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Ram Raja Temple Orchha, Ram Raja gets armed salute every day

पीएम-प्रेसिडेन्ट नहीं, सिर्फ इस राजा को हर दिन मिलती है सशस्त्र सलामी

भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या से मध्य प्रदेश स्थित ओरछा नगर की दूरी तकरीबन 450 किमी. है। ओरछा का राम राजा मंदिर ​दुनिया का इकलौता मंदिर जहां रघुवंश शिरोमणि श्रीराम की पूजा भगवान के रूप में नहीं अपितु एक राजा के रूप में की जाती है। 

रामराजा मंदिर के गर्भगृह में स्थापित श्रीराम की मूर्ति पद्मासन अवस्था हैं, जिसके दाएं में तलवार तथा बाएं हाथ में ढाल है। मंदिर में राम राजा के साथ माता सीता, लक्षमणजी, महाराज सुग्रीव भी विराजमान हैं। सीता माता के ठीक नीचे हनुमान जी एवं जाम्बन्त जी पूजा कर रहे हैं। राम राजा की दिनभर में चार बार आरती होती है। राम राजा के लिए इस मंदिर में बतौर गार्ड पुलिसकर्मियों की नियुक्ति सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है।

ओरछा के इस मंदिर में राम राजा के भोग से लेकर भोजन तक तथा अन्य सभी सुविधाएं शाही होती है। यहां तक कि राम राजा को पुलिसकर्मियों के द्वारा प्रतिदिन सशस्त्र सलामी (गार्ड ऑफ ऑनर) दी जाती है। हैरानी की बात यह है कि ओरछा नगर में राम राजा के अतिरिक्त किसी भी शख्स को गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया जाता, यहां तक कि प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति को भी नहीं।

अब आप सोच रहे होंगे कि ओरछा के राम राजा मंदिर में भगवान श्रीराम को सशस्त्र सलामी (गार्ड ऑफ ऑनर) क्यों दी जाती है? इसके अतिरिक्त इस मंदिर में भगवान श्रीराम की पूजा राजा के रूप में क्यों होती है? इन सब रोचक प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

भगवान श्रीराम की उपासक थीं ओरछा की रानी गणेश कुंवरी

16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह भगवान श्रीकृष्ण के उपासक थे, वहीं महारानी गणेशकुंवरी भगवान श्रीराम की अनन्य उपासक थीं। ऐसा कहते हैं कि राजा मधुकरशाह ने एक बार रानी गणेशकुंवरी को वृन्दावन चलने का प्रस्ताव दिया। किन्तु रानी गणेशकुंवरी ने इस प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक ठुकराते हुए अयोध्या जाने की बात कही। तत्पश्चात राजा मधुकर शाह ने क्रोधित होकर रानी गणेशकुंवरी से कहा कि यदि तुम्हारे श्रीराम में तनिक भी सच्चाई है, तुम्हे उन्हें ओरछा लाकर दिखाओ अन्यथा राज महल के दरवाजे तुम्हारे लिए बंद रहेंगे।

फिर क्या था, रानी गणेशकुंवरी अपने ईष्ट भगवान श्रीराम को ओरछा लाने के लिए अयोध्या आईं। रानी गणेशकुंवरी ने तकरीबन महीनेभर फलाहार रहकर अयोध्या में लक्ष्मण किले के पास कठोर तप-साधना की। इसके बाद भी जब भगवान राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में जलसमाधि लेने का निर्णय लिया। इसी उद्देश्य से रानी गणेशकुंवरी जब सरयू नदी के गहरे जल में उतरने लगीं और जब डूबने ही वाली थीं तभी भगवान श्रीराम बालक (रामलला) रूप में प्रकट हुए।

