भारत का इतिहास

The last Sultan of Delhi Sultanate Ibrahim Lodi

दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.)

इब्राहिम लोदी अपने पिता सिकन्दर लोदी के निधन के पश्चात दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा। इब्राहिम लोदी न केवल लोदी वंश बल्कि दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान था। इब्राहिम लोदी ने 9 वर्षों (1517 ई. से 1526 ई.) तक शासन किया। ग्वालियर विजय इबाहिम लोदी की एकमात्र यशस्वी विजय थी।

इसके बाद मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा के विरूद्ध इब्राहिम लोदी को खतौली (1517-1518 ई.) तथा धौलपुर के युद्ध (1519 ई.) में बुरी हार का सामना करना पड़ा बावजूद इसके मेवाड़ और दिल्ली में कई युद्ध हुए परन्तु उन सभी युद्धों में दिल्ली की सेना को ही पराजित होना पड़ा। इस प्रकार मेवाड़ के महाराणा सांगा से युद्ध करने में इब्राहिम लोदी को अपमान और असफलता ही मिली त​था उसकी सैनिक शक्ति भी कमजोर हुई।

आखिरकार 21 अप्रैल 1526 ई. को बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें बाबर की कुशल रणनीति, योग्य सेनाप​तित्व एवं तोपखाने के चलते सुल्तान इब्राहिम लोदी की पराजय हुई और वह युद्धस्थल पर ही मारा गया। इसमें कोई दो राय नहीं कि इब्रा​हिम लोदी एक योग्य सेनापति था परन्तु मुगल वंश का संस्थापक बाबर इस दृष्टि से उससे श्रेष्ठ था।

सुल्तान इब्राहिम लोदी के बारे में इतिहासकार फ़रिश्ता लिखता है कि वह मृत्युपर्यन्त लड़ा और एक सैनिक की भांति मारा गया। वहीं नियामतुल्लाह के मुताबिक, सुल्तान इब्राहिम लोदी के सिवाय भारत का कोई अन्य सुल्तान युद्धस्थल में नहीं मारा गया।  

यह सच है कि महाराणा सांगा से संघर्ष के कारण इब्राहिम लोदी की सैनिक शक्ति दुर्बल हुई और बाबर से युद्ध जीतना असम्भव तो नहीं परन्तु कठिन अवश्य था। इससे इतर अपने ही अफगान सरदारों से संघर्ष भी इब्राहिम लोदी के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण बना।

जलाल खां लोदी का विद्रोह

सिकन्दर लोदी की मृत्यु के समय अफगान सरदारों की सम्मति से यह निश्चय किया गया कि सुल्तान का ज्येष्ठ पुत्र इब्राहिम लोदी दिल्ली की गद्दी पर बैठेगा और जौनपुर का शासक उसका छोटा भाई जलाल खां लोदी होगा।

ऐसे में सुल्तान बनने के अवसर पर इब्राहिम लोदी ने अपने छोटे भाई जलाल खां को जौनपुर का शासक स्वीकार कर लिया। परन्तु इब्राहिम लोदी शीघ्र ही साम्राज्य विभाजन का विरोधी हो गया। उसने अफगार सरदारों द्वारा किए गए समझौते को भंग करके एकमात्र सुल्तान रहने का निश्चय किया।

जलाल खान लोदी अभी कालपी ही पहुंचा था तभी इब्राहिम लोदी ने उसे हैबत खां के द्वारा एक सन्देश भेजकर तत्काल दिल्ली बुलवाया। इसके साथ ही जौनपुर तथा बिहार के सरदारों को यह आदेश दिया कि वे सभी जलाल खां की आज्ञा का पालन न करें

इसके साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से इब्राहिम लोदी ने सबसे पहले अपने सभी भाईयों को हांसी के किले में कैद कर लिया। ऐसे में जलाल खां लोदी ने दिल्ली आने से इनकार कर दिया और जब उसे यह पता चला कि जौनपुर के सरदारों को उसे कैद करने के आदेश दिए गए हैं तब जलाल खां लोदी ने कालपी में जलालुद्दीन नाम से स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया। हांलाकि इस दौरान सरदारों ने जलाल खां को इब्राहिम लोदी को सुल्तान मानने के लिए राजी भी कर लिया था परन्तु इब्राहिम लोदी इस समझौते के लिए तैयार नहीं था।

