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Akbar had given the title of Jagatguru to Jain Acharya Heer Vijay Suri, do you know why?

अकबर ने जैन आचार्य हीर विजय सूरी को दी थी जगतगुरु की उपाधि, जानते हैं क्यों?

मुगल बादशाह अकबर स्वयं शिक्षित नहीं था परन्तु उसने अपने दरबार में विद्वानों तथा धर्माचार्यों को सम्मान और पर्याप्त आश्रय प्रदान किया। अकबर ने एक पुस्तकालय का निर्माण करवाया था जिसमें 24000 ग्रन्थ थे, जिनकी कीमत तकरीबन 65 लाख रुपए थी। अकबर अनपढ़ अवश्य था परन्तु उसने देशभर के विभिन्न विद्वानों के निकट सम्पर्क में आकर दर्शन, धर्म, साहित्य, इतिहास आदि विभिन्न शास्त्रों का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

मुगल बादशाह अकबर ने सभी धर्मों में सामंजस्य स्थापित करने तथा राष्ट्रीय धर्म की स्थापना के लिए 1582 ई. में तौहीद--इलाही अथवादीन--इलाही नामक एक नए धर्म की घोषणा की। दीन--इलाही के तहत अकबर ने एक ऐसा मार्ग निकालने का प्रयास किया जो सभी को स्वीकार्य हो तथा सभी व्यक्ति साम्प्रदायिक भेदभाव भूलाकर सर्वमान्य आचरण से युक्त सिद्धान्तों के अनुयायी बन सकें। इसी क्रम में जैन धर्म के सिद्धान्तों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए अकबर ने 1582 ई. में तपगच्छ जैनाचार्य हीर विजय सूरी तथा खरतरगच्छ जैनाचार्य जिनचन्द्र सूरी को अपने दरबार में आमंत्रित किया। ये दोनों जैन मुनि श्वेताम्बर सम्प्रदाय से थे। इस बात का उल्लेख मुगल इतिहासकार अबुल फजल और अब्दुल कादिर बदायूंनी दोनों ही करते हैं।

आइन-ए-अकबरी के मुताबिक अबुल फजल ने अकबर के समकालीन जिन 140 प्रभावशाली विद्वानों की सूची दी थी उनमें से 21 सर्वोच्च विद्वानों की श्रेणी में एक नाम हीर विजय सूरी जी का भी था। जैन आचार्य हीर विजय सूरी से पहली मुलाकात में ही अकबर इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें जगतगुरु की उपाधि प्रदान की। इतना ही नहीं, अकबर ने जैनाचार्य हीर विजय सूरी को बार-बार अपने दरबार में आमंत्रित किया। इस स्टोरी में हम आपको बताएंगे कि जैन आचार्य हीर विजय सूरी के प्रभाव में आने के बाद मुगल बादशाह अकबर के जीवन में क्या परिवर्तन देखने को मिला।  

हीर विजय सूरी का जीवन परिचय

श्वेताम्बर सम्प्रदाय के तपगच्छ जैन आचार्य हीर विजयजी को मध्यकालीन इतिहास में हीर विजय सूरी अथवा हरि विजय सूरी के नाम से जाना जाता है। 1527 ई. में गुजरात के पालनपुर के एक जैन ओसवाल परिवार में जन्मे हीर विजय सूरी अभी शिशु ही थे, तभी उनके माता-पिता का देहान्त हो गया। इसलिए उनका पालन-पोषण दो बड़ी बहनों ने किया। हीर विजय सूरी जब 13 वर्ष के हुए तब उन्होंने विजयदान सूरी से दीक्षा ग्रहण की और उनके शिष्य बन गए।

आगे की शिक्षा के लिए हीर विजय सूरी को संस्कृत के केन्द्र देवगिरी ले जाया गया जहां उन्होंने अपने अध्ययन के दम पर क्रमश:1550 में पंडित, 1552 में उपाध्याय और 1553 में सूरी की उपाधि प्राप्त की। सिरोही से हीर विजय सूरी को आचार्य की उपाधि प्राप्त हुई। इसके बाद से हीर विजय सूरी जैन आचार्य कहलाने लगे। गुजरात के श्वेतांबर तपगच्छ समुदाय के तकरीबन 2,000 विद्यार्थी जैन आचार्य हीर विजय सूरी के अधीन शिक्षा ग्रहण करते थे।