रानी गणेश कुंवरी के समक्ष रामलला ने रखी तीन शर्तें

कहा जाता है कि भगवान श्रीराम अपने बालस्वरूप में सरयू नदी के जल में ही रानी गणेश कुंवरी के गोद में आ गए। तत्पश्चात रानी ने रामलला से ओरछा चलने का निवेदन किया, किन्तु रामलला ने ओरछा चलने की तीन शर्तें रख दीं- 1. ओरछा में राजा रूप में विराजित होने के पश्चात किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी। 2. मैं ओरछा जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा। 3. बाल स्वरूप में विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु-संतों के साथ पैदल ही जाऊंगा। फिर क्या था, रानी गणेश कुंवरी ने उपरोक्त तीनों शर्तें स्वीकार कर ली। तत्पश्चात तकरीबन 8 महीने और 27 दिन पैदल चलकर रानी गणेशकुंवरी राम राजा को लेकर जैसे ही अयोध्या से ओरछा पहुंची, राजा मधुकरशाह ने स्वेच्छापूर्वक अपना मुकुट त्याग दिया। राम राजा मंदिर में लिखित एक दोहे का अंश कुछ इस प्रकार है- “खास दिवस ओरछा रहत हैं रैन अयोध्या वास”। इसका हिन्दी अर्थ है – भगवान राम दिन​ विशेष पर ओरछा में रहते हैं जबकि रात्रि में अयोध्या निवास करते हैं।

रामलला की मूर्ति को ओरछा लाने का ऐतिहासिक कारण

16वीं शताब्दी में ओरछा नरेश मधुकरशाह ने मुरादशाह को पराजित कर कई किले अपने अधीन किए तथा बुन्देलखण्ड साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया। ध्यान देने योग्य बात यह है कि उन दिनों मुगल अकबर पूरे हिन्दुस्तान का बादशाह था, ऐसे में मधुकरशाह की यह कार्रवाई उसके सम्मान के विरूद्ध थी। 

इतिहास की पुस्तकों में यह दर्ज है कि एक बार मुगल बादशाह अकबर के अपने राजदरबार में तिलक लगाकर आने पर पाबंदी लगा दी थी। स्व. श्रीमुंशी अजमेरी अपनी किताब ‘मधुकर शाह’ में कुछ इस प्रकार लिखते हैं - “एक दिन आके बादशाह की बहार में, बोले बादशाह उसी दरबार में। राजा-महाराजा यह हुक्म सुनें मेरा सब, तिलक लगा के आना ठीक नहीं होगा अब।।”

बादशाह अकबर के फरमान जारी करने के बावजूद मधुकरशाह तिलक लगाकर मुगल दरबार में पहुंचे। यह एक प्रकार से बादशाह अकबर के विरूद्ध ​बगावत का संकेत था। जब बादशाह अकबर ने क्रोधित होकर मधुकरशाह से पूछा कि क्या आपको मेरे फरमान की जानकारी नहीं थी। जवाब में मधुकर शाह के साहसपूर्ण शब्दों को स्व. श्रीमुंशी अजमेरी जी कुछ इस प्रकार लिखते हैं— “धर्म दिव्य दीपक है, मोक्ष की भी राह का, धर्म से नहीं बड़ा हुक्म बादशाह का। जीते जी कदापि धर्म से नहीं मुंह मोडूंगा, डर से किसी के कर्म-धर्म नहीं छोड़ूंगा। तिलक लगाना धर्म मेरा है सदा से ही, धर्म नहीं छोड़ सकता मैं हुक्म शाही से।” ओरछा नरेश मधुकरशाह की धर्म के प्रति अटल आस्था को देख मुगल बादशाह अकबर ने अपना फरमान वापस ले लिया।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि 16वीं सदी में मुस्लिम आक्रान्ताओं के द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने का क्रम शुरू हो चुका था, ऐसे में अयोध्या के साधु-सन्तों ने रामलला का विग्रह सरयू नदी में बालू के नीचे दबा दिया था। हांलाकि अयोध्या के साधु-सन्तों को यह बात भी भली-भांति पता थी कि सनातन धर्म के प्रति दृढ़ मधुकर शाह के संरक्षण में ही रामलला का विग्रह सुरक्षित रह सकता है। ऐसे में ओरछा की महारानी गणेशकुंवरी जब अयोध्या पहुंची तथा स्थानीय साधु-सन्तों के साथ मिलकर रामलला को ओरछा ले आईं।

