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Rabindranath Tagore wrote the famous novel Nauka Dubi in Ghazipur, many Hit films have been made

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाजीपुर में लिखा था यह प्रख्यात उपन्यास, बन चुकी हैं कई हिट फिल्में

नोबल पुरस्कार विजेता, राष्ट्रगान के रचयिता, चित्रकार, शिक्षाविद् तथा महान स्वतंत्रता सेनानी रवीन्द्रनाथ टैगोर 37 वर्ष की उम्र में अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ 1888 ई. में गाजीपुर आए थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी गाजीपुर यात्रा के बारे में स्वयं लिखा है – “मैंने यह सुन रखा था कि गाजीपुर गुलाबों का शहर है, ऐसे में गुलाब के बगीचे मुझे यहां खींच लाए।

उन दिनों रवीन्द्रनाथ टैगौर के एक दूर के रिश्तेदार गगनचन्द्र राय अफीम फैक्ट्री, गाजीपुर में एक बड़े पद पर कार्यरत थे। अत: बड़ी आसानी से उनके रूकने का इंतजाम हो गया। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गोराबाजार (रविन्द्रपुरी) में जिस जगह प्रवास किया, उससे तकरीबन 50 मीटर की दूरी पर गगनचन्द्र राय का बंगला था। वर्तमान में यह घोषाल साहब के बंगले के नाम से विख्यात है।

दोस्तों, साल 2006-07 में जब मैं अपना शोधकार्य पूर्ण कर रहा था, तब मुझे भी बतौर किराएदार तकरीबन एक वर्ष तक इसी बंगले में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ऐसे में तकरीबन हर रोज रवीन्द्रनाथ टैगोर के प्रवास स्थल को अपनी आंखों से देखने का सौभाग्य प्राप्त होता था किन्तु शोधकार्य में व्यस्त होने के कारण कुछ लिख नहीं पाया।

आज मैं अपने इस लेख में रवीन्द्रनाथ टैगोर के उस प्रख्यात उपन्यास पर प्रकाश डालने की कोशिश रहा हूं, जिसे उन्होंने अपने गाजीपुर प्रवास (तकरीबन छह माहके दौरान लिखा था। बता दें कि इस उपन्यास पर अब तक कई हिट फिल्में भी बन चुकी हैं। जी हां, आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं, मैं रवीन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास नौका डूबी की बात कर रहा हूं। यदि आप भी रवीन्द्रनाथ टैगौर के प्रख्यात उपन्यास नौका डूबी के बारे में जानने को उत्सुक हैं तथा इस उपन्यास पर आधारित उन हिट फिल्मों के बारे में जानना चाहते हैं तो इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

रवींद्रनाथ टैगोर का गाजीपुर प्रवास

भारतीय इतिहास में रवीन्द्रनाथ टैगोर एक ऐसा नाम है, जिनकी उपलब्धियों से देश का बच्चा-बच्चा परिचित है। इन सब बातों से परे भारत का प्रत्येक विद्यार्थी अपने स्कूल के पहले ही दिन रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित राष्ट्रगान से ही अपनी पढ़ाई की शुरूआत करता है।

वीरों की धरती गाजीपुर को भारत की जिन महान हस्तियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उनमें से एक नाम गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगार का भी है। स्थानीय इतिहासकार डॉक्टर उबैदुर्रहमान सिद्दीकी के अनुसार, रवीन्द्रनाथ टैगोर साल 1888 में गाजीपुर आए थे और उनका गाजीपुर प्रवास तकरीबन छह महीने तक रहा।

पूर्वांचल के प्रख्यात हिन्दी साहित्यकार डॉ. विवेकी राय (अब नहीं रहे) लिखते हैं कि 37 वर्षीय रवीन्द्रनाथ टैगौर ने विवाह के पश्चात अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ गुलाबों के शहर गाजीपुर का चयन किया।  यह भी जानकारी मिलती है कि विदेशी लेखक आर. हैबर तथा ब्रिटिश लेखिका एम्मा रार्बट्स ने अपने लेखों में गंगा तट पर बसे गाजीपुर शहर का मनमोहक चित्रण किया था, जिसे पढ़कर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाजीपुर प्रवास का निर्णय लिया।  

साल 1888 में रवीन्द्रनाथ टैगोर कलकत्ता के मशहूर हावड़ा रेलवे स्टेशन से दिलदारनगर स्टेशन तक ट्रेन से आए। इसके बाद लोकल ट्रेन से तोड़ीघाट रेलवे स्टेशन पहुंचे। ताड़ी घाट रेलवे स्टेशन पर पहुंचने के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर नाव के जरिए गंगा नदी पारकर इक्का गाड़ी से गोरा बाजार (रविन्द्रपुरी) पहुंचे। 