अंत में जलाल खां ने गोंड राजा के यहां शरण ली जहां के शासक ने उसे कैद करके इब्राहिम लोदी के पास भेज दिया। फिर क्या था, इब्राहिम लोदी ने जलाल खां को हांसी के किले में कैद करने के लिए भेजा परन्तु रास्ते में ही उसे जहर देकर मरवा दिया। इस प्रकार इब्राहिम लोदी ने अपने छोटै भाई जलाल खां लोदी की हत्या करवाकर अपने राज्य को विभाजित होने से बचा लिया

इब्राहिम लोदी की ग्वालियर विजय

जलाल खां लोदी को निबटाने के बाद इब्रा​हिम लोदी ने ग्वालियर विजय की योजना बनाई। दरअसल ग्वालियर ने समय-समय पर दिल्ली सल्तनत का विरोध किया था। इसके अतिरिक्त ग्वालियर को जीतने में उसका पिता सिकन्दर लोदी भी असफल रहा था। ऐसे में ग्वालियर की विजय इब्रा​हिम लोदी की प्रतिष्ठा में वृद्धि कर सकती थी

चूंकि ग्वालियर का राजा जलाल खां को शरण भी दे चुका था, अत: इसी बहाने की आड़ में इब्राहिम लोदी ने आजम खां हुमायूं को एक बड़ी सेना के साथ ग्वालियर पर आक्रमण करने के लिए भेजा। उन दिनों मान सिंह का पुत्र विक्रमाजीत ग्वालियर का राजा था। उसने साहसपूर्वक किले की रक्षा करने का भरपूर प्रयास किया लेकिन असफल रहा। अंत में विक्रमाजीत को आत्मसमर्पण करना पड़ा। इसके बाद ग्वालियर पर इब्राहिम लोदी का अधिकार हो गया। हांलाकि इब्राहिम लोदी ने उदारतापूर्वक विक्रमाजीत के शमशाबाद की जागीर दे दी।

मेवाड़ के महाराणा सांगा से युद्ध

ग्वालियर विजय से उत्साहित होकर इब्राहिम लोदी ने मेवाड़ विजय की योजना बनाई। इस बार इब्राहिम लोदी का सामना राजस्थान के सबसे शक्तिशाली राज्य मेवाड़ तथा उसके शासक महाराणा सांगा से था जो एक महान योद्धा था। दिल्ली सल्तनत और मेवाड़ के बीच का संघर्ष मालवा पर अधिकार को लेकर था।

जहां एक तरफ महाराणा सांगा मालवा में राजपूत प्रभाव बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा था, वहीं दूसरी तरफ जलाल खां के विद्रोह के समय उसने दिल्ली सलतनत के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार भी कर लिया था। ऐसे में इब्राहिम लोदी ने मेवाड़ विजय करके अपने राज्य और सम्मान में वृद्धि करने का प्रयत्न किया। इस दौरान सुल्तान इब्राहिम लोदी और महाराणा सांगा के बीच कई युद्ध हुए जिनमें सुल्तान को पराजय और अपयश का सामना करना पड़ा।

1-खतौली का युद्ध (1517-18 ई.)

सुल्तान इब्राहिम लोदी और मेवाड़ के महाराणा सांगा के मध्य पहला युद्ध साल 1517-18 ई. में ग्वालियर के निकट खतौली नामक स्थान पर हुआ जिसमें सांगा की विजय हुई। हांलाकि इस युद्ध में राणा सांगा ने अपना बायां हाथ खो दिया और उसकी एक टांग घायल हो गई। इस युद्ध के बाद राणा सांगा ने चन्देरी पर अधिकार कर लिया।

2-  धौलपुर का युद्ध (1519 ई.)

इब्राहिम लोदी ने खतौली की हार का बदला लेने के लिए साल 1519 में मियां हुसैन फरमूली और मियां मक्खन के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। महाराणा सांगा की सेना ने धौलपुर के निकट इब्राहिम की सेना को पराजित किया। बाबर अपनी आत्मकथा बाबरनामा में लिखता है कि इस युद्ध में राजपूतों की विजय हुई और इस विजय के बाद महाराणा सांगा उत्तरी भारत का सबसे शक्शिाली शासक बन गया।

इस युद्ध के पश्चात भी मेवाड़ और दिल्ली में कई युद्ध हुए उन सभी में दिल्ली की सेना को परा​जित होना पड़ा। इस प्रकार महाराणा सांगा ने बयाना तक अपने राज्य का विस्तार करने में सफलता प्राप्त की। ठीक इसके विपरीत इब्राहिम लोदी को असफलता और अपमान का स्वाद चखना पड़ा, साथ ही उसकी सैनिक शक्ति भी दुर्बल हुई। 

