
राजपूताना इतिहास में राजा अथवा राजकुमार किसी भी महिला के पांवों में सोने का गहना पहनाकर उसे ‘पड़दायत’ बना लेते थे। दरअसल राजा की उपपत्नी को पड़दायत कहा जाता था। पड़दायतों में भी जो राजा की सबसे प्रिय होती थी वह ‘पासवान’ कहलाती थी। ऐसी ही एक अद्वितीय सुन्दरी का नाम था ‘पासवान गुलाबराय’। जोधपुर रियासत में गुलाबराय का प्रभाव ठीक उसी प्रकार से था जैसे मुगल दरबार में ‘नूरजहां’ का था। यही कारण है कि कवि राजा श्यामलदास ने अपने ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘वीर विनोद’ में पासवान गुलाबराय को ‘जोधपुर की नूरजहां’ के नाम से सम्बोधित किया है।
बेहद खूबसूरत गुलाबराय जोधपुर के शासक विजय सिंह की सबसे चहेती थी परन्तु रियासत की रानियों और पंडितों ने पासवान गुलाबराय को कभी रानी का दर्जा नहीं दिया। यही वजह है कि पासवान गुलाबराय को कुछ विद्वान जोधपुर की ‘मस्तानी’ की संज्ञा भी देते हैं। इस स्टोरी में हम आपको यह बताने का प्रयास करेंगे कि आखिर किन वजहों से पासवान गुलाबराय को ‘जोधपुर की नूरजहां’ कहा जाता है?
कौन थी पासवान गुलाबराय
मारवाड़ री ख्यात के अनुसार, “अणदा राम जाट की बडारण (दासी) गुलाबराय एक बेहद सुन्दर युवती थी जो 1766 ई. में जोधपुर नरेश विजय सिंह की शाही सेवा में शामिल हुई”। पासवान गुलाबराय ओसवाल (जैन) समुदाय से थी। अत्यन्त सुन्दरी गुलाबराय पर जोधपुर रियासत का शासक विजय सिंह मोहित हो गया। प्रारम्भ में विजय सिंह ने गुलाबराय को अपने राजमहल में गायिका के रूप में रखा परन्तु बाद में उसे पड़दायत के रूप में रनिवास में सम्मिलित कर लिया। साल 1775 में विजय सिंह ने गुलाबराय को अपनी उपपत्नी (पासवान) बना लिया।
विजय सिंह पर पासवान गुलाबराय का प्रभाव
बख्त सिंह की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र विजय सिंह जोधपुर का शासक बना। हांलाकि विजय सिंह अपनी पिता की तरह योग्य नहीं था। कालान्तर में विजय सिंह ने गुलाबराय नामक एक अद्वितीय सुन्दरी को पासवान का दर्जा दे दिया। इतना ही नहीं, वह गुलाबराय के मोहजाल में इस कदर फंसा कि मारवाड़ राज्य का सर्वनाश शुरू हो गया।
अत्यन्त सुन्दरी गुलाबराय ने विजय सिंह को पूर्णतया अपने प्रभाव में ले लिया था, ऐसे में वह राजा से अनुचित कार्य करवाने लगी थी। भाटों ने अपने ग्रन्थों में यहां तक लिखा है कि “पासवान गुलाबराय ने कई बार विजय सिंह को अपनी जूतियों से मारा फिर भी विजयसिंह के स्वाभिमान को किसी प्रकार की ठेस नहीं पहुंची”।
पासवान गुलाबराय को कोई पुत्र नहीं हुआ अत: उसने गुमानसिंह के पुत्र मानसिंह को गोद लेकर मारवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित करवा दिया। इस पर मारवाड़ के राजपूत सरदारों ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि हम एक दासी के दत्तक पुत्र को मारवाड़ का शासक स्वीकार नहीं कर सकते। तत्पश्चात विजय सिंह ने शास्त्रानुसार मानसिंह को गोद लेकर उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया।
पासवान गुलाबराय की जोधपुर रियासत में तूती बोलती थी। उसने जालौर में स्वतंत्र सरकार की स्थापना की तथा वहां का राजकाज चलाया। बुद्धिमान और सरल हृदय गुलाबराय वैष्णव धर्म का पालन करने वाली महिला थी ऐसे में उसने जोधपुर में पशुवध तथा शराब बिक्री पर रोक लगा दी थी। इस आज्ञा का उल्लंघन करने वाले को किले में बुलाकर मृत्युदंड दे दिया जाता था।
पासवान गुलाब राय के निर्माण कार्य
पानी की समस्या से निजात पाने के लिए पासवान गुलाबराय ने जोधपुर परकोटे के अन्दर ‘गुलाब सागर’ तथा ‘राणीसर तालाब’ का निर्माण करवाया। कहते हैं, गुलाबसागर के निर्माण में बेतहाशा पैसा खर्च किया गया। गुलाब सागर में कभी पानी की कमी न हो इसके लिए अंग्रेज इंजीनियर डब्ल्यू. होम्स ने बालसमंद झील से नहरों का निर्माण करवाया था।
गुलाबराय ने साल 1776 में ‘महिला बाग का झालरा’ का निर्माण करवाया था जिसमें एक बड़ा तालाब और कई उद्यान भी शामिल थे। इसके अतिरिक्त पासवान गुलाबराय ने सोजत शहर के परकोटे तथा जालौर दुर्ग में भी कुछ निर्माणकार्य करवाए। कुंज बिहारी मंदिर व गिरदीकोट आदि का निर्माण भी गुलाबराय की प्रेरणा से ही सम्पन्न हुए।
पासवान गुलाबराय की हत्या
जोधपुर के शासक विजय सिंह की गुलाबराय के प्रति अत्यधिक लगाव ने राजमहल की रानियों को नाराज कर दिया था। 'महाराजा विजय सिंह री ख्यात' के मुताबिक, साल 1777 में शेखावाटी महारानी से विवाद के चलते पासवान गुलाबराय महिलाबाग में रहने लगी।
जोधपुर रियासत के दैनिक अभिलेखों से पता चलता है कि विजय सिंह ने भी पासवान गुलाबराय के साथ महिलाबाग में ही रहना पसन्द किया, जो गुलाबराय के प्रति राजा के अत्यधिक प्रेम का द्योतक है। चूंकि गुलाबराय के मुंह से निकला शब्द रामबाण के समान था, ऐसे में उसके प्रभाव से आहत राजकुमार और राजपूत सरदारों ने उसके विरूद्ध षड्यंत्र रचा।
परिणामस्वरूप राठौड़ सरदारों ने रूष्ट होकर 26 अप्रैल 1792 ई.को जोधपुर की गलियों में दिनदहाड़े गुलाबराय की हत्या करवा दी। पासवान गुलाबराय की जब हत्या हुई तब उसकी उम्र 40 साल थी। कविराज श्यामलदास लिखते हैं कि “जोधपुर नरेश विजय सिंह उसकी हत्या से इस कदर आहत हुए कि एक साल के अन्दर ही 46 साल की उम्र में वह भी परलोक गमन कर गए”।
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