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Who was Razia Sultan's lover Yaqut?, read this historical love story

रजिया सुल्तान का आशिक याकूत कौन था?, पढ़े ऐतिहासिक प्रेम कहानी

दिल्ली सल्तनत की एक मात्र महिला शासक रजिया सुल्तान ने पहली बार स्त्री के सम्बन्ध में इस्लाम की परम्पराओं का उल्लंघन किया। हांलाकि भारत में इस्लाम के समर्थकों के लिए यह नई बात अवश्य थी लेकिन इस्लामिक इतिहास के लिए नहीं। मिस्र, ईरान और ख्वारिज्म के साम्राज्यों में स्त्रियों ने शासन-सत्ता का उपभोग किया और कर रही थीं। जहां तक रजिया सुल्तान के व्यक्तिगत गुणों की बात है, तकरीबन सभी इतिहासकारों ने उसकी प्रशंसा की है। 

सुल्तान की शक्ति और सम्मान में वृद्धि के लिए रजिया सुल्तान ने पर्दा त्याग दिया और सैनिकों की तरह कोट (कुबा) और पगड़ी (कुलाह) पहनकर दरबार में बैठना शुरू किया। इसके साथ ही घुड़सवारी और शिकार करना शुरू किया और जनता के सामने खुले मुंह जाने लगी। रजिया सुल्तान जब घोड़े पर बैठती थी तब एक अबीसीनियाई हब्शी मलिक जमालुद्दीन याकूत उसे अपने हाथों से सहारा दिया करता था, तुर्की सरदारों को यह कत्तई पसन्द नहीं था कि रजिया सुल्तान अपने एक काले गुलाम को पसन्द करे।

अब सवाल यह उठता है कि क्या बेहद खूबसूरत रजिया सुल्तान एक काले-कलूटे गुलाम मलिक जमालुद्दीन याकूत से प्रेम करती थी। आखिर में मलिक जमालुद्दीन याकूत को इतना ज्यादा क्यों पसन्द करती थी रजिया सुल्तान? यही नहीं, हब्शी मलिक जमालुद्दीन याकूत किस तरह से रजिया सुल्तान के सम्पर्क में आया और यह हब्शी गुलाम कहां का निवासी था? इन सब प्रश्नों की जानकारी के लिए यह रोचक स्टोरी अवश्य पढ़ें।

कौन था मलिक जमालुद्दीन याकूत

मलिक जमालुद्दीन याकूत के प्रारंभिक जीवन के बारे में विशेष जानकारी नहीं मिल पाती है, क्योंकि वह एक गुलाम था। मलिक जमालुद्दीन एक तुर्की नाम था जो याकूत को उसके मालिकों ने दिया था अन्यथा वह एक अफ्रीकी सिद्दी था। दरअसल याकूत गुलाम अफ्रीकी समुदाय से आते थे जिन्हें सुल्तानों के द्वारा उनकी शारीरिक शक्ति और वफादारी के लिए नियुक्त किया जाता था। इस प्रकार याकूत’ (गुलाम हब्शी) दिल्ली सल्तनत की सेनाओं और प्रशासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे।

यदि हम मलिक जमालुद्दीन याकूत की बात करें तो यह सुल्तान इल्तुतमिश का गुलाम था। प्रारम्भ में जमालुद्दीन याकूत रजिया सुल्तान की सौतेली मां की सेवा में नियुक्त था। इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद शरीर से ताकतवर अबीसीनीयाई हब्शी गुलाम जमालुद्दीन याकूत को खूबसूरत रजिया की सुरक्षा और देखभाल करने के लिए नियुक्त किया ​गया।

रजिया सुल्तान जब दिल्ली की गद्दी पर बैठी तब उसने अबीसीनियाई हब्शी मलिक जमालुद्दीन याकूत को अमीर--आखूर’ (अश्वशाला का प्रधान) के पद पर नियुक्त किया। ऐसे में याकूत बहुत जल्द ही र​जिया सुल्तान का करीबी सलाहकार और विश्वासपात्र बन गया। इतना ही नहीं, रजिया सुल्तान ने याकूत को अमीर-अल-खैल (घोड़ों का अमीर) और अमीर-अल-उमरा (अमीरों का अमीर) जैसी उपाधियों से भी नवाजा जिससे तुर्की अमीरों में बेचैनी बढ़ गई। इसके अतिरिक्त रजिया सुल्तान अपनी सुरक्षा के लिए शारीरिक रूप से ताकतवर गुलाम याकूत को हर समय अपने साथ रखती थी, ऐसे में दरबारियों और कुलीनों के बीच यह अफवाह फैल गई कि वह रजिया सुल्तान का आशिक है।

