
इतिहासकारों ने बनारस विद्रोह (16 अगस्त 1781 ई.) को भारतीय इतिहास के पन्नों से तरकीबन अनदेखा ही कर दिया। दरअसल यह स्वर्णिम गाथा ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा राजा चैत सिंह से मनमानी धन वसूली से शुरू होती है। लार्ड मैकॉले लिखता है कि “वारेन हेस्टिंग्स की योजना केवल यह थी कि अधिक से अधिक धन मांगा जाए ताकि राजा को विवश होकर विरोध करना पड़े और इस विरोध को ‘अपराध की संज्ञा’ मानकर उसके समस्त प्रदेश पर कब्जा कर लिया जाए”।
इसी उद्देश्य से ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता (कोलकाता) से बनारस पहुंचते ही गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने राजा चैत सिंह को बन्दी लिया। इसके बाद चैत सिंह के सैनिकों तथा बनारस की जनता ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह के दौरान भयभीत वारेन हेस्टिंग्स को चुनार किले में शरण लेनी पड़ी थी। हांलाकि मौका मिलते ही उसने ताकतवर अंग्रेजी फौज के साथ बनारस पर दोबारा आक्रमण किया परन्तु राजा चैत सिंह भाग गया और उसके स्थान उसके अल्प वयस्क भतीजे महीप नारायण सिंह को राजा बना दिया गया। इसके बाद महीप नारायण सिंह ने 40 लाख रुपए वार्षिक कम्पनी को देना स्वीकार किया। बनारस विद्रोह से जुड़ी यह चर्चित कहावत “घोड़े पर हौदा, हाथी पर जीन, काशी से भागा, वारेन हेस्टीन" का सार जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पड़ें।
राजा चैत सिंह से मनमानी धनवसूली
मराठों तथा मैसूर के युद्ध से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी को अत्यधिक वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ा जिसकी भरपाई के लिए गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने साल 1778 में बनारस के राजा चैत सिंह 5 लाख रुपया युद्ध कर के रूप में मांगा। यही नहीं, साल 1779 में उसने 5 लाख रुपए कर तथा 2 लाख रुपया जुर्माने के रूप में मांगा।
ऐसे में बनारस के राजा चैत सिंह ने साल 1780 में 2 लाख रुपया घूस के रूप में भेजा ताकि उससे अतिरिक्त रुपया न मांगा जाए। वारेन हेस्टिंग्स ने घूस तो हड़प लिया परन्तु उसने 5 लाख रुपए के साथ अतिरिक्त 2000 सैन्य टुकड़ी की मांग की। राजा चैत सिंह ने एक क्षमा-याचना पत्र लिखकर 500 अश्वारोहियों तथा 500 पैदल सैनिकों की एक सेना तैयार करके वारेन हेस्टिंग्स को सूचना दी। बावजूद इसके वारेन हेस्टिंग्स ने इसे अवज्ञा मानते हुए राजा चैत सिंह पर 50 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया और स्वयं एक बड़ी सेना के साथ बनारस की तरफ कूच कर दिया।
वारेन हेस्टिंग्स का बनारस आगमन
गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से जलमार्ग के जरिए बनारस के लिए कूच किया। जब वह बक्सर पहुंचा तब राजा चैत सिंह ने उसकी अगुवानी की और उसके पांव पर अपनी पगड़ी रख दी। फिर भी गवर्नर जनरल हेस्टिंग्स ने राजा चैत सिंह से कहा कि बनारस पहुंचने के बाद ही कोई बातचीत होगी। वारेन हेस्टिंग्स ने 14 अगस्त 1781 को 4 कम्पनी सेना के साथ बनारस की धरती पर कदम रखा। वारेन हेस्टिंग्स की नेतृत्व वाली कम्पनी की सेना ने कबीरचौरा स्थित गोला दीनानाथ के निकट माधोदास सातिया के बाग में पड़ाव डाला।
