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35 interesting facts related to the great warrior Tanaji Malusare of Sinhagad Fort

सिंहगढ़ फोर्ट के महायोद्धा तानाजी मालुसरे से जुड़े 35 रोचक तथ्य

मुगल बादशाह औरंगजेब के सेनापति राजा जयसिंह द्वारा पुरन्दर किले की घेराबंदी के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज को साल 1665 में आत्मसमर्पण करने पर मजबूर होना पड़ा था। शिवाजी महाराज को मुगल सेनापति राजा ​जयसिंह के साथ 11 जून 1665 ई. को एक सन्धि करनी पड़ी जो मध्यकालीन इतिहास में पुरन्दर की सन्धि के नाम से विख्यात है। इस सन्धि के तहत छत्रपति शिवाजी महाराज को अपने 35 किलों में से 23 किले मुगलों को देने पड़े थे जिनमें से एक कोंढाना किला भी था।

पुणे से तकरीबन 35 किमी. दूर सह्याद्री पर्वत पर स्थित कोंढाना दुर्ग सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था। 70000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले कोंढाना दुर्ग की ऊंचाई तकरीबन साढ़े सात सौ मीटर थी। कोंढाना किले पर आधिपत्य करने वाला पुणे सहित पूरे पश्चिमी इलाके पर राज कर सकता था। ऐसे में मुगल सेनापति राजा जयसिंह का कहना था कि शिवाजी महाराज सबसे पहले कोंढाना यानि सिंहगढ़ का किला ही मुगलों को सौपेंगे।

पुरन्दर की सन्धि के तहत मुगल बादशाह औरंगजेब से मिलने शिवाजी महाराज आगरा गए, लेकिन बादशाह ने उन्हें धोखे से नजरबंद कर दिया। बावजूद इसके वह आगरा किले से निकलकर महाराष्ट्र पहुंचने में कामयाब हो गए। आगरा से वापसी के बाद शिवाजी महाराज ने मुगलों से अपने किले छीनने शुरू किए।

मुगल सेनापति राजा जयसिंह ने उदयभान सिंह राठौड़ को कोंढाना दुर्ग का किलेदार नियुक्त किया था, जो बेहद खतरनाक योद्धा माना जाता था। कोंढाना किले (सिंहगढ़ फोर्ट) पर कब्जा करने की जिम्मेदारी शिवाजी महाराज ने अपने बालमित्र एवं शेर सेनापति तानाजी मालुसरे को दी।

मराठा सेनापति तानाजी मालसुरे ने 4 फरवरी 1670 ई. को कोंढाना दुर्ग तो फतह कर लिया परन्तु वह वीरगति को प्राप्त हुए। जब शिवाजी महाराज को तानाजी मालुसरे के मौत की खबर मिली तो उनके मुख से सहसा ही निकल पड़ा- गढ़ आला पण सिंह गेलाअर्थात किला तो मिल गया परन्तु मेरा शेर (तानाजी) चला गया। उसी दिन से कोंढाना किले का नाम 'सिंहगढ़' हो गया। ऐसे में छत्रपति शिवाजी महाराज के शेर सेनापति तानाजी मालुसरे से जुड़े महत्वपूर्ण रोचक तथ्यों को जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।

कौन थे तानाजी मालुसरे

छत्रपति शिवाजी के बालमित्र तानाजी मालुसरे का जन्म 1600 ईस्वी में गोडोली, जवाली तालुका, सतारा जिला, महाराष्ट्र में हुआ था। तानाजी मालुसरे के पिता का नाम सरदार कोलाजी तथा माता का नाम पार्वतीबाई था। तानाजी के छोटे भाई का नाम सूर्याजी मालुसरे था।

तानाजी मालुसरे ने शिवाजी महाराज के साथ कई युद्धों में भाग लिया था।  छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य की स्थापना में सूबेदार (किल्लेदार) की भूमिका निभाते थे तानाजी मालुसरे। मराठा सेनापति तानाजी मालुसरे अपनी वीरता के कारण सिंह नाम से विख्यात थे। जब तानाजी को शिवाजी महाराज का यह संदेश मिला कि जीजाबाई ने प्रतिज्ञा कर रखी है कि जब तक कोंढाना दुर्ग पर मुगलिया झण्डे की जगह भगवा ध्वज नहीं लहराया जाएगा तब तक वह अन्न-जल नहीं ग्रहण करेंगी।

इसके बाद तानाजी मालुसरे ने अपने पुत्र रायबा के विवाह की तैयारियों को स्थगित कर कहा- “पहले कोंढाना दुर्ग फतह होगा, इसके बाद मेरे पुत्र का विवाह तानाजी मालुसरे ने आगे यह भी कहा कि यदि मैं जीवित रहा तो युद्ध से लौटकर विवाह का प्रबंध करूँगा अन्यथा मेरे पुत्र का विवाह शिवाजी महाराज करेंगे।

