महाराणा हम्मीर का पौत्र व क्षेत्रसिंह का पुत्र महाराणा लाखा 1382 ई. में मेवाड़ का शासक बना। महाराणा लाखा के शासनकाल में भाग्यवश जावर (उदयपुर) में चांदी की खान निकली। इस खान की आय से महाराणा लाखा ने कई किलों तथा मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया।
जानकारी के लिए बता दें कि महाराणा लाखा के शासनकाल (14वीं शताब्दी के अन्त) में ही छीतर/पिच्छू नामक चिड़िमार बंजारे ने अपने बैलों की स्मृति में पिछोला नामक कृत्रिम झील का निर्माण करवाया। ये बंजारे अनाज का व्यापार करते थे। दरअसल ‘पिछोला’ शब्द का तात्पर्य होता है-पिछवाड़े और झील के नजदीक बसे एक गांव पिछोली के नाम पर इस मशहूर झील का नाम पिछोला झील रखा गया।
पिछोला झील की लम्बाई तकरीबन 5 किमी. और चौड़ाई 3 किमी. तथा गहराई 30 फीट से ज्यादा है। इस कृत्रिम झील में सीसाराम व बुझडा नदियों से जलापूर्ति की जाती है, जो कि लिंक नहर के द्वारा फतेहसागर झील से जुड़ी है। इस झील के दो टापूओं पर क्रमश: जगमंदिर (लैक पैलेस) व जगनिवास (लैक गार्डन पैलेस) महल बने हुए हैं। दोनों ही महल राजस्थानी शिल्पकला के बेहतरीन उदाहरण हैं जिनके प्रतिबिम्ब उदयपुर शहर की इस झील में स्पष्टरूप से दिखता है।
यहां की प्राकृतिक सुंदरता से आकर्षित होकर महाराणा उदय सिंह ने पिछोला झील के किनारे उदयपुर शहर का निर्माण करवाया था। इतना ही नहीं महाराणा उदयसिंह ने पिछोला झील की पाल को पक्का करवाया था। जगमन्दिर (लैक पैलेस) का निर्माण 1620 ई.में करण सिंह ने शुरू करवाया जिसे 1651 ई.में जगतसिंह प्रथम ने पूरा करवाया।
झील के उत्तर-पूर्व में स्थित मोहन मंदिर का निर्माण जगत सिंह ने 1628 और 1652 के बीच करवाया था। वहीं जगनिवास (लैक गार्डन पैलेस) महल का निर्माण कार्य 1746 ई. में जगतसिंह द्वितीय ने पूर्ण करवाया। यहाँ एक अर्शी विलास द्वीप भी है जिसको उदयपुर के महाराजा ने सूर्यास्त का आनंद लेने के लिए बनवाया था। पिछोला झील के पास कई तरह के पक्षियों के लिए एक अभयारण्य भी है। मौजूदा समय में जग निवास एक हेरिटेज होटल के रूप में परिवर्तित हो चुका है।
पिछोला झील इतिहास में एक नहीं अनगिनत कारणों से विख्यात है, बतौर उदाहरण वर्ष 1573 ई. में अमर सिंह (महाराणा प्रताप के पुत्र) और मानसिंह की मुलाकात इसकी पाल पर हुई थी। इसके अतिरिक्त वर्ष 1623 में, मुगल राजा जहांगीर के खिलाफ विद्रोह करने वाले राजकुमार खुर्रम ने करण सिंह द्वितीय के अधीन शरण ली और उन्हें जग मंदिर के भव्य महल में रखा गया।
यह बात भी बहुत कम लोग जानते हैं कि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने मेवाड़ प्रवास (वर्ष 1882 ई.) के दौरान अपने अमूल्य ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश का अधिकांश भाग पिछोला झील के जगमंदिर में ही लिखा था। साल 1982 में ब्रिटिश एक्टर रोजर मूर स्टारर जेम्सबॉन्ड सीरीज की मूवी ऑक्टोपसी की शूटिंग के बाद पिछोला झील पूरे विश्व में मशहूर हो गई।
पिछोला झील के किनारे बने शानदार महल, संगमरमर के मंदिर, हवेलियां, नहाने के सुन्दर घाट बने हुए हैं, जो उदयपुर आने वाले सैलानियों को बरबस ही आकर्षित करते हैं। इन सबसे इतर पिछोला झील में मौजूद गलकी नटणी का चबूतरा उदयपुर के पर्यटकों को अपनी रोमांचक कहानी जानने पर मजबूर कर देता है।
दोस्तों, उत्तर भारत में नट जाति खानाबदोश जीवन व्यतीत करते हैं। नट शब्द से तात्पर्य है- नृत्य या नाटक करना। संभवत: शरीर के प्रत्येक अंग को लचीला बनाकर भिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित करते हुए जनता का मनोरंजन करना ही इनका मुख्य पेशा है। इनकी स्त्रियाँ खूबसूरत होने के साथ-साथ हाव-भाव प्रदर्शन करके नृत्य व गायन में काफी प्रवीण होती हैं। नट जाति की स्त्रियों को नटणी कहा जाता है।
इसी क्रम में खूबसूरत गलकी नटणी भी रस्सी के उपर चलते हुए नृत्य करने में माहिर थी। मेवाड़ में उसके इन कारनामों की गूंज जब महाराणा लाखा तक पहुंची तो उन्होंने गलकी नटणी से मिलने की इच्छा जाहिर की। तत्पश्चात राजाज्ञा के अनुसार गलकी नटणी महाराणा के सम्मुख उपस्थित हुई।
महाराणा लाखा ने गलकी नटणी से कहा कि यदि वह पिछोला झील के दोनों किनारों पर रस्सी बांधकर बिना किसी सहारे के झील को पार कर लेगी तो उसे शर्तानुसार मेवाड़ का आधा राज्य उपहार में दे दिया जाएगा। फिर क्या था, महाराणा के इस आदेश के बाद पिछोला झील के दोनों किनारों पर रस्सा बांधा गया। पिछोला की पाल पर महाराणा के लिए सिंहासन रखा गया। उनके आस पास सामंत, ठाकुर और उमराव विराजमान थे।
गलकी नटणी के करतब दिखाने की चर्चा पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई। मुंह में तलवार और पांवों में बिजली सी थिरकन लिए गलकी ने पहला पांव जैसे ही रस्से पर रखा, वैसे ही उपस्थित लोगों ने तालियां बजाई।
पिछोला झील पानी से लबालब भरी हुई थी, देखते ही देखते गलकी नटणी ने आधे से अधिक दूरी को पार कर लिया। लेकिन इसी बीच महाराणा के मंत्रियों ने रस्सी काट दिया और गलकी नटणी झील में समा गई। इस प्रकार मेवाड़ का आधा राज्य तो बच गया लेकिन राणा के वचन का सत्य झील की गहराईयों में समा गया। गौरतलब है कि उसी गलकी नटणी की स्मृति में पिछोला झील में बिजोरी नामक स्थान पर चबूतरा निर्मित करवाया गया है, जो जनसाधारण के बीच ‘नटणी का चबूतरा’ नाम से विख्यात है।