केवल मुगल शासकों में ही नहीं अपितु मध्ययुगीन भारतीय शासकों में भी अकबर को श्रेष्ठ स्थान प्रदान किया गया है। प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी अकबर एक कुशल सैनिक और प्रतिभाशाली सेनापति था। एक शासक की दृष्टि से अकबर की धार्मिक उदारता की नीति और राजपूत नीति अद्वितीय थी। अकबर ने जजिया कर सहित अन्य सभी कर हिन्दूओं से लेना समाप्त कर दिया। न्याय में भी हिन्दूओं के साथ समान व्यवहार किया। परन्तु यह बात जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि अकबर का जन्म एक हिन्दू राजा के किले में हुआ था। वह हिन्दू राजा कौन था और अकबर का जन्म किन परिस्थितियों में हुआ, यह जानने के लिए इस स्टोरी को जरूर पढ़ें।
अकबर के पिता का निष्कासित जीवन
बादशाह बाबर की मृत्यु के ठीक चार दिन बाद 30 दिसम्बर 1530 ई. को 23 वर्ष की उम्र में हुमायूं मुगल सिंहासन पर बैठा। परन्तु हुमायूं का सामना एक ऐसे अफगान योद्धा से हुआ जो शेर से बहादुर और लोमड़ी से भी चालाक था। जी हां, उसका नाम शेरशाह सूरी था जिसने 1539 और 1540 ई. में चौसा और कन्नौज के निर्णायक युद्ध में करारी शिकस्त देकर हुमायूं को हिन्दुस्तान से खदेड़ दिया। इसके बाद अगले पन्द्रह वर्षों तक हुमायूं को देश से निष्कासित रहना पड़ा।
कुछ समय तक सिंध, अमरकोट (उमरकोट) और काबुल में निर्वासित जीवन व्यतीत करने के बाद 1544 ई. में हुमायूं ने ईरान के शासक शाह तहमास्प के पास शरण ली। ईरान के शासक शाह तहमास्प की मदद से उसने काबुल-कंधार में मध्य एशिया के क्षेत्रों को जीता। तत्पश्चात हुमायूं ने 1555 ई० में शेरशाह के उत्तराधिकारियों को हराकर पुन: मुगल साम्राज्य हासिल कर लिया।
अकबर का जन्म
अकबर के जन्म की कहानी तब शुरू होती है जब उसका पिता शेरशाह से परास्त होकर सिन्ध भाग गया। उसने सिन्ध को जीतने का प्रयत्न किया परन्तु असफल हुआ। उसी समय 1541 ई. में हुमायूं ने अपने भाई हिन्दाल के गुरु मीरअली अकबर की पुत्री हमीदा बानू बेगम से शादी की। उस समय हिन्दाल भी उसका साथ छोड़ गया, इसके बाद उसके विश्वासपात्र यादगार मिर्जा ने भी उसका साथ छोड़ दिया। इस दौरान हुमायूं को जोधपुर के शासक मालदेव से सहायता का आश्वासन मिला और वह उससे मिलने जोधपुर की तरफ चल दिया। सम्भवत: शेरशाह सूरी की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर मालदेव का विचार बदल गया जिससे हुमायूं उससे बिना मिले ही वापस लौट गया।
कन्धार की तरफ जाते समय हुमायूं को अमरकोट (वर्तमान में पाकिस्तान का सिन्ध प्रान्त) के राजपूत राजा वीरसाल ने संरक्षण और सहायता दी। अमरकोट के रेगिस्तानी किले में ही हुमायूं की पत्नी हमीदा बानू बेगम के गर्भ से 15 अक्टूबर 1542 ई. को अकबर का जन्म हुआ। जब अकबर का जन्म हुआ तब उसकी मां हमीदा बानो बेगम की उम्र महज 15 साल थी।
बालक अकबर का अपने पिता से बिछुड़ना
हुमायूं यहां भी नहीं रूका वह अपनी पत्नी तथा नवजात बेटे को लेकर कन्धार की ओर चल पड़ा। उस समय कन्धार का सूबेदार अस्करी था जिसने अपने भाई कामरान के आदेश से हुमायूं को पकड़ने का प्रयत्न किया। हुमायूं अपने एक वर्ष के बच्चे अकबर को कन्धार में ही छोड़कर भाग गया। अत: हुमायूं के निर्वासित जीवन दौरान अकबर अपने जन्म के प्रारम्भिक तीन वर्ष अस्करी के संरक्षण में रहा।
1544 ई. में अस्करी ने बालक अकबर को काबुल में कामरान के पास भेज दिया। काबुल में अकबर के पालन-पोषण की जिम्मेदारी माहम अनगा को मिली। माहम अनगा गजनी के अतागा खान (शम्सुद्दीन) की पत्नी थी जिसने चौसा के युद्ध में हुमायूं की जान बचाई थी, जो शेरशाह सूरी के खिलाफ लड़ा गया था। 3 वर्ष के बालक अकबर की भेंट अपने पिता से तब हुई जब हुमायूं ने कन्धार और काबुल पर अधिकार कर लिया। यहीं उसका नाम ‘जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर’ रखा गया। परन्तु एक बार फिर बालक अकबर को अपने पिता हुमायूं से बिछुड़ना पड़ा।
हुमायूं और कामरान के बीच कन्धार को लेकर हो रहे युद्ध के दौरान जब हुमायूं की तोपें कन्धार के किले पर आग बरसा रही थीं। उस समय हुमायूं की तोपों का मुंह बन्द करने के लिए कामरान ने बालक अकबर को किले की दीवार पर लटका दिया था किन्तु सौभाग्य से वह बच गया।
इस सम्बन्ध में गुलबदन बेगम ने ‘हुमायूंनामा’ में लिखा है कि “शाही सैनिकों ने अकबर को पहचान लिया और इसकी सूचना हुमायूं को दी। हुमायूं के आदेश पर सैनिकों ने गोलाबारी बंद कर दी।” इसके बाद माहम अनगा ने बालक अकबर को किले की प्राचीर से खिचकर नीचे गिरा दिया। इस प्रकार अकबर की जान बच गई। चूंकि हुमायूं का बेटा अकबर, उसकी पत्नी हमीदा बानू बेगम और उसकी प्रजा काबुल के किले में कैद थी, इसलिए वह वैसे भी तोपों का प्रयोग नहीं करना चाहता था।
अकबर की अपने पिता से मुलाकात
काबुल-कन्धार विजय के पश्चात पांच वर्ष की उम्र से अकबर अपने पिता के साथ रहा। अकबर के शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबन्ध किया गया। परन्तु अकबर ने साहित्यक शिक्षा में कोई रूचि नहीं दिखाई यद्यपि घुड़सवारी तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने में वह निपुण हो गया। अकबर ने कम उम्र में ही गजनी और लाहौर के सूबेदार के रूप में कार्य किया। अकबर का प्रथम विवाह 1551 ई. में हिन्दाल मिर्जा की बेटी रूकैया बेगम के साथ हुआ। साल 1555 ई. में जब हुमायूं ने दोबारा हिन्दुस्तान में प्रवेश किया तब अकबर की धाय माहम अनगा भी उसके साथ काबुल से हिन्दुस्तान आईं।
पिता हुमायूं की मृत्यु के अवसर पर वह बैरम खां के संरक्षण में पंजाब में सिकन्दर सूर से युद्ध कर रहा था। हुमायूं की मृत्यु की सूचना मिलने पर पंजाब में गुरदासपुर जिले के निकट कलानौर नामक स्थान पर 14 फरवरी 1556 ई. को 14 वर्षीय अकबर को मुगल बादशाह घोषित किया गया।
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