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william hawkins was Jahangir's Mansabdar, why did he have to return to Britain?

जहांगीर का मनसबदार था यह अंग्रेज व्यापारी, आखिर क्यों लौटना पड़ा ब्रिटेन?

मनसब एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ होता है- पद अथवा रैंक (Rank)। मुगल बादशाह अपने जिन पदाधिकारियों को मनसब प्रदान करता था, उन्हें मनसबदार कहा जाता था। मनसब भी दो प्रकार के होते थे- ‘जात एवं सवार। यहां जात से तात्पर्य है- पैदल सैनिकों की निश्चित संख्या और सवार से तात्पर्य- घुड़सवार सैनिकों की निश्चित संख्या जिसे मनसबदार को अपने अधीन रखने का अधिकार प्राप्त होता था। जानकारी के लिए बता दें कि मुगल बादशाह जहांगीर ने ब्रिटेन के एक व्यापारी को भी मनसब प्रदान किया था।

जाहिर है, मुगल बादशाह जहांगीर उस अंग्रेज व्यापारी से बहुत प्रभावित रहा होगा अन्यथा बादशाह द्वारा केवल शासकीय अधिकारियों, सेनापतियों, कुलीन एवं अपने करीबी लोगों को ही मनसब प्रदान करने की परम्परा थी। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर में कौन था वह अंग्रेज व्यापारी जो मुगल दरबार का मनसबदार था। जी हां, उस अंग्रेज व्यापारी का नाम था ​विलियम हांकिन्स। विलियम हाकिन्स को मुगल बादशाह जहांगीर ने मनसबदार क्यों बनाया था, यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को अवश्य पढ़ें।

विलियम हाकिन्स का भारत आगमन

साल 1603 ई. में महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के पश्चात जेम्स प्रथम ब्रिटेन का राजा बना। जेम्स प्रथम ने भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी को दिए गए अधिकारों को यथावत रखा। ऐसे में ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जेम्स प्रथम के राजपत्र के साथ ईस्ट इंडिया कम्पनी के कर्मचारी व व्यापारी विलियम हाकिन्स ने अपने जहाज हेक्टर से भारत के लिए प्रस्थान किया।

विलियम हाकिन्स के जहाज हेक्टर ने 24 अगस्त 1608 ई. को सूरत बन्दरगाह पर अपना लंगर डाला। सूरत बन्दरगाह पहुंचते ही विलियम हाकिन्स के जहाज को पुर्तगालियों ने अपने कब्जे में ले लिया। पुर्तगालियों ने विलियम हाकिन्स को चेताया कि बिना किसी अनुमति के किसी भी जहाज को सूरत बन्दरगाह पर लंगर डालने की आज्ञा नहीं दी जा सकती है।

चूंकि विलियम हाकिन्स अपने साथ ढेर सारे तोहफे लाया था ​अत: इनमें से कुछ पुर्तगालियों को दे दिए। जिससे उसे आगरा जाकर बादशाह से मुलाकात करने की इजाजत मिल गई। इस प्रकार विलियम हांकिन्स ने अफगान व्यापारी का वेष धारण कर सूरत से प्रस्थान किया और 16 अप्रैल 1609 ई. को मुगल राजधानी आगरा पहुंचने में कामयाब हो गया।

विलियम हाकिन्स की जहांगीर से मुलाकात

विलियम हाकिन्स ने अपने जहाज हेक्टर से जब भारत के लिए प्रस्थान किया था, तब उसे जानकारी मिली थी कि उसकी मुलाकात मुगल बादशाह अकबर से होगी। लेकिन जब वह आगरा पहुंचा तब उसे पता चला कि मुगल सिंहासन पर जहांगीर आसीन था। विलियम हांकिन्स ने मुगल दरबार में पहुंचते ही सबसे पहले अपने साथ लाए बेशकीमती तोहफे जहांगीर को भेंट किए। इन उपहारों में ब्रिटेन के प्रख्यात चित्रकारों द्वारा बनाई कई कुछ पेंटिंग्स भी शामिल थी। इन तोहफों को देखकर जहांगीर अत्यन्त प्रसन्न हुआ।

चूंकि विलियम हाकिन्स फारसी भाषा का बहुत अच्छा ज्ञाता था। इसलिए मुगल दरबार में विलियम हाकिन्स ने जहांगीर से फारसी में ही बात की अत: जहांगीर उससे बहुत प्रभावित था। जहांगीर अक्सर अपनी शराब पार्टियों में विलियम हाकिन्स को आमंत्रित करता था। ​विलियम हाकिन्स ने अपने यात्रा संस्मरण में जिस प्रकार से जहांगीर की दिनचर्या का उल्लेख किया है, उससे पता चलता है कि वह बादशाह का बेहद करीबी बन चुका था। अंग्रेजों की व्यापारिक कोठियां स्थापित करने के उद्देश्य से विलियम हाकिन्स भारत में 1608 ई. से 1613 ई. तक ठहरा। हांलाकि वह अपने इस उद्देश्य में असफल रहा।

