
डॉ. राम मनोहर लोहिया अक्सर यह कहा करते थे कि “उन पर ढाई आदमियों का प्रभाव रहा। एक मार्क्स का, दूसरे गांधी का और आधा जवाहर लाल नेहरू का।” पं. नेहरू ने ही डॉ. लोहिया को कांग्रेस का सचिव नियुक्त किया था। हांलाकि आजादी के बाद समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और वह तत्कालीन सरकार और प्रधानमंत्री पं. नेहरू के मुखर विरोधी बन गए। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने एक बार कहा था कि “लोहिया केवल प्रधानमंत्री नेहरू की नीतियों का विरोध करता है न कि जवाहर लाल नेहरू का”।
यह सच है कि जब हिन्दुस्तान पं. जवाहर लाल नेहरू को अपना सबसे बड़ा नेता मान रहा था, तब डॉ. राम मनोहर लोहिया ही एकमात्र ऐसे राजनेता थे जिन्होंने अपने तीखे सवालों से तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू की राजनीतिक बखिया उधेड़नी शुरू कर दी थी। समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया के बारे में अक्सर कहा जाता था कि “जब-जब लोहिया बोलता है, दिल्ली का तख्ता डोलता है”।
आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि पं. नेहरू से उम्र में 21 साल छोटे होने के बावजूद डॉ. राम मनोहर लोहिया उनके लिए तू-तड़ाक की भाषा का इस्तेमाल करते थे, जैसा कि डॉ. लोहिया के आपसी बातचीत, लेखों और पत्रों में आसानी से देखा जा सकता है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू के खिलाफ डॉ. लोहिया के राजनीतिक बयानों ने आम जनता के बीच सनसनी मचा दी थी। इस स्टोरी में हम आपको डॉ. लोहिया के कुछ चुनिन्दा बयानों से रूबरू कराने जा रहे हैं।
डॉ. राम मनोहर लोहिया के 06 सनसनीखेज बयान जिन्हें आज भी याद करती है जनता
बयान नं.1 — “प्रधानमंत्री नेहरू का रोजाना खर्च 25 हजार रुपए जबकि जनता को दो आने भी नसीब नहीं”
साल 1962 के आम चुनाव में फूलपुर से पं. नेहरू के खिलाफ बतौर सोशलिस्ट पार्टी उम्मीदवार डॉ. लोहिया ने पर्चा भरा। हांलाकि इस चुनाव में डॉ. लोहिया को 65000 मतों से हार का सामना करना पड़ा परन्तु उन्होंने जनता के सामने जो बयान दिए उससे पं. नेहरू की राजनीतिक बखिया उधड़ गई थी। नतीजा यह हुआ कि फूलपुर संसदीय क्षेत्र के 35 पोलिंग बूथ पर डॉ. लोहिया की जीत हुई और पं. नेहरू की जमानत तक जब्त हो गई थी।
इस आम चुनाव में डॉ. राम मनोहर लोहिया ने बयान दिया था कि प्रधानमंत्री नेहरू पर रोजाना 25 हजार रुपए खर्च होते हैं जबकि देश की जनता को प्रतिदिन दो आने भी नसीब नहीं होते। वहीं प्रधानमंत्री नेहरू के कुत्ते पर भी प्रतिदिन तीन रुपए खर्च निर्धारित है।
डॉ. लोहिया ने कहा कि मेरी प्रधानमंत्री नेहरू के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है लेकिन देश के तकरीबन 50 लाख लोग उनकी नकल कर रहे हैं। डॉ. लोहिया ने कहा कि 15 हजार करोड़ रुपए की सकल राष्ट्रीय आय का 5 हजार करोड़ रुपए अमीरों की विलासिता में खर्च हो रहे हैं जबकि शेष 10 हजार करोड़ रुपए में देश की 43.5 करोड़ जनता जीवन-यापन कर रही है। जवाब में पं. नेहरू ने कहा कि योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 70 फीसदी लोग 15 आना प्रतिदिन कमा रहे हैं। तब डॉ. लोहिया ने कहा कि “तीन आना बनाम पन्द्रह आना छोड़िए, पच्चीस हजार में तो लाखों आना होते हैं।”
