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sindhudurg fort was the most powerful naval base of Shivaji Maharaj

शिवाजी महाराज का सबसे शक्तिशाली नौसैनिक अड्डा था यह समुद्री किला

पूरे महाराष्ट्र तथा कोंकण के समुद्री इलाके में पुर्तगालियों, अंग्रेजों तथा सिद्दियों का दबदबा था। जहां मुम्बई पर अंग्रेजों का कब्जा था, वहीं गोवा तथा भसीन पर पुर्तगालियों का शासन कायम था। जंजीरा को सिद्दियों ने अपने कब्जे में ले रखा था क्योंकि इन्हें शक्तिशाली मुगलों का संरक्षण प्राप्त था।

ऐसे में उपरोक्त विदेशी शक्तियों तथा मुगलों के जंगी ​जहाजों को मात देने व सामुद्रिक व्यापार पर बढ़त हासिल करने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने शक्तिशाली नौसेना के साथ-साथ कई नौसैनिक अड्डों की भी स्थापना की।

दोस्तों, जानकारी के लिए बता दें कि सामुद्रिक दुश्मनों से निबटने तथा मराठी युद्धपोतों की सुरक्षा के लिए शिवाजी महाराज ने अपनी देखरेख में अरब सागर में सबसे शक्तिशाली नौसैनिक अड्डे के रूप में एक अभेद्य दुर्ग का निर्माण करवाया। लाजिमी है, आप उस सामुद्रिक किले का इतिहास जानने को उत्सुक होंगे, अत: यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

सर्वाधिक शक्तिशाली नौसैनिक अड्डा था सिन्धु दुर्ग

छत्रपति शिवाजी महाराज ने सिद्दियों से मुरुड का जंजीरा किला जीतने के बाद अरब सागर में मराठा नौसैनिक मुख्यालय के रूप में एक शक्तिशाली सामुद्रिक दुर्ग बनवाने का निर्णय लिया। तत्पश्चात शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र राज्य के मालवन में अरब सागर के खुर्ते द्वीप पर एक अजेय समुद्री ​किले का निर्माण करवाया जो मराठा नौसेना का सबसे शक्तिशाली नौसैनिक अड्डा था। ऐसा कहते हैं कि अरब सागर के इस द्वीप (आईलैण्ड) को खोजने वाले चार कोली लोगों को शिवाजी महाराज ने कई गांव ईनाम में दिए थे।

यह समुद्री किला यूरोपीय शक्तियों- पुर्तगाली, अंग्रेज और फ्रांसियों के युद्धपोतों के अतिरिक्त जंजीरा के सिद्दियों को भी काबू करने में निर्णायक सिद्द हुआ। जी हां, इस अजेय समुद्री किले का नाम है सिन्धुदुर्ग जिसे छत्रप​ति शिवाजी महाराज ने स्वयं की निगरानी में बनवाया था।

सिन्धुदुर्ग की वास्तुकला

सिन्धुदुर्ग का शाब्दिक अर्थ है- ‘समुद्री किला शिवाजी महाराज ने स्वयं की निगरानी में 25 नवम्बर, 1664 ई. को महाराष्ट्र राज्य के मालवन खाड़ी के मुहाने के पास अरब सागर में खुर्ते बेट’ (मराठी भाषा में बेट का मतलब आइलैंड होता है) पर सिन्धुदुर्ग किले का निर्माणकार्य शुरू करवाया। सिन्धुदुर्ग के मुख्य वास्तुकार का नाम श्री हिरोजी इन्दुलकर था, जिसने शिवाजी महाराज के निर्देशन में कई नवीन मराठा किलों का​ निर्माण करवाया था।

समुद्री किले सिन्धुदुर्ग के निर्माणकार्य के दौरान तकरीबन 100 पुर्तगाली इन्जीनियरों को भी नियुक्त किया गया था, जिनकी मदद के लिए 3000 मजदूरों को काम पर लगाया गया था। 48 एकड़ क्षेत्र में फैले सिन्धुदुर्ग को बनाने में पूरे तीन साल लग गए।

मुम्बई से 450 किलोमीटर दक्षिण में अरब सागर में मौजूद सिन्धुदुर्ग मराठा नौसेना के लिए सबसे महत्वपूर्ण नौसैनिक अड्डा साबित हुआ। तकरीबन तीन किमी. लम्बे सिन्धुदुर्ग की वास्तुकला सामुद्रिक रणनीति के हिसाब से काफी मायने रखती थी।

