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the hero of the great revolution of 1857 Gangu Mehtar killed 200 British soldiers

1857 की महाक्रांति का गुमनाम नायक, अकेले मार गिराए 200 अंग्रेज सैनिक

1857 की महाक्रांति भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। अंग्रेजी शासन के 100 वर्षों के इतिहास में यह एक ऐसी घटना थी जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी। इस​ विद्रोह का प्रारम्भ एक सैनिक क्रांति के रूप में हुआ किन्तु शीघ्र ही इसका स्वरूप बदलकर जनव्यापी आन्दोलन में तब्दील हो गया। इसीलिए आधुनिक भारत के इतिहास में इस महाक्रांति को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा गया है।

1857 की महाक्रांति के महानायकों में से एक नाना साहेब (बिठूर के शासक) ने विद्रोही सैनिकों का बड़ी दक्षता से नेतृत्व किया और कानपुर में अंग्रेजी सेना को करारी शिकस्त दी। इस दौरान नाना साहब की सेना के एक गुमनाम योद्धा ने 200 अंग्रेज सैनिक अकेले ही मार गिराए थे, जिसे इतिहास के स्वर्णिम पन्नों से विस्मृत कर दिया गया। जी हां, कानपुर के उस नायक का नाम है गंगू मेहतर, जिसे लोग गंगू पहलवान अथवा गंगू बाबा भी कहते थे। वाल्मीकि समुदाय से ताल्लुक रखने वाले नायक गंगू मेहतर का रोचक इतिहास जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।

गंगू मेहतर का जीवन-परिचय

वाल्मीकि समुदाय (भंगी जाति) से ताल्लुक रखने वाले गंगू मेहतर यानि गंगू पहलवान का जन्म कानपुर के पास अकबरपुरा गांव में हुआ था। उन दिनों समाज में व्याप्त छूआछूत और नीची जाति की प्रताड़ना का दंश गंगू मेहतर और उनके परिवार को भी झेलना पड़ा, लिहाजा गूंग मेहतर अनपढ़ ही रह गए।

छूआछूत और जातिगत प्रताड़ना से बचने के लिए गंगू मेहता अपने परिवार सहित कानपुर के चुन्नीगंज में आकर बस गए। नाना साहब की सेना के इस वीर योद्धा को लोग गंगू मेहतर, गंगू पहलवान ​अथवा गंगू बाबा के नाम से जानते थे। सती चौरा गांव में गंगू मेहता का अखाड़ा था। गंगू मेहतर ने कुश्ती के सभी दांव- पेंच एक मुस्लिम उस्ताद से सीखी थी। इसीलिए गंगू मेहतर को लोग गंगू पहलवान अथवा श्रद्धा से गंगू बाबा कहकर पुकारते थे।

नाना साहब की सेना में सूबेदार थे गंगू मेहतर

ऐसा कहते हैं कि बिठूर के तत्कालीन पेशवा नाना साहब अपनी सेना सहित जंगल के रास्ते गुज़र रहे थे, तभी उन्होंने गंगू मेहतर को अपनी पीठ पर मृत बाघ को लेकर लौटते हुए देखा। नाना साहब पहली मुलाकात में ही गंगू मेहतर से बेहद प्रभावित हुए। नाना साहब ने गंगू मेहतर को अपनी सेना में शामिल होने के लिए कहा तत्पश्चात वह विद्रोही सैनिकों की सेना में भर्ती हो गए।

देशभक्ति के जज्बे से लबरेज गंगू मेहतर को नाना साहब के विश्वास पात्र सेवकों में से एक माना जाता था। गंगू मेहतर शुरूआत में नाना साहब की सेना में नगाड़ा बजाते थे। नाना साहब के सैनिक दस्ते के बेहतरीन लड़ाकों में से एक थे गंगू मेहतर। गंगू मेहतर की वीरता और पहलवानी के दांव-पेच के चलते ही शीघ्र ही उन्हें विद्रोहियों की सेना में सूबेदार का पद मिल गया।

गंगू मेहतर ने अकेले मार गिराए 200 अंग्रेज सैनिक

नाना साहब की सेना में गंगू मेहता की पहचान एक क्रूर योद्धा की थी। 1857 की महाक्रांति के दौरान अंग्रेजी सेना के साथ हुए एक युद्ध के दौरान नाना साहब की सेना के इस योद्धा ने अकेले ही तकरीबन 200 अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया। गंगू मेहता के इस शौर्य से अंग्रेज इतने भयभीत हो गए कि उन्होंने यह अफवाह फैलाई की गंगू ने औरतों और बच्चों की हत्या की है, इसलिए लोग गंगू मेहता का साथ छोड़ने लगे। 

गंगू मेहतर को फांसी

अंग्रेज अफसर हेनरी हैवलॉक ने शीघ्र-अतिशीघ्र गंगू मेहतर को जिन्दा अथवा मुर्दा कैद करने के आदेश जारी किए। अंग्रेज अफसर किसी भी कीमत पर गंगू मेहता को पकड़ना अथवा मारने चाहते थे ताकि अंग्रेज सैनिकों के दिमाग से गंगू मेहता के डर को खत्म किया जा सके। आखिरकार गंगू मेहता को अंग्रेजों ने एक दिन पकड़ ही लिया तत्पश्चात अंग्रेजों ने गंगू मेहतर को घोड़ों में बाधकर पूरे शहर में घसीटा।

अंग्रेजों ने गंगू मेहतर को लोहे की बेड़ियों में जकड़कर कई दिनों तक कालकोठरी में रखा और उन पर बेइंतहा जुल्म किए। फिर अंग्रेजी सरकार ने गंगू पहलवान पर महिलाओं तथा बच्चों को कत्ल करने का झूठा मुकदमा चलाकर फांसी की सजा सुनाई। तत्पश्चात 8 सितंबर, 1859 ई. को कानपुर में चुन्नी गंज चौराहे पर नीम के पेड़ से लटकाकर सबके सामने फांसी दे दी।

फांसी पर चढ़ने से पूर्व गंगू मेहतर ने कहा, “देश की मिट्टी में हमारे पूर्वजों के ख़ून व क़ुर्बानी की खुशबू है, एक दिन यह मुल्क आज़ाद होगा।भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इस वीर नायक को इतिहास ने तकरीबन भूला ही दिया था, किन्तु कानपुर के चुन्नी गंज में लगी प्रतिमा ने गंगू मेहतर को सर्वदा- सर्वदा के लिए अमर ​कर दिया।

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