अफगान सरदारों से संघर्ष

इब्राहिम लोदी का अपने ही अफगान सरदारों से संघर्ष उसके पतन का कारण बना। सबसे पहले तो इब्राहिम लोदी ने अपने भाई जलाल खां को जहर देकर मरवा दिया। इसके बाद अन्य सभी भाईयों की कारगार में हत्या करवा दी। इतना ही नहीं, इब्राहिम लोदी ने अफगान सरदार आजम खां हुमायूं सरवानी तथा उसके पुत्र फतह खां को आगरा बुलाकर कारागार में डाल दिया।

सिकन्दर लोदी के समय वजीर रहे मियां भुआ को भी कैद कर लिया जो 28 वर्षों से पूरी वफादारी और योग्यता से लोदी सुल्तानों की सेवा कर रहा था। दूसरी तरफ मियां भुआ के पुत्र को वजीर बना दिया परन्तु उस शख्स से वफादारी की उम्मीद करना मूर्खता होगी जिसका पिता कैद में हो। इसके अतिरिक्त ​इब्राहिम लोदी ने पुराने सरदारों की जगह अपने प्रति वफादार नए और छोटे सरदारों को बड़े-बड़े पद देना शुरू किया जिससे अनेक सरदार उससे असन्तुष्ट हो गए।

परिणामस्वरूप आजम खां हुमायूं सरवानी के दूसरे पुत्र इस्लाम खां के नेतृत्व में अफगान सरदारों ने कड़ा से लेकर कन्नौज तक सम्पूर्ण अवध प्रदेश में बगावत का झण्डा बुलन्द कर दिया। इन विद्रोही सरदारों ने सुल्तान इब्राहिम लोदी के विरूद्ध 40 हजार घुड़सवार और 500 हाथियों की एक सम्मिलित सेना एकत्र कर ली। ऐसे में दिल्ली की सेना और विद्रोही अफगान सरदारों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। पूरा युद्ध स्थल अफगानी लाशों से पट गया, दोनों तरफ से तकरीबन 10000 बहादुर अफगानी योद्धा मारे गएयद्यपि इस युद्ध में इब्रा​हिम लोदी की विजय हुई लेकिन उसने अपनी सेना के सर्वाधिक साहसी शूरवीर खो दिए जिससे अफगानों की शक्ति दुर्बल हो गई

दौलत खां लोदी का बाबर को निमत्रंण

इब्राहिम लोदी द्वारा अफगान सरदारों के दमन से भयभीत होकर उसकी शक्ति को तोड़ने के लिए पंजाब के सूबेदार दौलत खां लोदी ने बाबर को निमंत्रण दिया। वहीं इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खां लोदी जो गुजरात के शासक की शरण में था, बाबर से मदद मांगने काबुल गया। बाबर जो पहले से ही भारत पर आक्रमण करने का इच्छुक था, इस अवसर का लाभ उठाकर 1524 ई. में लाहौर तक आक्रमण किया।

बाबर ने इब्राहिम की सेना को पराजित करके लाहौर में अपने सरदारों की नियुक्ति की और वापस चला गया। हांलाकि दौलत खां लोदी जो बाबर के प्रति शंकित था, उसने आलम खां लोदी से समझौता करके 1525 ई. में दिल्ली पर आक्रमण किया लेकिन इब्राहिम लोदी ने उन दोनों को पराजित कर दिया। 

पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1526 ई.)

चूंकि दौलत खां लोदी और आलम खां लोदी सुल्तान इब्राहिम से पहले ही पराजित हो चुके थे। ऐसे में बाबर को पंजाब पर अधिकार करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। दौलत खां लोदी का पुत्र दिलावर खां और आलम खां उससे मिल गएमेवाड़ के साथ-साथ मालवा और गुजरात के शासक भी इब्राहिम की पराजय के इच्छुक थे। यहां तक कि गुजराज का भगोड़ा शहजादा बहादुरशाह अपने 3000 घुड़सवारों के साथ एक दर्शक की भांति पानीपत युद्ध स्थल के निकट उपस्थित था

