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Assassination of Lord Mountbatten: Who planted the bomb in the fishing boat?

लार्ड माउंटबेटन की हत्या : मछली पकड़ने वाली नाव में किसने लगाया था बम?

भारत से लौटने के बाद लार्ड माउंटबेटन ब्रिटेन की रॉयल नेवी में बतौर एडमिरल नियुक्त हुए। जब वह 79 वर्ष के थे तभी प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के कुछ आतंकी सदस्यों ने 27 अगस्त 1979 को लार्ड माउंटबेटन की नाव को बम से उड़ा दिया। इस आतंकी घटना में लार्ड माउंटबेटन की मौत हो गई। लार्ड माउंटबेटन की नाव को बम से किसने और क्यों उड़ाया था, यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

लार्ड माउंटबेटन की भारत से स्वदेश वापसी- 20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने स्पष्ट कर दिया कि सम्राट की सरकार जून 1948 तक प्रभुसत्ता भारतीयों के हाथों में दे देगी। इस प्रकार जून 1948 एक अंतिम तिथि के रूप में दे दी गई जब तक अंग्रेज भारत से चले जाएंगे और भारत के बंटवारें की बात भी स्वीकार कर ली गई जिसे मंत्रिमण्डलीय शिष्टमंडल ने अस्वीकार कर दिया था। इस घोषणा के बाद मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन के लिए कलकत्ता, असम, पंजाब, उत्तर पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में जबरदस्त उत्पात मचाया। ऐसे में इस घृणा और आतंक के वातावरण में यह स्पष्ट हो चुका था कि भारतीय एकता बनाए रखना असम्भव था।

ऐसे में लार्ड वेवल की जगह लार्ड माउंटबेटन को भारत का वाइसराय नियुक्त करने की ​घोषणा के तुरन्त बाद ही लार्ड माउंटबेटन भारत पहुंच गए। इस प्रकार भारत के अन्तिम ब्रिटिश वाइसराय और स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने 24 मार्च 1947 ई. को अपने पद की शपथ ली। नए वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने अति​शीघ्रता से घोषणा कर दी कि वह कुछ महीनों में भारतीयों को सत्ता सौंप देंगे। इसके बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू व जिन्ना जैसे कई भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श कर 3 जून 1947 को भारत विभाजन की योजना प्रकाशित कर दी।

आखिरकार 8 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद भारतीय स्वतंत्रता ​अधिनियम पारित किया गया जिसके मुताबिक 15 अगस्त 1947 से भारत दो स्वतंत्र देशों भारत और पाकिस्तान में बांट दिया गया। आजादी के बाद लॉर्ड माउंटबेटन जून 1948 तक भारत संघ के पहले गवर्नर-जनरल के रूप में कार्यरत रहे और रियासतों को भारत में शामिल होने के लिए राजी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारत से लौटने के बाद लार्ड माउंटबेटन रॉयल नेवी में बतौर एडमिरल अपनी सेवाएं देने लगे। परन्तु 27 अगस्त 1979 को लार्ड माउंटबेटन की नाव को बम से उड़ा दिया गया। इस वीभत्स घटना में माउंबेटन सहित उनके दो पोते निकोलस व पॉल भी मारे गए थे।

लार्ड माउंटबेटन की हत्या (Assassination of Lord Mountbatten)

यह घटना उन दिनों की है जब आयरलैंड गणराज्य के काउंटी स्लिगो के क्लिफनी गांव के पास अपने हॉलिडे होम क्लासिबॉन कैसल में रह रहे लार्ड माउंटबेटन और उनके परिजनों ने बारिश के दिनों के बाद खिली धूप में अच्छे मौसम का आनंद लेने के लिए मछली पकड़ने वाली नाव पर सैर करने का निर्णय लिया।

