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Aurangzeb had given cruel torture to Sambhaji Maharaj, soul will tremble after reading the story

औरंगजेब ने सम्भाजी महाराज को दी थी क्रूर यातनाएं, स्टोरी पढ़कर कांप जाएगी रूह

मराठी इतिहास में छावा और शम्भूराजेके नाम से विख्यात सम्भाजी महाराज बचपन से ही अपने आक्रामक तेवर के लिए जाने जाते थे, इसीलिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने उन्हें पन्हाला के किले में कैद कर रखा था। संयोगवश जब छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु (3 अप्रैल 1680 ई.) हुई, उस दौरान सम्भाजी महाराज पन्हाला किले में ही कैद थे। परन्तु सम्भाजी महाराज ने मराठा सेनापति हम्मीरराव मोहिते की मदद से स्वयं को पन्हाला किले से मुक्त करा लिया और रायगढ़ किले को अपने अधीन कर लिया। तत्पश्चात सम्भाजी ने अपने सौतेले भाई राजाराम, उसकी मां सोयराबाई, पुराने पेशवा, सचिव, सुमन्त आदि को कारागार में डाल दिया। इसके बाद 20 जुलाई 1680 ई. को सम्भाजी महाराज छत्रपति के रूप में मराठा सिंहासन पर आरूढ़ हुए। छत्रपति बनने के एक साल बाद सम्भाजी महाराज ने सोयराबाई को फांसी की सजा सुनाई।

9 वर्ष के अपने अल्प शासनकाल में 120 युद्धों में अपराजेय रहने वाले योद्धा सम्भाजी महाराज का सामना इस बार एक ऐसे शत्रु से था, जिसके पास 3 लाख की विशाल फौज थी और जो पूरे हिन्दुस्तान का बादशाह था। जी हां, मैं मुगल बादशाह औरंगजेब की बात कर रहा हूं, जिसने दक्कन में अपना डेरा डाल रखा था।

सम्भाजी महाराज ने अपने शासन के शुरूआती दिनों में ही औरंगजेब को सीधी चुनौती देनी शुरू कर दी। मुगल सेना और मराठों के बीच कई भयंकर युद्ध हुए, आखिरकार औरंगजेब साल 1687 में सम्भाजी महाराज को कैद करने में सफल हो गया। औरंगेजब के आदेश पर सम्भाजी महाराज को 40 दिनों तक कठोर मानसिक एवं शारीरिक यातनाएं दी गई। अंत में सम्भाजी महाराज की निर्मम हत्या कर दी गई। मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर सम्भाजी महाराज को जो क्रूर यातनाएं दी गईं, उसे जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को अवश्य पढ़ें।

सम्भाजी महाराज का बुरहानपुर पर हमला

सम्भाजी महाराज ने अपने शासन के शुरूआती दिनों में ही मुगलों के शहर बुरहानपुर पर आक्रमण कर उसे बर्बाद करके रख दिया। यहां तक कि शहर की सुरक्षा में तैनात मुगल सेना को तहस-नहस कर दिया। इतना ही नहीं, सम्भाजी महाराज ने मुगल बादशाह औरंगजेब के एक विद्रोही बेटे अकबर को अपने यहां शरण एवं सुरक्षा प्रदान की। इसी दौरान सम्भाजी महाराज ने अकबर की बहन जीनत को एक पत्र लिखा। संयोग से वह पत्र औरंगजेब के शुभचिन्तकों के हाथ लग गया जिसे भरे दरबार में औरंगजेब को पढ़कर सुनाया गया।

सम्भाजी द्वारा लिखे गए पत्र का सारांश कुछ इस प्रकार था- “बादशाह सलामत केवल मुसलमानों के नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी धर्मों के हैं। जिस सोच के साथ वे दक्कन आए थे, वह मकसद पूरा हो चुका है अत: उन्हें दिल्ली लौट जाना चाहिए। एक बार मैं और मेरे पिता उनके कब्जे से छूटकर दिखा चुके हैं। अगर वे यूं ही जिद पर अड़े रहे तो हमारे कब्जे से छूटकर दिल्ली नहीं जा पाएंगे। यदि उनकी यही इच्छा है तो उन्हें दक्कन में ही अपनी कब्र ढूंढ़ लेनी चाहिए सम्भाजी महाराज की इस हरकत से मुगल बादशाह औरंगजेब बौखला उठा और उसने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा विजय के पश्चात छत्रपति सम्भाजी महाराज के विरूद्ध 3 लाख की मुगल सेना के साथ अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी।

मुगल सेना और मराठों में भयंकर युद्ध

साल 1687 में मुगल सेना तथा मराठों के बीच हुए भयंकर युद्ध में सम्भाजी महाराज ने विजयश्री हासिल की परन्तु उनके विश्वासपात्र सेनापति हम्बीरराव मोहिते की मृत्यु हो गई। यद्यपि सम्भाजी महाराज ने भी अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह औरंगजेब को दक्कन में मराठों के विरूद्ध जीत हासिल करने का बहुत अधिक मौका नहीं दिया। बावजूद इसके औरंगजेब ने मराठा छत्रपति सम्भाजी महाराज के विरूद्ध एक सशक्त कार्रवाई करने का निर्णय ले रखा था।

