
भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोतों से हमें विष कन्याओं के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि किसी भी शक्तिशाली राजा को प्रत्यक्ष रूप से पराजित करने में अक्षम शत्रु उसकी हत्या करने के लिए अत्यंत सुन्दर युवती के रूप में विष कन्या का इस्तेमाल करता था। विष कन्याओं को कैसे तैयार किया जाता था, उन्हें किस प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता था? क्या किसी भी सुन्दर युवती को विष कन्या के रूप में परिवर्तित किया जा सकता था? इस स्टोरी में हम आपको इन सभी रोचक प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।
विष कन्या से तात्पर्य
किसी भी शक्तिशाली राजा की प्रत्यक्ष रूप से हत्या करने में अक्षम शत्रु विष कन्या रूपी हथियार का इस्तेमाल करते थे। इस कार्य के लिए अत्यंत सुन्दर कन्याओं को बचपन से अल्प मात्रा में विष देकर तैयार किया जाता था। इसके बाद धीरे-धीरे जहर की मात्रा बढ़ाई जाती थी। युवावस्था में इन रूपवती विष कन्याओं को नृत्य-संगीत तथा श्रृंगार कला के अतिरिक्त छल विद्या में भी माहिर बनाया जाता था ताकि वे अपने शत्रु को मौत के घाट उतार सकें।
छल तथा काम विद्या में निपुण इन रूपवती विष कन्याओं का इस्तेमाल राजा अपने शत्रु को मारने अथवा गुप्त भेद निकलवाने के लिए करता था। जो भी शख्स इन विष कन्याओं के रूप लावण्य में फंसकर इनसे यौन सम्पर्क करता था, उसकी मृत्यु सुनिश्चित थी। ऐसा भी जिक्र आता है कि विष कन्याएं शत्रु को सबसे पहले अपने रूपजाल में फंसाती थीं, इसके बाद उसे जहरीली शराब पिलाकर मार देती थीं। शराब को जहरीला बनाने के लिए विष कन्याएं पहले उसी प्याली से एक घूंट शराब पी लेती थीं। कुछ लोगों की मान्यता है कि विष कन्याएं चुंबन के जरिए भी लोगों को मौत के घाट उतार देती थीं, परन्तु केवल स्पर्श मात्र से किसी की मृत्यु होना यह केवल एक मिथक मात्र है।
विष कन्याओं से जुड़े साहित्यिक स्रोत- भारत के साहित्यिक स्रोतों में पुराणों, आयुर्वेदिक ग्रन्थों, प्राचीन तथा मध्यकालीन इतिहास की प्रमाणिक पुस्तकों के अतिरिक्त लोक साहित्य में भी विष कन्याओं का उल्लेख मिलता है। जिसका वर्णन निम्नलिखित है-
संस्कृत साहित्य
चौथी शती के उत्तरार्द्ध तथा पांचवी शती के पूर्वार्द्ध में विशाखदत्त द्वारा रचित विख्यात संस्कृत नाटक ‘मुद्राराक्षस’ में विष कन्या का उल्लेख मिलता है। महाकवि सोमदेव रचित ‘कथासरित्सागर’ के अतिरिक्त एक अन्य संस्कृत ग्रन्थ ‘शुभवाहुउत्तरी’ में भी कामसुन्दरी नामक एक राजकन्या को विषकन्या के रूप में दिखाया गया है। इतना ही नहीं ‘शुकसप्तति’ नामक संस्कृत ग्रंथ में भी विष कन्या को एक ऐसे पात्र रूप में वर्णित किया गया है जो जहरीली शराब के जरिए अपने शत्रु का नाश करती है।
स्कन्द पुराण तथा कल्कि पुराण
भगवान शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय) द्वारा कथित होने के कारण इसका नाम स्कन्द पुराण है। स्कन्द पुराण में शिव की महिमा, सती-चरित्र, शिव-पार्वती-विवाह, कार्तिकेय-जन्म, तारकासुर-वध आदि के अतिरिक्त धर्म, सदाचार, योग, ज्ञान तथा भक्ति आदि का मनोहर वर्णन किया गया है। स्कन्द पुराण के एक प्रसंग में यह कहा गया है कि “चित्रा नक्षत्र में सूर्य या चौदहवें चंद्र दिवस पर जो कन्या जन्म लेती है, विष कन्या बनती है। विवाह के छह महीने बाद ही इस कन्या के पति की मृत्यु हो जाती है। ऐसी कन्याएं जिस घर में रहती हैं, उसका स्वामी धनहीन हो जाता है। यह कन्याएं परिवार के लिए भी दुख का कारण बनती हैं।”
हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार, भगवान विष्णु के सम्भावित अवतार कल्कि को आधार मानकर ‘कल्कि पुराण’ की रचना की गई है। बता दें कि कल्कि पुराण की गिनती 18 पुराणों में नहीं की जाती है बल्कि इसे एक उपपुराण अथवा द्वितीयक पुराण माना जाता है। कल्कि पुराण का रचनाकाल 1500 से 1700 ई. के बीच माना जाता है। कल्कि पुराण में चित्रग्रीवा नामक गन्धर्व की पत्नी सुलोचना को विषकन्या के रूप में वर्णित किया गया है जो किसी भी इन्सान को स्पर्श मात्र से मौत के गर्त में पहुंचा सकती थी।
आयुर्वेदिक ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’