राजा चैत सिंह को कैद करने की नाकाम कोशिश
वारेन हेस्टिंग्स के बनारस पहुंचते ही औसान सिंह नामक एक शख्स ने उससे मुलाकात की। चूंकि कुछ ही दिन पहले राजा चैत सिंह ने औसान सिंह को अपने दरबार से निकाल दिया था, ऐसे में प्रतिशोधस्वरूप उसने हेस्टिंग्स से मिलकर राजा चैत सिंह की गिरफ्तारी का षड्यंत्र रचा। वारेन हेस्टिंग्स ने राजा चैत सिंह को नीचा दिखाने के लिए औसान सिंह को ‘राजा’ की उपाधि दी। बता दें कि बनारस शहर के औसानगंज मोहल्ले का नाम औसान सिंह के नाम पर ही है।
इस प्रकार गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने 15 अगस्त को 1781 ई. को अपने एक अंग्रेज अफसर मार्कहम के जरिए एक पत्र के साथ राजा चैत सिंह के पास भेजा। इस पत्र में राजा चैत सिंह से मोटी रकम की मांग की गई थी, साथ ही काशी नरेश पर राजसत्ता के दुरूपयोग एवं षड्यंत्र का भी आरोप लगाया गया था।
15 अगस्त 1781 ई. के दिन वारेन हेस्टिंग्स और राजा चैत सिंह के बीच क्रमवार पत्राचार का सिलसिला जारी रहा। आखिरकार वारेन हेस्टिंग्स ने तत्कालीन रेजीडेंट मार्कहम को आदेश दिया कि वह राजा चैतसिंह को 16 अगस्त, 1781 को उनके नगर आवास से गिरफ्तार कर ले।
बनारस की जनता का विद्रोह
राजा चैत सिंह को गिरफ्तार करने की खबर जैसे ही काशीवासियों के बीच पहुंची, 16 अगस्त की आधी रात से ही बंदूक, तलवार, भाला, गड़ासा, कुल्हाड़ी, लाठी-डंडा से लैस राजा चैत सिंह के सैनिक तथा बनारस की जनता शिवाला किले की गलियों में जुट गई। योजना के मुताबिक, अंग्रेज अफसर मार्कहम भोर में ही अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ जब शिवाला किला पहुंचा तो अस्त्र-शस्त्र से लैस राजा के कारिन्दों तथा बनारसी लोगों की संख्या देखकर अचम्भित रह गया।
चूंकि 16 अगस्त को सावन का अंतिम सोमवार था, ऐसे में राजा चैत सिंह प्रत्येक वर्ष की तरह भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने के लिए रामनगर किले से इतर गंगा इस पार छोटे किले शिवाला घाट आए थे। शिवाला घाट के किले में राजा का एक छोटा सा तहसील कार्यालय भी था। राजा चैत सिंह अपनी पूजा से निवृत्त होकर अपने दरबार का काम कामकाज देख रहे थे, तभी अंग्रेज रजीडेन्ट मैकहम की सैन्य टुकड़ी ने उनके दरबार में प्रवेश करने की कोशिश की।
परन्तु राजा के सैनिकों ने उनकी कोशिश नाकाम कर दी। इसके बाद अंग्रेज रेजिडेन्ट ने यह कहकर एक नई चाल चली कि हमारे साथ सैन्य टुकड़ी जरूर आई है परन्तु किले के अन्दर केवल कुछ अंग्रेज अफसर ही जाएंगे। इसक बाद मैकहम ने अपने मातहम चेतराम को एक पत्र देकर कुछ अंग्रेज अफसरों के साथ राजा चैतसिंह के पास भेजा। चेतराम ने अन्दर घुसते ही राजा चैत सिंह पर तगड़ा प्रहार किया तभी बनारस के मशहूर पहलवान नन्हकू सिंह ने अपनी तलवार से चेतराम के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इसके खून सने अंग्रेज अफसर चीख-पुकार के साथ किले से बाहर भागे।
फिर क्या था, किले के बाहर छुपे बनारस के रणबांकुरों ने समझ लिया कि किले के अन्दर मार-काट शुरू हो चुकी है। ऐसे में हर-हर महादेव के नारे के साथ वे सभी अंग्रेजी सेना पर टूट पड़े। इस हमले में कितने बनारसी हताहत हुए इस बात का उल्लेख नहीं मिलता है परन्तु किले के बाहर शिलापट्ट पर अंग्रेजों द्वारा अंकित नामों के अनुसार, तीन अंग्रेज अफसर लेफ्टिनेंट स्टॉकर, लेफ्टिनेंट स्कॉट और लेफ्टिनेंट जार्ज सेम्लास सहित तकरीबन 200 सैनिक मारे गए थे।