महारानी के महल में ही क्यों स्थापित हैं राम राजा

1. धार्मिक दृष्टिकोण -  ओरछा के असली राजा भगवान श्रीराम से जुड़ी यह पूरी कहानी केवल तीन भवनों में सिमटी है, पहला राम राजा मंदिर, दूसरा चतुर्भज मंदिर तथा तीसरा है रानी गणेशकुंवरी का महल। अयोध्या के लिए प्रस्थान करने से पूर्व महारानी ने अपने राजकर्मियों से एक विशाल चतुर्भज मंदिर निर्माण करवाने का आदेश दिया ताकि उसमें भगवान श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा की जा सके।

जनश्रुतियों के अनुसार, रानी गणेशकुंवरी के साथ रामलला जब अयोध्या से ओरछा आए तब रानी ने अगले ही दिन चतुर्भज मंदिर में उन्हें स्थापित करने के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाया किन्तु रामलला ने कहा कि वह अपनी मां का वात्सल्य छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। इसके बाद रानी गणेशकुंवरी ने रामलला के विग्रह को अपने महल में ही स्थापित कर दिया। तब से रानी का वह महल ‘राम राजा मंदिर’ के रूप में विख्यात हो गया।

2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण - इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि ओरछा में राम राजा का विग्रह स्थापित करने के लिए पहले भव्य एवं विशाल चतुर्भुज मन्दिर का निर्माण करवाया गया था, किन्तु सुरक्षा कारणों से राम राजा के विग्रह को मंदिर की जगह महारानी के रसोई में स्थापित कर दिया गया।

इसके पीछे विद्वानों का तर्क यह है कि रजवाड़ों के महिलाओं की रसोई से सुरक्षित स्थान और कहीं हो ही नहीं सकता था। ऐसे में ​विदेशी विध्वंसकारियों से बचाने के लिए राम विग्रह को रानी के महल में स्थान दिया गया, जिसे आज हम सभी राम राजा मंदिर के नाम से जानते हैं। 

विशेष क्यों हैं राम राजा मंदिर

ओरछा के राम राजा मंदिर की वास्तुकला राजपूत-मुगल शैली का उत्कृष्ट नमूना है। सफेद, गुलाबी और पीले रंगों से सुसज्जित इस भव्य मंदिर के गुंबदों, बुर्जों सहित इसकी बारीक नक्काशी देखते ही बनती है। ओरछा के भव्य इमारतों में से एक है राम राजा मंदिर।

देश के किसी भी मंदिर में विशिष्ट अतिथियों का स्वागत मीठे प्रसाद वितरण से ही किया जाता है, किन्तु राम राजा मंदिर एकमात्र मंदिर है जहां विशिष्ट अ​तिथियों का स्वागत पारम्परिक रूप से पान-सुपारी और इत्र से किया जाता है।

प्रत्येक साल कार्तिक महीने में आयोजित होने वाला राम विवाह महोत्सव इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है। इस महोत्सव में शामिल होने के लिए श्रद्धालु भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है। यही नहीं, राम विवाह महोत्सव के दौरान घोड़ों का रोमांचक प्रदर्शन इस तिथि को यादगार बना देता है।

दिवाली के शुभ पर्व पर राम राजा मंदिर दीयों की सजावट से जगमगा उठता है। इसके अतिरिक्त राम नवमी तिथि पर श्रद्धालु भक्तों की आस्था-पूजा से राम राजा मंदिर और भी जीवंत हो उठता है। राम नवमी, कार्तिक पूर्णिमा के अलावा गंगा दशहरा, रथ यात्रा, सावन तीज, विवाह पंचमी, गणेश कुंवारी जयंती, होलिका उत्सव, मकर संक्रांति, वसंत पंचमी तथा महाशिवरात्रि के पर्व पर भक्तों की संख्या हजारों-हजार में होती है।

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