पुणे में शिवाजी महाराज से परामर्श कर तानाजी मालुसरे ने अपने छोटे भाई सूर्याजी तथा 80 वर्षीय शेलार मामा सहित तकरीबन 500 मराठा सैनिकों की मदद से कोंढाना दुर्ग जीत लिया परन्तु इस युद्ध में वह वीरगति को प्राप्त हुए। छत्रपति शिवाजी महाराज को जब कोंढाना दुर्ग की जीत के साथ ही तानाजी मालुसरे के मौत की खबर मिली तो वह बहुत दुखी हुए और बोले- “गढ़ आला पण सिंह गेलाअर्थात किला तो मिल गया परन्तु मेरा शेर (तानाजी) चला गया। उसी दिन से कोंढाना किले का नाम 'सिंहगढ़' हो गया।

मराठा सेनापति तानाजी मालुसरे से जुड़े रोचक तथ्य

1- पुणे से 35 किमी. दूर सह्याद्री पर्वत पर मौजूद सिंहगढ़ फोर्ट को कभी कोंढाना दुर्ग कहा जाता था।

2- 4 फरवरी 1670 की रात में कोंढाना दुर्ग में एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया जिसे भारतीय इतिहास में सिंहगढ़ की लड़ाई के रूप में जाना जाता है।

3- सिंहगढ़ का युद्ध छत्रपति शिवाजी महाराजा के सेनापति तानाजी मालुसरे और मुगल किलेदार उदयभान सिंह राठौड़ के बीच लड़ा गया था।

4- मुगल सेनाप​ति राजा जयसिंह ने उदयभान सिंह राठौड़ को कोंढाना दुर्ग का किलेदार नियुक्त था, जो राजपूत से मुसलमान बन चुका था।

5- माता जीजाबाई ने एक दिन शिवाजी से कहा कि- “भगवान सूर्य को अर्घ्य देते समय कोंढाना दुर्ग पर लहराता मुगलिया झण्डा उनकी आंखों को बहुत चुभता है।इसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने कोंढाना दुर्ग फतह करने की योजना बनाई।

6- कोंढाना दुर्ग फतह करने की जिम्मेदारी शिवाजी महाराज के बालमित्र और मराठा सेनापति तानाजी मालुसरे ने उठाई।

7- नरवीर तानाजी मालुसरे, उनके छोटे भाई सूर्याजी मालुसरे और 80 वर्षीय शेलार मामा सहित तकरीबन 500 मराठा सैनिकों ने 4 फरवरी 1670 की रात में कोंढाना दुर्ग पर चढ़ाई कर दी।

8- 70000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले कोंढाना दुर्ग की ऊंचाई तकरीबन 4304 फुट थी।

9- कोंढाना दुर्ग (सिंहगढ़ फोर्ट) पर पहुंचने के लिए तानाजी मालुसरे लगभग 2300 फुट उपर चढ़े।

10- आपको जानकर हैरानी होगी कि सिंहगढ़ फोर्ट पर कब्जे के दौरान तानाजी मालुसरे की उम्र 70 साल थी।

11- कोंढाना किले की दीवारों पर चढ़ने के लिए तानाजी मालुसरे व उनके साथियों ने यशवन्ती नामक एक बड़ी गोह (स्थानीय भाषा में घोरपड़) का सहारा लिया था।

12- मुगल किलेदार उदयभान सिंह राठौड़ तकरीबन 5000 मुगल सैनिकों के साथ कोंढाना दुर्ग की रक्षा कर रहा था।

13- शुरू में तानाजी मालुसरे और उनके कुछ साथी यशवन्ती नामक पालतू गोह (स्थानीय भाषा में घोरपड़) के सहारे ​किले के ऊपर चढ़ गए, इसके बाद कमर में बंधे रस्से के सहारे 300 अन्य साथियों को भी ऊपर चढ़ा दिया। बाकी 200 सैनिकों के साथ सूर्याजी मालुसरे ने किले के मुख्य द्वार पर मोर्चा सम्भाल लिया।

14- कोंढाना किले पर पहुंचते ही असावधान अवस्था में खड़े मुगल सैनिकों को मराठा योद्धाओं ने यमलोक पहुंचा दिया।

15- इसके बाद तानाजी मालुसरे और मुगल किलेदार उदयभान सिंह राठौड़ के मध्य खतरनाक युद्ध हुआ।