बयान नं.2 — “देश पर हमला होता है और नेहरू पाजी सोता है”
साल 1962 में 8 सितम्बर को चीन ने हमारे देश पर हमला किया और अपना मकसद पूरा करने के बाद चीन ने खुद ही 21 नवम्बर 1962 को एकपक्षीय युद्ध विराम की घोषणा कर दी। मतलब साफ है, आज भी लद्दाख का 36,260 वर्ग किमी. और अरूणाचल प्रदेश का 5,180 वर्ग किमी. क्षेत्र चीनियों के कब्जे में है।
साल 1962 के युद्ध में चीन से मिली हार के बाद पं. जवाहर लाल नेहरू की छवि पर बहुत बुरा असर पड़ा। इतिहासकार बी.एल. ग्रोवर लिखते हैं कि “चीन के आक्रमण और भारत की करारी हार के साथ ही पं. नेहरू का एशिया का नेता बनने तथा संसार का महान व्यक्ति बनने का सपना एक झटके में टूट गया।”
चीन की हार से आहत विपक्ष के तमाम नेताओं ने पं. नेहरू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था जिसमें मीनू मसानी, जेबी कृपलानी और डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे कद्दावर नेता भी शामिल थे। डॉ. राम मनोहर लोहिया की नाराजगी पं. नेहरू से कदर थी कि वह अपनी पार्टी के विरोध- प्रदर्शनों में नारा लगवाते थे- “देश पर हमला होता है और नेहरू पाजी सोता है।”
बयान नं.3 — “आपके पहाड़ जैसे चुनाव में दरार पैदा कर दूंगा”
साल 1962 के लोकसभा चुनाव में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू के खिलाफ फूलपुर संसदीय क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी ने डॉ. राम मनोहर लोहिया को अपना प्रत्याशी बनाया था। उस दौरान लखनऊ से प्रयागराज आते समय कुंडा गेस्ट हाउस से डॉ. लोहिया ने पं. नेहरू को एक पत्र लिखा था। डॉ. लोहिया ने अपने पत्र में लिखा था कि “उत्तर प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी ने फूलपुर से मुझे अपना उम्मीदवार बनाया और मैं यह चुनाव लड़ना भी चाहता हूं। मैं इसका परिणाम भी जानता हूं, लेकिन मैं इतना कह सकता हैं कि आपके पहाड़ जैसे चुनाव में दरार पैदा कर दूंगा।”
डॉ. लोहिया के इस पत्र का जवाब पं. नेहरू ने कुछ इस तरह से दिया। पं. नेहरू ने अपने जवाबी पत्र में लिखा कि मुझे खुशी है कि तुम मेरे खिलाफ उम्मीद्दवार बनाए गए हो। परन्तु मैं तुम्हे विश्वास दिलाता हूं कि एक बार नामांकन करने के बाद फिर दोबारा फूलपुर नहीं आऊंगा, मैं देश के दूसरे क्षेत्रों में प्रचार करूंगा। हांलाकि डॉ. लोहिया ने इतना जबरदस्त प्रचार किया कि पं. नेहरू को फूलपुर चुनाव प्रचार के लिए आना ही पड़ा, इस प्रकार पं. नेहरू की प्रतिज्ञा भंग हो गई।
बयान नं.4 — “बिल्कुल तबलची और डोम-मिरासी लगता है”
पं. नेहरू का पहनावा सामान्यतया चूड़ीदार पायजामा और सफेद अचकन-शेरवानी थी जिसके बटनहोल में लाल गुलाब लगा होता था। नेहरू जैकेट भी काफी फेमस थी जो उत्तर भारत में पहनी जाने वाले अचकन की तरह थी। यह कुछ मोटे कपड़े से बनती थी और बंद गले की होती थी। डॉ. लोहिया के पुराने सहयोगियों के अनुसार, पं नेहरू को अचकन-शेरवानी और चूड़ीदार पायजामा में देखते ही डॉ. लोहिया तुरन्त टिप्पणी करते थे। डॉ. लोहिया कहते कि “बिल्कुल तबलची और डोम-मिरासी लगता है”।