इस प्रकार 21 अप्रैल 1526 ई. को बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ। बाबर के कुशल सेनापतित्व और तोपखाने की वजह से इब्राहिम की पराजय हुई और वह युद्ध स्थल में ही मारा गयाइब्राहिम लोदी की मृत्यु के साथ ही न केवल लोदी वंश समाप्त हुआ बल्कि दिल्ली सल्तनत का इ​तिहास भी सर्वदा के लिए समाप्त हो गया। लोदी वंश के पतन के साथ ही बाबर ने मुगल साम्राज्य की स्थापना की।

इब्राहिम लोदी का मकबरा

दिल्ली शहर के दक्षिणी मध्य इलाके में मौजूद लोदी गार्डेन स्थित शीश गुम्बद नामक मकबरे को ही ज्यादातर लोग इब्राहिम लोदी का मकबरा समझ लेते हैं जबकि हकीकत यह है कि लखौरी ईटों से निर्मित इब्राहिम लोदी का मकबरा पानीपत (हरियाणा) में तहसील कार्यालय के नजदीक स्थित हैइब्राहिम लोदी के मकबरे के बिल्कुल पास में ही सूफी संत बू अली शाह कलंदर की दरगाह भी है।

इब्राहिम लोदी की कब्र ऊंचे मंच पर विकसित की गई है जोकि एक आयताकार संरचना है। कब्र तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। अलेक्जेंडर कनिंघम के मुताबिक, इब्राहिम लोदी का मकबरा ग्रैंड ट्रंक रोड बनने दौरान क्षतिग्रस्त हो गया था ऐसे में साल 1866 में अंग्रेजों ने इस मकबरे को स्थानांतरित कर इसका जीर्णोद्धार करवाया। इसके साथ ही एक शिलालेख भी अंकित करवाया जो पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्रा​हिम लोदी की मृत्यु की जानकारी प्रदान करता है।

सुल्तान इब्रा​हिम लोदी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

सिकन्दर लोदी की मृत्यु के पश्चात उसका ज्येष्ठ पुत्र इब्राहिम लोदी अफगान सरदारों की सर्वसम्मति से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

दिल्ली सल्तनत तथा लोदी वंश का अंतिम सुल्तान था इब्राहिम लोदी

राज्य विभाजन के फलस्वरूप इब्राहिम लोदी के छोटे भाई जलाल खां को जौनपुर का सुल्तान बनाया गया लेकिन इब्राहिम लोदी ने जौनपुर पर भी कब्जा कर लिया।

काल्पी में जलाल खां ने स्वयं को जलालुद्दीन नाम से सुल्तान घोषित किया था

इब्राहिम लोदी ने अपने छोटे भाई जलाल खां को जहर देकर मरवा दिया और अपने अन्य भाईयों की कारगार में ही हत्या करवा दी।

इब्रा​हिम लोदी को मेवाड़ के महाराणा सांगा ने खतौली (1517-18 ई.) तथा धौलपुर के युद्ध (1519 ई.) में पराजित किया

मालवा के प्रधानमंत्री का नाम मेदिनी राय था

पंजाब का सूबेदार था-दौलत खां लोदी

अफगान सरदारों को समान रूप से पुकारा जाता था-मलिक

इब्राहिम लोदी ने ग्वालियर के ​शासक विक्रमाजीत (मानसिंह का पुत्र) को शिकस्त दी। इब्राहिम लोदी की यह एकमात्र यशस्वी विजय थी।

बाबर के खिलाफ पानीपत के प्रथम युद्ध (21 अप्रैल 1526 ई.) में इब्राहिम लोदी न केवल पराजित हुआ बल्कि युद्ध मैदान में मारा गया।

नियामतउल्ला के अनुसार, “युद्ध मैदान में मरने वाला वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था

इब्रा​हिम लोदी की मृत्यु के साथ ही दिल्ली सल्तनत का भी अंत हो गया।

लोदी वंश की शासन व्यवस्था राजतंत्रीय न होकर कुलीनतंत्रीय थी।

लोदी वंश के काल में अमीरों का महत्व अपने चरमोत्कर्ष था।

इब्राहिम लोदी ने अपने वजीर मियां भुआ को कारगार में डाल दिया जो उसके पिता सिकन्दर लोदी के समय में भी वजीर था।

इसके अतिरिक्त इब्रा​हिम लोदी प्रमुख अफगान सरदार आजम खां हुमायूं को भी कारगार में डाल दिया था।

इब्राहीम लोदी ने लोहानी, फारमूली एवं लोदी जातियों के दमन का पूर्ण प्रयास किया, जिससे शक्तिशाली सरदार असंतुष्ट हो गए।

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