16- मुगल किलेदार उदयभान सिंह राठौड़ के ताकतवर प्रहार से तानाजी मालुसरे की ढाल कट गई जिससे तानाजी मालुसरे का एक हाथ कट गया जिस पर वह कपड़ा लपेटकर लड़ते रहे।

17- इस भीषण युद्ध में तानाजी मालुसरे ने एक हाथ से लड़ते हुए उदयभान सिंह राठौड़ को मार डाला परन्तु गम्भीर रूप से घायल होने के कारण ज्यादा रक्त बहने से तानाजी मालुसरे भी वीरगति को प्राप्त हो गए।

18-तानाजी मालुसरे के भाई सूर्याजी मालुसरे ने सूर्योदय (5 फरवरी की सुबह) होते ही कोंढाना किले पर भगवा ध्वज लहराया।

19- छत्रपति शिवाजी महाराज को जब तानाजी मालुसरे के वीरगति का समाचार मिला, तो उन्होंने दुखी होकर कहा- “गढ़ आला पण सिंह गेला अर्थात किला तो मिल गया परन्तु मेरा शेर (तानाजी) चला गया। तभी से कोंढाना दुर्ग का नाम 'सिंहगढ़' हो गया।

20- छत्रपति शिवाजी महाराज ने तानाजी मालसुरे से किया वायदा निभाया और उनके बेटे रायबा की शादी सम्पन्न करवाई।

21- पुत्र के विवाह और परिजनों को दरकिनार कर सिंहगढ़ के युद्ध में जीत हासिल करने वाले तानाजी मालुसरे को समस्त भारत याद करता है।

22- महज 500 मराठा सैनिकों को लेकर 5000 मुगल सैनिकों वाले खतरनाक कोंढाना किले को जीतना तानाजी मालुसरे के बेहतरीन रणकौशल का मिसाल है।

23- मराठा सेनापति तानाजी मालुसरे की स्मृति में कोंढाना दुर्ग का नाम बदलकर सिंहगढ़ फोर्टकर दिया गया।

24-सिंहगढ़ फोर्ट में तानाजी मालुसरे की एक प्रतिमा स्थापित की गई है।

25- पुणे नगर के 'वाकडेवाडी' नामक क्षेत्र का नाम अब 'नरबीर तानाजी वाडी' कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र में तानाजी मालुसरे के अनेकों स्मारक हैं।

26- विनायक दामोदर सावरकर ने तानाजी मालुसरे की एक गौरव गाथा लिखी थी जिसे अंग्रेजी सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया।

27- हरि नारायण आप्टे ने साल 1903 में तानाजी मालुसरे के जीवन पर आधारित एक मराठी उपन्यास लिखा था जिसका नाम गढ़ आला पण सिंह गेला है।

28- बंगाली कवि जतीन्द्र मोहन बागची ने साल 1922 में सिंहगढ़ नामक एक कविता लिखी थी जिसमें कोंढाना दुर्ग फतह के दौरान तानाजी मालुसरे की वीरतापूर्ण मृत्यु का वर्णन है।

29- साल 1903 में हरिनारायण आप्टे लिखित उपन्यास गढ़ आला पण सिंह गेला नामक मराठी उपन्यास पर आधारित मराठी फिल्म सिंहगढ़’ (1933 ई. में) का निर्माण बाबूराव पेन्टर ने किया था।

30- बंगाली लेखक सरदिंदू बंद्योपाध्याय ने तानाजी मालुसरे का उल्लेख छत्रपति शिवाजी महाराज के सहयोगी के रूप में किया है।

31- साल 1971 में अमर चित्र कथा ने तानाजी नामक एक कॉमिक बुक जारी की, जिसे मीना तालीम ने लिखा और वसंत बी. हलबे ने चित्रित किया।

32- साल 2020 में अजय देवगन स्टारर मूवी तानाजी: द अनसंग वारियर ने सिनेमाई पर्दे पर धमाल मचा दिया था। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा के दौरान इस मूवी ने तीन पुरस्कार (बेस्ट पॉपुलर फिल्म, बेस्ट एक्टर, बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन) अपने नाम किए।

33- साल 2023 में रिलीज हुई मराठी फिल्म सुभेदार में तानाजी मालुसरे का किरदार अभिनेता अजय पुरकर ने निभाया है।

34-तानाजी मालुसरे द्वारा सिंहगढ़ फोर्ट पर कब्जा करने के बाद औरंगजेब ने दोबारा इस किले पर कब्जा कर लिया।

35- तानाजी मालुसरे के बाद सिंहगढ़ फोर्ट पर कब्जा करने वाले दूसरे वीर का नाम है नावजी बालकावडे। अंतत: महारानी ताराबाई ने मुगल बादशाह औरंगेजब से सिंहगढ़ फोर्ट को अपने कब्जे में ले लिया।

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