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The British built the city of Calcutta by combining three villages, read its interesting history

अंग्रेजों ने तीन गांवों को मिलाकर बनाया था कलकत्ता शहर, पढ़ें रोचक इतिहास

ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता को वर्तमान में हम सभी कोलकाता के नाम से जानते हैं। 'पूर्वी भारत के प्रवेश द्वार के रूप में ​परिचित कोलकाता शहर को 'आनन्द का शहर' (The City of Joy) भी कहा जाता है। कोलकाता भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है।

एक दौर था जब भारत के महानगर कोलकाता से अंग्रेजों ने पूरे हिन्दुस्तान पर राज किया। हांलाकि भारतीय मुक्ति संग्राम का प्रारम्भिक केन्द्रबिन्दु भी कोलकाता ही रहा, जिसने एक से बढ़कर एक समाजसुधारक और स्वतंत्रता सेनानी पैदा किए। ब्रिटिश हुकूमत की राजधानी होने के कारण कोलकाता काफी लम्बे समय तक भारतवर्ष का वाणिज्यिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र भी बना रहा।

फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, बिरला तारमंडल, हावड़ा ब्रिज, दक्षिणेश्वर काली मंदिर, विज्ञान नगरी, मोटरकारखाना, जूट कारखाने, अजायबघर, चिड़ियाखाना आदि कोलकाता शहर की पहचान हैं। ऐसे में अब आप सोच रहें होंगे कि आखिर में कौन से वह तीन गांव थे जिनके विकास से कोलकाता शहर अपने अस्तित्व में आया? इस महत्वपूर्ण तथ्य को जानने के लिए यह रोचक स्टोरी अवश्य पढ़ें।

कलकत्ता शहर का जन्म

साल 1690 में मुगल बादशाह औरंगजेब के सिपहसालार शाइस्ता  ​खां ने हुगली के जंग में ईस्ट इंडिया कम्पनी को करारी शिकस्त दी। इसके बाद अंग्रेजों को दोबारा व्यापार शुरू करने के लिए मुगल दरबार में उपस्थित होकर औरंगजेब के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा। अत: बादशाह औरंगजेब ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को दोबारा व्यापार करने की आज्ञा दे दी। इसके पीछे असली वजह यह थी कि एक तो मुगल स्वयं कम्पनी के माल के ग्राहक थे, दूसरे कम्पनी से उन्हें राजस्व प्राप्त हो रहा था।

चूंकि अंग्रेज अब समुद्र के महत्व को समझ रहे थे, ऐसे में मुगलों से पराजित होने के बाद भी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने साल 1690 में सुतानट्टी में एक फैक्ट्री स्थापित कर ली। चूंकि अंग्रेजों के पास अब पहले जैसे अधिकार प्राप्त थे अत: जमींदार शोभासिंह के विद्रोह के कारण कम्पनी ने साल 1696 में सुतानट्टी की किलेबन्दी की और 1200 रुपए भुगतान करके तीन गांवों की जमींदारी यानि लगान वसूले का ​अधिकार प्राप्त कर लिए। ये तीन गांव थे सुतानट्टी, कालीघाट और गोविन्दपुर।

तीन गांव  :  सुतानट्टी, कालीघाट और गोविन्दपुर

कालीघाट एक ऐसा गांव था जिसमें मछुआरे रहते थे। बता दें कि कालीघाट को कालिकोटा के नाम से भी जाना जाता है, यानि काली मां का मंदिर। वहीं सुतानट्टी बनकरों का इलाका था। गोविन्दपुर शेठों तथा बसाक व्यापारियों का गांव था। कहते हैं गोविन्दजी इन परिवारों के कुल देवता थे अत: उन्होंने इस गांव का नाम गोबिंदपुर रखा।

साल 1700 में बंगाल की फैक्ट्री एक प्रेसिडेन्ट और काउंसिल के अधीन हो गई और यहां नई किलेबन्दी की गई। ऐसे में   कम्पनी का मुख्यालय बनते ही गांव के आस-पास अंग्रेज कर्मचारियों के आवास एवं भोजन आदि की व्यवस्था की गई, इस प्रकार देखते ही देखते यह जगह शहर में तब्दील हो गया। इस प्रकार बस्ती फोर्ट ​विलियम और नगर कलकत्ता कहलाने लगा और समय के साथ-साथ इस नगर का विस्तार होते चला गया।