27 अगस्त 1979 की सुबह मछली पकड़ने वाली उस नाव पर भारत के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन अपने दो पोते निकोलस व पॉल सहित क्वीन विक्टोरिया के परपोते, क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय के दूसरे चचेरे भाई और किंग चार्ल्स तृतीय के परदादा के साथ सवार थे। नाव तकरीबन 15 मिनट तक पानी में रही होगी तभी एक बम विस्फोट में इसके परखच्चे उड़ गए। इस बम विस्फोट में लार्ड माउंटबेटन की तुरंत मौत हो गई। लार्ड माउंटबेटन की नाव को उड़ाने के लिए तकरीबन 50 पाउंड जेलिग्नाइट का इस्तेमाल किया गया था। रॉयल नेवी के एडमिरल लॉर्ड माउंटबेटन की जब हत्या हुई तब वह 79 वर्ष के थे। वेस्टमिंस्टर एब्बे में उनका औपचारिक अंतिम संस्कार किया गया और हैम्पशायर के रोम्सी एब्बे में उन्हें दफनाया गया। ब्रिटिश पुलिस का कहना था कि आरोपियों ने नाव में टाइम बम लगाया था लेकिन वे इसकी पुष्टि नहीं कर सके। इतना ही नहीं,  27 अगस्त 1979 की दोपहर को ही प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के सदस्यों ने एक और विस्फोट किया था जिसमें 18 ब्रिटिश सैनिक मारे गए थे।

बम विस्फोट के दिन ही प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के एक पूर्व कमांडर ने लार्ड माउंटबेटन के हत्या की जिम्मेदारी ली। यह दावा डबलिन स्थित आयरिश इंडिपेंडेंट न्यूज पेपर ग्रुप को दिए गए टेलीफोन कॉल में आया। डेल मेल रिपोर्ट के मुताबिक, बम बिस्फोट के बाद आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के कमांडर माइकल हेस ने दावा किया कि अगस्त 1979 में लॉर्ड माउंटबेटन की हत्या की साजिश रची थी। मैंने माउंटबेटन को उड़ा दिया और मैकमोहन ने बम को अपनी नाव पर रखा। हांलाकि नवम्बर 1979 में थॉमस मैकमोहन को इस अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा दी गई। हांलाकि गुड फ्राइडे समझौते की शर्तों के तहत 19 साल की जेल के बाद 1998 में मैकमोहन को रिहा कर दिया गया।

लार्ड माउंटबेटन को ही क्यों निशाना बनाया?

जानकारी के लिए बता दें कि प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी एक ऐसा अर्धसैनिक समूह था, जिसने उत्तरी आयरलैंड से ब्रिटिश सेना को खदेड़ने के लिए एक आतंकवादी अभियान चला रखा था ताकि आयरलैण्ड को स्वतंत्र राष्ट्र बनाया जा सके। प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के सदस्यों ने लार्ड माउंटबेटन की हत्या की योजना इसलिए बनाई थी क्योंकि वह ब्रिटेन के तत्कालीन प्रिन्स चार्ल्स के गुरु के रूप में काम कर रहे थे। ऐसे में लार्ड माउंटबेटन एक प्रतीकात्मक और आसान लक्ष्य थे। हांलाकि प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के सदस्यों ने लार्ड माउंटबेटन को कई बार हत्या की धमकी दी थी। परन्तु उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि मुझ जैसे बूढ़े आदमी को कौन मारना चाहेगा? अत: सुरक्षा व्यवस्था में लापरवाही बरतने के कारण लार्ड माउंटबेटन को अपनी जान गंवानी पड़ी।

लार्ड माउंटबेटन की हत्या पर भारत में प्रतिक्रिया

लार्ड माउंटबेटन की हत्या की खबर मिलने के बाद भारत सरकार ने सात दिन राजकीय शोक की घोषणा की थी। देश के सभी स्कूल, कॉलेज तथा सरकारी संस्थानों को 7 दिन के लिए बंद कर दिया गया। इसके साथ ही सात दिन के लिए भारत के राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया गया था।लार्ड माउंटबेटन की हत्या के खबर के बाद देश के कई प्रमुख नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्ति की जो इस प्रकार है- भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ माउंटबेटन के दोस्ताना संबंधों को याद करते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि भारत ने अपना एक समर्पित दोस्त खो दिया। वहीं भारत के तत्कालीन कार्यवाहक प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कहा कि आजादी के बाद लार्ड माउंटबेटन को पूरे देश ने प्यार के साथ पहले गवर्नर जनरल के तौर पर स्वीकारा था। इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी तथा पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने भी लार्ड माउंटबेटन की मौत पर शोक व्य​क्त किया। मोरारजी देसाई ने लिखा कि मैं व्यक्तिगत तौर पर उनके साहस व बुद्धिमत्ता का हमेशा कायल रहा। वह किसी भी समस्या का हल निकालने की कला में माहिर थे।

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