सुश्रुत संहिता के रचनाकार सुश्रुत का जन्म कहां हुआ था, इसकी सटीक जानकारी नहीं मिलती है। महाभारत में एक जगह उल्लेख मिलता है कि सुश्रुत विश्वामित्र के पुत्र थे। वहीं सुश्रुत संहिता से पता चलता है कि सुश्रुत काशीराज धनवंतरि दिवोदास के शिष्य थे। यदि सुश्रुत संहिता की बात की जाए तो इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह भारत के आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान का एक अनमोल खजाना है।
आयुर्वेद के महान शल्य चिकित्सक सुश्रुत ने भी अपने विख्यात ग्रन्थ ‘सुश्रुत संहिता’ में विष कन्याओं का उल्लेख किया है। सुश्रुत संहिता के अनुसार, “विष कन्या के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने अथवा चुम्बन आदि करने पर भी पुरुष के शरीर में ज़हर फैल जाता है। जितना हो सके विष कन्या से दूर ही रहना चाहिए। यदि किसी युवती के शरीर पर बैठी मक्खी अथवा जूं आदि उसे स्पर्श करते ही मर जाते हैं, तो यही विष कन्या की पहचान है। इतना ही नहीं फूल और कलियाँ उसके सिर के संपर्क में आते ही मुरझा जाती हैं।”
चाणक्य कृत अर्थशास्त्र
भारत के महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु तथा प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य द्वारा लिखित ग्रन्थ ‘अर्थशास्त्र’ में भी विष कन्याओं का उल्लेख मिलता है। इस ग्रन्थ के मुताबिक, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की हत्या करने के लिए नंद वंश के राजा धनानंद के मंत्री अमात्यराक्षस ने एक विष कन्या को भेजा था जिससे गलती से पर्वत्तक की मृत्यु हो गई थी।
ऐसा कहा जाता है कि आचार्य चाणक्य ने जैसे ही उस विष कन्या को देखा तो उन्होंने पर्वत्तक से कहा कि इस रूपवती स्त्री को आप स्वीकार करें, दरअसल पर्वत्तक चंद्रगुप्त मौर्य की टक्कर का था। इस प्रकार पर्वत्तक ने जैसे ही उस विष कन्या को स्पर्श किया, विषकन्या के हाथ में लगे पसीने से ही उसके शरीर में जहर फैल गया और अन्तत: उसकी मौत हो गई। प्राचीन भारत के ऐतिहासिक स्रोतों से यह भी जानकारी मिलती है कि नंद वंश के संस्थापक महापद्म नंद ने शिशुनाग वंश के अंतिम शासक कालाशोक को मारने के लिए भी विष कन्या का ही इस्तेमाल किया था।
विष पुरुष था गुजरात का सुल्तान महमूद बेगड़ा
अबुल फत नासिर-उद-दीन महमूद शाह प्रथम उर्फ महमूद बेगड़ा गुजरात का छठवां सुल्तान था। 25 मई 1458 से 23 नवंबर 1511 तक गुजरात पर शासन करने वाला महमूद बेगड़ा महज 13 वर्ष की उम्र में सुल्तान बना। इतिहास में यह सुल्तान ‘विष पुरुष’ कहा जाता था। दरअसल महमूद बेगड़ा के पिता ने कम उम्र से ही उसे विष पिलाना शुरू कर दिया था ताकि शत्रु उस पर विष का प्रयोग कर उसे नुकसान न पहुंचा सके। विदेशी यात्री बारबोसा लिखता है कि “जो भी युवती सुल्तान महमूद बेगड़ा के सम्पर्क में आती उसकी मृत्यु सुनिश्चित थी। बारबोसा ने इस बात का भी जिक्र किया है कि बचपन से ही विष का सेवन करने के कारण उसका शरीर इतना विषैला हो चुका था कि यदि कोई मक्खी उसके हाथ पर बैठती थी तो बैठते ही फूलकर मर जाती थी। जाहिर सी बात है, जिस प्रकार शत्रुओं से रक्षा के लिए गुजराज के सुल्तान महमूद बेगड़ा के पिता ने उसे बचपन से ही जहर देकर ‘विष पुरुष’ बना दिया ताकि उस पर जहर न काम करे। ठीक वैसे ही युवतियों को भी ‘विष कन्या’ बनाया जाता था।
विख्यात उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता’
महान साहित्यकार देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित उपन्यास ‘चन्द्रकांता’ का पहला प्रकाशन साल 1888 में हुआ जो सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ था। यह उपन्यास प्रेम, जादू-टोना, युद्ध, अय्यारी-तिलिस्म तथा विष कन्याओं के कथानक से परिपूर्ण है। चन्द्रकांता नामक इस उपन्यास में चुनारगढ़ के शासक शिवदत्त को विष पुरुष तथा उनकी सहयोगी परिचारिकाओं को विष कन्याओं के रूप में वर्णित किया गया है। गौरतलब है कि उपरोक्त साहित्यिक स्रोतों के अतिरिक्त अनेक हिन्दी फिल्मों, वेबसीरीज तथा धारावाहिकों में भी विष कन्या को मुख्य पात्र के रूप में दिखाया गया है।
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