मध्यकालीन इतिहास में मुगल बादशाह औरंगजेब की छवि एक ऐसे धर्मान्ध और क्रूर शासक की है जो भारतीय जनमानस में अपनी जगह बनाने में नाकामयाब रहा। बादशाहत के लिए पिता शाहजहां को आगरा के किले में कैद करने के साथ ही अपने सभी भाईयों की बेरहमी से हत्या कराने वाले औरंगजेब को भी दो बार इश्क हुआ था और वह इसमें नाकाम रहा। यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि खुद के इश्क में नाकाम रह चुके इसी औरंगजेब ने अपनी छोटी बहन रोशनआरा बेगम के प्रेमी को लाल किले की दीवार से नीचे फेंकवा दिया था। ऐसे में औरंगजेब के नाकाम इश्क और औरंगजेब की खूबसूरत बहन रोशनआरा के अनाम प्रेमी के पकड़े जाने की रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
नर्तकी हीराबाई से इश्क कर बैठा था औरंगजेब
शहजादे औरंगजेब को जब दक्कन का गवर्नर बनाया गया तब उसकी उम्र 35 वर्ष थी। ऐसे में औरंगजेब जब पद ग्रहण करने के लिए औरंगाबाद जाने लगा तब उसने बुरहानपुर (वर्तमान में मध्य प्रदेश) का रास्ता चुना। इतिहासकार कैथरीन ब्राउन के एक लेख 'डिड औरंगज़ेब बैन म्यूज़िक? के मुताबिक, औरंगजेब अपनी मौसी सुहेला बानो से मिलने बुरहानपुर पहुंचा जहां उसने एक खूबसूरत महिला को पेड़ से आम तोड़ते देखा और वह पहली नजर में ही उसके इश्क में गिरफ्तार हो गया। उस महिला का नाम हीराबाई जैनाबादी था जो कि औरंगजेब के मौसा मीर खलील के हरम की एक बेहतरीन गायिका और नर्तकी थी। कहते हैं, हीराबाई को पाने के लिए औरंगजेब ने अपने मौसा मीर खलील को एक दूसरी दासी दी थी।
मीर खलील को बाद में औरंगजेब ने खानदेश का सूबेदार भी बनाया था। मीर खलील की खूबसूरत नर्तकी हीराबाई को औरंगजेब अपने साथ औरंगाबाद लेकर चला गया। दक्कन के शासन-प्रशासन के अलावा औरंगजेब सिर्फ हीराबाई के साथ ही वक्त गुजारता था। ‘अहकाम’ के लेखक के अनुसार, “एक बार हीराबाई ने औरंगेजब से अपने इश्क की परीक्षा लेने के लिए मदिरा का प्याला उसके हाथ में थमा दिया था जिसे पीने के लिए औरंगजेब तैयार भी हो गया परन्तु हीराबाई ने उसे ऐसा करने से रोक लिया। यह खबर मुगल बादशाह शाहजहां तक भी पहुंची। औरंगजेब और हीराबाई का इश्क अभी परवान चढ़ा ही था परन्तु सालभर के अन्दर (1654 ई. में) हीराबाई की मौत के साथ ही इस प्रेम कहानी का अंत हो गया। इसके बाद औरंगजेब ने अपनी माशूका हीराबाई को औरंगाबाद में ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ दफनाया।
नर्तकी राना-ए-दिल से एकतरफा इश्क करता था औंरगजेब
दारा शिकोह की हत्या के बाद उसकी हिन्दू पत्नी राना-ए-दिल को औरंगजेब बेइंतहा इश्क करने लगा था। हेरंब चतुर्वेदी अपनी किताब ‘दो सुल्तान, दो बादशाह और उनका प्रणय परिवेश’ में लिखते हैं कि “दारा शिकोह की मौत के बाद औरंगजेब उसकी पत्नी राना-ए-दिल को दिलोजान से चाहने लगा था। राना-ए-दिल से शादी करने के लिए औरंगजेब ने कई प्रेम प्रस्ताव भिजवाए परन्तु उसे हर बार नाकामी ही मिली।
दरअसल शाहजहां के दरबार में नृत्य करने वाली राना-ए-दिल को देखते ही दारा शिकोह भी उसके इश्क में गिरफ्तार हो चुका था। सबसे खास बात यह है कि पहली पत्नी नादिर बेगम के रहते ही दारा शिकोह को राना-ए-दिल से इश्क हुआ था। पत्नी बनने से पहले दारा शिकोह के कई प्रणय निवेदनों को ठुकराने वाली राना-ए-दिल के बारे में मुगल दरबारी यह कहने लगे थे कि शहजादे की मति मारी गई है क्योंकि दारा शिकोह ने उसके लिए पढ़ाई-लिखाई, अध्ययन और दरबारी कामकाज से भी खुद को अलग कर लिया था। आखिरकार निकाह करने की शर्त पर राना-ए-दिल ने दारा शिकोह की मोहब्बत कुबूल की थी। निष्कर्षतया दारा शिकोह की बेवा राना-ए-दिल से एकतरफा मोहब्बत करने वाले औरंगजेब को इस बार भी अपने इश्क में नाकामी ही मिली।
गायिका उदयपुरी महल और औरंगजेब