लिहाजा साल 1689 में सम्भाजी महाराज रत्नागिरी के संगमेश्वर में एक बैठक के लिए पहुंचे थे, तभी वहां पहले से ही घात लगाए मुगल सरदार मुकर्रब खान की अगुवाई वाली सेना ने सम्भाजी महाराज पर हमला कर दिया। इस तात्कालिक आक्रमण में सम्भाजी महाराज के सभी सरदार मारे गए तथा सम्भाजी महाराज और उनके मंत्री कवि कलश को कैद कर लिया गया।

कैदी सम्भाजी महाराज को दी गई क्रूर यातनाएं

छत्रपति सम्भाजी महाराज और उनके मंत्री कवि कलश को कैदकर बहादुरगढ़ के मुगल शिविर में लाया गया। इसके बाद इन दोनों को 40 दिनों तक जिस प्रकार से कठोर मानसिक एवं शारीरिक यातनाएं दी गई, उसे जानकर आपकी रूह कांप जाएगी। 

विश्वास पाटिल लिखते हैं कि कवि कलश और सम्भाजी महाराज को विदूषक (जोकर) के कपड़े पहनाए गए और औरंगजेब के आदेश पर लोहे की सलाखों में बांधकर पूरे शहर में उनकी परेड कराई गई। वह आगे लिखते हैं कि सोने के सिंहासन पर बैठने वाले सम्भाजी महाराज को दुबले-पतले ऊँट पर बैठाया गया तथा उनके सिर पर अपराधियों वाली लकड़ी की टोपी पहनाई गई।

इतना ही नहीं, सम्भाजी महराज के हाथ और गर्दन को लकड़ी के तख्ते में कुछ इस कदर जकड़ दिया गया था ताकि वे इधर-उधर न देख सकें। जैसे ही सम्भाजी महाराज का जुलूस दीवान--खास पहुंचा, मारे खुशी के औरंगजेब अपना सिंहासन छोड़कर खड़ा हो गया।

प्रख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार लिखते हैं कि सम्भाजी को बंदी के रूप में अपने सामने आते देख, मुग़ल बादशाह औरंगजेब सज्दे में ज़मीन पर झुक गया।" कहते हैं,मुगल बादशाह औरंगजेब ने घुटनों के बल बैठकर सबसे पहले अल्लाह को धन्यवाद दिया।

सबसे पहले सम्भाजी महाराज को औरंगजेब के सामने सिर झुकाने के लिए कहा गया परन्तु उन्होंने ऐसा करने से इन्कार करते हुए औरंगज़ेब को घूरना शुरू दिया। इसके बाद औरंगजेब ने सम्भाजी महाराज से अपने सभी किले सौंपने के साथ ही ही छुपे हुए खजानों का खुलासा करने एवं मराठों के साथ काम करने वाले मुगल अफसरों के नाम उजागर करने को कहा। इतना ही नहीं, औरंगजेब ने सम्भाजी महाराज के समक्ष इस्लाम कुबूल करने का प्रस्ताव रखा। बादशाह की उपरोक्त सभी शर्तों को सम्भाजी महाराज ने एकसिरे से नकार दिया।  तत्पश्चात औरंगजेब के आदेश पर उसी रात गर्म सलाखों से सम्भाजी महाराज की आंखें फोड़ दी गईं।

इतिहासकार डेनिस किनकेड लिखता है कि जब सम्भाजी महाराज ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने का प्रस्ताव खारिज कर दिया तब बादशाह औरंगजेब के आदेश पर उनकी जुबान खींच ली गई।सम्भाजी महाराज के समक्ष इस्लाम कुबूल करने का प्रस्ताव पुन: दोहराया गया। तब सम्भाजी महाराज ने एक कागज पर लिखा कि यदि बादशाह अपनी बेटी भी दे, तब भी मैं इस्लाम नहीं स्वीकार करूंगा। इसके बाद सम्भाजी महाराज के नाखून उखाड़ लिए गए।

इतनी यातनाएं देने के बाद मार्च 1689 में तुलापुर में इन्द्रायणी और भीमानदी के संगम स्थल पर बने प्रवेश द्वार पर सम्भाजी महाराज की निर्मम हत्या कर दी गई। इतिहासकार एल.पी. शर्मा के अनुसार, “सम्भाजी महाराज के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों को डाल दिए गए। वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि सम्भाजी के शव को तुला नदी में फेंक दिया गया। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि सम्भाजी महाराज के शव को सी कर अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र सम्भाजी महाराज का बेहद दुखद अंत हुआ।

अत्यन्त साहसी और कुशल योद्धा सम्भाजी महाराज के प्रति असम्मान और मृत्यु के अवसर पर प्रकट किए गए उनके साहस ने मराठा राष्ट्र को मुगलों से संघर्ष करने की प्ररेणा प्रदान की। मराठे अपने राजा की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए एकसूत्र में बंध गए और राजाराम के नेतृत्व में मराठा स्वतंत्रता संग्राम शुरू किया।

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