अकबर की हीर विजय सूरी से धर्म-दर्शन पर चर्चा

एक प्रसंग के मुताबिक, मुगल बादशाह अकबर ने एक बार फतेहपुर सीकरी के अपने शाही महल से चम्पा नामक एक जैन श्राविका के भव्य जुलूस को गुजरते देखा। पूछताछ करने पर अकबर को जानकारी मिली कि जैन श्राविका ने छह महीने तक केवल उबला हुआ पानी पीया था और अन्य कोई भोजन ग्रहण नहीं किया। बादशाह अकबर को यह जानकर बहुत ​आश्चर्य हुआ, उसने जैन श्राविका चम्पा से पूछा तो उन्होंने कहा कि यह सब उनके गुरु हीर विजय सूरी के आशीर्वाद से सम्भव हुआ है।

फिर क्या था, 1582 ई. में दीन-ए-इलाही (दैवीय एकेश्वरवाद) की स्थापना करने के बाद जैन आचार्य हीर विजय सूरी जी को मुगल दरबार में आमंत्रित किया गया। हीर विजय सूरी जी जब अकबर के शाही दरबार में पहुंचे तब उन्होंने वहां बिछाए गए महंगे कालीन पर चलने से इनकार कर दिया। बाद में हीर विजय सूरी के आदेश पर जब अकबर ने कालीन हटवाया तो उसके नीचे बहुत सारी चीटियां और कीड़े मौजूद थे। हीर विजय सूरी की इस अहिंसक भावना से अकबर को बहुत आश्चर्य हुआ।

सबसे पहले दीन-ए-इलाही के प्रधान पुरोहित अबुल फजल ने धर्म-दर्शन के विभिन्न पहलूओं पर उनसे गम्भीरता से चर्चा की। इसके बाद जैन आचार्य हीर विजय सूरी जी के समक्ष अकबर ने धर्म से जुड़े व्यापक विषयों पर गहन चर्चा की। कहते हैं, वाद-विवाद के दौरान जैन आचार्य हीर विजय सूरी जी ने अकबर से कहा कि एक आदमी का पेट जानवरों की कब्र कैसे हो सकता है? इस तथ्य ने अकबर को इतना अधिक प्रभावित किया कि उसने मांस से परहेज करना शुरू कर दिया। अत्यधिक चर्चित किताब अकबर दी ग्रेट मुगल के लेखक विसेन्ट स्मिथ लिखता है कि अकबर ने मांस से तकरीबन पूरी तरह दूरी बना ली और जीव हिंसा के सम्बन्ध में निश्चित रूप से जैन सिद्धान्तों का पालन करने लगा।

जैन आचार्य हीर विजय सूरी से पहली मुलाकात के बाद मुगल बादशाह अकबर इतना प्रभावित हुआ कि उनसे मिलने के लिए उसने कई बार अनुरोध किया। 1584 में अकबर ने एक फरमान जारी किया कि पर्यूषण पर्व पर जीव हिंसा न हो और जैनों के सन्मुख मांस न खाएं वरना सख्त सजा दी जाएगी। इतना ही नहीं हीर विजय सूरी के शिष्य विजय सेन सूरी को भी अकबर ने साल 1593 और 1595 ई. में मिलने के लिए बुलवाया था।

जैन आचार्य हीर विजय सूरी का अकबर पर प्रभाव

अबुल फजल लिखता है कि जैन आचार्य हीर विजय सूरी एक उच्चकोटि के धार्मिक व्यक्ति थे। बादशाह अकबर इनसे मिलने के बाद इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने अपने साम्राज्य में पशु हत्या निषेध कर दिया और स्वयं भी मासांहार से परहेज करना लगा। इसके लिए प्रत्येक शुक्रवार को उसने शुद्ध शाकाहारी भोजन करने का निर्णय लिया।”  जैन आचार्य हीर विजय सूरी से मुलाकात के बाद अकबर ने निम्नलिखित आदेश जारी किए थे-

अकबर ने जैन आचार्य सूरी को विक्रम संवत 1640 यानि 1583 ई. में जगद्गुरु की उपाधि दी थी।

अकबर ने सबसे पहले कारागार से कई कैदियों को मुक्त कर दिया तथा शिकार करना व मछली पकड़ना छोड़ दिया जो उसका मुख्य शौक हुआ करता था।

पर्यूषण पर्व और जन्म कल्याणक दिवस पर अकबर ने जीव हिंसा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

पालीताना जैसे अन्य जैन तीर्थ स्थलों को अकबर ने जजिया कर से मुक्त कर दिया।

मुगल बादशाह अकबर ने गुजरात के गिरनार, तरंगा, शत्रुंजय, केसरियाजी, आबू, राजगृही और समेदशिखरजी जैसे तीर्थस्थलों के आसपास पशु हत्या निषेध कर दिया।

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