जहांगीर ने हाकिन्स को बनाया मनसबदार

जहांगीर को खुश करने के लिए विलियम हाकिन्स न केवल बादशाह द्वारा दी हुई शराब की पार्टियों में शामिल होता था बल्कि वह मुगल अभिजात्य वर्ग की पोशाक पहनकर दरबार में पेश होने लगा। लिहाजा जहांगीर ने विलियम हाकिन्स को खान हाकिन्स अथवा अंग्रेज खान कहना शुरू कर दिया।

मुग़ल बादशाह जहांगीर की सेवा में कार्यरत विलियम हाकिन्स ने मुगल सेना को सशक्त बनाने के लिए एक शक्तिशाली बन्दूक बनाने में सहायता प्रदान की, जिसके फलस्वरूप जहांगीर ने विलियम हाकिन्स को 400 सवार का मनसब प्रदान किया। मनसबदार बनने के बाद विलियम हाकिन्स के अधीन 400 घुड़सवार सैनिकों की नियुक्ति की गई तथा बतौर खर्च 30 हजार रुपए भी दिए गए। मुगल दरबार में तकरीबन 3 वर्षों तक रहने के पश्चात आखिरकार विलियम हाकिन्स को ईस्ट इंडिया कम्पनी के आधिकारिक राजदूत के रूप में मान्यता प्रदान की गई।

मुगल प्रशासन के प्रामाणिक आंकड़ों के मुताबिक बादशाह जहांगीर की तरफ से जिन 41 व्यक्तियों को मनसब प्रदान किए गए थे, उनमें से एक नाम विलियम हाकिन्स का भी था। बतौर ईस्ट इंडिया कम्पनी प्रतिनिधि विलियम हाकिन्स ने सूरत में फैक्ट्री स्थापित करने ​के लिए जहांगीर से अनुमति मांगी। बदले में जहांगीर ने उससे किसी भारतीय महिला से विवाह करने की शर्त रखी। इसके बाद विलियम हाकिन्स ने अमेरिकी ईसाई की बेटी मरियम खान से शादी कर ली। मरियम खान का पिता जहाँगीर के दरबार में एक प्रभावशाली व्यापारी था।

विलियम हाकिन्स पर क्रोधित हो उठा जहांगीर

मुगल दरबार में पुर्तगालियों की कई साजिशों का मुकाबला करते हुए विलियम हाकिन्स ने सूरत में फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति भी प्राप्त कर ली। परन्तु पुर्तगाली वायसराय के दबाव में जहांगीर ने ग्रान्ट वापस ले लिया। इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिससे ​विलियम हाकिन्स की सारी मेहनत पर पानी फिर गया।

यह घटना है कि साल 1610 की जब मुगलिया साम्राज्य की सबसे पावरफुल बिजनेस वुमेन मरियम-उज-जमानी का जहाज रहीमी यमन के मोचा शहर के लिए माल लाद रहा था। मरियम-उज-जमानी ने अपना एक एजेंट बयाना (आगरा से 80 किमी की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में नील उत्पादन का एक महत्वपूर्ण केन्द्र) नील खरीदने के लिए भेजा ताकि मोचा शहर में बिक्री के लिए नील की एक बड़ी खेप जहाज पर रखी जा सके।

परन्तु वहां पहले से ही मौजूद विलियम हाकिन्स के एजेन्ट विलियम फिन्च ने एक बड़ी बोली लगाकर नील खरीद लिया। हांलाकि ​विलियम फिन्च ने ऐसा करके बहुत बड़ी गलती कर दी, शायद उसे मरियम-उज-जमानी यानि हरखा बाई की ताकत का अन्दाजा नहीं था। विलियम फिन्च की इस कार्रवाई से हरखा बाई क्रोधित हो उठी और उसने अपने बेटे जहांगीर से इसकी शिकायत की। इसके बाद 1611 ई. में मुगल दरबार से यह आदेश आया कि हरखा बाई के व्यापारी रहीमी जहाज पर अपना माल तभी लादेंगे जब तक अंग्रेज इस देश से चले नहीं जाते।

विलियम हाकिन्स की ब्रिटेन वापसी

​एजेन्ट विलियम ​फिन्च की एक छोटी सी गलती का खामियाजा विलियम हाकिन्स को भुगतना पड़ा। चूंकि पुर्तगाली पहले से ही ​विलियम हाकिन्स के खिलाफ थे, ऐसे में बादशाह जहांगीर के आदेश पर विलियम हाकिन्स ने नवम्बर 1611 ई. में आगरा छोड़ दिया और तीन महीने बाद सूरत बन्दरगाह पहुंचा। सूरत में ​विलियम हाकिन्स की मुलाकात हेनरी मिडल्टन से हुई जिसके साथ वह लाल सागर होते हुए जावा पहुंचा। 1614 ई. में ब्रिटेन लौटते समय विलियम हाकिन्स की मौत हो गई।

इसके बाद साल 1615 में सर टामस रो मुगल दरबार में पेश हुआ। सर टामस रो चार साल तक आगरा में रहा। सर टामस रो को बादशाह जहांगीर के साथ मांडू, अहमदाबाद, अजमेर जैसे कई स्थानों पर जाने का अवसर मिला। साल 1619 में सर टामस रो पादशाह का इस आशय का फरमान लेकर इंग्लैण्ड लौटा कि मुगल दरबार में अंग्रेजों का इसी तरह से स्वागत किया जाता रहेगा।

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