बयान नं.5 —“आप भी तो गंजे हैं, आपके सर पर बाल नहीं उगता, तो क्या इसे काट दिया जाए”
साल 1963 में एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने पीओके का तकरीबन 5180 वर्ग किमी. क्षेत्र (अक्साई चीन) चीन के हवाले कर दिया। पाकिस्तान के इस कार्रवाई से भारत के अन्दर बहुत नाराजगी थी, दरअसल भारत इस क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता है। संसद में इस मुद्दे पर बहस के दौरान पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि "अक्साई चीन एक बंजर इलाक़ा है, वहां तिनके के बराबर भी घास नहीं उगती।"
जवाब में डॉ. लोहिया तुरन्त उठकर खड़े हो गए और कहा कि "आप भी तो गंजे हैं, आपके सर पर बाल नहीं उगता, तो क्या इसे काट दिया जाए।" हांलाकि डॉ.लोहिया के इस बयान का पं. नेहरू ने तनिक भी बुरा नहीं माना।
बयान नं.6 —डॉ. लोहिया ने पं. नेहरू से कहा-“ आप सदन के नौकर हैं”
साल 1962 में चीन से मिली शर्मनाक हार के बाद पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश व्याप्त था। इसी बीच साल 1963 में कांग्रेसी सांसद पं. मूलचंद्र दूबे के निधन के बाद फर्रुखाबाद संसदीय सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया चुनाव मैदान में उतरे। इस उपचुनाव में डॉ. लोहिया की सादगी-जमीनी पकड़ और कांग्रेस सरकार के खिलाफ बेबाक विचारों ने जनता के दिलों पर कब्जा कर लिया। लिहाजा डॉ. लोहिया ने तकरीबन 57 हजार मतों से जीत हासिल की।
फिर क्या था, लोकसभा पहुंचते ही डॉ. लोहिया ने सदन की चर्चाओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया। 1962 के युद्ध में मिली हार से देश अभी उबरा नहीं था, अत: सदन में इसी मसले पर बहस जारी थी। डॉ. लोहिया ने चीन से मिली हार का जिम्मेदार तत्कालीन सरकार के आला नेताओं को ठहराया।
डॉ. लोहिया ने आरोप लगाया कि बोमदीला क्षेत्र में एक गोली भी नहीं चली, फिर भी वह इलाका खाली कर दिया गया। केवल रात में शोरशराब हुआ और हमारी सेना घबराकर पीछे हट गई। डॉ. लोहिया ने कहा कि यह सरकार की कमजोरी नहीं, तो क्या है? डॉ. लोहिया का यह आरोप सुनते ही पं. नेहरू ने जवाब नहीं देने के गरज से कहा- यह तो प्रश्नकाल को बढ़ाना है कि मैं इस सवाल का जवाब अभी दूं। यह क्या सिलसिला है?
शायद डॉ. लोहिया को पं. जवाहर लाल नेहरू से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी, इसलिए उन्होंने आवेश में आकर कहा कि “प्रधानमंत्री को सदन में जवाब देना ही होगा। प्रधानमंत्री यह मत भूलें कि वे नौकर हैं और सदन मालिक है। मालिक के साथ नौकर को अच्छी तरह बात करना चाहिए।” इन शब्दों को सुनते ही कांग्रेसी नेता डॉ. भागवत झा आजाद विफर उठे, उन्होंने डॉ. लोहिया का विरोध करते हुए कहा– ‘वह नौकर हैं तो आप चपरासी हैं’। इससे सदन का माहौल और गरमा गया।
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