थी।

सर आइज़ैक न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम के मुताबिक, ब्रह्माण्ड में पदार्थ का कोई भी कण दूसरे को बल के साथ आकर्षित करता है, जो द्रव्यमानों के गुणनफल के बीच प्रत्यक्ष अनुपात और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

महान गणितज्ञ भास्कराचार्य का संक्षिप्त परिचय

भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री भास्कराचार्य का जन्म साल 1114 में आधुनिक पाटन के समीप विज्जडविड नामक गाँव में हुआ था। भास्कराचार्य के पिता का नाम महेश्वराचार्य था जो एक उच्चकोटि के गणितज्ञ थे। अत: भास्कराचार्य की अभिरुचि भी गणित विषय के अध्ययन की ओर जागृत हुई।

महान गणितज्ञ भास्कराचार्य के पुत्र लक्ष्मीधर एवं उनके पौत्र गंगदेव भी उच्च कोटि के गणितज्ञ थे। परन्तु अपने पुत्र और पौत्र के मुकाबले भास्कराचार्य को इतनी ज्यादा प्रसिद्धि मिली कि वह अमर हो गए। भास्कराचार्य ने 36 वर्ष की उम्र में 1150 ई. के आसपास अपने पहले ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणिकी रचना की। सिद्धान्त शिरोमणि की रचना चार खंडों में की गई है, जो खगोल शास्त्र और गणित विषय पर आधारित है।

भास्कराचार्य के द्वितीय ग्रन्थ का नाम लीलावतीहै, इस ग्रन्थ का नामकरण उन्होंने अपनी प्रिय पुत्री लीलावती के नाम पर किया था। हांलाकि 625 श्लोकों से परिपूर्ण ग्रन्थ लीलावती भी सिद्धान्त शिरोमणि का ही एक हिस्सा है।

भास्कराचार्य ने 1163 ई. में खगोल विज्ञान विषयक एक ग्रन्थ करण कुतूहलकी रचना की। इस ग्रन्थ के मुताबिक, “जब चन्द्रमा सूर्य को ढक लेता है तो सूर्य ग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढक लेती है तो चन्द्र ग्रहण होता है भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री भास्कराचार्य 65 वर्ष की उम्र में साल 1179 में परलोकगमन कर गए। 

 सिद्धान्त शिरोमणि में है गुरुत्वाकर्षण नियम का उल्लेख

भारत के महान गणितज्ञ, खगोलशास्त्री भास्कराचार्य ने 36 वर्ष की आयु में 1150 ई. के आसपास अपने पहले ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणिकी रचना की। संस्कृत भाषा में रचित सिद्धान्त शिरोमणिके चार खंड हैं-1-‘लालीवती में मैथमेटिक्स, 2-‘बीजगणित में अल्जेब्रा तथा 3-‘ग्रहगणिताध्याय4-‘गोलाध्याय में खगोलशास्त्र का विवेचन किया गया है।

महान गणितज्ञ भास्कराचार्य कृत सिद्धान्त शिरोमणि के चौथे खंड गोलाध्याय-भुवनकोष-5 व 6 में गुरुत्वाकर्षण नियमों को इस प्रकार से उल्लेखित किया गया है- भूरचला स्वभावतो। यतो विचित्राः खलु वस्तुशक्तयः॥

भास्कराचार्य अपनी कृति सिद्धान्त शिरोमणिके चौथे खंड गोलाध्याय-भुवनकोष-6 में पुन:लिखते हैं-

 आकृष्टिशक्तिश्च महि तय यत्। खष्ठं गुरु स्वभिमुखं स्वशक्त्या ॥

आकृष्यते तत्पततीव भाति। समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे॥

उपरोक्त श्लोकों का अर्थ है कि पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं

क्या कहते हैं भारतीय वैज्ञानिक

पूर्व इसरो चेयरमैन जी माधवन नायर के मुताबिक, आर्यभट्ट एवं भास्कराचार्य जैसे खगोल विज्ञानियों को गुरुत्वाकर्षण बल की जानकारी आइजक न्यूटन से पहले से ही थी। वहीं अमेरिका की साइंस मैगजीन में असोसिएट एडिटर रहे डिक टेरेसी की किताब 'एंसियंट रूट ऑफ मॉडर्न साइंसेस' ( संख्या-7)  के मुताबिक 'न्यूटन से 3400 साल पहले हिंदुओं के ऋग्वेद में यह बताया गया कि पूरा ब्रह्मांड गुरुत्वाकर्षण शक्ति से आपस में जुड़ा है।

बावजूद इसके इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स में पूर्व प्रोफेसर आर.सी कपूर का कहना है कि भास्कराचार्य 'सिद्धांत शिरोमणि' में लिखते हैं कि 'पृथ्वी में खींचने की शक्ति है। पृथ्वी भारी चीजों को आकर्षण के बल पर अपनी तरफ खींचती है, आकर्षण के कारण ही ये सब गिरते प्रतीत होते हैं।

परन्तु यह तथ्य सिर्फ श्लोक तक ही खत्म हो जाती है। इससे आगे कोई अध्ययन नहीं हुआ है जब कि न्यूटन ने प्रयोग कर विस्तार से गुरुत्वाकर्षण नियम प्रस्तुत किया है व इसका मेजरमेन्ट निकाला है। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण नियम को गणितीय रूप में पेश किया है, जिसके आधार हमें सौरमंडल को समझने में मदद मिली। यही वजह है कि हम सब न्यूटन को पढ़ते हैं।

यह सच है कि भारतीय खगोलशास्त्री भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण पर अच्छा काम किया है, लेकिन वह एक सीमा से आगे नहीं बढ़ सके, इसलिए गुरुत्वाकर्षण के लिए हमें न्यूटन को याद करना ही होगा।

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