गोरा बाजार में रवीन्द्रनाथ टैगोर के दूर के रिश्तेदार गगनचन्द्र राय का बंगला था। गगनचन्द्र राय उन दिनों अफीम फैक्ट्री, गाजीपुर में एक बड़े पद पर कार्यरत थे। ऐसे में बड़ी आसानी से गोरा बाजार में ही रवीन्द्र नाथ टैगोर के रहने के लिए एक बड़े बंगले का इंतजाम हो गया।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का यह बंगला गंगा किनारे ही बना हुआ था। रवीन्द्रनाथ टैगोर लिखते हैं कि गंगा किनारे तकरीबन मील भर लम्बा रेत पड़ा है। गंगा के तट पर जौ, चना और सरसों के खेत हैं, साथ ही गंगा की धारा दूर से ही दिखाई देती है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का प्रख्यात उपन्यास नौका डूबी

गंगा तट पर ही रवीन्द्रनाथ टैगोर का बसेरा था, ऐसे में वह प्रतिदिन गंगा की लहरों तथा आती-जाती नौकाओं को अपनी नजरों से निहारा करते थे। कहते हैं, एक दिन उनकी आंखों के सामने ही यात्रियों की एक नाव गंगा में डूब गई। इसके बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर के नौका डूबी नामक उपन्यास का जन्म हुआ। अपने छह महीने के प्रवास के दौरान गुरुदेव ने तकरीबन 28 कविताएं भी लिखीं जिनमें से अधिकांश कविताएं मानसी का हिस्सा हैं।

कुछ विद्वानों का यह कहना है कि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने उपन्यास नौका डूबी का केवल पहला अध्याय ही गाजीपुर में लिखा था। खैर जो भी हो इसकी सम्पूर्ण कहानी गाजीपुरी परिवेश के इर्द-गिर्द घूमती है। साल 1906 में प्रकाशित बंगाली उपन्यास नौका डूबी का कथानक कुछ इस प्रकार है— “एक अमीर परिवार का युवक गोपीनाथ जिस नाव से यात्रा कर रहा होता है, वो नाव एक तूफान में डूब जाती है। लोग गोपीनाथ को मृत मान लेते हैं, परन्तु इसी बीच उसके हमशक्ल रमेश को लोग गोपीनाथ समझ लेते हैं। ऐसे में रमेश की शादी गोपीनाथ के मंगेतर ज्योत्सना से करा दी जाती है। हांलाकि गोपीनाथ उस हादसे में जीवित बच जाता है, लेकिन वह अपनी असली पहचान नहीं बता पाता है।

गोपीनाथ अब ज्योत्सना के ससुर यानि अपने ही घर में नौकर के रूप में काम करने लगता है। अपने शब्दों तथा कामों से वह ज्योत्सना तथा अपने घरवालों का दिल जीत लेता है। अंत में जब सच्चाई का पता चलता है ​तब गोपीनाथ और ज्योत्सना एक बार फिर से मिल जाते हैं। इस प्रकार दो प्रेमियों के एक सुखद मिलन के साथ यह उपन्यास समाप्त हो जाता है।

उपन्यास नौका डूबीपर आधारित हिट फिल्में

रवींद्रनाथ टैगोर के प्रख्यात उपन्यास नौका डूबी पर आधारित कई फिल्में बनी हैं। जो इस प्रकार हैं

 1. मिलन (1946 ई.)

साल 1946 में बनी इस शानदार मूवी को नितिन बोस ने निर्देशित किया था। इसके मुख्य कलाकारों में दिलीप कुमार, मीरा मिश्रा, रंजना, पहाड़ी सान्याल और मोनी चटर्जी का नाम शामिल है।

2. घूँघट (1960 ई.)

साल 1960 में इस हिट मूवी का निर्देशन रामानन्द सागर ने किया था। इस फिल्म में भारत भूषण, प्रदीप कुमार, बीना राय, आशा पारेख, लीला चिटनिस, राजेंद्रनाथ, रहमान और आगा ने शानदार अभिनय किया है। इस फिल्म के लिए बीना राय को 8वें फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।

3. नौका डूबी (2011 ई.)

इस बंगाली फिल्म को रितुपर्णो घोष ने निर्देशित किया है। इस फिल्म में प्रोसेनजीत चटर्जी , जीशु सेनगुप्ता, राइमा सेन और रिया सेन ने मुख्य भूमिका निभाई है।

4. कश्मकश (2011 ई.)

बंगाली फिल्म नौका डूबी को हिन्दी में डब करके मई 2011 में कश्मकश नाम से रिलीज किया गया। इस मूवी का ​सम्पादन प्रख्यात फिल्म निर्देशक सुभाष घई ने किया।

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