साल 1717 में मुगल बादशाह फर्रूखसियर से फरमान प्राप्त करने के बाद कम्पनी अत्यधिक शक्तिशाली बन गई। इतिहासकार ओर्म्स ने इस मुगल फरमान को कम्पनी का मैग्नाकार्टा कहा है। हांलाकि बंगाल के सूबेदार मुर्शिद कुली खां ने इन तीनों गांवों (सुतानट्टी, कालीघाट और गोविन्दपुर) के अनुदान का विरोध किया, बावजूद इसके कम्पनी के व्यापार में बढ़ोतरी हुई और 1735 ई. में कलकत्ता की जनसंख्या बढ़कर 100,000 हो गई।

जॉब चार्नोक नहीं है कलकत्ता का संस्थापक

भारतीय इतिहास में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासक जॉब चार्नोक (Job Charnock) को काफी लम्बे अर्शे से कलकत्ता (कोलकाता) शहर का संस्थापक माना जाता रहा, लेकिन साल 2003 में 16 मई को कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद उन सभी सरकारी दस्तावजों से जॉब चार्नोक का नाम हटा दिया गया जिसमें उसे कलकत्ता का संस्थापक बताया गया था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शहर की स्थापना का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता है जबकि कलकत्ता तीन गांवों से मिलकर बना है

दरअसल गोराचंद रॉय चौधरी ने तकरीबन 20 वर्ष पहले कोलकत्ता हाईकोर्ट में इस तथ्य को चुनौती थी जॉब चार्नोक ने कलकत्ता की स्थापना की थी। गोराचंद रॉय चौधरी ने कलकत्ता हाईकोर्ट में ऐसे कागजात पेश किए जिससे साबित हो गया कि उनके पूर्वजों को अकबर के मुख्य सेनापति मानसिंह ने यहां की जमीनें दी थीं जिसे बाद में जॉब चार्नोक ने 99 साल के लिए लीज पर लिया था। इस प्रकार कोलकाता हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद यह साबित हो गया कि कलकत्ता शहर का संस्थापक जॉब चार्नोक नहीं था।

कलकत्ता का नामकरण कोलकाता (kolkata) करने की वजह

गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने साल 1772 में कलकत्ता को ब्रिटिश भारत की राजधानी घोषित किया। साल 1774 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना भी सर्वप्रथम कोलकाता में ही हुई थी। तकरीबन 140 वर्षों तक शासनकार्य चलाने के बाद साल 1911 में ब्रिटिश हुकूमत ने देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दी।

देश की आजादी के तकरीबन 55 वर्षों बाद 1 जनवरी 2001 को कलकत्ता का आधिकारिक नाम बदलकर कोलकाता कर दिया गया। हांलाकि कलकत्ता हाईकोर्ट और कलकत्ता विश्वविद्यालय जैसे कुछ संस्थानों ने अपने पुराने नामों को ही बरकरार रखा है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर कलकत्ता का नाम बदलकर कोलकाता क्यों कर दिया गया, इसके पीछे कौन सा रोचक इतिहास छुपा है।

ब्रिटिश शासन काल में कालिकाता को अंग्रेजी में कलकत्ता के रूप में उच्चारित किया गया। यहां तक कि कलकत्ता ही इस शहर का आफिशियल नाम बना रहा। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, कालिकाता का तात्पर्य संस्कृत के का​लिका यानि देवी काली और स्थान से है, जिसका अर्थ है देवी काली का स्थान

कुछ इतिहासकारों की मानें तो मुग़ल बादशाह अकबर के चुंगी दस्तावेजों और बंगाली कवि बिप्रदास द्वारा साल 1495 में रचित ग्रन्थ 'मनसामंगल' में भी कलकत्ता नहीं बल्कि कोलिकाता नाम का ही उल्लेख मिलता है। यही नहीं,  बांग्ला भाषी इस शहर को हमेशा से कोलकाता अथवा कोलिकाता नाम से ही जानते हैं। इस प्रकार कोलकाता नामकरण के पीछे यह तथ्य छुपा है कि यह नाम बंगाली भाषा और संस्कृति से मेल खाता है, साथ ही इससे श​हर की स्थानीय पहचान को स्वीकृति मिलती है।

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