कहते हैं, वहां शिवाला घाट किले में मौजूद लोगों ने अपनी पगड़ियों को जोड़कर एक रस्सी का रूप दिया और राजा चैत सिंह को किले के पीछे गंगा घाट पर उतार दिया। जहां पहले से तैयार मल्लाहों ने राजा चैत सिंह को बड़ी तेजी से सुरक्षित गंगापार रामनगर के किले में पहुंचा दिया।
इसी बीच वारेन हेस्टिंग्स को खबर मिली कि राजा के सैनिकों तथा बनारस के रणबांकुरों ने उसके सैन्य पड़ाव की घेराबंदी भी शुरू कर दी। अत: अपने प्राण संकट में जानकर घबराहट में अपना सारा साजो-सामान व रसद वगैरह छोड़कर भयभीत वारेन हेस्टिंग्स ने महिला वेष धारण किया और एक पर्देदार पालकी में बैठकर चुनार किले की तरफ रूख किया। पालकी ढोने वाले से कहा गया था कि “बीबी जी देवी दर्शन के लिए विंध्याचल जा रही हैं”।
इस प्रकार ब्रिटिश भारत के पहले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने अपने कुछ घायल गोरे सैनिकों के साथ भागकर चुनार किले में शरण ली। वारेन हेस्टिंग्स के भागते ही बनारस के लोगों में ये पंक्तियां मशूहर हो गईं- "घोड़े पर हौदा, हाथी पर जीन, काशी से भागा, वारेन हेस्टीन।"
वारेन हेस्टिंग्स का बनारस पर दोबारा हमला
बनारस के विद्रोह की यह खबर अवध के गांवों-गांवों तक जा पहुंची। वहीं चुनार किले में बैठे वारेन हेस्टिंग्स उचित अवसर की तलाश में था और उसने शीघ्र ही दोगुनी ब्रिटिश फौज के साथ बनारस पर हमला किया। इस बार ब्रिटिश सेना के समक्ष राजा की सेना को मुंह की खानी पड़ी। अंत में राजा चैत सिंह ने रामनगर किले से गंगा में छंलाग लगा दी और नाव के जरिए इलाहाबाद होते हुए रीवां के रास्ते ग्वालियर पहुंचे जहां महादजी सिन्धियां ने उन्हें शरण दी। इसके बाद राजा चैत सिंह कभी बनारस नहीं लौट पाए। 30 साल तक निर्वासित जीवन व्यतीत करने के बाद 29 मार्च 1810 को ग्वालियर में ही राजा चैत सिंह की मृत्यु हो गई, जहां उनकी छतरी अभी भी मौजूद है।
धन की इच्छा लिए वारेन हेस्टिंग्स ने रामनगर किले में प्रवेश तो किया लेकिन उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। कुछ धन राजा चैत सिंह अपने साथ लेकर भाग गया था, बाकी सेनाओं ने लूट लिया। अत: कम्पनी को बनारस अभियान में केवल व्यय ही करना पड़ा। आखिर में वारेन हेस्टिंग्स ने 14 सितंबर 1781 को राजा चैत सिंह के अल्पवयस्क भतीजे महीप नारायण सिंह को राजा नियुक्त कर दिया। राजा चैत सिंह की बहन राजकुमारी पद्मा कुंवर के बेटे थे महीप नारायण सिंह। महीप नारायण सिंह ने 40 लाख रुपए वार्षिक कम्पनी को देना स्वीकार कर लिया। इसी के साथ बनारस विद्रोह का अंत हो गया।
गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स धन के मामले में क्लाइव के समान ही लालची था। उसने बनारस के राजा चैत सिंह से 2 लाख रुपए तथा अवध के नवाब से 10 लाख रुपए घूस लिए थे। इतिहासकार पैन्डरल मून के मुताबिक, “वारेन हेस्टिंग्स ने 30 लाख रुपए घूस ली अथवा उपहार प्राप्त किए”। एडमंड बर्क ने वारेन हेस्टिंग्स को ‘अन्याय का मुखिया’ कहा है।
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