रजिया सुल्तान का आशिक था मलिक जमालुद्दीन याकूत

कहते हैं कि मलिक जमालुद्दीन याकूत रज़िया सुल्तान का आशिक और बेहद करीबी सलाहकार था। इतिहासकार इसामी लिखता है कि रजिया सुल्तान और याकूत के बीच अनुचित प्रेम समबन्ध थे। यह सच है कि रजिया सुल्तान जब घोड़े पर बैठती थी तब याकूत उसे अपने हाथों से सहारा दिया करता था। रजिया जब घुड़सवारी करती थी तब अमीर--आखूर याकूत उसके पीछे साये की तरह रहता था। दरअसल बेहद शक्तिशाली और साहसी याकूत किसी छोटी सेना से कम नहीं था, वह रजिया सुल्तान के लिए तलवार और ढाल की तरह काम करता था। याकूत को किसी भी समय रजिया सुल्तान के समक्ष उपस्थित होने का अधिकार प्राप्त था।

कोई भी वजीर, सेनापति अथवा तुर्की सरदार ​रजिया सुल्तान और याकूत के बीच नहीं आ सकता था। ऐसे में रजिया सुल्तान और गुलाम हब्शी याकूत के करीबी सम्बन्धों से तुर्की सरदार कुपित हो गए। हांलाकि रजिया सुल्तान और याकूत के प्रेम सम्बन्धों को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है, फिर भी कुछ ऐसे साक्ष्य हैं जिससे यह साबित होता है कि रजिया सुल्तान के सबसे करीब याकूत ही था।

रजिया सुल्तान और याकूत की मौत

रजिया सुल्तान में वे सभी गुण थे जो एक सुल्तान में होने चाहिए बावजूद इसके तुर्की सरदारों के विद्रोह के चलते वह महज 3 वर्ष 6 माह और 6 दिन ही शासन कर सकी। रजिया सुल्तान और मलिक जमालुद्दीन याकूत की मौत को लेकर इतिहासकारों में आज भी मतभेद है। दरअसल  दिल्ली, कैथल (हरियाणा) एवं टोंक (राजस्थान) में बनी कब्रें रजिया सुल्तान एवं याकूत को लेकर अलग-अलग दावा पेश करती हैं।

कैथल-मानस रोड स्थित रजिया सुल्तान की कब्र से जुड़ी स्टोरी यह है कि जब भटिण्डा के सूबेदार अल्तूनिया और अमीर-ए-हाजिब एतगीन ने तुर्की सरदारों के साथ मिलकर रजिया के विरूद्ध विद्रोह कर दिया तब रजिया ने अल्तूनिया के विद्रोह को दबाने का निश्चय किया। रमजान का महीना था, रजिया सुल्तान अपनी सेना के साथ भटिण्डा किले के सामने खड़ी थी तभी तुर्की सरदारों ने उसे धोखा दे दिया।

तुर्की सरदारों ने मिलकर जमालुद्दीन याकूत का वध कर दिया और रजिया को भटिण्डा के किले में कैद कर दिया। रजिया के कैद होते ही उसके भाई बहराम शाह ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया। हांलाकि रजिया सुल्तान ने दोबारा सिंहासन हासिल करने के उद्देश्य से अल्तूनिया से शादी कर ली। इस प्रकार रजिया और अल्तूनिया की सेना ने दिल्ली की तरफ बढ़ना शुरू किया लेकिन तुर्क अमीरों की नेतृत्व वाली सेना के समक्ष रजिया सुल्तान की हार हुई। यहां तक कि सैनिक भी उसका साथ छोड़ गए। कैथल के निकट रजिया और अल्तूनिया एक वृक्ष के नीचे आराम कर रहे थे तभी कुछ डाकूओं ने 13 अक्टूबर 1240 को उन दोनों की हत्या कर दी।

वहीं राजस्थान के टोंक में पुराने कब्रिस्तान के पास एक बड़ी कब्र है जिस पर फारसी में 'सल्तनते हिंद रजिया' उत्कीर्ण है, इसी कब्र के बगल में एक छोटी मजार भी है जो याकूत की मजार हो सकती है। इस सम्बन्ध में कुछ इतिहासकारों का कहना है कि युद्ध में रजिया सुल्तान की सुनिश्चित हार को देखते हुए याकूत उसे लेकर राजपूताना की तरफ निकल गया लेकिन टोंक में तुर्की सरदारों ने उन्हें घेर लिया जहां रजिया-याकूत की हत्या कर दी गई।

इसके अ​तिरिक्त तुर्कमान गेट, दिल्ली स्थित भोजला पहाड़ी पर भी रजिया सुल्तान का मकबरा स्थित है। रजिया सुल्तान के इस मकबरे के पास एक अन्य मकबरा मौजूद है, जो जमालुद्दीन याकूत का है। अलग-अलग जगहों पर बनी कब्रें इस बात का इशारा करती हैं कि रजिया सुल्तान और याकूत की मौत से जुड़े तथ्यों को लेकर इतिहासकारों से कुछ चूक अवश्य हुई है। हांलाकि यह बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि रजिया सुल्तान ने अल्तूनिया से निकाह केवल राजनीतिक फायदे के लिए किया था जबकि वह अपने आशिक जलालुद्दीन याकूत से मोहब्बत करती थीं।

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