गुजरात से लाई गई रेत से तैयार इस किले की दीवारें बेहद मजबूत हैं, जो 12 फीट मोटी और 30 फीट ऊंची हैं। सिन्धुदुर्ग के निर्माण में लोहे के 4000 से अधिक ढेरों का इस्तेमाल किया गया था। किले की नीव में पत्थर तथा सीसे पूरी मजबूती से बिछाए गए थे। आज की तारीख में यह समुद्री किला खंडहर में तब्दील हो चुका है परन्तु इसकी मजबूत दीवारों को देखने के बाद ऐसा लगता है कि कोई भी शत्रु इसे आसानी से नहीं तोड़ सकता था।

सिन्धुदुर्ग की सबसे बड़ी खासियत

छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे शक्तिशाली नौसैनिक किले सिन्धुदुर्ग की सबसे बड़ी खासियत इसका प्रवेश द्वार है। विशाल दीवारों से घिरा यह प्रवेश द्वार दूर से नजर नहीं आता है, ऐसा शत्रुओं को भ्रमित करने के लिए किया गया था।

दो बुर्जों के बीच में बना यह प्रवेश द्वार इतना संकरा है कि इसमें एक साथ केवल चार से पांच लोग ही एन्ट्री कर सकते हैं। रणनीति के लिहाज से यह प्रवेश द्वार बेहद महत्वर्पूण था क्योंकि शत्रु इस प्रवेशद्वार से ज्यादा संख्या में किले में नहीं घुस सकते थे, ऐसे में मराठा सैनिक बड़ी आसानी से उन्हें मार गिराते थे।

सिंधुदुर्ग किले में है शिवाजी महाराज का मंदिर

बता दें कि सिन्धुदुर्ग किले के मध्य में छत्रपति शिवाजी महाराज का मंदिर है, जिसमें शिवाजी महाराज महाराज की मूर्ति स्थापित की गई है, जिसे लोग बेहद पवित्र मानते हैं। इस मंदिर को शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम महाराज ने बनवाया था। इस मंदिर में आप शिवाजी महाराज के कपड़े, हथियार और चित्र आदि भी देख सकते हैं।

शिवाजी महाराज मंदिर के पास ही पानी के टैंक बने हुए हैं जो क्रमश: जीजामाता, पत्नी साईबाई और बेटी पुतलीबाई के नाम पर रखे गए हैं। सिन्धुदुर्ग में छत्रपति शिवाजी महाराज के समय के तीन मीठे पानी के कुएं भी मौजूद है, जिनका नाम क्रमश: दूध कुआं, शक्कर कुआं और दही कुआं है।

कैसे पहुंचे सिन्धुदुर्ग

महाराष्ट्र के लोकप्रिय पयर्टन स्थलों में से एक सिन्धुदुर्ग किला घूमने के लिए सर्दियों का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है। विशेषकर अक्टूबर से फ़रवरी के महीने में यहां का मौसम सुहावना रहता है। हां, बारिश के मौसम में यह किला घूमने के लिए सही नहीं है क्योंकि घनघोर बारिश तथा बिजली चमकने जैसी गति​विधियों के चलते कई बार नौका सेवाएँ निलंबित कर दी जाती हैं। सिंधुदुर्ग किले में आप सुबह 9 बजे से सायंकाल 5 बजे तक घूम सकते हैं। बता दें, सिंधुदुर्ग घूमने के लिए आपको एक रुपया भी शुल्क नहीं देना होगा।

सिन्धुदुर्ग पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको मालवन जाना होगा। इसके लिए आप गोवा के डाबोलिम हवाई अड्डे से मालवन पहुंच सकते हैं जो मालवन से तकरीबन 130 किमी. दूर है। आप रेलवे स्टेशन कुडाल से भी मालवन जा सकते हैं जो मालवन से 35 किमी. की दूरी पर है। इसके अतिरिक्त मुम्बई के नजदीकी शहरों से मालवन के लिए निजी वाहन सेवाएं उपलब्ध रहती हैं।

मालवन से सिन्धुदुर्ग पहुंचने के लिए पयर्टकों को फेरी की सवारी करनी पड़ती है। फेरी सेवा के जरिए आप 15 मिनट में सिन्धुदुर्ग पहुंच सकते हैं, फेरी सेवा शुल्क प्रति सवारी 70 से 80 रुपए है। फेरी सेवा प्रतिदिन उपलब्ध रहती है। सिन्धुदुर्ग किले से दिखने वाले ऊंचे-ऊंचे पहाड़ तथा अरब सागर की लहरें पयर्टकों का बरबस ही मन मोह लेती हैं। महाराष्ट्र के राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक सिन्धुदुर्ग को देखने के लिए देश-दुनिया के पयर्टक पूरे साल आते ही रहते हैं।

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