दारा शिकोह की एक अन्य उप पत्नी का नाम उदयपुरी महल था। इतिहास के पन्नों पर दर्ज उदयपुरी महल मुगल दरबार की एक बेहतरीन गायिका थी। दारा शिकोह की हत्या के बाद उसकी बेवा पत्नी उदयपुरी महल को औरंगजेब ने अपने हरम में शामिल होने का आदेश दिया जिसे उदयपुरी महल ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके बाद वह औरंगजेब की बीवी बनकर आजीवन चैन और सुख से रही। औरंगजेब के सबसे छोटे बेटे कामबख़्श की मां उदयपुरी ने औरंगजेब के निधन तक उसका साथ निभाया। कामबख्श को एक पत्र में औरंगजेब ने लिखा कि “उनकी बीमारी में उदयपुरी उनके साथ रह रही हैं और उनकी मौत में भी उनके साथ होंगी।” यह सच भी हुआ, औरंगजेब के निधन के कुछ ही महीनों बाद उदयपुरी की मृत्यु हो गई।
औरंगजेब की बहन रोशनआरा के प्रेमी की हत्या
यह घटना उन दिनों की है, जब उत्तराधिकार के युद्ध में शाहजहां की बड़ी बेटी जहांआरा ने दाराशिकोह का साथ दिया था। वहीं छोटी बेटी रोशनआरा ने औरंगजेब का साथ दिया था। रोशनआरा बेगम न केवल एक खूबसूरत महिला थी बल्कि राजनीतिक रूप से भी प्रभावशाली थी। परन्तु उत्तराधिकार युद्ध जीतने के बाद औरंगजेब जब बादशाह बना तब उसने रोशनआरा की जगह जहांआरा को ‘पादशाह बेगम’ की उपाधि दी तथा हरम की जिम्मेदारी भी जहांआरा को सौंप दी।
बादशाह बनने के बाद औरंगजेब ने जहां एक तरफ जहांआरा को लाल किले के बाहर एक हवेली भी दी थी वहीं खूबसूरत रोशनआरा को हरम से बाहर निकलने की अनुमति तक नहीं थी। इस बारे में इतिहासकार इरा मुखौटी का कहना है कि ऐसा प्रतीत होता है कि “बादशाह औरंगजेब को अपनी छोटी बहन रोशनआरा पर विश्वास नहीं था। सम्भव है, रोशनआरा बेगम के कुछ प्रेमियों की भनक औरंगजेब को लग चुकी थी”। चर्चित किताब ‘रेड फोर्ट आफ शाहजहानाबाद : आर्किटेक्चरल हिस्ट्री’ के लेखक अनिशा शेखर मुखर्जी लिखते हैं कि “औरंगजेब का सन्देह सही निकला, रोशनआरा का प्रेमी तमाम सुरक्षा व्यवस्था को चकमा देते हुए रात के अंधेरे में ही लाल किले में दाखिल हो गया था।”
जानकारी के लिए बता दें कि केवल औरंगजेब ही नहीं वरन पूरे मुगल शासनकाल में बादशाह और चिकित्सक के सिवाय हरम में किसी भी गैर मर्द को प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी। हरम में किसी गैर मर्द के पकड़े जाने पर उसे कठोर दण्ड दिया जाता था। हरम के बाहर पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम होता था तथा हरम के अन्दर महिलाओं के सुरक्षा की जिम्मेदारी किन्नरों के पास होती थी। बावजूद इसके एक साहसी युवक रात के अन्धेरे में हरम में प्रवेश कर गया और रोशनआरा बेगम के पास पहुंच भी गया। रोशनआरा बेगम ने उस युवक को कई दिनों तक अपने पास रखा परन्तु जब उसे लगा कि वह युवक अब पकड़ा जाएगा। तब उसे हरम से सुरक्षित बाहर निकालने का इंतजाम किया गया।
इस प्रकार रोशनआरा की कनीजों ने उस युवक को रात के अंधेरे में ही हरम से बाहर निकालने का पूरा प्रयास किया किन्तु स्वयं के पकड़े जाने के डर से उसे हरम की चारदीवारी में ही छोड़कर भाग गईं। वह युवक पूरी रात भटकता रहा तथा सुबह होने तक हरम परिसर के बाहर नहीं निकल पाया। इसी बीच मुगल सैनिकों ने उसे धर दबोचा और औरंगजेब के सामने पेश किया। बार-बार सवाल पूछे जाने पर उस युवक ने कहा कि वह नदी किनारे बने किले की ऊँची दीवारों पर चढ़कर शाही कक्ष में गया था। परन्तु औरंगजेब को विश्वास नहीं हुआ, उसने उसी रास्ते से उस युवक को उतरने का आदेश दिया। इसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने उस युवक को लाल किले की साठ फीट ऊँची दीवार से नीचे फेंक दिया। जाहिर है, लाल किले की इतनी ऊँची दीवारों से फेंके जाने के बाद कोई भी जिन्दा नहीं बच सकता है।
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